Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 1, 2017

इतिहास मे राजवंशो की भूमिका को खोजते उच्च शिक्षा मंत्री अपजे दायित्व को भूल गए ना तो--सत्र शुरू ना डिग्री भी मिले !!

प्रदेश के विश्व विद्यालयो के इंतजाम की देख-रेख के जिम्मेदार उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह जी अपनी प्रशासनिक ज़िम्मेदारी के प्रति "””सिर्फ अधिकार के प्रति सजग और सेंसटिव है | हाल मे उनके एक बयान ने उन्हे मीडिया मे काफी सुर्खी दिलाई थी -जब उन्होने कहा था "”” प्रधान मंत्री मोदी को छोडकर सभी लोगो ने अध्यापको के तबादले के बारे मे "”सिफ़ारिश की है "” | जब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से पूछा गया की आपने कोई सिफ़ारिश की है क्या?? तब उन्होने कहा की मंत्री ने ''ऐसे ही बोल दिया होगा '' |अब मंत्री जी की ज़िम्मेदारी की बात करे तो कलई खुल जाती है | उनके अपने इलाके की जीवाजी विश्व विद्यालय मे छात्रो की उत्तर पुस्तिकाये भी ठीक से नहीं जाँची गयी !! छात्रों ने आरटीआई लगा कर अपनी उत्तर पुस्तिकाओ को दिखवाया तब पता चला की सवालो को जांचा ही नहीं गया है अथवा बिना जाँचे ही प्राप्तांक कापी पर लिख दिये गये ! इस सत्र मे 300 से अधिक छात्र ने अर्ज़ी लगाई | दर्जनो छत्रों ने अदालत मे अर्ज़ी लगा कर अपनी परीक्षा पूरी की और डिग्री ली !! एक मामले मे एक छात्रा की शादी इसलिए रुक रही थी की उत्तीर्ण होने के बाद भी दो साल से विश्व विद्यालय डिग्री नहीं दे सका था |

उधर बरकतुल्लाह विश्व विद्यालय के हाल तो और भी बुरे है - वनहा भी सालो से छात्र अपनी डिग्री को लेने के लिए तरस रहे है | \ वनहा के कुलपति और रैजिस्ट्रार कहते है की डिग्री लिखने वाले नहीं मिला रहे है | जबकि पता चला है की "”डिग्री लेखको '' के भुगतान नहीं हुए है | इस लिए उन्होने काम करने से इंकार कर दिया है | उधर जो कुछ डिग्रिया लिखी जा चुकी है --वे छत्रों के मूल पते पर भेजी नहीं जा सकी | क्योंकि विवि डाक टार विभाग के बकाए का भुगतान नहीं कर रहा था ,तो उन्होने भी उनको सेवाए देने से मना कर दिया ! इन सब बदींत्जामियों को सुधारने के स्थान पर वे अपनी राजनीति चमकाने मे लगे है |


उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया अमित शाह जी के दौरे के बाद रह - रह कर सिंधिया घराने को गद्द्दार घोषित करने मे जुट जाते है | ग्वालियर के होने के कारण उन्हे राजघराने से कुछ चिद सी है | परंतु जब वे राजघराने की निंदा करते है तो उनके निशाने पर काँग्रेस के सांसद ज्यतिरादित्य सिंधिया होते है | परंतु वे जानबुझ कर शायद ऐसा करते है | क्योंकि मंत्रिपरिषद मे उनही की साथी यशोधरा राजे भी इसी परिवार की है और तो और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी काँग्रेस सांसद की बुआ होती है | शायद इसीलिए इन्हे केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सीख देते हुए ग्वालियर मे उच्च शिक्षा संस्थानो को इसी परिवार की देन बताया | यह परोक्ष रूप से बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री प्रभात झा के लिए भी सतर्क होजाने का संकेत था | क्योंकि वे भी इस मुहिम मे शामिल थे आशय यह है की अपने दायित्व को ठीक से निभाने के स्थान पर राजनीति ज्यादा है |
|
एक तंत्र या राजशाही के के लिए कहे गए उपदेशो को लोकशाही मे लागू करने की कोशिस ना केवल कुटिलता है वरन कानून सम्मत भी नहीं || चाणक्य के आप्त वाक्य ""साम --दाम दंड और भेद से भी "'जीतना '' उचित है और कृष्ण के कथन की "”युद्ध मे विजय ही धर्म है और पराजय ही अधर्म है "” कहने वाले भूल जाते है की सम्राट और साम्राज्यों के युग मे भले यह सही रहा हो – आज के युग मे यह अपराध की श्रेणी मे आएगा | विवेचना से समझे तो मात्र "”साम "” अर्थात वार्ता द्वारा किसी को अपने अनुकूल करना तो आज स्वीकार है और निर्वाचन के लिए केवल इसी एक विधा को मान्यता है | “दंड '' का अधिकार केवल न्यायालय को है अन्य प्रकार तो "” अपराध की ही श्रेणी मे आएंगे "” चाहे वे किसी के भी द्वरा किए गए हो | हाल ही मे 28 अगस्त को पंचकूला मे डेरा समर्थको द्वरा की गयी आगजनी हो या तोडफोड ---अथवा प्रशासन और सरकार की ''लापरवाही '' अपराध की श्रेणी मे ही आती है |
“”दाम "” अथवा धन के बल से किसी को "अपनी ओर ''करने का प्रयास भी तो "” रिश्वत खोरी "” या लालच देना ही है | “भेद " या या किसी को उसकी गोपनीय या निजी जानकारी को उजागर करने की "”धम्की देकर "” अपनी ओर करना कानून के सामने ''ब्लैकमेल '' कहलाएगी | अब इन संदर्भों मे नेताओ की महत्वाकाक्षा को देखना होगा ---जो "हरहाल मे जीतना है "” का निर्देश देते है | वे भी कनही ना कनही राम -रहीम की भांति "जो कुछ हा वह सब मेरा है -मेरी मर्ज़ी "” के परिणाम को प्राप्त हो सकते है |

पंचकूला मे 25 अगस्त को गुरमीत सिंह को डेरे की दो महिला शिष्यो के यौन शोषण के अपराध मे दोषी का आदेश सुनाये जाने के बाद हुई हिंसा मे पंचकूला जल गया था | इस घटना से कुपित उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने राजनीतिक स्वार्थ के लिए सरकार द्वरा डेरा समर्थको के उपद्रव को रोकने की नाकामी का जिम्मेदार ठहराया | सत्तर साल के इतिहास मे ऐसी घटना के बाद भी मुख्य मंत्री खट्ट्रर द्वरा "”यह कहना की मैंने सब कुछ सही किया --- मै इस्तीफा नहीं दूँगा "” \ यह उसी भावना का परिणाम है की चाहे जो भी हो मै हमेशा सही हूँ | “” जैसे हिटलर सोचता था |

समाचार पत्रो मे छपी खबरों के अनुसार भोपाल मे पार्टी की बैठक मे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी अपनी पार्टी के सदस्यो से कहा था की हमे चुनाव मे जीत चाहिए --चाहे कुछ भी करना हो | अब इस कथन मे "”कुछ भी ''' का मतलब निर्वाचन आयोग की नियम और कानून तथा सामान्य मर्यादा को हटा कर या तोड़ कर विजय चाहिए | यह ज़िद्द अनेक असामान्य स्थितियो के जनम का कारण बन सकती है |
उनके समर्थक शाह के बयान को महाभारत मे कृष्ण के उस कथन को बताते है "” युद्ध मे विजय ही धर्म है और पराजय ही अधर्म है '' चाणक्य को ले आते है जिसने अर्थशास्त्र मे "”सफलता के लिए साम -दाम - दंड और भेद '' के प्रयोग को पारिस्थिक सत्य निरूपित किया है |
  • यानहा परिस्थितियो को समझने मे काफी बड़ी भूल कर रहे है :_-- सर्व प्रथम दोनों उदाहरण "”राजतंत्र "” मे सम्राट के लिए कहे गए थे | जनहा उत्तरधिकार पिता से पुत्र को जाता है – किसी चुनाव के द्वरा नहीं --वरन वंशानुगत होता है
  • दूसरा आज हम लोकतन्त्र मे है -जनहा शासन करने वालो का चुनाव हर पाँच वर्ष मे जनता द्वरा किया जाता है |
  • जिस समय के उदाहरण दिये जा रहे है उनमे सम्राट युद्ध मे विजय पाकर बनता था --और युद्ध मे कोई निश्चित नियम नहीं होते थे | तब यह कहना भले ही सार्थक रहा हो | परंतु आज के युग मे निर्वाचन को युद्ध समझना सिर्फ हिंसा और उपद्रव को ही जनम देता है |
  • पंचकूला मे जो हुआ और उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने जिस प्रकार रोज़ बैठ कर उपद्रव और आगजनी की घटनाओ का जायजा लिया उसके बाद निर्वाचित मुख्य मंत्री और उसके दल द्वरा ज़िद्द का प्रदर्शन ज़िम्मेदारी को टालना ही कहा जाएगा |


केवल बड़े -बड़े नामो का हवाला देकर उनके कथन को अपने अनुसार इस्तेमाल करना ना केवल गलत है वरन अनुचित और अमर्यादित भी है | क्योंकि उचे पदो पर बैठे लोगो द्वरा "”छोटी गलतिया नहीं होती वरन भयंकर भूले ही होती है | जिसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ता है | फिर भले ही वे किसी भी ओर खड़े रहे हो |