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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 10, 2014

वादे करने के पहले उसको पूरा करने की स्थिति पता होना चाहिए


वादे करने के पहले उसको पूरा करने की स्थिति पता होना चाहिए

सूप्रीम कोर्ट की खंड पीठ ने अपने फैसले से सरकारो और राजनीतिक दलो को
यह चेतावनी सरीखी दी हैं की वादा करने के पहले यह सोच जरूर लेना चाहिए की वे इस वादे को कैसे वे पूरा करेंगे ? अदालत का
तात्पर्य यह था की हवा हवाई वादे नहीं किए जाये |जिसे पूरा करने का कोई तरीका न हो | अक्सर सरकारे मंत्रियो मुख्य मंत्रियो
प्रधान मंत्री की घोसनाओ को पूरा कर देते हैं और भासन के बाद उसे भूल जाते हैं | अगर बहुत दबाव हुआ तो सरकारे संबन्धित
मंत्रलाया या विभागो के बजेट मे एक टोकन राशि आवंटित कर देते हैं , जिस से की जनता से कह सके की '''हमने'''ईमानदार
कोशिस की हैं | बात बस यानही समाप्त हो जाती हैं |और राजनीतिक दलो के चुनावी घोसना पत्रो मे तो एक प्रेमी की भांति
आसमान से तारे तोड़ लाने का आश्वासन होते हैं , जो सरकार बनने के बाद शुरू मे तो बहुत गाजे - बाजे के साथ अफसरो को घुट्टी
पिलाई जाती हैं की ''राज-काज'' बस इसी गीता और रामायण के आधार पर चलेगा | अधिकारी भी बड़े ही समर्पित भाव से सर
हिलाते रहते हैं |उसके बाद अफसर लोग मंत्रियो को शासन के नियमो और वित्तीय नियमो का हवाला देते हुए उनके वादो को ऐसा
तोड़ - मरोड़ कर रख देते हैं की नेताओ का जनता को किया हुआ वादा ''विलीन'''हो जाता हैं | हालांकि यह भी सही हैं की
राजनीतिक दल जब कोई घोसना करते हैं तब उन्हे न तो प्रशासनिक प्रक्रिया या वित्तीय स्थिति का ज्ञान होता ही नहीं | यह बात स

सभी दलो पर लागू होती हैं | जैसे मुफ्त मकान, सस्ता अनाज आदि अनेक ऐसी वस्तुओ का वादा रहता हैं जिसको बाद मे नियमो के अधीन
ऐसा कर दिया जाता हैं की -----गरीबी की रेखा के नीचे के लोगो को सस्ते मकान देने का | परंतु अफसर इस वादे को इतना
मंहगा कर देते हैं की ई डब्लू एस श्रेणी के फ्लॅट की कीमत बन जाती हैं 30लाख और दो कमरे वाले फ्लॅट 45 लाख की कीमत
के हो जाते हैं | अब बताइये की इस कीमत मे कोई गरीब तो इनावासों को तो नहीं खरीद सकता |

निर्वाचन आयोग ने भी राजनीतिक दलो को सलाह दी हैं की वे वादा करने के पूर्वा
संसाधनो का अंदाज़ जरूर लगा ले जिस से की वास्तविक घोसनाए ही की जाये जिनहे पूरा किया जा सके | सूप्रीम कोर्ट ने यह
फैसला केरल उद्योगो द्वारा दायर एक मामले मे दी थी | प्रदेश सरकार ने कुछ औदोगिक इकाइयो से अनुबंध किया था की
सरकार उनके उत्पादन के लिए """निर्बाध"" विद्युत की आपूर्ति करेगी | बाद मे राज्य शासन इस शर्त को पूरा नहीं कर सका
इस मुद्दे को लेकर हुए विवाद मे दोनों अदालत गए | सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को सलाह दी की अगर वे """निर्बाध""" बिजली की
आपूर्ति नहीं कर सके तो बदले मे उद्योगो को उनके देय का भुगतान देने के लिय समय बड़ाये |

इस मामले ने सरकारो और राजनीतिक दलो को यह सीख दी हैं की वे अपने ''कहे "" को पूरा करे |

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