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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 4, 2016

मदर टेरेसा को संत उपाधि पर कुछ प्रतिकृया और वास्तविकता
अल्बानिया मे जन्मी ,और भारत जिनकी कर्म भूमि रही , लगभग पचास वर्षो तक जिनकी पहचान निराश्रितों और कुष्ट रोगियो के लिए आशा की लौ मदर टेरेसा को रविवार को वैटिकन मे पोप ने संत के रूप मे कैथोलिक ईसाई धर्म मे मान्यता दी | नवभारत टाइम्स मे मेरे सहयोगी रहे प्रख्यात पत्रकार डॉ वेद प्रताप वेदिक ने आज नया इंडिया मे एक आलेख मे लिखा है की "”उन्हे संत बनाने की प्रक्रिया नितांत अवैज्ञानिक है "” उन्होने संत के लिए आवश्यक चमत्कारो को भी अमान्य किया "” उनके अनुसार उन्होने दुनिया के बदनाम और दागी लोगो से "”आर्थिक "”मदद ली | इतना ही नहीं उन्होने कलकत्ता मे निराश्रितों और कुष्ट रोगियो की उनकी सेवा को "”धर्मांतरण "” की प्रक्रिया का एक अंग बताया | इसके लिए उन्होने मदर टेरेसा के बारे मे एक बंगाली सज्जन द्वरा लिखी गयी किताब का उधारण दिया --तथा एक डाकुमेंटरी का भी हवाला दिया जिसमे मदर द्वारा अवांछित लोगो से धन लेने की बात कही गयी थी |

उनके आरोपो की सत्यता के बारे मे कोई विवाद उठाने से पूर्व वेदिक जी से मेरे कुछ प्रश्न है --- महात्मा - संत – साधु - स्वामी और महामंडलेश्वर -मंडलेश्वर --बाबा आदि के जो विशेषण आज कल समाज मे अनेक भगवा धारी लोग लगाए फिरते है – अथवा जो मठाधीश अपने भक्तो को राजनीतिक दलो की ओर मोड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाते है ---क्या उन्हे "”धार्मिक "” रूप से "”पूज्य "” मानना चाहिए | योन शोसन के आरोपो से जेल मे बंद आशाराम के "”चेले "” क्या उन पर चल रहे मुकदमे से अंजान है ? अथवा जानकार भी भोले बन रहे है और सरकार पर आरोप लगा रहे है की "”राजनीतिक "”कारणो से उन्हे फंसाया गया है | पहले यही आरोप मनमोहन सिंह पर लगता था अब नरेंद्र मोदी पर लग रहा है | उनकी अकूत ज़मीन जायदाद उनके और उनके पुत्र और रिश्तेदारों के नाम है खरबो रुपये की संपति के वे बेनामी मालिक है | इसी कड़ी मे मथुरा मे हुए गोलीकांड का भी ज़िक्र करना उचित होगा --जो जय गुरुदेव की अरबों रुपयो की संपाति पर क़ब्ज़े का असफल प्रयास था | हरियाणा मे एक डेरा है बाबाब राम रहीम का जो जब चलते है तो दस -बारह करो का काफिला चलता है | वे अपने ऊपर एक फिल्म भी बनवा चुके है | एक और डेरा है जिसके स्वामी का देहावसान हो जाने के बाद उनके शिष्यो ने शव को अंतिम साँसकर के लिए नहीं ले जाने दिया |

वेदिक जी मई जिस धर्म का उल्लेख कर रहा हूँ वह आपकी भाषा मे "””हिन्दू "”है | जिसमे दर्जनो भगवा वस्त्रधारी महिला के यौन शोषण और धोखा धड़ी और अन्य अपराधो मे भी लिप्त पाये गए | परंतु इन सभी महानुभावों के "”भक्तो "” की श्रद्धा ने कभी "”वैज्ञानिकता और तथ्यो "”” की जांच - परख ''नहीं की | फिर भी वे बाबा है लोग उनके पैर छूते है दान देते है उन्हे परमात्मा का "”दूत "” मानते है | पर इनमे से कितनों ने समाज के लिए परोपकार का कारी किया हो तो मुझे बता दीजिये ? मेरी द्राशती मे अगर "”तप"” की मिसाल देनी हो तो दिगंबर मुनियो की देनी होगी | जो नितांत "”अपरिग्रह "” का पालन करते है | जादा - गर्मी -धूप शीट बरसात सहते है भूमि पर सोते है | एक समय अंजुरी भर कर भोजन करते है | पैदल ही विचरण करते है कोई सवारी नहीं स्वीकार करते | उनकी तुलना मे महामंडलेस्वर जो विदेशी और एयर कंडीसन कारो मे चलते है --- बिना चाँदी या स्वर्ण मंडित सिंहासन के और छात्र तथा छावर के सवारी नहीं निकलती | जिन सन्यासियों के लिए स्त्री छूना निषेध है वे अपने चरणों मे उन्हे स्थान देते है | स्त्री के साथ एकांत भगवा वस्त्रधारियों के लिए ''पाप'' है --- परंतु उत्तर से दक्षिण भारत के दर्जनो ऐसे नाम गिनाए जा सकते है जो ऐसा करते है |

ये वेदिक धर्म की सनातन परंपरा की किस कड़ी का पालन करते है ?? इनमे कोइ भी समाज के लिए कल्याण नहीं करता | अपना और थोड़ा बहुत अपने ''भक्तो '' का ''कल्याण '' करते है | भूखे को भोजन और रोगी को इलाज़ तथा निराश्रित को आश्रय का काम तो मदर टेरेसा ने भारत मे किया इतना तो वेदिक जी आप भी मानेंगे | भूख गरीबी की सबसे बड़ी कमजोरी है --जो उस से कोई भी पाप कराति है | उनको भोजन देने का पुण्य तो उन्हे मिलेगा की नहीं ? भोजन सुलभ करने जैसा महान कार्य हमारे सीख धर्म के गुरुद्वारों के '''लंगर'' मे होता है |जनहा बिना भेदभाव के सबको पेट भर भोजन मिलता है --बिना यह पूछे हुए की वह किस धर्मा का है ?


वेदिक जी आपने लिखा है की वे बीमार के गले मे दो घूंट जल ड़ाल कर उसे ईसाई बनाती थी – मुझे कहते हुए संकोच है की ईसाई धर्म मे धर्मांतरण की लंबी प्रक्रिया है -वैसी ही जैसे वेदिक धर्म द्विज बनाने की | एक प्रश्न और उनके यानहा के बीमारों को कितनों को ''दफनाया ''गया और कितनों का दाह संस्कार हुआ -जरा पता कर ले | कलकत्ता नगर निगम से आंकड़े मिल जाएंगे | और अंत मे एक प्रश्न के साथ बात समाप्त करूंगा की – मोहनदास करमचंद गांधी को इस देश ने क्यो '''महात्मा '' कहा क्यो उन्हे ''राष्ट्रपिता '' का नाम दिया क्या वे इसके पात्र थे की नहीं ? आप का उत्तर नहीं होगा परंतु फिर आप उनही के बराबर के व्यक्ति का नाम बता दीजिएगा | बंदे  

भीड़ का प्रजातन्त्र या कुछ लोगो की गिरोहबंदी

भीड़ का प्रजातब्न्त्र अथवा कुछ लोगो की गिरोहबंदी ?

एक अङ्ग्रेज़ी दैनिक की खबर के अनुसार KFC फूड चेन के वीरुध कुछ हिन्दू और मुस्लिम लोगो ने एकत्र हो कर इकबाल मैदान मे कंपनी को देश मे बंद किए जाने की मांग की है | ताज्जुब की बात है की इस हस्ताक्षर अभियान मे शहर क़ाज़ी मुश्ताक़ अली नदवी ने तथा मस्जिद कमिटी के यासीर अराफात तथा हिन्दुओ की ओर से अरुण छावरिया से इस अभियान को केएफ़सी मुक्त भारत अभियान का नाम दिया |वजह यह बताई की केएफ़सी को बताना चाहिए की वे हलाल का बेचते है या झटके का मांस बेचते है | उन्होने पुलिस मे शिकायत भी दर्ज़ कराई है की इस कंपनी के व्यापार से उनके "”धार्मिक भावनाओ "”” को आघात पहुंचा है | वैसे दूकान पर जाना वैसे ही है जैसे शराब की दूकान पर जाना | इस्लाम मे शराब भी हराम कही गयी है ,, पर उस पर कोई मांग या आंदोलन नहीं है | जो झटके या हलाल से ज्यादा ज़रूरी है ,, घर - घर मे झगड़े और मारपीट का मूल है |

जंहा मुस्लिमो का एतराज़ केएफ़सी मे मिलने वाले मांस के "”हलाल"” का ना होने की थी वनहा छावरिया का कहना था के वे "”गौ संरक्षण "” की मांग करते है | क़ाज़ी के अनुसार केएफ़सी को बताना चाहिए की वे जो बेच रहे है वह " हलाल " का गोष्त है झटके का नहीं | इन दो परस्पर विरोधी मांगो के लिए "”एक साथ "” हस्ताक्षर अभियान कुछ समझ मे नहीं आती है | अभी तक गाय को बचाने के लिए उनको ट्रको मे ले जाने वाले मुस्लिम व्यापारियो को अनेक स्थानो पर बहुसंख्यक समुदाय के आक्रोश का सामना करना पड़ा था | दूसरा केएफ़सी मे "”बीफ "”” का इस्तेमाल नहीं होता है , ऐसा उनके प्रबंधन का कहना है | फिर गाय संरक्षण की इस अवसर पर ज़रूरत नहीं समझ आ रही है |
मुस्लिम समुदाय के लिए हलाल ही जायज है ,, उनका
विरोध तो समझ मे आता है | परंतु प्रपट रिपोर्टों के अनुसार कंपनी अपने लिए मुर्गो की खरीद गोदरेज और वेनन्की से खरीदती है | जो हलाल का सर्टिफिकेट बॉम्बे के एक मुफ़्ती द्वारा दिया गया है | अब क़ाज़ी नादवी का कहना है की वह सर्टिफिकेट केएफ़सी को नहीं दिया है | वे इस बात को नहीं समझना चाहते है की केएफ़सी कोई मुर्गी पालन केंद्र नहीं चलती है --जहा से वे अपने वितरण केन्द्रो पर चिक़ेंन बेचते है |


क़ाज़ी साहब का कहना है की केएफ़सी इस बात की सार्वजनिक घोसणा करे की वे झटका बेचते है या हलाल ? इस मांग से धर्म गुरु की कमजोरी साफ झलकती है | इस्लाम मे हलाल को ही जायज कहा गया है --तब यह हर बंदे का फर्ज़ बंता है की वह यह तसदीक़ करे की जो गोष्त वह ले रहा है वह वाजिब है या नहीं | शहर मे बहुत से मांस बेचने वाली दूकानों पर लिखा होता है की यानहा झटके का मीट मिलता है | अब यह लेने वाले की मर्ज़ी वह कान्हा से ले | पर यह कहना की हर होटल या रेस्टुरेंट इस बात को बाहर लिखवा दे की यानहा हलाल का मांस मिलता है या झटके का --यह तो बहुत '''गैर वाजिब "”बात है | अगर आदमी को अपने उसूलो से इतना महत्व है तो वह ''ऐसी ''जगह पर ना जाये | वैसे तो इस्लाम मे शराब भी "””हराम "” है तो क्या शहर की सभी शराब की दूकानों को बंद कर दिया जाएगा ?? यही है भीड़ या गिरोह की राजनीति