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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 19, 2017

खिलाड़ी के खेलने पर आजीवन प्रतिबंध--- पर एम पी और एम एल ए पर सिर्फ 6 साल चुनाव लड़ने की बंदिश ??

एक मामले मे सुप्रीम कोर्ट मे केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है की भ्रष्ट और आपराधिक व्यक्तियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध नहीं लगाया जाये | इतना ही नहीं यह भी कहा गया की जन प्रतिनिधियो के लिए न्यूनतम शैक्षणिक यौग्यता की अनिवार्यता निर्धारित नहीं की जाये |इसके विपरीत बोर्ड ऑफ क्रिकेट कंट्रोल ऑफ इंडिया ने केरल के खिलाड़ी श्रीसंत पर गैर कानूनी आचरण यानि "”फिक्सिंग '' के आरोप के आधार पर उनकी अपील को खारिज करते हुए उन पर आजीवन खेलने पर प्रतिबंध का फैसला किया | क्या यह विसंगति नहीं है की एक राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी की एक गलती उसे खेलने से ही बाधित कर दे ? जबकि अदालत से वह उस आरोप मे बरी हो चुका हो ? वनही अदालत से सजायाफ्ता व्यक्ति लाखो मतदाताओ का प्रतिनिधि बन जाये ??
पहली नजर मे लगेगा की ऐसे तर्क और जवाब क्या नरेंद्र मोदी की सरकार की ओर से अदालत मे दिये जा सकते है ? विश्वास नहीं होगा --परंतु यह विचित्र भले ही हो पर -सत्य है ! जिस देश मे पाँच हज़ार रुपया प्रति माह की तंनख़्वाह चपरासी को मिलती हो ,और उसके लिए भी बारहवी क्लास पास होना और सदचरित्र का प्रमाणपत्र अनिवार्य हो वनहा एक हज़ार और दो हज़ार रुपया प्रतिदिन का भत्ता लेने वाले जन प्रतिनिधियों को इन शर्तो से छूट मिले भला क्यो ?|
सरकार की इस मजबूरी का एक ही कारण संभव है --की चरित्रवान और शिक्षित लोगो का राजनीतिक दलो मे नितांत अभाव हो ? जब बाहुबली और आपराधिक मामलो के - आरोपी और कम पड़े लिखे लोग विधायी सदन मे जाएँगे -तब वे केवल और केवल हाथ ही उठाने लायक होंगे --चाहे पक्ष की ओर से या विपक्ष की ओर से ! है न अद्भुत सत्य ? मजे की बात है की इस मांग का समर्थन सभी राजनीतिक दल करेंगे | चाहे वे एक दूसरे को सार्वजनिक रूप से कितनी ही लानत - मलानत करे परंतु लाभ के अवसरो पर सब एक हो जाते है जैसे वेतन और भत्ते के निर्धारण की बात हो अथवा चरित्र और शिक्षा की अनिवार्यता की बात हो | तब उन्हे शुचिता और न्याय की बात नहीं सूझती है | देश मे भूख -अशिक्षा - पेयजल ऐसी समस्याओ पर दोनों ही पक्ष एक -दूसरे की छीछालेदार भले करे , परंतु कोई ठोस हल निकालने की कोशिस नहीं होती है |
सिर्फ "” मुझ से अच्छा कौन है "” की आतम मुग्धता से ग्रसित देश के राजनीतिक दल अपने -अपने वोट बैंक को सम्हालने के लिए जनता के हितो की कुर्बानी देते है | परंतु कोई भी दल नौकरशाही या अफसरशाही के तंत्र से नहीं बच पाता है | चुनाव के दौरान सफलता का श्रेय और असफलता का दोष पार्टिया एक -दूसरे पर लगाती है | परंतु कोई भी इस ओर प्रयास नहीं करता की जिस तंत्र के कारण जन कल्याण की योजनाए धरातल पर असफल हो रही--- वह सिर्फ "”बाबूतन्त्र "” के भ्रष्टाचार के कारण लोगो तक नहीं पहुँच पाता | उसका समाधान खोजा जाये | इस भ्रष्ट तंत्र से निरीह किसान और और गरीब जनता को कैसे बचाया जाये | सोवियत यूनियन -जिसकी स्थापना मजदूर हितो को लेकर जन सघर्ष किया गया ---उस ऐतिहासिक जन क्रांति को 70 {सत्तर } साल मे नौकरशाही ने ध्वष्त कर दिया |
ऐसे मे अशिक्षित और आपराधिक प्रष्ठ भूमि के जन प्रतिनिधि क्या जन कल्याण कारी कार्य कर सकेंगे ?? ऐसे मे केंद्र सरकार की ओर से महान्यायवादी रोहतगी द्वरा दी गयी यह दलील कितनी सही है --इसका मूल्यांकन करना और --होना जरूरी है |
बलबीर पुंज जी अयोध्या मंदिर और गौवध पर मैकाले और मार्क्ष्स समर्थक ही नहीं अरुणाचल -मेघालय - नागालैंड मणिपुर और त्रिपुरा के निवासी भी असहमत

भारतीय जनता पार्टी के नेता और पूर्व पत्रकार बलबीर पुंज जी ने एक आलेख मे आरोप लगाया की अयोध्या मंदिर के निर्माण मे अंग्रेज़ो की शिक्षा प्रणाली से निकले लोग ही इसका विरोध कर रहे है | वैसे उनके कथन से तो सर्वोच्च न्यायालय भी आ गया है ,,क्योंकि उसने भी बाबरी मस्जिद विध्वंश के षड्यंत्र के लिए आडवाणी - उमा भारती जयभान सिंह पवैया समेत दर्जन भर नेताओ पर मुकदमा चलाये जाने का आदेश दिया है | मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह ने अदालत के आदेश पर प्रतिकृया व्यक्त की है की "” कोई माई का लाल भी आरोप साबित नहीं कर सकता "” अब यह बयान तो यही संदेह उत्पन्न करता है की उत्तर प्रदेश सरकार ही इस मुकदमे को जीतने का प्रयास नहीं करेगी | वरना इतने विश्वास से कोई अभियुक्त कैसे गर्जना कर सकता है |

रही बात गौवध पर सारे देश मे प्रतिबंध की राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ के सर संघचालक डॉ मोहन भागवत के कथन की -उसमे अनेक कानूनी अडचने है | मोर राष्ट्रीय पक्षी है और सिंह राष्ट्रीय पशु है इन दोनों को मारने पर सज़ा का प्रावधान है | परंतु केरल और तमिलनाडू तथा पूर्वोतर के पांचों राज्यो मे गाय का मांस वनहा के लोगो के खाद्य पदार्थ है | अब इतनी बड़ी आबाड़ी को उत्तर भारत के आस्था और विश्वास के तले जबरन तो नहीं लाया जा सकता | संविधान की राज्य सूची मे खान -पान का विषय है | पूर्वोतर के राज्यो मे उत्तर भारत के विपरीत मात् सत्तात्मकपरिवार है अर्थात वनहा घर का मुखिया महिला होती है और , उत्तराधिकार भी उसी के अनुरूप होता है |
भारतवर्ष मे सभी राज्यो मे अपनी संसक्राति और भाषा तथा रिवाज है | जो दूसरों को असहज लगेंगे | तमिल परंपरा मे मामा -भांजी का विवाह उत्तम माना जाता है | उत्तर भारत मे यह निषिद्ध श्रेणी मे आता है --अर्थात इस विवाह को गैर कानूनी माना जाएगा | केरल के मलयाली समज के नायर समुदाय मे "”पाणिग्रहण "” नहीं होता वनहा "”संबंधम "” होता है | अब यह हिन्दु कोड के अनुरूप नहीं है | तो क्या हम उत्तर भारत की परंपरा और सोच को उन पर थोप सकते है ?? मेरा मानना है बिलकुल नहीं |

पुंज साहब जिस गुलामी मानसिकता की बात करते है ---उसे आजादी की लड़ाई के दौरान देश ने देखा है --जब संघ ने महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन का विरोध किया था | संघ समर्थित एक भी नेता उस लड़ाई मे नहीं था | सावरकर का नाम लिया जाता है --परंतु अभिलेखगर के सबूतो के अनुसार उन्होने अंग्रेज़ो से रिहाई के लिए माफी मांगी थी |

आज शगूफे के तौर पर इन मुद्दो को पुराने बस्तो से निकाल कर लाया जा रहा है --क्योंकि आज की नयी पीड़ी को भारत की विविधता और विभिन्नताओ की जानकारी नहीं है | उन्हे तो वही सत्य लगता है जो शासन के कंगूरे पर चाड कर बोला जा रहा हो | परंतु वह सत्य नहीं है तथ्य नहीं है |