चीनी
राष्ट्रपति जिंपिंग ---ट्रम्प
और नरेंद्र मोदी की दुखती रग
जुलाई
माह के आखिरी दिनो मे चीन से
तकलीफ का दर्द अमेरिकी और
भारतीय नेता के स्वर मे फूट
पड़ा |
अमेरिकी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प
ने आदत के अनुसार ट्वीट कर
के कहा की "”पहले
के प्रशासनों की गलती से चीन
ने हमारे देश से खरबो डालर
कमाए पर वह कोई मदद नहीं कर
रहा है "”
| उनकी
तकलीफ उत्तर कोरिया द्वरा
"”इंटर
कॉन्टिनेन्टल बैलिस्टिक
मिसाइल "
द्वारा
सफल प्रक्षेपणकिए जाने की
घटना पर था |
इस
मिसाइल द्वारा उत्तर कोरिया
अमेरिका के अलास्का सहित अनेक
नगरो पर परमाणु बम से हमला
करने मे समर्थ हो गया है |
यह
एक प्रकार से ट्रम्प के प्रभुत्व
को खुली चुनौती है |
प्रधान
मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी
30
जुलाई
को "”हफ्तावारी
कार्यक्रम "”
मन
की बात मे आपण दर्द कुछ यू बयान
किया ---हमे
स्वदेशी समान ही खरीदना चाहिए
गणेश की मूर्ति हमारी मिट्टी
से ही बनी हुई हो |
गौर
करने की बात है की डोकलम सीमा
विवाद के बाद चीन ने भारत को
चेतावनी दी है |
चीन
के राष्ट्रपति जिंपिंग ने
पहली बार सेना की वर्दी मे
मशहूर लाल सेना की परेड की
सलामी मंगोलिया से सटे सैनिक
अड्डे मे ली |
उन्होने
कहा की हमारी सेनाए अपने शत्रुओ
का नाश करने मे समर्थ है |
ट्रम्प
ने जिंपिंग दंपति की अमेरिका
यात्रा के समय खूब आवभगत की
थी |
उन्हे
अपने निजी रिज़ॉर्ट मरलगो मे
गोल्फ भी खेलने को आमंत्रित
किया था |
तब
उन्होने चीन के राष्ट्रपति
की तारीफ मे राजनयिक तौर तरीके
से कनही अधिक उन्हे "”अपना
भरोसे का दोस्त बताया था "”
| जी
-20
के
शिखर सम्मेलन मे भी उन्होने
जिंपिंग पर भरोसा जताया था
की "वे
कोरिया मसले पर अपने प्रभाव
का प्रयोग करेंगे "
| परंतु
कोरिया उसके बाद भी मिसाइल
पर मिसाइल जापान के समुद्री
इलाके मे दागता रहा |
उनका
गुस्सा इस बात पर है की जिंपिंग
ने कोई मदद नहीं की |
वनही
मोदी जी ने भी जिंपिंग दंपति
की अहमदाबाद मे अगवानी कर के
साबरमती किनारे झूला झुलाया
था |
परंतु
उसके बावजूद भी भूटान सीमा
डोकलम को लेकर तनातनी बनी हुई
है |
अनेकों
बार दोनों ओर के सैनिको की
"”हाथापाई
"”
की
तस्वीरे मीडियामे आई है |
बस
गनीमत हथियारो सहित मुठभेड़
नहीं हुई |
अन्यथा
1962
दुहराया
जा सकता है |
कहा
गया की अमेरिका चीन के मुक़ाबले
हमारे साथ खड़ा रहेगा |
परंतु
जब खुद ट्रम्प चीन से परेशान
हो तब वे हमारी कितनी मदद करेंगे
??
ट्रम्प
जिस कारोबारी प्रष्ट भूमि से
आए है --उसमे
"”
समर्थ
व्यक्ति "”
खुद
फैसले लेता है |
जैसे
कारपोरेट जगत मे होता है |
वे
भूल गए की राजनीति मे "”अकेला
आदमी निर्णायक नहीं होता "”
जैसा
की सीनेट ने उनके प्रस्ताव
को "”अमान्य
कर दिया "”
| राष्ट्र
की राजनीति मे देश हिट प्रथम
होता है |
फिर
आप चाहे जितनी आवभगत करो उस
पर समझौता नहीं होता |
अब
चीन से भारत का नेत्रत्व निवेश
चाहता है |
और
उन्होने किया भी है |
संचार
के छेत्र मे टावर लगाने से
लेकर कम्प्युटर हार्डवेयर
या मोबाइल मे तो भारतीय कंपनिया
भी चीन से ही अधिकाधिक पुर्जे
आयात करती है |
स्वास्थ्य
के छेत्र मे भी यही हाल है |
सरदार
पटेल और शिवाजी की मूर्तिया
भी चीन मे ही बन रही है |
यह
बात और है की एक भारतीय कंपनी
देश मे उनका काम देख रही है |
इससे
उसे भारतीय ठेका नहीं कहा जा
सकता |
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