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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 4, 2019

सरकारी तोता बनाम सीबीआई की "”भ्र्स्टाचर"” की जांच का नमूना

सरकारी तोता बनाम सीबीआई की "”भ्र्स्टाचर"” की जांच का नमूना
चंदा कोचर -कामथ  और सात लोगो द्वरा icicici बैंक घोटाले मे रिपोर्ट लिखने पर वित्तमंत्री जेटली के एतराज़ पर कारवाई ठप! दूसरी ओर चिदम्बरम – और राजीव कुमार को हिरासत में ही लेकर "”पूछताछ"” करने की हिमाकत !!!
_______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________कलकता में पश्चिमी बंगाल के डीजीपी राजीव कुमार को हिरासत में लेने पहुंची सीबीआई की टीम को "””बड़े बेआबरू "”हो कर निकालना पड़ा |   इधर सीबीआई को दिशा -निदेश कान्हा से मिलते है ----इसका खुलाषा  अतिरिक्त निदेशक अस्थाना ने अपने बयान में कहा था की --मांस के कारोबारी के यानहा छापामारी करने से सुरक्षा सलहकार डोवाल ने ही रोका था | जबकि हटाये गए निदेशक आलोक वर्मा ने इस व्यक्ति के यानहा छापामारी के निर्देश दिये थे |

     पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने उनके राजय के पुलिस निदेशक को हिरासत की कारवाई किए जाने का उद्देश्य -------उनकी सरकार को बदनाम करना है | वैसे उन्होने पहले ही सीबीआई को प्रदेश में प्रतिबंधित कर रखा है ||
                                                          दिल्ली स्पेसल पुलिस एक्ट  के तहत सीबीआई की पैदाइश हुई है | यह कोई संसद द्वरा पारित अधिनियम से गठित इकाई नहीं है | यह आज़ादी पूर्व की विधि है |
अभी तक केंद्रीय एजेंसियो का विस्तार सम्पूर्ण देश में माना जाता  है ,  परंतु क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के तहत जब्ती  और गिरफ्तारी का अधिकार केवल और केवल राज्यो की पुलिस को होता है | केन्द्रीय सुरक्षा बल ---वस्तुतः  राज्य की पुलिस को “”” सहायता देने का ही होता हैं | यानहा तक की करफ़्यू  के समय  सेना को भी दंगाइयो ---या आतंकियो को पकड़ने का हक़ हैं , परंतु उनकी यह ज़िम्मेदारी भी हैं की वे ---गिरफतार किए लोगो -और उनसे बरामद वस्तुओ को स्थानीय पुलिस को अपराध पंजीबद्ध करने के लिए सौंप दे |क्योंकि स्थानीय पुलिस ही फिर उन्हे “””””गिरफ्तार “”” करती है | सेना या केंद्रीय पुलिस बल ---केवल संदेह होने पर लोगो को बंदी तो बना सकते है ----परंतु गिरफ्तार नहीं कर सकते !!!!!!

आम तौर पर केन्द्रीय बल बिना राज्य की सहमति के उनके छेत्र में “”मूव “” तक नहीं कर सकते !  यह एक नियम हैं की की यदि किसी दूसरे राज्य की पुलिस अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए अन्य प्रदेश में जाती हैं तो उसे संबन्धित थाने में आने की सूचना देनि होती है | अन्यथा वे भी नकली पुलिस अथवा बदमाशो का गिरोह समझे जा सकते हैं |  दूसरा उन्हे गिरफ्तारी के लिए अथवा तलाशी के लिए सर्च वारंट लेना होता है | स्थानीय पुलिस  को यह छूट होती है की हिरासत में लेने के 24 घंटे बाद अभ्युक्त को माइजिस्ट्रेट के सामने पेश करके “”””वजह बतानी  पड़ती है की ---गिरफ्तारी का कारण क्या है | अदालत चाहे तो तो अभियुक्त को जमानत भी दे सकती हैं उधर पुलिस को 90 दिन में सारे सबूत मय चार्जशीट अदालत में पेश करना होता हैं | अन्यथा अभियुक्त को जमानत का “ निश्चित अधिकार मिलता हैं “

परंतु मौजूदा सरकार में इंटेलिजेंस और सीबीआई  ने नियमो को ताक़ पर रख कर ---- समस्त गैर भाजापाई राज्यो में ‘’’’’नियम -कानूनों की परवाह ‘’ नहीं है | केरल में संघ का एक समर्थक हुड़दंग मे मारा जाये ----तो केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ---मुख्य मंत्री से जवाब तलब करते है -----पर बुलंदशहर  में गौरक्षकों की भीड़  थानेदार की निर्मम हत्या कर देती है ----- तब उनके कानो पर जूं  तक नहीं रेंगती|
                    जेटली जी को चंदा कोचर और उनके गुरु कामथ  तथा सात अन्य बैंक और वित्तीय संगठनो के पदाधिकारियों द्वरा 32000 करोड़ का वीडियोकॉन  को दिया गया फर्जी क़र्ज़,,, जिससे की चंदा के पति दीपक कोचर  करोड़पति बन गए | उनकी जांच की रिपोर्ट लिखने वाले सुधकर धर मिश्रा को आनन----फानन में दिल्ली से रांची तबादला कर दिया !!!! क्योंकि उसने जेटली जी के "””चाहने वालो "” की जांच करने का "”दुस्साहस "”” किया था !

 एक ओर तो सबूत सहित रिपोर्ट लिखने वाले को मोहकमे से चलता कर दिया -----वनही दूसरी ओर सबूत जुटाने के लिए इन्हे ---- चिदम्बरम की हिरासत चाहिए !! क्योंकि अपने थाने में बैठा करा कर तरह तरह से परेशान कर के "”जांच में सहयोग वसूलते हैं "” | वस्तुतः सीबीआई चाहती है की जिसको हम पकड़ ले ----वही हमको अपराध तक पहुंचाए ----साबुत्त एक्त्र कराये | जिससे की अदालत में चार्ज शीट दाखिल हो जाए | फिर वे उस व्यक्ति को मजबूर कर दे की वह "”” गुनाह"” कबूल कर ले "” |
                                                           आम तौर पर सीआरपीसी  के अनुसार जांच में अधिकारी की "””कुशलता "” की परीक्षा होती है | परंतु सीबीआई की छापामार  जांच में "””नियम कायदे को "”यमुना के तीर फेंक देते है "”” | पर आईबी हो या सीबीआई अथवा रॉ  हो ---- इन सबको "”जन प्रतिनिधियों की आँख से ओझल रखा गया है | इसलिए डोवाल साहब ऐसे व्यक्ति भी  अपनी मनमानी कर लेते है
 क्योंकि इस एजेंसी में काफी कुछ “”बिना पड़े -लिखे होता है “” | अब अस्थाना के बयान के बाद भी डोवाल  से इस बारे में किसी को पूछनेकी हिम्मत नहीं हुई ? क्योंकि वे प्रधान मंत्री के के आंखो के कानो के बाल हैं |  अब देखना होगा क्या सीबीआई बिना राज्य सरकारो की  सहमति के उनके इलाके में बिना सूचना दाखल दे सकती है ?