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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 13, 2020

 

क़र्ज़ और फर्ज़ साहब भले ही नहीं निभा सके पर -शौक तो पूरे करेंगे !



एयर इंडिया को नीलामी करने का सरकार का फैसला तीन -तीन बार असफल हुआ , भले ही मोदी सरकार को कोई खरीदार अभी तक नहीं मिला है पर – प्रधान मंत्री -राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के दौरो के लिए 8000 करोड़ के दो बोइंग जहाज खरीदने का सौदा हो चुका हैं ! और एक शाही जहाज तो आ भी गया | मतलब 16 हज़ार करोड़ का भुगतान बोइंग को हो गया | भले राज्य सरकारो को जीएसटी का हिस्सा देने में वित्त मंत्री निर्मला सीता रमन ने हाथ खड़े कर दिये ,| सरकारी खर्चो में कटौती करते हुए नई भर्ती भी नहीं हो रही हैं | पर 32000 करोड़ का नया संसद भवन बनाने के लिए "”टेंडर "” निकलने की जल्दी हैं | टाटा को 835 करोड़ का काम शुरू करने का आर्डर भी निकाल दिया | सवाल है की आज कोरोना के समय में जब ढाई करोड़ से अधिक श्रमिक बेरोजगार हो कर राष्ट्रीय बंद के समय पैदल - दुपहिये और तीन पहिये पर अपने गावों को निकल पड़े थे | लोकतन्त्र में शायद ऐसा पहली बार देखा गया होगा जब ऐसी राष्ट्रीय आपदा में मोदी सरकार की चुप्पी वैसी ही थी , जैसी की फ्रांस की क्रांति के समय भूखी जनता का था | परंतु यूरोप और एशिया के लोगो के स्वभाव के मौलिक अंतर के कारण ना तो कोई राज्य सरकार को जनता से सहानुभूति थी और ना ही केंद्र को ! लोग मरते रहे भूखे -प्यासे और प्रदेश की सरकारे अपनी -अपनी सीमा में इन प्रवासी मजदूरो पर पुलिस के जरिये लाठी बरसाती रही | मजदूर अपना गुस्सा भी नहीं निकाल पाये , की पुलिस से कोई मुठभेड़ हुई हो अथवा सीमा पर पानी और छाया का कोई बंदोबस्त रहा हो ! परंतु निरीह ग्रामीण जन सुल्तान की ज़िद्द के आगे घुटने टेक कर बैठे थे !

बिगड़े और नये रईस की तरह \शौक को ज़िद्द की भांति पूरे करने के लिए इस हक़ीक़त से भी आँख मूँद ली की नागरिकों को राष्ट्रीय आपदा कोरोना के समय स्वास्थ्य सुविधाओ की कितनी ज़रूरत हैं ! जब दुनिया की सभी सरकारे अपने बजट में इस अद्रष्य शत्रु से निपटने के लिए खर्चो की रकम बड़ा रही थी ---तब मोदी सरकार का बजट जस का तस था \ हालत यह हो गयी की आज भारत जो साहब के लिए विश्व गुरु है , वह अपने कुल खर्चे में स्वास्थ्य संबंधी खर्चो में कोई व्रधी नहीं की | बस प्राइम मिनिस्टर केयर फंड से वेंन्टीलेटर के लिए गुजरात की एक फ़र्म को ठेका दिया | जिसने भी वेंटिलेटर के नाम पर घटिया सा उपकरण सप्लाइ किया | इस मामले में भी कोई जांच नहीं हुई --क्योंकि वह किसी "”राष्ट्रीय गुजरती "”की कंपनी थी ! इतना ही नहीं केंद्र ने अनुसूचित जाती और जनजाति को मिलने वाली छात्र व्रती का भुगतान भी राज्यो को विगत तीन सालो से नहीं किया ! क्या मोदी सरकार उनको मिलने वाली मुफ्त शिक्षा को बंद करना चाहती हैं , या कोरोना का बहाना बना कर पैसे की तंगी बताना चाहती हैं !

बिगड़ैल रईसो की भांति अब हालत यह हो गयी हैं की सरकार अपना सोना भी जनता को बेचने का कार्यकरम बना रही हैं | वैसे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया अपनी रिपोर्ट में तो दावा कर रहा हैं की ----- आर्थिक मंडी के इस दौर में भी भर्ता का विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा हुआ हैं < फिर क्यू सरकार को सोना बेचना पद रहा हैं ! क्या जहाज और नये संसद भवन के लिए रकम चाइए इसलिए ?



देश में अंग्रेज़ो के समय चली आ रही जमींदारी और तालुकेदारी के समय जब जमींदार को मोटर खरीदना होता था तब वह रैयत पर "”मोटराना "” या घोड़े खरीदने के लिए "”घोड वाना "” टैक्स लगा कर अपने शौक पूरे करता था | कुछ - कुछ केंद्र सरकार वैसा ही कर रही हैं | इतिहास में बड़े बड़े निर्माण कार्य शासको द्वरा करवाए गए हैं | इनमें लोक या जनता के लाभ के लिए सिर्फ नहर या कुआ खुदवाने तक ही सीमित रहा | कहते हैं हैं की चीन की विशाल दीवार के निर्माण में करोड़ो निरीह जनता के प्राण चले गए ----उनका अंतिम संस्कार भी नहीं किया गया ,और उनके शवो को दीवार में ही चुनवा दिया गया | नए संसद भवन का निर्माण की "”झख "” भी नेता की ज़िद्द हैं ,की इतिहास में उनका नाम इस भवन के साथ अमर रहेगा | वे भूल जाते हैं की अवध के नवाब आस्फ़ुदौला ने अकाल के समय रिआया की मददा के लिए जिस इमारत को बनवाया --- उसका नाम ही "” भूल भुलैया "” हैं | लोग इस इमारत का नाम तो जानते हैं की यह लखनऊ में हैं , पर कम ही लोगो को मालूम हैं की इसका निर्माण किसने और क्यू करवाया था ! किस्सा कुछ यू हैं की बारिश की कमी से अवध के इलाके में फासले बर्बाद हो गयी थी , किसान - कर्मकार और छोटे जमीदार भी अकाल से पीड़ित थे | न तो उनके पास खाने को अन्न था और ना ही खरीदने के लिए धन | ऐसी दशा में आसफुदौला ने भूल भौलिया का निर्माण शुरू कराया | दिन में आम आदमी यानहा निर्माण करता था और उसे खजाने की ओर से मजदूरी मिलती थी | रात में शहर के सफेदपोश तबके लोग मुंह पर कपड़ा बांधे उसी निर्माण कार्य को गिरा देते थे | इन सफ़ेद पोष लोगो को लड्डू दिये जाते थे जिसमें अशरफीय चौपाई गयी होती थी | ऐसा इसलिए किया गया था की जिस्से की उन "”शरीफ "” लोगो की पहचान ना हो और उन्हे किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत हो | तो साहब हालत सुधरते ही निर्माण पूरा हुआ और इमारत तामीर हुई | यह था हिन्दुस्तानी शासको का निर्माण का तरीका | और चीन के शासको की करतूत बता चुके हैं |

कहने का मतलब की जनता का धन जनता या लोक कल्याण के लिए हो नाकी , नेता या शासको के तफ़रीहनुमा दौरो के लिए फाइव स्टार हवाई जहाज खरीदने के लिए ! दुनिया का सबसे पुराना प्रजातन्त्र ब्रिटेन का हैं , वनहा की संसद आज भी 500 साल पुरानी बिल्डिंग में ही लगती हैं | अमेरिका का राष्टपती भवन और काँग्रेस { दोनों सदनो के बैठने का स्थान } भी सौ साल से ज्यादा पुराने हैं | उनकी आर्थिक हैसियत भारत से काही ज्यादा बेहतर हैं | परंतु उनकी सरकारो के नेताओ को अपनी "”पुरातनता और परंपरा पर गर्व हैं "” इसलिए वे उसी में कार्य कर रहे है | जबकि हमारे नेताओ में कंपूयटर चलाने का प्रतिशत दस प्रतिशत से अधिक नहीं हैं | अधिकतर मंत्री "”टैबलेट या लैपटॉप "” का इस्तेमाल फेसबूक और ट्विटर तक ही करते हैं | दूसरा शासन का खर्चा कम करने की मोदी की मुहिम में जब करमचारी ही कम हो जाएंगे तब किसके लिए "” ज्यादा बड़ी जगह चाहिये | “”