चार
हज़ार साल प्राचीन काशी को
क्योटो बनाने की सनक शिव के
त्रिशूल पर टिकी --विश्वनाथ
की नगरी के एक तिहाई बाशिंदों
के घर और दुकान को "”अतिक्रमण
"”
घोषित
कर दिया है !
यहा
"सौंदर्यीकरण
और सहज और सरल -सुविधापूर्ण
"”
शहर
बनाए जाने के विरोध मे मंदिर
-
मठ
-
धरमशाला
और अनेक संरक्षित धरोहर को
धराशायी किए जाने के विरोध
मे 16
मई
से काशी बचाओ आन्दोलनम की
हुंकार --विद्या
मठके स्वामी अविमुक्तनन्द
विद्वत
सभा और विदुषी सभा के साथ
वारिष्ठ नागरिकों का समर्थन
विश्व
के इतिहास मे ऐसा पहली बार ही
हो रहा होगा जब -
सरकार
चार हज़ार साल के ऐतिहासिक नगर
के पारंपरिक स्वरूप को बादल
कर "”उसे
चंडीगढ़ बनाने के लिए अरबों
रुपए ठेकेदारो और ई गवर्नेंस
और डिजिटल प्रबंधन के नाम पर
बड़ी -
बड़ी
कंपनियो को देने की योजना बनाए
|
इस
मुहिम को केंद्र सरकार की
एजेंसियो ने बहुत ही लुभावने
नारे गढे है |
जैसे
'''सुरम्य
काशी "”
समुन्नत
काशी "”और
निर्मल काशी "”!
मंदिरो
और घाटो के लिए विश्व प्रसिद्ध
काशी को अब "”योगी
और मोदी "”
की
पहल से नया "””मेकअप
"”
करने
की यह कोशिस ,
4.37 लाख
लोगो को शरणार्थी बना देगी |
दुनिया
मे इतना प्राचीन नगर जिसका
लिपिबद्ध इतिहास हो -ऐसा
दूसरा कोई नहीं है ,,
इतने
पुराने नगर – पुरातत्ववेताओ
अथवा इतिहासकारो केलिए
"खन्डहर
या भग्नाव्शेस ''
के
रूप मे अध्ययन का विषय है |
परंतु
इतना प्राचीन होने के बाद
साहित्य और संगीत तथा धरम का
"”प्रमुख
पीठ "”
रहा
हो ---ऐसा
कोई नगर या स्थान दूसरा नहीं
है |
आज
जब देश और जातिया अपने "”
गौरव
शाली अतीत "”
की
खोज के लिए अभियान चला रही हो
तब हजारो सालो से एक ---फलते
फूलते शहर को "”आधुनिक
सिटि "”
बनाने
की मुहिम तो तुगलकी ही कही
जाएगी |
संस्कृत
और हिन्दी भाषा का गढ सुर और
संगीत का सदियो से केंद्र रहा
यह नगर साहित्यकारों के लिए
"बनारस
'
रहा
है |
भारतेन्दु
युग से आधुनिक काल के काशीनाथ
सिंह तक ने इस नगर के लिए कविता
गायी है |
यहा
की पुरातनता का ही प्रभाव है
की अधिकान्स "”बनारसी
लोग सहज संतुष्ट जीवन शैली
जीने के आदी है |
लाल
गमच्छा और बनारसी पान आज भी
इस नगर की पहचान है |
जिस
नगरी की धरम -साहित्य
-
संगीत
आदि कलाओ का केंद्र हजारो साल
से रही हो उसके --स्मारकों
-
को
धरोहर मानकर जीर्णोद्धार
"””स्मार्ट
सिटी योजना के तहत अथवा स्वच्छ
अभियान के अंतर्गत नहीं किया
जाता ,,
वरन
उसे पुरातत्व मंत्रालय के
अधीन "”
सहेजा
जाता है "”
बुल्ल्डोजर
से धराशायी नहीं किया जाता
"”
|
वेनिस
मे पर्यावरण परिवर्तन के कारण
वनहा की नहरों मे पानी मे कूड़ा
अधिक एकत्र हो गया तब वनहा की
सरकार ने उसे आर्किटेक्टो को
यह काम नहीं दिया |
वरन
विशेसज्ञों की टीम ने सफाई
और मरम्मत का काम कराया था |
उन्होने
सदियो की अपनी धरोहर को बनाए
रखने के लिए भरपूर प्रयास
किया !
वेनिस
भी बनारस की भांति "”जीवंत
शहर है "”
| फिर
क्यू 4000
एकड
मे बसी इस पुरातन नगरी को "”
आधुनिकता
के खांचे मे फिट करने का प्रयास
सरकार कर रही है ?”
विश्व
मे कनही भी इतिहास से जुड़ी
धरोहरों को नुकसान पहुंचाया
जाता है -----तब
वह खबर बन जाती है |
बामीयन
मे जब तालिबन ने बुद्ध की मूर्ति
को तोड़ा तब सारे विश्व ने
आतंकवादियो की भर्त्स्ना की
थी !
इस
चार हजार साल पुरानी नगरी को
जिसके लिपिब्ध इतिहास को
स्मार्ट सिटी योजना के "”करता
-
धर्ता
"
भी
मंजूर करते है --फिर
इसे क्यू कंक्रीट का जंगल
बनाने की तैयारी मे है ?
ई
गवेर्नेंस और डिजिटल प्रबंधन
से विश्वनाथ मंदिर और गंगा
के घाटो का "मूल
स्वरूप बदलने से बेहतर होता
की इन स्थानो पर सफाई और सुरक्षा
का प्रबंध किया जाता !
“ मंदिर
के चारो ओर एक किलोमीटर के
परकोटे मे रहने वाले पडा -
पुजारी
और उनके मंदिरो को सहेजा जाता
,,
परंतु
सौंदर्यीकरण के नाम पर धरती
को "सपाट
किया जा रहा है "”!
एक
अनुमान के अनुसार छोटे -छोटे
लगभग साथ से अधिक मंदिर हटा
दिये गए है !
साथ
ही जगह जगह पर सैकड़ो शिवलिंग
को बेरहमी से एक स्थान पर पटक
दिया -----कहते
है की आस्था हो तो देवता नहीं
तो पत्थर -वही
हो रहा है ,
जो
लाखो हिन्दुओ की आस्था के
प्रतीक है -उन्हे
प्रशासन बस पाथर ही मानता है
!
राजनेताओ
की धार्मिकता इस "आंदोनालम
"
से
स्पष्ट हो गयी है |
जबकि
सभी दलो के भारतीय जनता पार्टी
-
समाजवादी
पार्टी और काँग्रेस के नेता
स्थानीय लोगो की बरबादी को
देख कर भी मौन है |
विकास
और सौंदर्यीकरण के नाम पर लाखो
लोगो को जिस भांति उनके घरो
और दूकानों तथा कारखानो से "
बेदखल
किया जा रहा है "”
वह
दिल्ली को बसाने के समय किसानो
से ली गयी भूमि का मुआवजा भी
सभी को साठ सालो मे नहीं मिल
पाया |
कुछ
वैसा ही योगी और मोदी की सरकार
मे भी होने की आशंका है !
इसीलिए
राजनेताओ की आम लोगो की समस्या
से बेरुखी के कारण ही आंदोनालम
के लोगो ने किसी भी राज नेता
को अपने अभियान मे शामिल नहीं
किया है |
औरंगाबाद
के कमलापति त्रिपाठी जी और
महामना मदन मोहन मालवीय तथा
सम्पूर्णानन्द ऐसे नेताओ
की धरती आज इतने बड़े अन्याया
को सहने को मजबूर है |
जिन
गलियो मे काशी बसती हो वनहा
अंडर ग्राउंड सिवेज सिस्टम
डालने के लिए की जानी वाली
खुदाई अगल -बगल
के मकानो की सदियो पुरानी नीव
को ही दरका देगी |
इसी
प्रकार मानिकरणिका घाट मे
विद्युत शवदाह गृह की योजना
सरहनीय है परंतु लोगो की आस्था
पर चोट भी है |
इस
तीर्थ स्थान का स्वरूप बदलने
की कोशिस क्या रंग लाएगी -यह
तो भविष्य ही बताएगा ?
जनहा
गलियो से आवागमन हो रहा है
-वनहा
मकान को चौड़ा कर किसके लिए
सुविधा बनाई जा रही है ?
क्या
दर्शनार्थी ही ?
मिश्र
के पिरामिडो मे सड़क आदि कम है
-फिर
भी वनहा टूरिस्टो का तांता
लगा रहता है |
वे
उस काल की इमारत को देखने आते
है ,
वे
वनहा सुविधा के लिए नहीं जाते
है |
एक
बात बहुत हंसी की है की "”
एरिया
बेसड डेव्लपमेंट की बात करने
वाले जब सदियो पुरानी इमारतों
को "”
अतिक्रमण
"”
बताते
है !!
अरे
भाई जब "सिटी
प्लान 'का
कानून बना उससे बहुत पहले से
ये भवन और मंदिर बने है !!
जब
कानून ही बाद मे बना तब क्या
"”भूतलक्षी
प्रभाव से इन इमारतों को
अतिक्रमण घोसीत किया जाएगा
?”
जनहा
तक मुझे मालूम है की टाउन अँड
कंट्री प्लाननिग के कानून के
लागू होने से पहले के कब्ज़ो
को "'अतिक्रमण
नहीं बता सकते "”
|उन्हे
हटाने के लिए वाजिब मुआवजा
देना होता है |
फिर
यानहा तो मामला कुछ लोगो या
सैकड़ो का नहीं वरन
4लाख
लोगो का है !
तो
क्या इतनी बड़ी आबादी को सरदार
सरोवर बांध की भांति विस्थापित
कर दिया जाएगा ??