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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 13, 2021

 

धरम से जाति और अब आरक्षण से समाज में सद्भाव



संसद के दोनों सदनो से देश की पिछड़ी जातियो को शिक्षा और नागरिक सेवाओ एन आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए – जैसी सर्वानुमती सभी राजनीतिक दलो ने दिखाई हैं , वैसा आजतक के संसदीय इतिहास एन देखने को नहीं इलता हैं | सिवाय शोक प्रस्तावो के ! इस विधायन से कुछ सवाल उठते हैं जिन पर विचार करना जरूरी हैं |

1--- केवल शिक्षा और नागरिक सेवाओ में आरक्षण देना ही इस वर्ग की जनसंख्या की उन्नति के लिए पर्याप्त हैं शायद नहीं ?

2-- विधान सभाओ और लोक सभा में इन जातियो /वर्गो को आरक्षण क्यू नहीं ? जैसा की अनुसूचित जातियो और जन जातियो के लिए हैं ,वैसा क्यू नहीं ?

क्या इसलिए की ऐसा करने से धरम और जाति के वोट बैंक के मध्य संघर्ष बदेगा ? जैसा की बिहार और उत्तर प्रदेश का विगत इतिहास बताता हैं !


आपातकाल के दौरान देश के सांविधान में एक क्रांतिकारी संशोधन किया गया था इस प्रक्रिया में 42 वा था | इसें कहा गया था की "” भारत संप्रभु समाजवादी ध्रमनिरपेक्ष लोकतन्त्र गणराज्य है "” प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के एक मार्गदर्शक बल्ल्भ्भई पटेल हैं ,जिनकी याद में उन्होने दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति बनवाई है | 1931 के कराची में काँग्रेस के अधिवेशन में अध्यक्ष पद से संभोधित करते हुए कहा था "”मैं भारत एन समाजवादी गणराजय चाहता हूँ " उन्होने चार उद्देश्य भी कार्यकर्ताओ के सम्मुख रखे थे –

1- जाति प्रथा और धार्मिक अंधविसवासों का खत्म हो

2-किसानो और मजदूरो को समाजवादी कार्यक्रम के आधार पर संगठित किया जाये |

3- स्त्रियो की सार्वजनिक भूमिका मे बदलाव हो

4- नौजवानो को अनुशासन सिखाया जाए

अब 127वे सविधान संशोधन ने तो बल्लभ भाई के सपनों को चकनाचूर कर दिया हैं | जाति गत आरक्षण राजनीति एन एन तो नहीं हुआ --पर शिक्षा और सरकारी सेवाओ एन किया गया , वह भी सुप्रीम कोर्ट की नियत सीमा से अधिक ! इतिहास में 1931 और 1978 तथा 2021 की तिथिया अंकित हो गयी जो एक दूसरे की विरोधाभाषी हैं |

पर इसी समय देश के अनेक हिस्सो से जातिगत जनगणना की जोरदार मांग भी उठी | जिसे सरकार ने मानने से इंकार कर दिया ! सवाल उठता हैं की जब शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्राविधान किया हैं तब विधान सभाओ और लोकसभा तथा अन्य निकायो में क्यू नहीं ?

मजे की बात यह हैं की मोदी सरकार ने जातिगत आरक्षण के लिए संविधान को बदलने की कोशिस की तो की , परंतु राजनीति में अर्थात विधान सभाओ और लोकसभा में जातिगत आरक्षण से इंकार किया | इतना ही नहीं स्त्रियो के आरक्षण की सुविधा केवल स्थानीय निकायो तक ही सीमित रही , आखिर क्यू ?

देश ने विगत सात वर्षो में दो मुख्य धरमो के बीच कट्टरता के कारण जिस प्रकार नफरत का वातावरण बना हैं , वह अब और आगे बड़ा दिया हैं --- 124वे संविधान संशोधन ने | इसके द्वरा राज्यो को यह आज़ादी दी गयी हैं की वे अपने छेत्र की पिछड़ी जातियो

को 24 प्रतिशत आरक्षण दे सकेंगे | यदि सर्वोच्च न्यायालय ने रोक नहीं लगाई | वैसे अभी यह रोक जारी हैं | वैसे धरम के आधार पर कोई आरक्षण नहीं हैं | परंतु राजनीतिक दलो ने फूँक मारकर इन्हे वोट बैंक में बदलने की पूरी कोशिस की हैं |

वैसे ब्रिटिश हुकूमत ने धर्म और जाति के आधार पर तथा -पेशे के आधार पर प्रांतो की धारा सभाओ में स्थान आरक्षित किए थे |

1934 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में मुस्लिम , सिख और भारतीय ईसाइयो तथा एयरोपियन समुदाय को आरक्षण दिया गया था | इतना ही नहीं पिछड़े छेत्र और जन जातियो को भी यह सुविधा थी |इतना ही नहीं जो काम हमारे संविधान निर्माताओ से बिसर गया -वह था महिला आरक्षण , ब्रिटिश सरकारने उसका भी प्रविधान किया था | इतना ही नहीं व्यापार और उद्योग , भूमि स्वामियों और विश्वविद्यालयो तथा श्रमिकों का भी स्थान आरक्षित था ! कुल बारह प्रकार के आरक्षण थे | परंतु तब स्वतन्त्रता संग्राम की धुन में समाज के वर्गो में वैमनस्यता का अभाव था | इसलिए इन सुविधाओ का राजनैतिक लाभ उठाने की किसी भी राजनीतिक दल ने नहीं की -----जिसकी इस संविधान सनसोधन से पूरी संभावना हैं |

एक बात और इन आरक्षण में थी की -मुस्लिम

महिलाओ को बंबई - मद्रास - बंगाल -और सयुक्त प्रांत में तथा पंजाब और सिंध में था |मद्रास में 6 सीट थी बॉम्बे 5 सीट तथा संयुक्त प्रांत में 4 सीट थी |बिहार और सेंट्रल प्रोविन्स एन 3 -3 थी | आसाम में 4 सीट थी |औसतन महिलाओ का आरक्षण 3 से 6 प्रतिशत था | आज़ादी के सत्तर वर्ष बाद भी कानुन बनाने में महिलाओ की भागीदारी राजनीतिक दलो के नेताओ की कृपा पर निर्भर हैं | इस कारण महिलाओ को अपने नेताओ की कृपा पर निर्भर रहना पड़ता हैं | जो स्वास्थ्य परंपरा नहीं हैं |

जाति संघर्ष का इतिहास :- बिहार में जातीय वयमनस्यता का लंबा इतिहास रहा हैं | जिनमे बेल्छी का 1977 जिसमें पिछड़े वर्ग के लोगो द्वरा 15 दलितो की हत्या की गयी !

पिपरा में 1980 एन भी पिछड़े वर्ग द्वरा 14 दलितो की हाती की गयी | भोजपुर के द्वार बीहटा में सवर्णों द्वरा 22 दलितो का नर संहार हुआ |

औरंगाबाद के भ्गौना गाव में पिछड़ी जातियो के दबंगों द्वरा 52 दलितो का नर संहार हुआ ! 1989 में जहानाबाद के नागवाल में 18 पिछ्डे और दलितो की हत्या हुई ! 1991 में पटना के तिसखोरा और भोजपुर के सहियारा में 15 - 15 दलितो की हत्या हुई !

इन पीड़ित वर्गो के लोगो के द्वरा गया जिले के बारा गाव में माओवादियो ने 35 भूमिहारो को नहर के किनारे ले जाकर गला काट कर हत्या कर दी ! यह दलितो का बदला था शायद |

1997 में रणवीर सेना जो छत्रियों की हिट रक्षक थी उसने जहानाबाद में 61 लोगो का नर संहार किया जिसमें बच्चे और गर्भवती महिलाए भी थी ! इस घटना के 26 अभियुक्त पटना हाइ कोर्ट द्वरा बारी कर दिये गए ! हैं ना अचरज की बात !

1999 में जहांबाद के सेनारी गाव में 37 सवर्णो की हत्या हुई ! वनही प्रतिशोध स्वरूप शंकर बीघा में 22 दलितो की हत्या हुई | तथा नारायणपुर 11 दलितो को आर डाला गया |

16 जून 2000 को औरंगाबाद के मियापुर में 35 दलितो की ह्त्या भीड़ द्वरा कर दी गयी | तेरह साल बाद पटना उच्च न्यायलय द्वरा 10 दोषी अभियुक्तों में 9 को बारी कर दिया गया ! कितना न्याय हुआ आरक्षितों का ?

अब थोड़ा उत्तर प्रदेश को देखे तो यानहा भी दलितो को नल से पानी लेने अथवा शादी में 2017 में घोड़ी पर बारात निकालने को लेकर हाइ कोर्ट को आदेश देना पड़ा | बुलंदशहर में बीएसपी नेता मायवाती के दौरे से पूर्व राजपूत और दलितो के संघराश में कलेक्टर को घर से भग्न पड़ा था | राजपूत और दलित संघराश एन एक व्यक्ति की मौत हुई !

तो यह हैं समाज में आरक्षण पाये लोगो की हालत का , अब इस नए कानून से क्या होगा ,यह तो समय ही बताएगा ?