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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 8, 2020

 

नयी संसद का उदघाटन बनाम बूंदी का क़िला फतेह !!!!

सर्वोच्च न्यायलय की तीन न्यायमूर्तिओ की पूर्ण पीठ के निर्देश के बावजूद ,जिस प्रकार लोकसभा आद्यक्ष ओम बिरला ने चैनल पर आकार "” आज़ाद भारत में हमारी संसद भवन का उदघाटन 9 दिसंबर को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वरा क्या जाएगा , वह सूचना से अधिक -सुप्रीम कोर्ट में लंबित सरकार की "”सेंट्रल विस्टा बिल्डिंग "” की योजना की शुरुआत से सरकार की "”बेपरवाही या अनदेखी "” ही नजर आ रही थी | लोक सभा आद्यक्ष बिरला के बयान के दूसरे ही दिन न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और उनके दो सहयोगीयो ने सॉलिसीटर जनरल तुषार को सरकार की इस हरकत के लिए काफी लानत - मलानत की | जब उन्से अदालत के पूर्व निर्देशों के अनुपालन की अवहेलना के बारे में सवाल किए ----तब उन्होने एक दिन का समय मांगा | जिसे अदालत ने नामंज़ूर कर दिया , और पाच मिनट में ही जवाब देने का आदेश दिया | अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा "”हम समझते थे की आप अदालत के मनोभावों को समझेंगे , पर आप ने ऐसा नहीं किया | वरन भूमि पूजन करने का फैसला कर लिया ! हम इससे आशंतुष्ट हैं | परंतु अब आप सिर्फ भूमि पूजन और कागजी कारवाई ही कर सकेंगे , ना तो कोई निर्माण कार्य हो सकेगा ना ही कोई पेड़ काटे जा सकेंगे ! इस फैसले के मद्दे नज़र सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर मोदी सरकार की इज्ज़त को बचा दिया !

यह घटना मुझे पुराने राजपूताना की एक घटना की याद दिलाता हैं , जिसमें जोधपुर की रियासत के राजा ने एक बार किसी बात पर बूंदी के हाड़ा सरदार से नाराज होकर उनके किले पर हमला कर दिया | कई दिन तक चले युद्ध में जोधपुर नरेश का मंसूबा पूरा नहीं हुआ | उन्होने रजपूती शान में प्रन किया की जब तक वे बूंदी के किले को फतह नहीं कर लेंगे वे जल नहीं ग्रहण करेंगे | राजा साहब के इस प्रतिज्ञा से दरबार और रनिवास में शोक की लहर छा गयी | क्योंकि बूंदी के किले को फतह करना बहुत मुश्किल था | तब तक कोई भी राजा उस किले को नहीं जीत पाया था | राजा के सरदारो ने एक युक्ति निकाली की – बूंदी के किले की एक प्रतिमूर्ति मिट्टी की बनवा कर उसे फतह करा दिया जाये ----तो कसम् भी पूरी हो जाएगी और व्रत भी सांकेतिक रोप से पूरा हो जाएगा | जोधपुर नरेस को यह युक्ति बताई गयी , और वे सहमत हो गए | परंतु उनही की सेना में छह हाड़ा सैनिक भी थे , उन्हे लगा की यह उनकी मात्रभूमि का अपमान हैं ----भले ही सांकेतिक रूप से हो | जब जोधपुर के सैनिक उस मिट्टी के किले पर हमले के लिए बड़े ---- तब उन हाड़ा सैनिको ने किले की रक्षा करते हुए प्राण त्याग दिये | कुछ वैसा ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नरेंद्र मोदी के इस महत्वाकांछी योजना को सांकेतिक राहत मिली हैं |

नरेंद्र मोदी द्वरा सरदार की मूर्ति और अयोध्या में मंदिर के बाद यह तीसरा प्रोजेक्ट है जो वे अपनी "”अमरता "” के लिए बनवाना चाहते हैं | उनसे पहले के प्रधान मंत्रियो ने मुगलो की भांति इमारत बनवा कर इतिहास में स्थान पाने की चाहत रखते हैं | एक कहावत है "” मुगल गए तगाड़ी में ---मराठे गए रंगारी में और सरकार जागी पगारी में !! इसका अर्थ हैं --की मुग़ल शासको ने देश में ताज महल - लाल किला और आगरा फोर्ट तथा क़ुतुब मीनार आदि | ताज महल आज भी विश्व की धरोहरों मीन एक हैं , पर क्या मूर्ति और मंदिर भी यह स्थान पाएंगे ? कहना मुश्किल हैं | दुनिया अनेक विशाल उपासना स्थल है परंतु उनका महत्व उन धर्मो के मानने वालो के लिए हैं --शेस के लिए वे "”एक इमारत भर हैं " |

दुनिया के प्रजातांत्रिक देशो में सर्व प्रथम स्थान ब्रिटेन का हैं , जो संघ के और मोदी भक्तो के लिए "”अछूत "” जैसा हैं , परंतु टिटिहरी की भांति स्वयं को सब कुछ मानने की सनक सही नहीं हैं | आज जब संचार साधनो के कारण दुनिया में दूरिया बेमानी हो गयी हैं , तब देशी या विदेशी अथवा राष्ट्रवाद या अंतर्राष्ट्रीयवाद का कोई अर्थ नहीं हैं | कोई राष्ट्र और उसके नागरिक अपने को विश्व का सर्वश्रेष्ठ नहीं कह सकते | हाँ वे कुछ छेत्रों में सफल हो सकते हैं | इसी प्रकार दुनिया में वे ही नेता याद किए जाते हैं जो ----अपने पद के कारण नहीं , वरन आँय योग्यताओ के कारण जाने जाते हैं | हमारे सामने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का उदाहरण हैं | दुनिया का सबसे शक्ति शाली देश का नेता आज अपने बयानो और कर्मो की वजह से न केवल अपने देश में वरन दुनिया के आँय देशो में भी अपनी थू थू करा रहा हैं |

ब्रिटेन की संसद लगभग हज़ार सालो से उसी भवन से सरकार चला रही हैं अमेरिका का कांग्रेस भवन भी सात सौ साल पुराना हैं | फ्रांस में भी वे अपने ऐतिहासिक इमारतों से ही सरकारी कार्य करते हैं | वे गर्व से कहते हैं की यह हमारी विरासत है |

परंतु मोदी जी की ज़िद्द की वे हर उस वस्तु को नकार देने जो 70 सालो से परंपरा के रूप मे चली आ रही हैं | वे महात्मा और पंडित नेहरू से भी अपने को महान बनाने की कोशिस कर रहे हैं | परंतु ना तो वे आंदोलन की उपज है और नाही वे नेल्सन मंडेला अथवा मार्टिन लूथर किंग की तरह एक सिधान्त के लिए स्ंघ्रस रात रहे हैं | उनकी बौद्धिक छ्मता भी सामने नहीं आई हैं , की वे इन नेताओ की तरह किसी विचा का प्रतिपादन अथवा अपने संघर्ष की गाथा लिख सके | बचपन में मगर से लड़ाई में जीत , अथवा छत्रों को परीक्षा मीन सफल होने की टिप देने का काम कोचिंग सेंटर जैसा काम हैं | उनकी शिक्षा की डिग्री भी संदेह क घेरे में हैं | ऐसे में वे इमारतों के पत्थर में अपना नाम लिखा कर अगर इतिहास में जाना चाहते हैं ----तो यह उनकी बड़ी भूल हैं |