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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 30, 2019


निर्वाचन आयोग की अनदेखी या आँख मूँदना और क्लीन चिट देना
कितना निसपक्ष और कितना न्याया पूर्ण ?? संस्थान और प्रक्रिया संदेह के घेरे मैं !!

जिस प्रकार उपग्रह प्रछेपण को राष्ट्रिय अस्मिता का प्रतीक बता कर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने "”राष्ट्र के नाम सम्बोधन "” पर चुनावी माहौल के दरम्यान "अपनी सरकार "” की उपलब्धि को अन्तरिक्ष की चौकीदारी की शक्ति बताया , उसे निर्वाचन आयोग के उप चुनाव आयुक्त सक्सेना ने – महज दायित्व निर्वहन बताया !!!! जिसे मीडिया ने "”क्लीन चिट"” देना बता दिया "” !! जबकि यह छमता डीआरडीओ ने सात साल पहले ही हासिल कर ली थी ! इंडियन एक्सप्रेस मैं 21 अप्रैल 2012 को डीआरडीओ के सरस्वत ने दिल्ली मैं एक पत्रकार वार्ता मैं यह बात बताई थी | ऐसे मैं सवाल उठता हैं की यह "”उपलब्धि "” चुनाव के दौरान अपने नाम से जोड़ने की थी अथवा देश की अस्मिता की थी ??

उत्तर कोरिया द्वरा हजारो मील दूर तक मार करने वाले राकेट की घोसना की थी तब वह देश की शक्ति का प्रदर्शन था | विशेस कर अमेरिका के लिए | परंतु हमारी इस छमता का उपयोग किस को दिखने के लिए ? पाकिस्तान अभी इतना सक्षम नहीं हैं | चीन से हम इस प्रणाली मैं बहुत पीछे हैं | अमेरिका से फिलवक्त कोई हमारी अदावत नहीं हैं | फिर यह कितना समीचीन ? मुद्दा यानहा घोसना करने के वक़्त और उसके पीछे की नियत का हैं | जो निश्चित ही आयोग की कार्य प्रणाली की निसपक्षता पर सवालिया निशान लगता हैं | लगता हैं मोदी सरकार की ""टेक "” की सवाल और सबूत नहीं मांगो | जो हम कह दे उसे सही मानो की तर्ज़ पर आयोग भी चल रहा हैं !

इसी निर्वाचन आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय मैं 21 राजनीतिक दलो द्वरा वी वी पैट की 50 फीसदी परचियो की गिनती किए जाने बाबत मैं दाखिल हलफनामे मैं कहा की आयोग "”निसपक्ष चुनाव के लिए किसी भी सुझाव को मानने के लिए तत्पर हैं ! परंतु इस गिनती के कारण ----परिणाम घोषित करने मैं छ दिनो की देर होगी !! अतः इस याचिका को खारिज कर दिया जाये ! तेलंगाना मैं मुख्य मंत्री की बेटी के निर्वाचन छेत्र मैं 125 लोगो द्वरा नामांकन दाखिल किए जाने पर आयोग ने उस छेत्र मैं बैलेट द्वरा चुनाव कराये जाने की घोसना की हैं ! अब अगर बैलेट द्वरा चुनाव की मांग करने वाले दलो द्वरा अपने - अपने छेत्रों मैं 64 से अधिक लोगो के नामांकन दाखिल करा दें --तब आयोग बैलेट पेपर से चुनाव करने को मजबूर नहीं हो जाएगा | क्योंकि ईवी एम मशीन मैं मात्र इतने ही उम्मीदवारों के लिए छमता हैं | इस तकनीकी खामी अथवा छमता का फायदा गैर बीजेपी दलो द्वारा उथया जाये तब कान्हा होगा चुनाव आयोग का कहना की मशीन पूरी तरह से विश्वसनीय हैं और इसमैं किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं हो सकती ?

आयोग के नाबीना चौकीदार होने पर तब और विश्वास होता हैं जब राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह का वीडियो भी संगयन मैं नहीं लिया जाता ! लगता हैं उस मैं भी आयोग वीडियो को तकनीकी परीक्षण के लिए भेजेगा | और उसका परिणाम भी महीनो बाद , अर्थात चुनाव के बाद आएगा -तब उसे "”क्लीन चिट "” दे दी जाएगी ! मुझे याद है की 2014 के चुनावो के समय लखनऊ और नोयडा मैं मायावती द्वरा बनवाए गए पार्को मैं हाथी की मूर्तियो को कपड़े से ढक दिया गया थ , चूंकि वह बहुजन समाज पार्टी का चुनाव चिन्ह था | तब तो इतनी सख्ती और अब सरकारी पार्टी को इतनी छूट ! आखिर क्यों ? क्या अन्य संस्थाओ की भांति चुनाव आयोग भी मोदी -शाह के आतंक से भयभीत हैं !

शताब्दी ट्रेन मैं चाय के लिए दिये जाने वाले कप मैं लिखा था "”चौकीदार "” अब यह सभी को मालूम हैं की "”मैं भी चौकीदार "” का नारा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया हैं | उसके बाद उनके सांसदो और विधायकों तथा पार्टी के अन्य नेताओ ने ना केवल अपने नाम के आगे चोकीदार लिखना शुरू कर दिया वरन अपने वाहनो मैं भी इसे लिखना शुरू कर दिया हैं | मध्य प्रदेश पुलिस ने संघ के एक कार्यकर्ता के वाहन की नंबर प्लेट पर भी चौकीदार लिखा होने कारण चालान किया | क्योंकि नंबर प्लेट पर सिवाय वहाँ के नंबर के कुछ भी लिखना अपराध हैं | अब चुनाव आयोग इस घटना का संगयन लेगा अथवा क्लीन चिट दे देगा !

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय सरकार और निर्वाचन आयोग को अवमानना नोटिस देकर वोटो की गिनती के मौजूदा फोर्मूले -जिस मैं पूरे निर्वाचन छेत्र के किसी एक बूथ के 50 फीसदी परचियो की गिनती का सुझाव हैं | परंतु विधान सभा चुनावो मैं भी इस फार्मूले को लेकर पार्टियो ने काफी एतराज़ जताया था | परंतु चुनाव आयोग ने उन अर्जियो को खारिज कर दिया था | अब सुप्रीम कोर्ट के यह कहने पर की "” क्या आयोग कोई ऐसा रास्ता नहीं निकाल सकता जिस से की लोगो को इस प्रणाली पर भरोसा हो ? आयोग ने कहा की लोगो को 999.99 प्रतिशत इस प्रणाली पर भरोसा हैं | सवाल यह है की निर्वाचन आयोग ने वोटरो की प्रणाली से संतुष्ट होने यह गणना कब कराई ? क्या यह भी सैंपल सर्वे का परिणाम हैं !!! फिर यह परिणाम कान्हा से निकला ? |

ऐसे उदाहरणो से चुनाव आयोग पर सरकार के नियंत्रण मैं काम करने का संदेह होता हैं | जब पंचो पर ही संदेह होने लगे तब कैसे कहा जा सकता हैं की पंचो मैं भगवान बस्ते हैं ? बिना परीक्षण और तर्क पूर्ण प्द्ध्ति की गैर हाजिरी मैं निष्पक्ष चुनाव की कैसे कल्पना की जा सकती हैं | यह तो हरियाणा के जाटो की चौबीसी जैसी हालत है ---जनहा कानून और हक़ीक़त को अपने हिसाब से समझा जाता हैं | फिलहाल इस चुनाव मैं आयोग के फैसले नज़ीर बनेंगे और न्यायालय उस पर क्या रुख लेता हैं --यह तो आने वाला समय ही बताएगा |

Mar 28, 2019


?निर्वाचन आयोग 

क्या चुनाव का चौकीदार  नाबीना हैं जो उसे आचार संहिता का सार्वजनिक उल्ल्ङ्घन नहीं दिखयी पड़ता ??

आज  पूर्व चुनाव आयुक्त शेषन की बहुत याद आएगी !!

चुनाव मैं आचार संहिता का पालन इसलिए जरूरी है की --इस मैं भाग लेने वाले सभी दलो को एक समान अवसर मिले | सरकार और विपक्ष के गठबंधन के दल एक ही नियम का पालन का करें | श्रीमति इन्दिरा गांधी का रायबरेली का चुनाव इलाहाबाद हाइघ कोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल द्वरा इसलिए "” अवैध " घोषित कर दिया गया था ---- की उनकी सभाओ मैं शासन ने सुरक्षा कारणो से मंच का बंदोबस्त "” ब्लू बूक "” के अनुसार किया था | जबकि यह सुविधा उनके वीरुध लड़ रहे राजनारायन न को नहीं मिली थी |
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आज तो उससे कही ज्यादा और कई गुना अधिक निर्वाचन आयोग के नियमो का खुले आम उल्लंघन हो रहा हैं -----चुनाव का चौकीदार नाबीना बना हुआ हैं ! जिन घटनाओ और कारणो से सट्टधारी पार्टी और उसके मुखिया नरेंद्र मोदी पर कारवाई होनी अपेक्षित हैं वे निम्न हैं ::---

1 :- उपग्रह की सफलता पर प्रधान मंत्री का राष्ट्र के नाम सम्बोधन
रूप से आचार संहिता का उल्लंघन हैं | आचार संहिता का मूल नियम हैं की
“”कोई भी ऐसा कार्य जो चुनाव मैं भाग ले रही पार्टियो मैं किसी एक द्वरा
नहीं किया जा सके -चाहे वह सत्ता मैं रहने के कारण हो अथवा किसी अन्य
कारण से हो ----- वह आचार संहिता का उल्लंघन हैं "” | क्योंकि चुनाव एक
प्रतियोगिता हैं -जिस मैं सभी भाग लेने वाले समान नियमो और अवसरो के
भागी होते हैं | परंतु जिस प्रकार उपग्रह भेदी उपग्रह के सफल प्रक्ष्पेन की घटना
का राष्ट्र के नाम सम्बोधन किया गया वह -----अन्य दलो को रेडियो और टेलीविज़न पर प्रचार के लिए मिलने वाले समय से बिलकुल अलग हैं ! अब क्या यही सुविधा अन्य दलो के नेताओ को मिल सकेगी ? नहीं नरेंद्र मोदी ने प्रधान मंत्री पद के अधिकारो का अपनी पार्टी की छ्वी के लिए किया |
निर्वाचन आयोग ने आँय राजनीतिक दलो की शिकायत पर इस मामले की जांच के लिए उप निर्वाचन आयुक्त सक्सेना के अधीन एक जांच समिति गठित की हैं | परंतु अधिक से अधिक वह कर क्या सकती हैं !!! यह तो वैसा ही हुआ जैसे एक अपराधी "” राजनयिक आज़ादी "” का कारण देकर दंड से बच निकले | इस मामले मैं भी जांच रिपोर्ट कुछ ऐसी ही होगी !


2:--- राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह - जो की बाबरी मस्जिद को गिराए जाने के समय उत्तर परदेश के मुख्य मंत्री थे --और उन्होने तत्कालीन प्रधान मंत्री नरसिंघा राव को आश्वासन दिया था की सब कुछ कानून के डायरे मैं होगा | उन्होने सुप्रीम कोर्ट मैं लिखित हलफनामा दिया था जिस मैं विवादित परिसर को ज्यों का त्यों रखे जाने का वादा किया था | परंतु दूनया जानती हैं इन महानुभाव ने कसं खा कर झूठ बोला और मस्जिद तथा अखंड रामायण का स्थल तोड़ डाला गया !
अभी अलीगद के दौरे के समय , जनहा वे अपने पुत्र के चुनाव के सिलसिले मैं गए थे | वनहा उन्होने अपनी माता संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसकी संतान भारतीय जनता पार्टी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता साबित करते हुए उन्होने कहा "”” मैं भाजपा का कार्यकर्ता हूँ और हम चाहते है की मोदी जी दुबारा प्रधान मंत्री बने |””” अब संवैधानिक पद पर रह कर इस प्रकार दलीय रुझान "”उनकी निष्पक्षता को दूषित करता हैं "” | क्या निर्वाचन आयोग राष्ट्रपति से सिफ़ारिश करेगा की ऐसे पक्षपाती राज्यपाल को पद से हटाये ??

3:- नरेंद्र मोदी को मानव से नायक बनाने वाली फिल्म "” पीएम मोदी "” का प्रदर्शन और एक्सीडेंटल प्राइम म्निस्टर जैसे फिल्म का चुनाव के समय रिलीज़ होना भी कोई संयोग तो नहीं ही हैं | वरन सोची समझी चाल हैं | आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ | आँधी फिल्म को लोगो की शिकायत पर सेंसर बोर्ड ने रोका परंतु श्रीमति इन्दिरा गांधी ने सेंसर बोर्ड को ऐसा नहीं करने को कहा | जबकि उस फिल्म के बारे मैं कहा जाता था की वह इन्दिरा गांधी के जीवन पर बनी हैं | जबकि ऐसी कोई समानता नहीं देखि गयी |

4::- आत्म मुग्धता के पर्याय बन चुके प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी का प्रचार मैं बने रहने का शौक इतना ज्यादा हैं की – कैमरा मैनो को हिदायत रहती हैं की वे मात्र उनही का फोटो लें --- उनके अगल बगल लोगो को ज्यादा से ज्यादा काटे | वे भीड़ से दूर ही रहना चाहते हैं | शायद इसी लिए उनके समर्थको {{ जिन मैं अफसर ज्यादा हैं }}} मैं भी होड रहती हैं की किस प्रकार उनकी शकल को अधिक से अधिक लोगो तक दिखाये | रेल्वे के टिकट और हवाई यात्रा के बोर्डिंग पास मैं उनके फोटो को छ्प्वा दिया गया | अब निर्वाचन आयोग ने इस संबंध मैं दोनों संगठनो से जवाब तलब किया हैं | निश्चित ही जवाब आने तक तो चुनाव परिणाम घोषित हो चुके होंगे | न्याय तो उस समय के नियमो से होगा !!!
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिव राज सिंह को भी यानहा के अफसरो ने वाहवाही लूटने के लिए अनुदान से बनने वाले सौचालयों और गरीबो के लिए बनने वाले भवनो मैं शिवराज सिंह के चित्र वाले "”टाइल्स "” लगवा दिये थे | विधान सभा चुनावो मैं शिकायत के बाद उन सभी टाइल्स का ढेर सभी जगह लग गया !!!

4: :- इन स्वयंसिद्ध नियमो के उल्लंघन की जांच की प्रक्रिया यदि मतदान के पूर्व नहीं निपटा गयी ---तब निश्चित ही कहना पड़ेगा - चुनाव के इस क्रिकेट मैच मैं निर्वाचन आयोग पाकिस्तानी रेफरी की भांति व्यवहार कर रहा हैं |
आज चुनाव आयोग की निष्क्रियता देख कर पूर्व चुनाव आयुक्त शेषन की बहुत याद आ रही हैं , जो किसी भी मुख्य मंत्री या मंत्री की परवाह नहीं करते थे | नियमो को कठोरता से पालन करने मैं उनका कोई सानी नहीं था |

यहा मोदी जी द्वरा छोटे से कारण से राष्ट्र के नाम सम्बोधन का मौका निकाल लेने को "”” उनकी पार्टी राष्ट्र की जनता के प्रति कर्तव्य बताने से नहीं चूकेंगे | सवाल यह है की चुनाव के दरम्यान ही क्यों ?? उनको लगता होगा की ऐसा मौका फिर कान्हा मिलेगा !!! इन्दिरा गांधी और अतलबिहारी जी ने आण्विक विस्फोट की जानकारी देश को देने मैं इतनी हड़बड़ी नहीं दिखाई थी !
अब विचार करे की निर्वाचन आयोग इस मसले मैं क्या करेगा ? वह इस खर्चे को सट्टधारी पार्टी के चुनावी खर्च मैं जोड़े जाने का आदेश दे सकता हैं ! अथवा प्रधान मंत्री से उन कारणो के बारे मैं पूच्छ जा सकता हैं --- जिन वजहों से चुनाव के बीच उन्हे सतर्कता छोड़ कर स्वयं का प्रचार करने के लिए उपग्रह का बहाना लिया ?? परंतु इस जवाबतलबी मैं चुनाव के दो महीने तो निश्चित ही निकल जाएँगे !! फिर इस नख - दांत विहीन और सरकार की ओर मुंह देख कर न्याया करने वाले संस्थान का क्या होगा ?


अब हालत यह है की नीति आयोग के एक सदस्य राजीव कुमार जो की एक नौकरशाह हैं उन्होने राहुल गांधी की न्याया योजना का मज़ाक उड़ाते हुए सार्वजनिक रूप से बयान दिया ! अब सरकारी नौकर भी दलीय चुनाव मैं भाग ले तब समझा जा सकता हैं की "””सत्ता "”” के संस्थान मैं कितनी हड़बड़ी हैं !

Mar 24, 2019


सेना देश की -उसका शौर्य -शहादत देश के लिए -फिर श्रेय सरकारी पार्टी का कैसा

सभी देशो की सेनाये अपने देश के प्रति निष्ठा और बलिदान की शपथ की लेती हैं - संसदीय लोकतन्त्र में वे अपने राष्ट्रपति के प्रति बलिदान होने का वादा करते हैं | फिर कैसे कोई राजनीतिक पार्टी भले ही उसकी सरकार हो -कैसे सेना की कुर्बानी को अपने नाम कर सकता हैं ? भारतीय सेना के इतिहास में प्रत्येक पलटन में पुजारी -ग्रंथी और इमाम एवं पादरी होते हैं --जो एक ही स्थान पर धार्मिक आराधना कराते हैं | जिन रेजीमेंट का गठन सिर्फ एक जाती अथवा समुदाय विशेष के लिए हैं उन मैं भी यह परंपरा होती हैं | काश्मीर मैं एक शहीद सिख सनिक को मरणोपरांत आज भी पलटन मैं हाज़िरी होती हैं --वे सिख पलटन मैं थे और युद्ध मैं शहीद हुए थे --जिनकी आत्मा कहते हैं आज भी सैनिको को पहरे पर सचेत और खतरो से बचाती हैं , ऐसा विश्वास हैं | उन्हे आज भी वार्षिक छुट्टी मिलती हैं | उनकी हाज़िरी होती हैं ---- क्या वे यह सब किसी सरकार के प्रधान मंत्री या उसकी पार्टी के लिए करते हैं ? बिलकुल नहीं | तब किस आधार पर मोदी जी की सरकार पाक सीमा पर हुए शहीदो की कुर्बानी पर अपना लेबल चस्पा कर सकते हैं ? क्या यह उन रणबांकुरों की भावनाओ से खिलवाड़ नहीं हैं ?
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आज तक देश मैं हुए निर्वाचनों मैं कभी भी सेना की शहादत को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया गया ---पर इस बार पुलवामा मैं हुए आतंकी हमले मैं मारे गए और सरकार की हवाई स्ट्राइक को लेकर सरकार उनकी कुर्बानी को अपनी उपलब्धि बता रही हैं ! पर वह यह नहीं बता रही की केन्द्रीय सुरक्षा बल की चार पलटनों के एक साथ "” मूवमेंट " को किस अफसर ने और किसके कहने से मंजूरी दी ? क्योंकि शांति के इलाको मैं भी इतनी बड़ी संख्या मैं पलटन नहीं कूच करती हैं | क्योंकि उनके "”आने - जाने "” के रास्ते और संख्या को गोपनीय माना जाता हैं | पर क्या वह गोपनियता पुलवामा शहीदो के मूवमेंट के बारे मैं बरती गयी ? आज तक सरकार जो कुर्बानी को तो अपने नाम कर रही हैं --परंतु दोषी जिम्मेदार अफसरो की लापरवाही पर कोई कारवाई नहीं की ? आखिर क्यूँ |
इसके उलट हवाई सर्जिकल स्ट्राइक के बारे मैं ऐसे दावे देश के सामने रख रही है ---जिनको अतराष्ट्रीय मीडिया सत्य नहीं बता रहा हैं | क्यूँ नहीं सरकार ऐसे चैनलो को हक़ीक़त बता कर अपना दावा सत्य साबित कर रही ? आखिर क्या है ऐसा जो उसे हवाई हमले का सच उजागर करने से रोक रहा हैं ? क्योंकि यह भारत सरकार की ही नहीं वरन सम्पूर्ण देश की प्रतिष्ठा का सवाल हैं --- मात्र सरकार मैं बैठी एक दल विशेष की उपलब्धि नहीं हैं |

जब - जब सत्तासीनों ने सेना को मुद्दा बनाया हैं तब - तब लोकतन्त्र की हत्या हुई हैं | दक्षिण अमेरिका के देशो वेनेजुयाला - पेरु -कोलम्बिया आदि अनेक देश इस रास्ते से चल कर अराज्क्ता मैं उलझ गए हैं | वनहा नागरिक अधिकारो का उल्ल्ङ्घन की वरदातों से से संयुक्त राष्ट्र संघ को हस्तक़्छेप करना पड़ा हैं | भारत मैं भी संयुक्त राष्ट्र संघ के "”पर्यवेछाक "” जम्मू - काश्मीर की विवादित सीमा रेखा पर आज भी तैनाती दो देशो के विवाद के कारण ही हुई हैं | वे सीमा के दोनों तरफ तैनात हैं | जो अपनी रिपोर्ट सीधे यूएनओ को भेजते हैं यनहा की सरकार को नहीं ! पाकिस्तान हवाई स्ट्राइक के हमले के स्थान पर अन्तराष्ट्रिय मीडिया को ले जाकर भारत सरकार के दावे को झूठा सीधा कर रहा हैं | यह हमारी सेना के लिए बहुत हितकारी नहीं हैं | केवल यह कह देने मात्र से बात साफ नहीं होगी की "””ऊपर से ऑर्डर आया था "” अब ऑर्डर जिसने भी दिया हो -परंतु वायु सेना प्रमुख ने कहा की "” हमारा काम टार्गेट को बर्बाद करना था ---हमले से हुए नुकसान और जनधन हानि का हिसाब सरकार बताए "”” परंतु सरकार देशी मीडिया पर दबाव बना कर हमले के कुछ शॉट दिखाने पर मजबूर कर रही हैं – और आम नागरिकों को उन पर विश्वास करने पर मजबूर कर रही हैं ! सच्चाई के लिए किए गए सवालो को देशद्रोह - गद्दारी जैसे विशेषणों से परिभाषित कर रही हैं | जनता द्वारा सरकार से सवाल पूछने के अधिकारो को भी नियनत्रित कर रही हैं | जबकि लोकतन्त्र मैं नागरिक को सवाल पूछने का अक्षुण अधिकार ही इसकी कसौटी हैं |

मोदी सरकार की बहू प्रचारित पाकिस्तान पर "”कूटनीतिक सफलता "” के प्रमाण मैं अमेरिका -ब्रिटेन और फ्रांस के आतंकवाद विरोधी प्रस्ताव का समर्थन बताते हैं | परंतु वे चीन का विरोध भूल जाते हैं - जबकि पहले राष्ट्रपति जी सी पिंग को अहमदाबाद मैं मोदी जी ने काफी झूला झुलाया था | अब उसी तरह चीन भी भारत के मोदी जी की सरकार को झूला रहा हैं |
जैसे इज़राइल के प्रधान मंत्री नेत्न्याहू को संसदीय चुनवो मैं राष्ट्रवाद की लहर के लिए "”गोलन पहाड़ी " पर उसके अधिकार को मान्यता दी हैं --- जबकि वह इलाका अरबों से छिना हुआ हैं ----जैसे की पाकिस्तान ने काश्मीर के इलाके पर कब्ज़ा किया हुआ हैं | अगर चीन गिलगित के इलाके पर पाकिस्तान की संप्रभुता मंजूर कर लेने की घोसना कर देता हैं ,तब राष्ट्रवाद की लहर का क्या होगा ?

न्युजीलैंड मैं दो मस्जिदों पर गोरी क़ौम की संप्रभुता के हिमायती ने अंधाधुंध गोलीबारी कर 50 से अधिक इस्लाम के बंदो की हत्या कर दी | प्रधानमंत्री जेसीन्डा ने इस हमले के लिए ना केवल निंदा की वरन हताहतो के परिवारों को धीरज बढाने पंजाबी सलवार सुट में उनके उनके घरो पर गयी | हमारे प्रधान मंत्री कभी भी पुलवामा के शहीदो के घरवालो के परिवारों को यह बताने नहीं गए की आपके परिवार के सदस्य की शहादात देश के लिए बहुमूल्य हैं | वे घटना के बाद भी जिम कार्बेट पार्क मैं फोटो शूट करते रहे | पटना मैं चुनावी रैली मैं भाषण करते रहे जबकि शहीद के शव पर फूल चड़ाने की भी फुर्सत नहीं रही ! आईपीएल क्रिकेट मैच के पहले दिन चेन्नई मैं मैच के शुरू होने के पहले ही लगभग 20 करोड़ की की धन राशि पौलवामा में शहीद हुए लोगो के परिवारों को लिए दी गयी थी ! परंतु सरकार ने ऐसी दरियादिली नहीं दिखाई !
सेना मैं प्रयोग मैं लाये जाने वाले सामानो को भी निजी छेत्र से निर्मित करवाने की पहल मोदी सरकार ने कर दी हैं | अभी तक राफेल -बोफोर्स जैसे बड़े हथियार निजी कंपनी से खरीदे थे – लेकिन अब कारतूस और ग्रेनेड आदि भी निजी कंपनी से कहरीदे जा रहे हैं | इससे देश की सेना कितनी सुरक्षित रह सकेगी -यह सोचने की बात हैं | क्या मोदी सरकार इन मुद्दो को भी ज़िम्मेदारी लेगी या – सिर्फ अच्छा अच्छा खा और कड़ुवा कड़ुवा थू थू की कहावत ही चरितार्थ करेगी |

Mar 17, 2019


मोदी उवाच - एक पुनरावलोकन

मैं देश का चौकीदार से -- मैं भी देश का चौकीदार !! अहम से धरातल की वास्तविकता की ओर ----------
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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी 2014 में संसद की सीडियो पर पाँव रखने से पूर्व एक भले शिष्य की भांति माथा टेका था | परंतु उन्होने लोक सभा को कभी यह नहीं बताया की उनकी 7000 करोड़ की खर्चीली विदेश यात्रा का परिणाम क्या हुआ ? भक्त सिर्फ एक उपलब्धि गिना सकते है – अजहर मसूद पर देश को समर्थन ! इसके अलावा देश की बंकों से अरबों रुपये गबन कर के विदेश जाने देने पर कोई जवाब नहीं | गौ रक्षको द्वरा उत्तर भारत में मुसलमानो को भीड़ द्वारा मार डाले जाने की घटनाओ पर कोई "”पछतावा नहीं | गौ मांस का सबसे बड़ा निर्यातक देश बनने पर कोई श्रम नहीं !
सार्वजनिक संस्थाओ को निजी हाथो में देने की कोशिसों पर कोई बयान नहीं ! सैनिको की एक पद एक पेंशन की मांग पर फूल स्टॉप | सेना में भर्ती में '’कटौती '’ करने और उनको कैंटीन की सुविधा में कमी को क्या देश भक्ति कहेंगे ? सरकारी बैंक और भारत संचार निगम में वेतन बांटने में दिक़्क़त --की कल्पना किसी अन्य सरकार में होती तो "”” स्यापा पार्टी "” छती कुटती पर इन समस्याओ को बेरोजगारी और शिक्षा के छेत्र में अव्यवस्था पर तब की सरकार से इस्तीफा मांगती "” पर मोदी सरकार में लोकतन्त्र की शर्म नहीं हैं ------वह गृह मंत्री राजनाथ सिंह के उस कथन से साफ हो जाता हैं -””””हमारी सरकार में विपक्ष के मांगने से कोई इस्तिफ़्स नहीं देता ,ऐसी परंपरा नहीं हैं !!!”” बैंक - बीमा और इन्फ्रा स्ट्रक्चर जैसे छेत्र में अरबों रुपया डूब गया --पर कोई कारवाई नहीं ! बस सनक और हनक से पार्टी और देश को हांकने की मोदी की ज़िद्द क्या करेगी देखेंगे !
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नगाड़ा बाजा कर किसी मैदान अथवा सड़क के किनारे तकलीफ़ों को दूर करने की दवा बेचने वाले की भीड़ में अनेक तो दर्द से कराहते लेकिन नब्बे फीसदी लोग तो तमाशबीन ही होते हैं | वे उसका बयान और दवा की तारीफ और उसके दावे सुनते है | कुछ लोगो को भरोसा हो जाता हैं ---वे उसकी बातो में आकार उसकी अंजान जड़ी - बूटी फाड़े की उम्मीद में खरीद भी लेते हैं | पर बाकी भीड़ चल देती हैं | क्योंकि भीड़ जमा होना भारत में मुश्किल नहीं | हाँ सड़क पर पड़े दुर्घटना ग्राश्त व्यक्ति की मददा करने कोई भीड़ नहीं आएगी | सब अपने रास्ते चले जाएँगे --पर तमाशा देखने लोग जुट जाएँगे और कई बार जूटा लिए जाएँगे | जैसे चुनाव की रैलियो में या सभाओ में | अब यह तो "”मदारी "” ही हैं जो भीड़ से सवाल भी पुछेगा और जवाब भी देगा | कमाल दिखने का वादा भी करेगा | जैसा देश के 2014 में आम चुनावो में हुआ ? अब एक बार फिर वही शैली सवाल पूछने की और हाथ हिलाने की मोदी जी की सभाओ में दिखायी देने लगी हैं | कुछ लोग प्रभावित भी होते है |नरेंद्र मोदी जी को 2022 तक सत्ता में बने रहने का भरोसा है | अपनी अंतिम मन की बात में उन्होने ऐसा व्यक्त किया था | पर क्या इस बार 2014 दुहराया जा सकता हैं ??? कुछ मुद्दे है जिनहे हम म्परखेंगे :-

1:- विगत लोकसभा चुनावो में गाँव - गाँव में और नगरो में मोदी जी
काला धन विदेश से लाने की और उसे लोगो में 15 -15 लाख वितरित करने का बहुत विश्वास था | जिस प्रकार मदारी अपनी बोलने की कला से मजमे को प्रभावित करता हैं ---कुछ वैसा ही प्रभाव होता था | नोटबंदी हुई तब भी समाज के इस अंतिम व्यक्ति को यह पर संतापी सुख था की --””साले वे बंगलो में रहने वाले अब सब नंगे होंगे --- बोरो में नोट निकलेंगे --यह भी हमारी तरह लाइन में लगेंगे | देश की करोड़ो जनता परेशान हुई सैकड़ो मौते हुई | पर किसी भी "”बड़े आदमी यानि की व्यापारी – डाक्टर --- वकील या अफसर को नोट बदलने की लाइन में नहीं देखा
गया | हाँ नरेंद्र मोदी की माँ और राहुल गांधी के लाइन में लगे होने को टीवी में देखा गया !!
2;- राम मंदिर और गौ रक्षा के नाम पर "”हिन्दू ह्रदय सम्राट "” की छवि बनाने के लिए गोधरा कांड के बाद हुए गुजरात में कत्ले - आम का श्रेय भी अपरोक्ष रूप से इन्हे दिया गया ----यह कह कर की उसके बाद गुजरात में कभी "”हिन्दी - मुसलमान "” दंगा हुआ ? तथ्य भी यही हैं की नहीं हुआ | परंतु म्मध्य प्रदेश के मुख्या मंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्रा ने लिखा है की "” दंगे सरकार में बैठे लोगो की मर्ज़ी से ही होते हैं "”” अन्यथा भीड़ को क़ाबू करने में पुलिस ही काफी हैं | अब इस कसौटी पर परखेंगे तो सत्या पता चल जाएगा |
राम मंदिर को लेकर बीजेपी ने दो बार सरकार बनाई – पर वे और उनके गुरु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इस मुद्दे को हिन्दू अस्मिता बताया , जिससे की मुद्दा गरम रहे | परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी कट्टरता को थाम लिया | इनकी आशा थी की मंदिर और गाय मुद्दा फिर चुनाव की वैतरणी पार लगा देगा | पर दोनों ही मामले चुनाव के बाद तक फैसले के लिए टल गए | प्रयाग में हुए अर्ध कुम्भ को कुम्भ बता करा इसके इंतज़ाम पर 12,000 करोड़ ख़रच किए गाये | की साधु -संत मंदिर की उनकी टेर पर अपनी टेक लगा देंगे | पर ऐसा हो ना सका !!
गाय के मुद्दे पर 2014 से लेकर 2015 में बजरंग दल के अनेक गौ रक्षको ने हरियाणा – उत्तर प्रदेश और आसाम में भी मुसलमानो को भीड़ ने मार डाला !
मोदी जी ने एक शाकाहारी बयान देकर की "”” दोषी को बकशा नहीं जाएगा "” कहकर इति श्री कर ली | पर जिस कठोर कारवाई की उम्मीद थी वह ना हुई |किसानो ने दूध ना देने वाली गायों को सड़क पर ले जाकर छोड़ दिया | फलस्वरूप राष्ट्रीय राज मार्गो पर अनेक आवारा गाये वाहनो से टकरा कर मर जाती है या गंभीर हालत में तड़पती रहती है | गौ शालाओ को खोलने वाले गायों के प्रति इतने समर्पित नहीं थे | वैसे संघ के समर्पित जीवनदानी कार्यकर्ता अगर इस काम को अपने हाथ में ले लें तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश और राष्ट्र की सच्ची सेवा करेगा | परंतु वे ऐसा क्यो नहीं करते यह समझ में नहीं आता ? क्या उन्हे गौ मूत्र और गोबर से सिर्फ दिखावटी मोह ही हैं | आखिर विश्व सबसे बड़ा सान्स्क्रतिक संगठन होने का दावा करने वाले क्यो नहीं "”हिन्दी संसक्राति "” की गौ माता की सेवा करते हैं ? या सिर्फ वे यह काम दूसरों के हिस्से में देने का उपदेश रखते हैं ? यह पाखंड ही तो हैं |

3:- सबका साथ – सबका विकास का नारा 2014 के बाद मोदी सरकार के अनेक निर्णयो से खोखला साबित हो चुका हैं | सरकार के उपक्रम नागरिकों की सेवा के लिए होते हैं | परंतु गुजराती आस्था में भूखे - नंगों की सेवा से ज्यादा भव्य मंदिर या स्मारक बनाने में आस्था रहती हैं | इसलिए उन्होने सरकारी परिवहन भारतीय रेल को भी "”व्यापार "” की इकाई बना दिया | उसके किराए में अनुचित बदोतरी की | हवाई जहाज की तर्ज़ पर "”फ्लेक्सि किराया "” सिस्टम लाये | जिन सज्जन ने रेल्वे बोर्ड में अध्यक्ष रहते हुए अनेक जन विरोधी काम किए उन्हे एयर इंडिया का चेरमेन बना दिया गया ---वह भी रेल्वे से रिटायर होने के बाद | आज इस सरकारी हवाई कंपनी की हालत यह है की --सरकार इसे बेचना चाहती है ---पर दुनिया के बाज़ार में इसका कोई खरीदार नहीं हैं | ऐसी ही हालत पाकिस्तान एयर लाइंस की भी है उसे भी कोई खरीदार नहीं मिल रहा हैं | और हमारे प्रधान मंत्री कहते हैं की मैं चाहता हूँ की सभी लोग हवाई यात्रा कर सके ! ऐसी हवा - हवाई सिर्फ मोदी जी ही कर सकते हैं | अब बैंको की हालत देखे -----राष्ट्र का केन्द्रीय बैंक जो देश में मुद्रा परिचालन का जिम्मेदार होता है और वह मांग और आपूर्ति को देखते हुए मुद्रा को नियंत्रित करता हैं | परंतु नरेंद्र मोदी की सरकार ने नोटबंदी ऐसे मसले पर जब रिजर्व बैंक की सहमति लेना उचित नहीं समझा तो वे कानूनी प्रावधानों की क्या परवाह करेंगे |
पुलवामा कांड में जब देश और मीडिया व्यस्त था तब नोटबंदी के समय रहे वितता सचिव जो अब रिजर्व बैंक के गवर्नर है शशि कान्त दास उन्होने केंद्रीय सरकार को 26000 करोड़ रुपये की धन राशि दे दी | अब यह क़र्ज़ के रूप हैं अथवा लाभांश के रूप में यह भी साफ नहीं हुआ हैं | पर यह खबर दाब तो गयी "| अब बंकों पर रिजर्व बैंक के नियंत्रण से भी मोदी सरकार नाराज़ हैं | क्योंकि उनके उद्योगपति मित्रो को क़र्ज़ मिलने में तकलीफ हैं | क्योंकि रिजेर्व बैंक ने सभी बंकों से कह रखा हैं की यदि कोई क़र्ज़ लेने वाला दो किशते नहीं चुकाता तो उसका मामला "”दिवाला निकालने वाले मध्यस्थों "” को सौंप दिया जाये | परंतु इस निर्देश से अंबानी -अदानी सहित अनेक गुजराती उद्योगपति फंस गए | तब सरकार ने रिज़र्व बैंक को इस निर्देश में ढील देने को कहा | जब ऊर्जित पटेल गवर्नर थे तब उन्होने सरकार की दखलंदाज़ी से परेशान होकर इस्तीफा दे दिया था " तब सरकार ने अपने यश मैन शशि कान्त दास को नियुक्त किया |
अनेक अलाभकारी बैंको को बड़े बैंको में विलयन कर सरकार एक सबल आर्थिक बैंक उद्योग बना ने की बात कहती हैं | इन बंकों को अपनी पूंजी बदने के लिए "”बाज़ार "” से धन लाने को कहा गया | सवाल यह है की सरकार द्वरा नियंत्रित इन संस्थाओ को बाजार से अगर शेयर बेचकर पैसा उठाना होगा ----तो इनके स्वरूप में भी परिवर्तन होगा | जैसा की आइडीबीआई में जीवन बीमा निगम का पैसा लगा कर उसके आधार्भोत संरचना परिवर्तन किया गया | अब वनहा के करमचारी अन्य सार्वजनिक बैंको में अपना तबादला चाहते हैं | क्योंकि बीमा निगम आपने तरीके से काम चाहता है जो की "””नॉन बैंकिंग "” स्वरूप का हैं |

भारत सरकार द्वरा शुरू किए गए उपक्रम आइसी अँडएफ़एस में भयानक घाटा 2014 से 2018 के मध्य उठाना पड़ा | क्योंकि कुछ सरकार के चाहिते उद्योगपतियों को इनकी सेवाए दी गयी परंतु उनलोगों ने इन सेवाओ का भुगतान नहीं किया | जबकि भारतीय सेनाओ के अफसरो और जवानो के 210 करोड़ रुपये बीमा के रूप मे फंसे हैं | जिंका भुगतान नहीं किया जा रहा हैं | यह मओडी सरकार की सेना के प्रति प्रेम और भक्ति !!!!!

4:- अंतिम स्थिति है राजनीतिक द्राशया की – 2014 में प्रचार की आँधी से भौचक्के राजनीतिक दल कुछ सहम गए थे | इस लिए मोदी जी का घोडा सरपट दिल्ली पहुँच गया | परंतु इस बार सभी दल छोटे या बड़े सभी डिजिटल और साइबर तरीको से तैयार हैं | अब बात सिर्फ इतनी ही हैं की बीजेपी अपने धन बल से कुछ ज्यादा धुनाधार प्रचार कर लेगी , वनही काँग्रेस या अन्य पार्टीया कुछ कम प्रचार कर पाएँगी | जिस सोशल मीडिया की बदौलत 2014 में बीजेपी ने अपने विरोधियो का चरित्र हनन किया था और अपनी उपलब्धि बताई थी | उसका जवाब उन्हे कई कोनो से मिलेगा ----जो की मात्र में उनसे ज्यादा होगा |

बीजेपी और मोदी जी की कोशिस यही हैं की यह चुनाव मोदी बनाम राहुल गांधी हो जाये – परंतु अब उन्हे विभिन्न स्थानो पर भिन्न - भिन्न नेताओ से मुक़ाबला करना पड़ेगा | क्योंकि विपक्ष भले ही बहुत एकजुट नहीं हो परंतु वह मुक़ाबले पर तो है | अबकी घोडा दिल्ली में खड़ा नहीं रह पाएगा |