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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 20, 2019


बाना धर्म का – कर्म राजनीति का – बोल अहंकार के --रूपक सन्यासी का

वेदिक धर्म मैं मनुष्य को आशीर्वाद हमेशा "”जीवेम शरदह शतम "” का दिया जाता हैं | एवं इस आयु को चार भागो मै विभाजित किया गया हैं | पहले 25 वर्ष व्यक्ति को अध्ययन का काल होता हैं | इस अवधि मैं उपनयन संस्कार के उपरांत अध्ययन किया जाना चाहिए | तदुपरान्त आजीविका तथा विवाह संस्कार के बाद "”वंश व्रधी "” | 50 वर्ष की आयु के बाद "”वानप्रस्थ "” का विधान हैं | जिसमैं व्यक्ति परिवार मैं रहते हुए अध्यातम की राह खोजता हैं | इस अवधि मैं यज्ञ आदि कारी करने की सलाह दी गयी हैं | 75 के बाद सन्यास आश्रम का विधान हैं , जिस मैं वन गमन तथा तप एवं गुरु की खोज करने को कहा गया हैं | यदि अध्ययन काल मैं अथवा उसके बाद "”सन्यास " लेने का संकलप हैं तो व्यक्ति को दुनियावी मोह माया - छोड़ कर आजीवन ब्रह्मचारी रह कर ज्ञान और अध्यातम का मार्ग चुनना पड़ता हैं | इसके लिए गुरु का मार्ग दर्शन ज़रूरी हैं | जैसा की वेदिक धर्म के पुनरुथान करने वाले आदि गुरु शंकराचार्य ने किया था | लेकिन आज कल लोग संसार के प्रतियोगी वातावरण से भाग कर भगवा वस्त्र धरण कर सन्यासी का चोला पहन लेते हैं |

परिवार और संसार की जिम्मेदारियो से भागने वाले ऐसे लोगो को क्या हम "”सन्यासी कह सकते हैं ?? जिंनका ना तो कोई अध्ययन हैं ना ही कोई तप अथवा ज्ञान ----परंतु मात्र गेरुआ वस्त्र पहन कर यायावरी करना कोई धार्मिक काम नहीं हैं | परंतु अधिकतर ग्रामीण छेत्रों मैं यह होने लगा हैं ,की घरबार से भाग कर सन्यासी बाना पहन कर भोजन और आश्रय प्राप्त करना | क्या भगवा वस्त्र धारण कर के राजनीति करना अथवा व्य्यपार करना भी सन्यास माना जाएगा ?? सनातन धरम के मानने वालो को सिर्फ आवरण देख कर "”सन्यासी "” ऐसे गुरुतर पद को बदनाम करने वालो से रक्षा करे |क्या सफ़ेद कोट पहनने वाले सभी लोगो को डाक्टर और काला कोट पहनने वालो को वकील मान लेंगे ? आखिर इन पेशो मैं भी तो परीक्षा और अनुभव देखा जाता हैं ! तब सन्यासी के लिए क्यो नहीं ? वैसे राजनीति भी ऐसा ही छेत्र हैं जिस मैं पैर रखने के लिए कोई योग्यता निर्धारित नहीं --सिवाय उम्र और दिमागी संतुलन के अलावा ! तब क्या सन्यासी और राजनीति को एक समान मान ले ? इस से कम से कम धर्म का अवसान तो नहीं होगा |
जिस प्रकार से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी की साझा रूप से मनोनीत प्रत्याशी प्रज्ञा भारती {ठाकुर} ने शाहेड करकरे को श्राप देने का अहंकार पूर्ण कथन किया ---- वैसा तो हाल मैं किसी ऋषि आदि ने नहीं किया होगा !!

हमारे देश की बहुसंख्यक आबादी भगवा वस्त्र धारियो को सम्मान से देखती हैं | उन्हे दान - दक्षिणा आदि भी मिलती हैं | सनातन धर्मियों के धर्म भीरु होने के कारण ही देश मैं हजारो मठ एवं आश्रम , चल रहे हैं | कुछ तो सौ सालो से भी ज्यादा पुराने हैं | वेदिक धरम की पुनर्स्थापना करने वाले आदि गुरु शंकराचार्य के बनाए चार मठ तो नौवी शताब्दी से अनवरत क्रियाशील हैं | परंतु विगत सौ वर्षो मैं भारत के अनेक हिस्सो मैं मठ या आश्रमो की संख्या बहुत बढी हैं | मतो या गुरुओ की भिन्नता के बावजूद भी इन सभी मैं एक समानता हैं --वह हैं सन्यास धरण की प्रक्रिया | जो आदिगुरु ने प्रतिपादित की थी | उस समय पुरुष ही सन्यास धारण करने के लिए --गृह त्याग और स्वयं का पिंडदान करके अपने गुरु से नवीन नाम पाते थे | परंतु बंगाल के स्वामी रामकृष्ण जिनहे उनके अनुयाईओ ने "परमहंस " कहा , जिनहोने देश को विवेकानंद ऐसा शिष्य प्रदान किया | आदिगुरु के चार मठो के उपरांत देश मैं रामकृष्ण मिशन ही ऐसी संस्था हैं -जो वेदिक धर्म और जन परोपकार मैं लगी हुई हैं | दक्षिण भारत मैं अनेक मंदिर ऐसे हैं जनहा अनवरत प्रसाद के नाम पर लोगो को प्रसाद के रूप मैं आहार दिया जाता हैं |

आज़ादी के उपरांत देश मैं जब खुला वातावरण मिला तब बहुत सी संस्थाए और मत उभर आए | अनेक संगठन भी पुनर्जीवित हुए जो इन सन्यासियों को श्रेणीबध करते हैं | परंतु सन्यासी के लिए यम - नियम - प्राणायाम - प्रत्याहार और अपरिग्रह अनिवार्य रहा हैं | सन्यास धर्म के अनुसार व्यक्ति को या तो केश रखने होते हैं ,अथवा केशविहीन होना होता हैं | बालो को समय - समय पर हैयर कटिंग कराना तो निषिदध् हैं | परंतु आजकल अनेक भगवा धारी सन्यासी अथवा सन्यासिन मनचाहे स्टाइल मैं बाल रखने लगी हैं | उस मैं ही है भोपाल संसदीय छेत्र से भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार प्रज्ञा भारती {ठाकुर} ! जो अहंकार मैं दुर्वाषा ऋषि से भी बड़ी बनती हैं ! उनके अनुसार तो मुंबई मैं हुए आतंक वादी हमले मैं शहीद हुए पुलिस के अफसर हेमंत करकरे की मौत , उनही के श्राप से हुई | उनके अनुसार उनको गिरफ्तार करने के पश्चात जो पूछताछ की वह "”अमर्यादित और धरम वीरुध थी ! “” अब सवाल यह हैं की रेशमी वस्त्र {पीत} पहनने वाली इस महिला सन्यासी को क्या इतनी शक्ति प्राप्त है ? प्रश्न यह भी हैं की धर्म के प्रचार और प्रसार करने का कर्तव्य उन्हे सुनील जोशी हत्यकाण्ड मैं संदिग्ध बनाता है ? क्यो , फिर उनका नाम मालेगाव विस्फोट मैं कैसे आ गया ? एक धार्मिक व्याकति का इन सब आपराधिक और हिनशा के मामलो से क्या संबंध ? उनके गुरु स्वामी अवधेशानद और उनके हजारो शिष्यो मैं प्रज्ञा ही क्यो इन आपराधिक मामलो के चलते के कानून और पुलिस के दायरे और उसकी पूछताछ की निशाना बनी ?

प्रज्ञा जी को क्या यह नियम नहीं मालूम की "” सन्यासी का आहार स्वाद के लिए नहीं --वरन शरीर को धारण करने भर का ही होना चाहिए ? उन्हे किसी भी परिवार के निवास मैं नहीं विश्राम करना चाहिए ? क्योंकि यदि वे प्रत्याहार नियम का पालन करती तो उन्हे "”” अपने वज़न और उससे उपजे व्याधियों का सामना नहीं करना पड़ता ! सन्यासी दीक्षा लेने के बाद गुरु उसे "”धर्म दंड "” देता हैं , और एक कमंडल भी सुलभ कराता हैं , जो भूख -और प्यास मिटाने के लिए होता हैं ? प्रज्ञा शायद अपनी मित्र सन्यासिनों की भांति ही हैं ---जो गेरुए परिधान को राजनीति मैं प्रवेश और जनमानस मैं सम्मान पाने के लिए प्रयोग करती हैं | इन्हे ना तो वेदो का अध्ययन किया हैं ना ही सन्यास आश्रम के नियमो का पालन किया हैं | बीजेपी मैं प्रश्रय प्राप्त अनेक भगवा अथवा गेरुआ वस्त्र धारियो को उनके प्रभाव से राजनीतिक इस्तेमाल किया जाता रहा हैं , अथवा सन्यास आश्रम के व्यक्ति से तो सांसारिक मोह - माया , और सभी प्रकार की आकाछाओ के त्याग की उम्मीद की जाती हैं < क्योंकि वह सन्यास धरण करने की पहली शर्त होती हैं | परंतु भगवा पहन कर राजनीति करना अथवा व्यापार करना आज का फैशन बन गया हैं | निर्णय मैं नैतिकता और वाणी तथा कर्म मैं "”संयम "” का इन राजनीतिक सन्यासियों की जमात मैं पूरी तरह से अभाव हैं |

बीजेपी उम्मीदवार के रूप मैं राष्ट् की बात करना तो चलेगा क्योंकि वह उनकी पार्टी की लाइन हैं – परंतु सन्यासी को अखिल ब्रह्मांड की चिंता होती हैं , वह प्राणिमात्र के कल्याण की बात सोचता हैं , परंतु इन राजनीतिक गेरुआ वस्त्र धारियो ने अपना लक्ष्य "”” पार्टी का उद्देश्य "”” बना लिया हैं | ऐसी हालत मैं जब वे अपने परिधान के साथ "” न्याय "” नहीं कर रही तब --उन्हे इन वस्त्रो को पहनने का क्या अधिकार हैं ?