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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 1, 2015

रामायण अथवा रामचरित मानस इतिहास बनाम विरुदावली

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                    सनातन  परंपरा मे  अवतारवाद  के जरिये   वेदिक धर्म के समाज  मे  नैतिक शिक्षा देने ---उचित  अनुचित  का भेद  तथा  ""नायको ""' के रूप मे ऐसी विभूतियों  के जीवन चरित दिये  जिनसे  लोग एक सुसंक्रत  जीवन  बिता सके |  हमारे  समाज मे राम –क्रष्ण – मारुति आदि  अवतार  ने  हमारे  जीवन मे  महत्वपूर्ण स्थान  बना लिया है | जो  सैकड़ो सालो से  समाज के आदर्श बने हुए है | उनकी गाथाए समाज को उद्वेलित करती है | कभी –कभी  यह श्रद्धा  कुछ गेरुए वस्त्र धारियो  के कारण कलंकित भी होती है |  परंतु राम और क्रष्ण सदा  आदर्श बने हुए है |  यही कारण है की  किसी भी राज नैतिक  शक्ति  का साहस  इन के नाम को नकारने  का नहीं रहा है |   मंदिर – मस्जिद विवाद इसका उदाहरण है |

                                  अभी हाल मे  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने रामचरित मानस के डिजिटल संस्करण का उदघाटन करते हुए  एक नयी बहस को जन्म दे दिया | उन्होने कहा की  देश मे वैचारिक धरातल पर कई उतार –  चढाव  आए है |परंतुइस महाकाव्य  पर कोई विवाद हो सकता है क्या |  उन्होने  परंपरावादी  सोच को पुष्ट  करते हुए कहा की पता नहीं कब ॐ कहने पर तूफान खड़ा हो जाये | उनके इस कथन को जैसे का तैसा ही लेना होगा |  आम  लोगो की समझ मे  यह है की ॐ का प्रयोग  प्रत्येक मंत्र  का प्रारम्भ है |  उसके उच्चारण  के बिना मंत्र से उपासना नहीं की जा सकती | वेदिक काल की मंत्र परंपरा  मे यह सही है,, परंतु अंतिम सत्य  नहीं है |  
             आम लोग तुलसी रचित  रामचरित मानस  को रामायण कह देते है | शायद इसलिए की  दसरथ पुत्र राम की कथा सर्व प्रथम  ऋषि  बाल्मीकी  ने लिखी थी | उनकी रचना एक इतिहास  सरीखी है  ----जबकि चौदहवि  सदी मे रचित  रामचरित मानस  तुलसीदास जी द्वारा  अपने आराध्य  राम के जीवन लीला का वर्णन  किया है | परंतु  उन्होने  उन्हे एक  “””आदर्श “” चरित्र के रूप मे चित्रित किया है |  उन्होने बाल्मीकी रचित  रामायण के इतिहास को  आधार बनाकर  अपने महाकाव्य  की रचना की | उन्होने रामायण के दुखद और अनचाहे  संदर्भों को अपनी रचना मे स्थान नहीं दिया | उदाहरण के रूप मे  केकैयी  और दसरथ का अयोध्या कांड मे राम को वन भेजने और भरत  को राजगद्दी देने के समय हुआ उनका संवाद है |  जिसमे दसरथ केकैयी को  “”दुराचारिणी – कूलविनाशक – क्रूर  और पापचारिणी तक के सम्बोधन  दिये |  उसके उपरांत जब राम अपने राज्याभिषेक  के स्थान पर पिता  द्वरा  वन गमन का समाचार सुनाने माता कौशल्या के भवन गए तब वाहा उपस्थित  लक्षमण ने  दसरथ के लिए सत्य जाने और काम के वशीभूत हो कर विवेक शून्य होने तक का आरोप लगाया | उन्होने  राम को सलाह दी की  उन्हे विद्रोह कर के  राज्य पर आधिपत्य  कर लेना चाहिए |  यदि इस प्रयास मे राजा दसरथ  और केकैयी  विघ्न डाले तो उन्हे बंदी बना लेना चाहिए अथवा वध कर देना चाहिए |  उन्होने स्वयं दसरथ और केकैयी का वध करने की घोसणाकौ राम के समक्ष भी की |
         उधर केकैयी ने भी राम के राज्याभिषेक होने पर विष पीकर प्राण देने की धम्की दसरथ को दी | कौशल्या ने भी माता का स्थान पिता के समतुल्य बताते हुए  दसरथ की आज्ञा  का अनुपालन करने से निषेध  किया | उन्होने भी धम्की दी की यदि वे वन गमन करेंगे तो तो वे “”अन्न –जल “”त्याग कर के प्राण  त्याग देंगी | अयोध्या कांड मे इन पांचों चरित्रों  की प्रतिकृया आम मानव स्वभाव के अनुरूप ही बाल्मीकी ने बताई है |  चुकी वे राम के सम कालीन थे , अतः उन्होने जैसा सुना –देखा वैसा ही लिखा , ऐसा विश्वास किया जाता है | क्योंकि राम के पुत्रो लव और कुश  का जन्म और किशोर अवस्था तक लालन पालन उनही के आश्रम मे हुआ इसलिए वे अधिक  सत्य है | इसकी तुलना मे तुलसी के अयोध्या कांड मे केकैयी के लिए दसरथ द्वारा ऐसे उपालंभों का प्रयोग नहीं बताया गया है | लक्ष्मण  को भी  रोष मे  तो बाते गया –परंतु पिता से विद्रोह और  युद्ध मे उन्हे बंदी अथवा वध करने का  प्रसंग नहीं आया है |  आतम हत्या  की धम्की भी नहीं है |   आइयसा संभवतः इसलिए है की उन्हे इन चरित्रों को समाज मे आदर्श के रूप मे प्रस्तुत करना था | जो की समाज मे एक ‘’आदर्श’’’ उपस्थित कर सके |  तो यह अंतर है इतिहास और विरुदावली मे | बाल्मीकी ने इतिहास और तुलसीदास ने अपने आराध्य की स्तुति की है | अवधी बोली मे रामचरित मानस लिखे जाने के कारण  यह करोड़ो जन जन तक पहुँच सका  | सन्सकृत मे होने के कारण  रामायण ग्रंथ बन गया | यद्यपि  कविता और पिंगल की रचना का उद्भव बाल्मीकी के द्वारा ही हुआ  परंतु भाषा के कारण यह सीमित लोगो मे ही रहा |