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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 31, 2017

चीनी राष्ट्रपति जिंपिंग ---ट्रम्प और नरेंद्र मोदी की दुखती रग

जुलाई माह के आखिरी दिनो मे चीन से तकलीफ का दर्द अमेरिकी और भारतीय नेता के स्वर मे फूट पड़ा | अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने आदत के अनुसार ट्वीट कर के कहा की "”पहले के प्रशासनों की गलती से चीन ने हमारे देश से खरबो डालर कमाए पर वह कोई मदद नहीं कर रहा है "” | उनकी तकलीफ उत्तर कोरिया द्वरा "”इंटर कॉन्टिनेन्टल बैलिस्टिक मिसाइल " द्वारा सफल प्रक्षेपणकिए जाने की घटना पर था | इस मिसाइल द्वारा उत्तर कोरिया अमेरिका के अलास्का सहित अनेक नगरो पर परमाणु बम से हमला करने मे समर्थ हो गया है | यह एक प्रकार से ट्रम्प के प्रभुत्व को खुली चुनौती है |
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 30 जुलाई को "”हफ्तावारी कार्यक्रम "” मन की बात मे आपण दर्द कुछ यू बयान किया ---हमे स्वदेशी समान ही खरीदना चाहिए गणेश की मूर्ति हमारी मिट्टी से ही बनी हुई हो | गौर करने की बात है की डोकलम सीमा विवाद के बाद चीन ने भारत को चेतावनी दी है | चीन के राष्ट्रपति जिंपिंग ने पहली बार सेना की वर्दी मे मशहूर लाल सेना की परेड की सलामी मंगोलिया से सटे सैनिक अड्डे मे ली | उन्होने कहा की हमारी सेनाए अपने शत्रुओ का नाश करने मे समर्थ है |
ट्रम्प ने जिंपिंग दंपति की अमेरिका यात्रा के समय खूब आवभगत की थी | उन्हे अपने निजी रिज़ॉर्ट मरलगो मे गोल्फ भी खेलने को आमंत्रित किया था | तब उन्होने चीन के राष्ट्रपति की तारीफ मे राजनयिक तौर तरीके से कनही अधिक उन्हे "”अपना भरोसे का दोस्त बताया था "” | जी -20 के शिखर सम्मेलन मे भी उन्होने जिंपिंग पर भरोसा जताया था की "वे कोरिया मसले पर अपने प्रभाव का प्रयोग करेंगे " | परंतु कोरिया उसके बाद भी मिसाइल पर मिसाइल जापान के समुद्री इलाके मे दागता रहा | उनका गुस्सा इस बात पर है की जिंपिंग ने कोई मदद नहीं की |
वनही मोदी जी ने भी जिंपिंग दंपति की अहमदाबाद मे अगवानी कर के साबरमती किनारे झूला झुलाया था | परंतु उसके बावजूद भी भूटान सीमा डोकलम को लेकर तनातनी बनी हुई है | अनेकों बार दोनों ओर के सैनिको की "”हाथापाई "” की तस्वीरे मीडियामे आई है | बस गनीमत हथियारो सहित मुठभेड़ नहीं हुई | अन्यथा 1962 दुहराया जा सकता है | कहा गया की अमेरिका चीन के मुक़ाबले हमारे साथ खड़ा रहेगा | परंतु जब खुद ट्रम्प चीन से परेशान हो तब वे हमारी कितनी मदद करेंगे ??
ट्रम्प जिस कारोबारी प्रष्ट भूमि से आए है --उसमे "” समर्थ व्यक्ति "” खुद फैसले लेता है | जैसे कारपोरेट जगत मे होता है | वे भूल गए की राजनीति मे "”अकेला आदमी निर्णायक नहीं होता "” जैसा की सीनेट ने उनके प्रस्ताव को "”अमान्य कर दिया "” | राष्ट्र की राजनीति मे देश हिट प्रथम होता है | फिर आप चाहे जितनी आवभगत करो उस पर समझौता नहीं होता | अब चीन से भारत का नेत्रत्व निवेश चाहता है | और उन्होने किया भी है | संचार के छेत्र मे टावर लगाने से लेकर कम्प्युटर हार्डवेयर या मोबाइल मे तो भारतीय कंपनिया भी चीन से ही अधिकाधिक पुर्जे आयात करती है | स्वास्थ्य के छेत्र मे भी यही हाल है | सरदार पटेल और शिवाजी की मूर्तिया भी चीन मे ही बन रही है | यह बात और है की एक भारतीय कंपनी देश मे उनका काम देख रही है | इससे उसे भारतीय ठेका नहीं कहा जा सकता |
बोलने और आवाहन करने मे बहुत बड़ा अंतर है मोदी जी -
महात्मा ने भारत छोड़ो का आव्हान दिया था -आप भाषण दे रहे है

स्वतन्त्रता आंदोलन मे महात्मा गांधी द्वरा अंग्रेज़ो भारत छोड़ो का नारा दिया गया था --जो उनकी अहिंसक लड़ाई का ब्रह्मास्त्र सिद्धहुआ \ उस आंदोलन की 75वी वर्षगांठ पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो के अपने हफ्तावारी कार्यक्रम ''मन की बात मे '' गंदगी - सांप्रदायिकता -जातिवाद - भ्र्ष्टाचार-गरीबी और आतंकवाद को देश छोडने की हुंकार भरी है ! उन्होने अपने भासद मे महात्मा के आवाहन का उल्लेख क्यो किया -यह समझने की बात है | आज़ादी के बाद देश मे प्रजातांत्रिक मूल्यो और आपसी सद्भाव को शायद सबसे ज्यड़ा धक्का इसी दौर मे लग रहा है | अंग्रेज़ो को जाने के लिए आंदोलन हुए -गिरफ्तारिया हुई -जेल गए पर सब कुछ कानून के डायरे मे हुआ | आन्दोलंकारियों की भीड़ तो बहुत बड़ी होती थी ---और बिन बुलाये लोगो की होती थी पर हिंसक नहीं होती थी | जैसी आजकल एख़लक और जावेद की हत्या के लिए हुई | उस समय भी अनेक संगठन अंग्रेज़ो का साथ दे रहे थे -लोगो को उनकी पहचान भी मालूम थी |परंतु उनके साथ "”आंदोलंकारियों "”” ने ना तो उन्हे राष्ट्र विरोधी कहा और नाही उनके साथ दुर्व्यवहार हुआ | जैसा की आज कल हो रहा है | आज देश मे नैतिक मूल्यो को ज़मीन बंजर हो गयी है --- आपसी सद्भाव राजनीतिक विचारो की बलि चढ गया है | इसलिए प्रधान मंत्री जी देश की ऊसर हो चुकी समझ मे अब नफरत और हिंशा की ही फसल उग रही है | जिन पाँच दुर्गुणों और कमजोरियों को भागने के लिए आपने कहा है -वह देश के बहरे कानो मे नहीं पड़ेगा | अब लोग "”भीड़ है "” जो नारे लगती हुई किसी को जान से मार सक्ति है -किसी का घर जला सकती है -परंतु दुर्घटना मे फंसे किसी व्यक्ति को अस्पताल नहीं पाहुचा सकती ---मोबाइल से उसका विडियो क्लिप बना सकती है |

प्रधान मंत्री जी आपकी सरकार केरल मे संघ के कार्यकर्ता की हत्या पर संगयन ले कर देश का गृह मंत्री और राज्यपाल --मुख्यमंत्री को तलब कर लेता है ---परंतु वह संवेदना सरदार सरोवर के दस हज़ार '''विस्थापितो ''' के लिए नहीं जागती ?
महात्मा गांधी ने तो गोरखपुर के चौरी -चोरा मे पुलिस थाना जलाने पर कांग्रेस का आंदोलन स्थगित कर दिया था --और कहा था की अगर हिंसा हुई है तो जिम्मेदार लोगो को अपना अपराध स्वीकार करना होगा | फलस्वरूप 50 लोगो पर मुकदमा चला और 19 लोगो को सजाये हुई |

मूल्य कहने से नहीं आत्मसात होते -उनके पीछे "”त्याग और तपस्या "” शुचिता की शक्ति होती है --तब वे जनमानस को झकझोरते है | एक पुराना उदाहरण है जिसमे एक माता अपने पुत्र के मीठा खाने के अवगुण की शिकायत लेकर एक महात्मा के पास गयी |उन्होने कुछ दिन बाद आने को कहा | दुबारा महात्मा ने बच्चे को मीठा मत खाने को कहा | माता ने पूछा की अगर इतना ही कहना था तब उस दिन क्यो नहीं कह दिया था ? महतमा ने उत्तर दिया क्योंकि उस दिन मई खुद भी मीठा खाता था |जब मैंने छोड़ दिया - तब मई "”कहने लायक बना " वरना मेरा कहना बेकार जाता "”







बोलने और आवाहन करने मे बहुत बड़ा अंतर है मोदी जी -
महात्मा ने भारत छोड़ो का आव्हान दिया था -आप भाषण दे रहे है

स्वतन्त्रता आंदोलन मे महात्मा गांधी द्वरा अंग्रेज़ो भारत छोड़ो का नारा दिया गया था --जो उनकी अहिंसक लड़ाई का ब्रह्मास्त्र सिद्धहुआ \ उस आंदोलन की 75वी वर्षगांठ पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो के अपने हफ्तावारी कार्यक्रम ''मन की बात मे '' गंदगी - सांप्रदायिकता -जातिवाद - भ्र्ष्टाचार-गरीबी और आतंकवाद को देश छोडने की हुंकार भरी है ! उन्होने अपने भासद मे महात्मा के आवाहन का उल्लेख क्यो किया -यह समझने की बात है | आज़ादी के बाद देश मे प्रजातांत्रिक मूल्यो और आपसी सद्भाव को शायद सबसे ज्यड़ा धक्का इसी दौर मे लग रहा है | अंग्रेज़ो को जाने के लिए आंदोलन हुए -गिरफ्तारिया हुई -जेल गए पर सब कुछ कानून के डायरे मे हुआ | आन्दोलंकारियों की भीड़ तो बहुत बड़ी होती थी ---और बिन बुलाये लोगो की होती थी पर हिंसक नहीं होती थी | जैसी आजकल एख़लक और जावेद की हत्या के लिए हुई | उस समय भी अनेक संगठन अंग्रेज़ो का साथ दे रहे थे -लोगो को उनकी पहचान भी मालूम थी |परंतु उनके साथ "”आंदोलंकारियों "”” ने ना तो उन्हे राष्ट्र विरोधी कहा और नाही उनके साथ दुर्व्यवहार हुआ | जैसा की आज कल हो रहा है | आज देश मे नैतिक मूल्यो को ज़मीन बंजर हो गयी है --- आपसी सद्भाव राजनीतिक विचारो की बलि चढ गया है | इसलिए प्रधान मंत्री जी देश की ऊसर हो चुकी समझ मे अब नफरत और हिंशा की ही फसल उग रही है | जिन पाँच दुर्गुणों और कमजोरियों को भागने के लिए आपने कहा है -वह देश के बहरे कानो मे नहीं पड़ेगा | अब लोग "”भीड़ है "” जो नारे लगती हुई किसी को जान से मार सक्ति है -किसी का घर जला सकती है -परंतु दुर्घटना मे फंसे किसी व्यक्ति को अस्पताल नहीं पाहुचा सकती ---मोबाइल से उसका विडियो क्लिप बना सकती है |

प्रधान मंत्री जी आपकी सरकार केरल मे संघ के कार्यकर्ता की हत्या पर संगयन ले कर देश का गृह मंत्री और राज्यपाल --मुख्यमंत्री को तलब कर लेता है ---परंतु वह संवेदना सरदार सरोवर के दस हज़ार '''विस्थापितो ''' के लिए नहीं जागती ?
महात्मा गांधी ने तो गोरखपुर के चौरी -चोरा मे पुलिस थाना जलाने पर कांग्रेस का आंदोलन स्थगित कर दिया था --और कहा था की अगर हिंसा हुई है तो जिम्मेदार लोगो को अपना अपराध स्वीकार करना होगा | फलस्वरूप 50 लोगो पर मुकदमा चला और 19 लोगो को सजाये हुई |

मूल्य कहने से नहीं आत्मसात होते -उनके पीछे "”त्याग और तपस्या "” शुचिता की शक्ति होती है --तब वे जनमानस को झकझोरते है | एक पुराना उदाहरण है जिसमे एक माता अपने पुत्र के मीठा खाने के अवगुण की शिकायत लेकर एक महात्मा के पास गयी |उन्होने कुछ दिन बाद आने को कहा | दुबारा महात्मा ने बच्चे को मीठा मत खाने को कहा | माता ने पूछा की अगर इतना ही कहना था तब उस दिन क्यो नहीं कह दिया था ? महतमा ने उत्तर दिया क्योंकि उस दिन मई खुद भी मीठा खाता था |जब मैंने छोड़ दिया - तब मई "”कहने लायक बना " वरना मेरा कहना बेकार जाता "”







बोलने और आवाहन करने मे बहुत बड़ा अंतर है मोदी जी -
महात्मा ने भारत छोड़ो का आव्हान दिया था -आप भाषण दे रहे है

स्वतन्त्रता आंदोलन मे महात्मा गांधी द्वरा अंग्रेज़ो भारत छोड़ो का नारा दिया गया था --जो उनकी अहिंसक लड़ाई का ब्रह्मास्त्र सिद्धहुआ \ उस आंदोलन की 75वी वर्षगांठ पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो के अपने हफ्तावारी कार्यक्रम ''मन की बात मे '' गंदगी - सांप्रदायिकता -जातिवाद - भ्र्ष्टाचार-गरीबी और आतंकवाद को देश छोडने की हुंकार भरी है ! उन्होने अपने भासद मे महात्मा के आवाहन का उल्लेख क्यो किया -यह समझने की बात है | आज़ादी के बाद देश मे प्रजातांत्रिक मूल्यो और आपसी सद्भाव को शायद सबसे ज्यड़ा धक्का इसी दौर मे लग रहा है | अंग्रेज़ो को जाने के लिए आंदोलन हुए -गिरफ्तारिया हुई -जेल गए पर सब कुछ कानून के डायरे मे हुआ | आन्दोलंकारियों की भीड़ तो बहुत बड़ी होती थी ---और बिन बुलाये लोगो की होती थी पर हिंसक नहीं होती थी | जैसी आजकल एख़लक और जावेद की हत्या के लिए हुई | उस समय भी अनेक संगठन अंग्रेज़ो का साथ दे रहे थे -लोगो को उनकी पहचान भी मालूम थी |परंतु उनके साथ "”आंदोलंकारियों "”” ने ना तो उन्हे राष्ट्र विरोधी कहा और नाही उनके साथ दुर्व्यवहार हुआ | जैसा की आज कल हो रहा है | आज देश मे नैतिक मूल्यो को ज़मीन बंजर हो गयी है --- आपसी सद्भाव राजनीतिक विचारो की बलि चढ गया है | इसलिए प्रधान मंत्री जी देश की ऊसर हो चुकी समझ मे अब नफरत और हिंशा की ही फसल उग रही है | जिन पाँच दुर्गुणों और कमजोरियों को भागने के लिए आपने कहा है -वह देश के बहरे कानो मे नहीं पड़ेगा | अब लोग "”भीड़ है "” जो नारे लगती हुई किसी को जान से मार सक्ति है -किसी का घर जला सकती है -परंतु दुर्घटना मे फंसे किसी व्यक्ति को अस्पताल नहीं पाहुचा सकती ---मोबाइल से उसका विडियो क्लिप बना सकती है |

प्रधान मंत्री जी आपकी सरकार केरल मे संघ के कार्यकर्ता की हत्या पर संगयन ले कर देश का गृह मंत्री और राज्यपाल --मुख्यमंत्री को तलब कर लेता है ---परंतु वह संवेदना सरदार सरोवर के दस हज़ार '''विस्थापितो ''' के लिए नहीं जागती ?
महात्मा गांधी ने तो गोरखपुर के चौरी -चोरा मे पुलिस थाना जलाने पर कांग्रेस का आंदोलन स्थगित कर दिया था --और कहा था की अगर हिंसा हुई है तो जिम्मेदार लोगो को अपना अपराध स्वीकार करना होगा | फलस्वरूप 50 लोगो पर मुकदमा चला और 19 लोगो को सजाये हुई |

मूल्य कहने से नहीं आत्मसात होते -उनके पीछे "”त्याग और तपस्या "” शुचिता की शक्ति होती है --तब वे जनमानस को झकझोरते है | एक पुराना उदाहरण है जिसमे एक माता अपने पुत्र के मीठा खाने के अवगुण की शिकायत लेकर एक महात्मा के पास गयी |उन्होने कुछ दिन बाद आने को कहा | दुबारा महात्मा ने बच्चे को मीठा मत खाने को कहा | माता ने पूछा की अगर इतना ही कहना था तब उस दिन क्यो नहीं कह दिया था ? महतमा ने उत्तर दिया क्योंकि उस दिन मई खुद भी मीठा खाता था |जब मैंने छोड़ दिया - तब मई "”कहने लायक बना " वरना मेरा कहना बेकार जाता "”







Jul 17, 2017

निर्वाचन आयोग के फैसले पर सरकार और मंत्री द्वारा सवालिया निशान लगाए जाने के बाद अब राष्ट्रपति चुनावो के मतदान मे जारी प्राधिकार पत्र के बाद भी पत्रकारो पर प्रतिबंध लगे ?

भारत के राष्ट्रपति के चुनाव मे संसद और देश की विधान मंडलो मे वोट डाले जाते है | जिस प्रक्रिया को "”कवर "” करने के लिए पत्रकारो को "”प्राधिकार पत्र या पहचान पत्र "” इन चुनावो के लिए दिये जाते है | जिसका उद्देस्य वैसा ही होता है जैसा विधान सभा या लोक सभा चुनावो मे जारी "”पास "” का होता है अर्थात मतदान के समय की हलचल और घटनाओ को जानकारी को जनता तक पहुचाना |
परंतु गणतन्त्र के 67 वे वर्ष मे देश की सत्ता के शीर्ष के चुनावो मे पहली बार हुआ है की पत्रकारो को विधायकों की वोट डालने वाली पंक्ति तक जाने से रोका गया !! जबकि राष्ट्रपति चुनाव के "” राज्य स्तरीय नोडल अधिकारी संजय सिंह बघेल "” द्वारा जारी पास हम लोगो को मुंह चिढा रहा था ! क्योंकि वह पास उसको जारी करने वाले की हैसियत को रेखान्कित कर रहा था !!!

लगभग सौ से अधिक पत्रकारो को अपने फोटो सहित जानकारी प्रदेश जनसम्पर्क विभाग द्वरा मांगी गयी थी | जिसका अनुमोदन "”निर्वाचन आयोग "” द्वरा कराया गया था | उनकी सहमति के उपरांत ही संजय सिंह बघेल को निर्देशित किया गया था पास जारी करने को "| ,
अब यह तो भारत का दुर्दैव और गणतन्त्र का दुर्भाग्य है की – चुनाव आयोग भी सरकारो की मर्ज़ी पर चल रहा है --क्योंकि उसके पास अपना कोई अमला नहीं है जो यह सब इंटेजम कर सके | जैसा की "”राज्य निर्वाचन आयोग "” के पास है जिनका दायित्व ग्राम सभाओ से लेकर नगर निगमो के चुनाव कराना है !! शायद यह पहली बार हुआ या हो रहा है की कोई मंत्री चुनाव आयोग के निर्णय को दो - दो बार चुनौती दे रहे है | इतना ही नहीं विधान सभा भी आयोग के निर्देशों को "” आलात – पलट रही है | और तो और अध्यक्ष भी आयोग के फैसले पर व्धि वेत्ताओ की सलाह ले रहे ---- की इस फैसले का क्या अर्थ है ? अथवा इसका फ़लीतार्थ क्या होगा ? आश्चर्य की बात यह है की ना तो आयोग और नाही दिल्ली हाइ कोर्ट ने मंत्री नरोत्तम मिश्रा का क्या भविष्य होगा इस बारे मे कोई साफ - साफ निर्देश नहीं दिये जिस कारण वे विधान सभा मे बैठ नहीं पा रहे है राष्ट्रपति चुनाव मे मतदान से वंचित कर दिये गए ---परंतु विधान सभा मे अभी भी उनके नाम की पट्टी उनके आवंटित कमरे के बाहर लगी है ?? इसका क्या अर्थ लगाया जाये की वे सरकार मे मंत्री बने है --परंतु सदन के सदस्य नहीं है !!
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की अब इन सब विधनिक और कानूनी गुथियों का अंतिम निपटारा भारतीय जनता पार्टी का संसदीय मण्डल करेगा ---- जनहा मुख्य मंत्री शिवराज सिंह आज शाम को मामले पर अंतिम निर्देश लेंगे !!!

Jul 13, 2017

क्या अंतर है बुरहान वानी और आनदपल सिंह मे ? सिर्फ ,,,,,
अभी कुछ वक़्त पहले काश्मीर मे आतंकवाद के अपराध मे फांसी की सज़ा पाये बुरहान वानी की बरसी पर वनहा के कुछ संगठनो ने बहुत बड़ी रैली निकाली थी | जो निश्चय ही 2 या 3 हज़ार लोगो की भीड़ रही होगी | परंतु विगत बुधवार को राजस्थान के नागौर ज़िले के सावराड ग्राम मे "कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल सिंह ''की अंतिम क्रिया मे धारा 144 लगी होने के बावजूद लगभग 60 से 70 हज़ार परिजन एकत्र हुए | जिनहोने रेल्वे की पटरी उखाड़ी -पुलिसकप्तान के वाहन मे आग लगाई और 20 लोगो को उपद्रव कारियों ने घायल कर दिया | जिसमे 16 पुलिस जन थे | इतना ही नहीं भीड़ ने गनर से उसकी एके 47 राइफल भी छिन ले गए |
इस घटना की खबर खबरी चैनलो मे नहीं आई !! क्यो | बुरहान वानी भी एक अपराधी था तब आनंदपाल भी फ़रारी मुजरिम था | जो एंकाउंटर मे मारा गया | क्यो सरकार उसकी बेटी को जो दुबई मे रह रही है -जिसके ऊपर भी आपराधिक मुकदमे दर्ज़ है --उनको वापस लेने की मांग पर विचार क्यो ? चुरू मे 21 जून को हुई पुलिस मुठभेड़ मे मारे गए आनंदपल की घटना की जांच सीबीआई से करने की मांग कितनी जायज है ?
दोनों घटनाओ मे मारे गए लोग कानून के अपराधी थे ---बस फर्क इतना है की एक मुसलमान था दूसरा हिन्दू |
नागौर ज़िले मे के सावरद ग्राम मे गत 12 जुलाई को "" आनंद पाल '' के शव की अंतिम क्रिया मे एकत्र हुए हजारो राजपूतो की भीड़ ने पुलिस कप्तान और उनकी पार्टी पर हमला कर दिया | फलस्वरूप एसपी के वहाँ को आग लगा दी गयी और फायरिंग मे 20 लोग घायल हुए | जिनमे 16 पुलिस जन शेस भीड़ के लोग थे | उप्द्र्वि भीड़ ने सावराद रेल्वे स्टेशन की पटरी उखाड़ दी ,यानहा तक पुलिसजनों को कमरे मे बंद कर आग लगाने की कोशिस की गयी | उपद्रव कारियों ने एसपी के गनर की ए के 47 राइफल लेकर भाग गए | गौर तलब है की 24 जून को चुरू ज़िले मे पुलिस के साथ हुई एक मुठभेड़ मे फरार आनंद पाल को राजस्थान पुलिस ने मार गिराया | तभी से उसके शव का विडियो बना कर आनद की माता सावित्री ने समस्त राजपूतो की आन को ललकारा था | जिस्की प्रतिकृया मे बुधवार 12 जुलाई को लगभग एक लाख राजपूत उनकी अंतिम क्रिया के लिए पहुंचे थे | ज़िला प्रशासन ने मंगलवार 11 जुलाई से उस इलाके मे धारा 144 लगा दी थी | परंतु पर्याप्त पुलिस बल मौके पर नहीं भेजा गया -जबकि तनाव पहले से बना हुआ था | रेल्वे सुरछा बल ही मौके पर अतिरिक्त बल था ? नागौर के ज़िला प्रशासन ने इस घटना को बहुत ही हल्के ढंग से लिया | उन्होने धारा 144 लगाने की औपचारिकता तो पूरी की परंतु उसे पालन कराने के लिए बंदोबस्त नहीं किया --आखिर क्यो ?

ऐसी ही एक घटना काश्मीर मे हुई थी आतंकवादी बुरहान वानी की "”बरसी " पर निकले जुलूस को देश और संविधान -कानून के खिलाफ बताया गया था | देश की मीडिया मे उस जुलूस की काफी चर्चा हुई | परंतु एक चैनल ने भी नागौर मे पुलिस की गाड़ी के जलाने और रेलवे की संपाती को नुकसान पहुचने की बात खबरों मे नहीं आई | इस घटना के कारण दो ट्रेन को रोकना पड़ा | 16 पुलिस वाले घायल हुए | और आनंदपाल के शव की अंतिम क्रिया नहीं हो सकी | राजपूत समाज के गिरिराज सिंह ने आनदपल की दुबई मे रह रही लड़की "चीनू"” के खिलाफ आपराधिक मामले वापस लेने की भी मांग वसुंधरा राजे सरकार से की है | तथा मुठभेड़ की जांच सीबीआई से करने का वादा अगर सरकार लिखित मे देगी ----- तब राजपूत समाज 16जुलाई को दाह संस्कार कर सकता है | अब देखना होगा की आगामी रविवार को क्या होगा ? क्या अंतिम क्रिया शांति पूर्वक तरीके से सम्पन्न हो जाएगी अथवा 22 दिन से से पड़ा हुआ शव फिर कोई चिंगारी तो नहीं उठेगी ?