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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 19, 2022

 

दगे हुए कारतूस  बेल्ट को भरा दिखाते है पर काम के नहीं होते !

 

यह बात हाल ही में सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी में हुए संगठनात्मक  बदलाव  के बारे में हैं | जिसमें  पार्टी के “”त्रिगुट ने  केंद्रीय सड़क मंत्री गडकरी  और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह  को चुनाव समिति और प्रबंध समिति से “बेदक्खल “” किया गया हैं | इस परिवर्तन को इस लिए महत्ता  मिली हैं क्यूंकी   शिवराज सिंह  विगत 16 सोलह सालो से मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री है , और कमीबेशी के साथ  उन्होने कमलनाथ सरकार को प्क़्न्द्रह महीनो में गिरा कर , पुनः सत्तासीन होने की सफलता प्राप्त  की हैं |  उधर गडकरी को यह गौरव  मिलता हैं की की उन्होने देश में  अनेक “”राष्ट्रीय राजमार्गों “ का निर्माण कर के  सड़क यातायात को  सुलभ करने के लिए  प्रयास किए हैं |  यह बात और हैं की  उनके इन मार्गो में बने ओवर ब्रिज  और पुल  इस साल की बरसात में धराशायी  हो गए हैं |  परंतु  टोल  टैक्स  की दरो में व्रधी को लेकर जनता में आशंतोष  उपजा हैं |

                                    परंतु गडकरी को  आरएसएस का का प्रियपात्र  होने का सत्य , अब यह बताता हैं की नरेंद्र मोदी सरकार  में  केवल और केवल  मोदी ही सर्वोपरि  हैं , वरन वे किसी भी अन्य सहयोगी  की जनता में बढती साख और हैसियत  को बिलकुल नापसंद करते हैं | वे ना केवल सरकार में मनमाने निर्णय फेर -बदल  कर सकते  वरन पार्टी  को भी वे उसी तर्ज़  पर चलाते  हैं | इससे  भारतीय जनता पार्टी  पर संघ  की पकड़  की बात मिथ्या साबित होती दिखती हैं | भले ही चुनावो के समय  पार्टी  अपनी रक्षा के लिए  “”त्राहिमाम “” करती हुई नागपुर  को शरणागत हो जाए | परंतु  सरकार बनते ही संघ नेत्रत्व  को निसप्रभावी  करने का गुर  नरेंद्र मोदी को आता हैं |  जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे  तब से वे  आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद का इस्तेमाल  सफलता पूर्वक कर चुके हैं | यानहा तक की उनकी पसंद के लोगो को  बीजेपी संसदीय पार्टी  द्वरा बदले जाने पर उन्होने  विद्रोह के तेवर  दिखा दिये थे | फल्स्वरूप  बीजेपी संसदीय दल को  उनकी मांगो  का सम्मान करना पड़ा था

 

               अब संसदीय बोर्ड में येदूरप्पा  और सत्य नारायण जटीया  और आसाम के सोनेवाल  का मनोनयन  यह साबित करने में  पूरी तरह सक्षम  है की  प्रधान मंत्री जी को अपनी  नकल करने वालो और  मन मुताबिक  परिणाम नहीं देने वालो  को वे सार्वजनिक रूप से  नीचा दिखाने  से नहीं चूकते | यह वे सिद्ध करने के लिए करते हैं , की एकमात्र  वे ही देश -पार्टी और संघ संगठन को चलाने और मार्गदर्शन  देने में सक्षम  हैं | अगर इस तथ्य की जांच करे तो पाएंगे की कर्नाटक  में येदूरप्पा  को ना केवल भ्र्स्टाचार का सामना करना पड़ा वरन वे खुद भी  इसके दोषी पाये गाये | बीजेपी को भी वे कर्नाटक  में सम्हाल कर नहीं रख सके और   विधान सभा में  त्यागपत्र की घोसना करनी पड़ी थी |   वर्तमान समय में में कर्नाटक में  हिंदुवादी तत्वो के कारण “”हिजाब “” को लेकर हुए आंदोलन के कारण  बोममाई सरकार को बहुत आलोचना  से दो – चार होना पड़ा |  आगामी विधान सभा चुनावो में लिंगयत  मतदाताओ को बीजेपी में लाने यह कोशिस में येदूरप्पा  कितना सफल होंगे यह समय बताएगा |  परंतु अभी तक के परिणाम उनकी “” सफलता “” पर सवालिया निशान लगाते हैं |

                                 मध्य प्रदेश में भी  चुनावो में शिवराज सिंह  बीजेपी का एकमात्र चेहरा साबित हुए हैं | हालांकि  दल बादल के कारण  काँग्रेस और अन्य डालो से आए विधायकों  को समायोजित  करने के उपायो ने उनकी हैसियत को कुछ हद्द तक लचीला बना दिया हैं | 16 साल तक मुख्यमंत्री  रहने का यह कीर्तिमान  कोई अन्य नेता तोड़ पाएगा --- यह कहना मुश्किल हैं |

                  दगे हुए कारतूसों का उदाहरन  चुनावो में इन नामित नेताओ की सफलता  के आधार पर हैं | जटिया उज्जैन  से सांसद रहे हैं , इनके परिवार के लोगो पर ,यह आरोप लगे थे की  की उनके मंत्री रहते हुए अनेक  लाभ लिए गए | अब इन आरोपो की कोई जांच नहीं हुई  इसलिए इनकी सत्यता के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता | परंतु  उनके नामित होने से  उज्जैन -इंदौर छेत्र में पार्टी को कोई लाभ होगा ----यह  संदेहास्पद ही हैं | भले ही जाति के आधार पर समायोजन  को उचित बताया  जाये , पर जमीनी  सत्य तो यह नहीं हैं |

                            गडकरी एक परखे और सिद्ध मंत्री हैं | जब वे  महाराष्ट्र में मंत्री थे तब उन्होने धन कुबेर और मोदी जी मित्र अंबानी जी को फ़्लाइ ओवेरों के निर्माण को लेकर  पूंजी के प्रश्न पर कहा था की “”आप देखते जाइए की मुंबई में  सड़क आवागमन को कितना सुविधा जनक बनाया जा सकता हैं |  उनके बारे में यह सर्व विदित हैं की वे नरेंद्र मोदी को  “” समतुलयों में प्रथम “” मानते हैं | अपना मालिक और सर्वशक्तिमान नहीं मानते | हाला ही में उन्होने मौजूदा राजनीति को  सत्ता का संघराश  बताते हुए कहा था की गांधी जी की जमाने में राजनीति सामाजिक सरोकारों की होती थी | इस पर उन्होने कहा था “”की मन करता हैं की राजनीति छोड़ दु , क्यूंकी अब यह सिर्फ सत्ता पाने का जरिया बन गया हैं |”” अब मोदी जी की मन की बात के बाद गडकरी जी की मन की बात कैसे  वातावरण में रह सकती हैं | तो यह एक वार है , जो मोदी जी के फैसलो पर आशंतुष्ट हो !!!!”””