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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 28, 2014

अल्प मतो से बनते बहुमत के बाद भी मुख्यमंत्री पद का झगड़ा

                                                                कश्मीर मे मुख्य मंत्री वैसे अब हिन्दू  नहीं होगा परंतु क्या धर्म 
    के आधार पर पर इस पद  का  फैसला होना धर्म निरपेक्षता  होगी अथवा सांप्रदायिकता ??? बड़ा सवाल है 
  की धर्म जाति हो वर्ग विशेस हो छेत्र विशेस हो क्या इन्हे आनुपातिक प्रतिनिधित्व  कहेंगे या  '''लोगो की 
  महत्वा कांछा""" को पूर्ण करना ??? 

                                      जम्मू -काश्मीर मे  भारतीय जनता पार्टी  के सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरने के बाद भी  यह विवाद उठा की  मुख्य मंत्री हिन्दू हो अथवा  परंपरागत  रूप से कोई मुस्लिम ही हो |  यह तथ्य है की इस  प्रदेश मे  मुस्लिम  आबादी बहु  संख्यक  है ,, परंतु क्या चुनाव  इस आधार पर हुए थे  की मुस्लिम  ही चुनना है ? अथवा  सबसे      बड़ी पार्टी  का उम्मीदवार मुख्य मंत्री बनेगा |   आखिर  जम्मू - काश्मीर भी तीन सन्स्क्रातियों  का समूह है |
     अगर जम्मू मे सनातन धर्मी और सिख बहुल है तो घाटी मुस्लिम बहुल और लद्दाख मे बाउध धर्म के मानने         वालों की बहुलता है | अब इन छोटे -छोटे  मतो के समूह से बना """बहुमत""" ही तो होगा | चाहे किसी भी 
     राज्य मे कोई चुनाव हो   वहा मतदान का आधार  परिवार से शुरू हो कर जाति फिर धरम और  छेत्रवाद के 
   आधार पर ही मतदान का आधार तय होता है |  वैसे प्रचार  यही किया  जाता है की" ''पार्टी ''' का घोषणा पत्र 
  ही  मतदाताओ  के सामने पहचान होता है | फिर नेताओ के भाषणो मे किए गए वादे  और दावे भी चुनाव को 
  गरमा देते है |  लेकिन  मतदाताओ को अपील  करता है ----नेताओ के  भाषणो  का पुलिंदा  जो उन्हे समझ मे 
   आता है  , परिणाम यह होता है की बात '''''जाति -धर्म'''' तक सिमट जाती |है | फिर  राजनीतिक """ पाखंड""
    उजागर हो जाता है | क्योंकि  घोषणा पत्र  और नेताओ  के भाषण को न  तो अदालत मे  चुनौती दी जा
     सकती है ---ना ही किसी अन्य निकायो के द्वारा  लागू किया जा सकता है ????

                                                                  क्योंकि अब राजनीति  सिर्फ सत्ता के लिए है ---इसलिए अगर 
  पार्टिया चुनाव के बाद  अपने """वादे """ या  कहेसे  बादल जाये तो मतदाता केवल निरीह बन कर गवाह 
  ही बन पता है | ज्यादा हुआ तो अगले पाँच वर्षो  के बाद बदला लेने की भावना से भर जाता है ,,, परंतु वह भावना भी माह -दो माह मे पिघल जाती है | 

                                                      अब मुद्दे की बात पर आते है --- झारखंड  एक आदिवासी बहुल राज्य है 
 
 वनहा पर बीजेपी को बहुमत मिलने के बाद प्रश्न आया की मुख्य मंत्री किसे बनाया जाये ??? सवाल व्यक्ति 
  का नहीं वर्ण वर्ग का था | यानि सामान्य वर्ग का हो अथवा आदिवासी हो | चूंकि राज्य के निर्माण से अब तक 
  वहा आदिवासी ही मुख्य मंत्री हुए फिर चाहे वे काँग्रेस समर्थित रहे हो अथवा भारतीय जनता पार्टी  के समर्थन 
  से बने हो | भ्रस्टाचार की कहानिया पिछले पंद्रह वर्षो मे  घर घर मे सुनाई गयी | बीजेपी के नेत्रत्व के अनुसार 
  चूंकि उनकी पार्टी को सर्वाधिक समर्थन सामान्य वर्ग से मिला है  अतः  मुख्य मंत्री को भी इसी वर्ग से होना चाहिए | रगनीतिक रूप से इस फैसले का कोई संदेश हो --परंतु प्रशासनिक रूप से साफ हो गया की  आदिवासी 
 होने पर कोई विशेस लाभ नहीं मिलेगा |वही मिलेगा जो वाजिब होगा |

                                                       हालांकि कश्मीर मे बीजेपी को हिन्दू मुख्य मंत्री की मांग से कदम पीछे 
 घसीटने पड़े है ,,क्योंकि बाक़ी अन्य पार्टियो ने उनकी मांग को '''गैर वाजिब'''' माना | पी डीपी  हो या नेशनल 
 कान्फ्रेंस  दोनों ने ही मुस्लिम मुकया मंत्री के समर्थन मे रॉय व्यक्त की है | हालांकि इन शब्दो मे अपनी बात नहीं रखी--- पर परिणाम यही था |  यह घटनाए साबित करती है की राजनीतिक दलो का ''''एक ही खेल''' कैसे 
 करे कब्जा कुरशी पर | सांप्रदायिकता या धर्म निरपेक्षता  सिर्फ शब्द बचे है --- निरर्थक