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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 15, 2016

भारतीय जनता पार्टी को पुन जनसंघ मे बदलने की कसरत शुरू आज़ादी के पहले देश मे कई राजनीतिक दल मौजूद थे , जिनहोने 1935 के चुनावो मे भाग लिया था |हिन्दू महासभा और राम राज्य परिषद जैसे छेतरीय संगठन भी थे | परंतु आज़ादी के बाद स्वाधीन भारत मे हुए वयस्क मताधिकार के बाद राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय राष्ट्रिय काँग्रेस और कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के बाद मे गठित भारतीय जनसंघ देश के चुनावी अखाड़े का तीसरा बड़ा दल था | 1950 मे गठित इस दल का चुनाव चिन्ह तब जलता दीपक हुआ करता था | 1977 मे गैर कांग्रेसी दलो के गठबंधन मे शामिल होने के लिए जनसंघ का विलय जनता पार्टी मे कर दिया गया |परंतु काड़र आधारित जनसंघ द्वारा अपने सदस्यो को जनता पार्टी मे अलग पहचान बनाए रखने के कारण ही सत्तासीन जनता दल टूटा | तब बंबई मे 6 अप्रैल 1980 को एक अधिवेशन मे लाल क्रष्ण आडवाणी को अध्यक्ष चुना और भारतीय जनता पार्टी के रूप मे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राजनीतिक ''प्रोफाइल ''' का उदय हुआ | ब्रिटिश इंडिया के ग्यारह प्रांतो मे 1935 मे हुए चुनावो मे मतदान का अधिकार भूमि स्वामी - शिक्षित – टैक्स अदा करने वालों को ही था | अचरज का तथ्य यह है की इन चुनावो मे भी दस वर्गो के लिए स्थान आरक्षित हुआ करते थे | इन वर्गो मे महिलाए - हरिजन – विश्वविद्यालय-- जमींदार - व्यापारी – पिछड़ी हुई जतिया --श्रमजीवी वर्ग – यूरोपियन - एंग्लो इंडियन और अंत मे देशी ईसाई | अतः यह कहना की आरक्षण को संविधान मे स्थान बाबा साहब अंबेडकर ने दिलाया सर्वथा मिथ्या सिद्ध होता है | 1952 की प्रथम लोक सभा मे भारतीय जनसंघ को तीन स्थान प्राप्त हुए थे | हिन्दू महासभा को चार और रामराज्य परिषद को तीन सीट मिली थी | चूंकि वैचारिक धरातल पर जनसंघ राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ से जुड़ा हुआ था ,जिसका आधार ''हिन्दुत्व'' था | कमोबेश हिन्दू महा सभा और राम राज्य परिषद का सोच भी यही था | अतः तीनों ने मिलकर एक गुट बनाया और लोक सभा की कारवाई मे भाग लेते थे | परंतु उद्देस्यों की समानता के बावजूद जनसंघ को सबसे बड़ा लाभ संघ के स्वयंसेवको का था | जो हिन्दू महा सभा और राम राज्य परिषद को नहीं था | उनका जन आधार '''आम आदमी ''' ही था | इन दोनों संगठनो के पास नेता तो थे परंतु कार्य करता नहीं | जबकि जनसंघ के पास प्रशिक्षित स्वयं सेवाको की फौज थी | इसीलिए 1957 के चुनाव मे इन दोनों ही पार्टियो का सफाया हो गया | चुनावी राजनीति मे झटका खाने के बाद भाजपा ने नब्बे के दशक मे कांग्रेस की भांति "” जन आधारित "” पार्टी गठित करने का निर्णय लिया | परंतु इस ''जन'' को नियंत्रित करने के लिए संघ ने जिला स्तर से लेकर केंद्र तक संगठन मंत्रियो का जाल बनाया | जो आज भी है | लेकिन विगत बीस वर्षो के अनुभव से यह तथ्य सामने आया की भाजपा मे संगठन और सरकारो के स्तर पर "”स्वयं सेवाको "” की संख्या अल्प्मत मे है | यद्यपि संगठन मंत्री के ''चाबुक '''से इन लोगो को ''अनुशासन ''' मे रखा जाता है | परंतु सत्ता के समीप रहने के कारण अनेक "”संगठन मंत्रियो "” के कार्य -कलापों से संगठन की बहुत बदनामी भी हुई है | अब इस लिए कानपुर मे हुई राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारको की बैठक मे यह निर्णय लिया गया है की अब पुनः पार्टी को काडार आधारित बनाने की दिशा मे आयोजन किए जाएँगे | जनहा इन्हे "”'संघ ''की विचारधारा से अवगत कराया जाएगा | इस प्रकार अब 36 वर्ष बाद भारतीय जनता पार्टी को भारतीय जन संघ के अवतार मे लाने की कोशिस शुरू हो गयी है | परिणाम तो वक़्त ही बताएगा |