कामन सिविल कोड
हुजूर , मारना किसे चाह रहे हो – तीर लग क्न्हा
रहा हैं ?
एक सान्स्क्रतिक संगठन -जिसका घोषित
मुख्य उद्देश्य राष्ट्र हित की “”रक्षा “”
{ वैसे
राष्ट्र हित की इनकी परिभाषा समाज -और विद्वानो से बिलकुल अलग हैं }
रहा हो , उसके द्वरा भारत को
हिंदुस्तान बनाने की कोशिस में ,लास्ट बट नाट दी लीस्ट के हिसाब से
मंदिर – मूर्तियो – और नए इतिहास की संरचना के बाद --- अब
गैर हिन्दू { वैसे हिन्दू धर्म जैसी कोई अवधारणा ना तो धार्मिक रूप से हैं और
ना ही उसका कोई इतिहास हैं } यानि वेदिक धरम की सनातन
परंपरा से अलग अन्य सभी सम्प्रदायो के लोगो को भी “” हिन्दू “” की संघ और बीजेपी
की परिभाषा के अनुसार अपनी –धार्मिक
स्वतन्त्रता , जो की भारत के संविधान द्वरा प्रदत्त हैं -को बदलना होगा {कम से कम ऐसा लग तो रहा हैं } सवाल यह हैं की आखिर इन धार्मिक समूहो
-सम्प्रदायो की हजारो – सैकड़ो साल की परंपरा को संशोधित करने का आबादी पर प्रभाव क्या होगा !
कामन सिविल कोड से यह तो साफ हैं की , प्रस्तावित कोड सिर्फ जनम -विवाह -विरासत आदि तक ही प्राभवी होगा | अर्थात फ़ौजदारी के मामलो मे धरम या
समुदाय की परम्पराओ की यथास्थिति रहेगी |
अब देखे :-
1-
जन्म , सभी धर्मो में इंसानी जनम के
समय जो रीति – रिवाज होते हैं , क्या उनमे कोई बदलाव होगा ? जवाब है नहीं | नामकरण संस्कार
सभी धर्मो के लोगो में होता है , वह धार्मिक सामाजिक रीति से किया जाता
हैं | वे
वैसे ही होंगे | ईसाइयो में “ बैप्टाइज़ “ संस्कार हैं , जिसमे नवजात को धरम में स्वीकार किया
जाता हैं |इस्लाम में बच्चे को उसका नाम
“सुनाते “” हैं | यानि नामकरण | यह सभी धार्मिक समुदायो में होता हैं |
2-
विवाह :- असल में संघ और हिन्दू और हिन्दुत्व की हांक लगाने वालो को असली एतराज़
इस्लाम में एक मर्द को चार बीबियाँ
रखने की धार्मिक आज़ादी है | कट्टर हिंदुवादियों के प्रचारित नारे “” नहीं कहिए चार बीबी और चालीस
बच्चे “” अब यह नारा उन्होने दिया होगा, मुझे ऐसा नहीं लगता | अब इस इस्लामी हक़ की हक़ीक़त की जांच करे तो पाएंगे की , भोपाल ऐसे शहर में जनहा मुसलमान काफी हैं , वनहा भी--- ऐसे मुसलमान हथेली पर गिने जा सकते होंगे -जिनहोने एक समय में -एक साथ एक से अधिक बीबी होगी |
हालांकि हमारे एक जानकार पत्रकार
की पहचान वाले प्यारे मियां ही ऐसे शक्स
है जिनके चार बीबी हैं | अब दस – बीस लाख की मुस्लिम
आबादी में दो चार ही अपवाद स्वरूप लोग
होंगे , जिनके
एक समय में एक साथ एक से अधिक बीबिया
होंगी |
3-
एक पत्नी सिद्धांत :- वेदिक इतिहास में अयोध्या के राजा दसरथ के पुत्र राम – भरत – लक्ष्मण और शत्रुघन जरूर
एक पत्नी व्रती थे | परंतु उनके पिता दसरथ के तीन पत्नीया थी -कौशल्या , केकई
और सुमित्रा ! महाभारत में तो बहुत से ऐसे उदाहरण हैं – स्वयं श्री
क्रष्ण के हजारो पत्नीया और चार
पटरानिया थी | पुत्र -पुत्रीय भी काफी थे |
रामायण -महाभारत काल के बाद गुप्त काल में चन्द्रगुप्त मौर्य के तीन
पत्नीया थी जिनमे एक महान योद्धा सिकंदर
के जनरल सेलुकश की पुत्री थी | अशोक महान के भी तीन रानिया बताई जाती
हैं {इतिहास
बताता है } उसके बाद मध्य युग या मध्य काल में देखे तो राजपूतो
में और दक्षिण के चोल – चालुक्य – चेला और
सातवाहन राजाओ में हुए राजाओ की कई – कई
पत्नीया थी |आज़ादी के पहले जयपुर -ग्वालियर – इंदौर -देवास रियासतो के राजाओ ने भी एक से अधिक रानिया थी |
4-
वर्तमान स्थिति :- आज कल
जन जातियो में ऐसे उदाहरण
हैं जिनके एक से अधिक विवाह से कई पत्नीया हैं | काँग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी दोनों के आदिवासी नेताओ में अनेकों ऐसे है ,जो एक ही समय में एक से अधिक पत्नियों के स्वामी हैं ! जाट -गुजरो में फौज में
अधिक लोग होते हैं | इनके यानहा बाल विवाह
की प्रथा हैं |
अब असमय निधन के बाद अनेक खापों में “” चादर डालने की प्रथा है “ जिससे स्त्री को पुनः पति मिल
जाता है |कहने का
तात्पर्य यह हैं की वेदिक धरम में ना केवल राजा वरन ऋषियों मुनियो के भी एक से अधिक पत्नीया हुई है | गरुड -और नाग की माता भी ऋषि पत्नी थी |
त्रिदेव -यानि ब्रह्मा -विष्णु और महेश
जरूर एक पत्नी धारी हुए हैं | परंतु विष्णु के अवतारो में अनेक ऐसे हैं
जनहा उनके एकाधिक पत्नीया बताई जाती हैं |
अब यानहा चंद्रमा की पत्नीया तो तो सगी बहने थी जिनहे उनके पिता दक्ष
ने ब्याह दिया था | केवल सती , जो महादेव या शिव की प्रथम पत्नी थी , उन्होने पिता दक्ष की मर्जी के वीरुध महादेव को वर चुना था |
कहने का आशय यह हैं की वेदिक धरम की सनातन
परंपरा में किसी भी पुरुष पर यह पाबंदी नहीं थी की वह कितने विवाह कर सकता है , जैसा की इस्लाम में चार पत्नीया तक ही रखने की पाबंदी हैं |
जनहा तक सनातनी या कहे की हिन्दू लोगो में भी इस्लाम की भांति कोई पाबंदी नहीं हैं |
इसलिए यह 15% आबादी यानि मुसलमानो , से अधिक जन जातियो – और कुछ पिछड़े वर्ग के जातीय समूहो में
एक से अधिक पत्नीया एक ही समय में होने के प्रमाण हैं | अब अगर कामन सिविल कोड से इस प्रथा पर रोक
लगाने का निशाना हैं ---तो वह भी कालधन समाप्त करने के लिए नोटबंदी जैसे विधान की भांति
“”असफल “” ही होगा |
बॉक्स
ऐसे तो जनसंघ से बनी भारतीय जनता पार्टी राष्ट्र
और हिन्दू का मुद्दा 1967 के बाद में हुए विधान सभा चुनावो में हिन्दी हिंटरलैंड के राज्यो
में भुनाती रही हैं | परंतु लालक्रष्ण आडवाणी की राम मंदिर के लिए हुई रथ यात्रा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इन मुद्दो
को न केवल उजागर कर दिया ,वरन सार्वजनिक रूप से “” गर्व
करने लायक “” बनाने की कोशिस की | 1990 में आडवाणी की
रथयात्रा ने 2001 में हुए गुजरात विधान
सभा चुनावो में हिन्दू कट्टरता का डिविडेंट
नरेंद्र मोदी को खूब मिला | वे तीन बार इस राजनीतिक सिक्के को विधान
सभा चुनावो में ना केवल आज़मा चुके हैं वरन सफल भी रहे |
संघ प्रचारक से नेता और मुख्य मंत्री बने मोदी जी को यह समझा में आ गया था
की --- जनता केसभी वर्ग से उन्हे ना तो उन्हे समर्थन मिलेगा और ना ही उन्हे
सभी वर्गो से “”वोट “” मिलेंगे |
बस उन्होने राजनीतिक खेल में अपना पाला
चुन लिया ---हिन्दुत्व ! 2014 के लोकसभा चुनावो में अगर राम मंदिर
बनाएँगे --- के “””वादे “”” पर वे
प्रधान मंत्री बने, तो 2019 के चुनावो में “” विकास का गुजरात माडल “” का खूब
प्रचार हुआ |
पर 2014 के 15 लाख के वादे और 2
करोड़ नौकरियों देने का आश्वाशन---- की हवा 2019 के चुनावो में निकल रही थी | परंतु
सिद्धांतों और कार्यक्रमों के लिए
“बने” राजनीतिक दलो -को चुनाव लड़ने की प्राथमिकता और सरकार बनाने के लिए दल बदल और
एमएलए की खरीद को अमलीजामा पहनाया |
इतना ही नहीं – राज्य और सरकार की
“”लोक कल्याण “” की प्राथमिकता को हटा कर -मंदिर – मूर्ति और इतिहास को अपने “ढंग
से बना कर -दिखा कर “” लोगो को गौरवशाली
इतिहास का “”नशा “” पिलाते रहे | जैसा होता है की आबादी में , सबसे ऊंची आवाज़ और सबसे देर तक बोलने वाली आवाज़ “” एक नशेड़ी “” की ही होती है , उसी प्रकार चौराहो -चाय खानो और चाट की दुकानों में इन
तत्वो की आवाज़ बुलंद होने लगी – जो अभी तक है , बस बुलंद नहीं हैं , हवा निकल सी गयी हैं |