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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 18, 2023

 

चुनाव समाज के मुद्दो पर नहीं -बाबाओ के पाखंड के सहारे होंगे ?



पहले प्रथमेश की मूर्ति को दूध पिलाया , फिर मंदिर् की गुहार लगायी और अब भोले शिवशंकर के "” रुद्राक्ष "” पर दांव लगाया ! देश की संपाती बेच -बेच कर शिक्षा -स्वास्थ्य - और रोजगार के बजट को कम किया और मंदिरो के निर्माण - पुनरुधार और कारीडोर बनाने के लिए छोटे मंदिर हटाये गए - लोगो के मकान टोडे गए , इसलिए की भगवान के दर्शन के लिए "”टिकट" की दर बढायी जाये और धार्मिक पर्यटन को बढावा मिले – भगवा धारियो को चड़ावा मिले | होटल और खाने और पीने की दुकाने चले| | पहले मंदिरो के अर्चक - पुजारी - सेवक और सहायक , दर्शन के लिए आने वालो की "”दक्षिणा "” पर्याप्त हुआ करती हैं , परंतु अब गैस - पेट्रोल और आटे दाल की मंहगाई में भक्त अब श्रद्धा निधि नहीं चड़ाते है , इसलिए सरकारी तंत्र { हालांकी इन धार्मिक संस्थानो का प्रबध यूं तो कलेक्टर या सरकार के नियुक्त नुमाइंदे ही करते है , पर बजरंग दल - विश्व हीनु परिषड और भ्ग्वधारी बाबाओ की डिमांड हैं की इन मंदिरो का प्रबंधन साधुओ को मिले }

वैसे खुद को ही "” स्वामी और संत "” की पदवी लेने वालो की शिक्षा -दीक्षा आर योग्यता की जानकारी इनके "”भक्तो और -शिष्यो"” तक को भी नहीं होती हैं | हाँ उनके आतंक और रसूख से भयभीत चेलो को बाबा राम रहीम और रामलाल और राजस्थान की जेल में बलात्कार के अपराध की सज़ा काट रहे लाखो चेलो की उम्मीद के " संत आशा राम " उदाहरण हैं | दक्षिण के एक भगवा धारी के तो महिलाओ के साथ "”भोग"” के वीडियो भी समाज और बाज़ार में हैं | अब जैसे लोगोके "”जन प्रतिनिधि "” की शिक्षा और अनुभव की कोई "” परीक्षा "” नहीं होती , वैसे ही इन सफ़ेद आर भगवा धारियो बाबाओ को भी कोई परीक्षा नहीं देनी होती | वैसे मस्जिद के मौलवी के बराबर पगार की मांग करने वाले यह भूल जाते है की उनको न्यूनतम दीनी तालिम की शिक्षा की परीक्षा पास करनी होती हैं | एवं ईसाई धरम में तो बाकायदा महिला और पुरुष "”पादरियों "” को भी परीक्षा पास करनी होती हैं |

उत्तर प्रदेश के मुख्या मंत्री वेश भूषा से भगवा धारी बाबा ही हैं | वे गोरखनाथ मठ के स्वामी भी हैं | जो शैव संप्रदाय का ही एक तरह से अंग है | परंतु एक टीवी डिबेट में उन्हे एक इस्लामिक मौलवी ने शिव श्त्रोत सुनाने को जब कहा --तो वे लड़खड़ा गये और असफल रहे !!!

शायद सनातन धरम के लोग ही अपने आराध्यों के दर्शन को भी श्रद्धा का नहीं व्यापार का मुद्दा मानते हैं , तभी तो विश्व के किसी अन्य धरम में अपने आराध्य के दर्शन के लिए "” कीमत "” नहीं चुकनी पड़ती | अब इस स्थिति को सनातन या की अहले ज़ुबान में हिन्दू लोग क्या कहेंगे ?

केदारनाथ में कुछ साल पहले का भू स्ख़्लन और अब जोशी मठ में धरती के हिलने से मकानो और सडक में दरार , का कारण धरम में अब श्रधा के स्थान पर सुविधा का महत्व हो चला है | यूं तो पर्वतीय तीर्थ स्थानो में स्थानीय लोगो द्वारा कुली के रूप में अपनी पीठ पर बैठा कर ले जाने प्रथा काफी पुरानी है ! पर क्या पैसे के दम पर आराध्य इन तीरथ यात्रियो को '’’ इस जन्म के पुणय के आधार पर अगले जनम में कुछ बेहतर मिलेगा !!! मुझे तो लगता है की अगर पैसे देकर दर्शन करना उचित है ----तब तो यह सिनेमा देखने जैसा हो गया !

पाठक गण विचार करे की - भूखे को भोजन , रोगी को इलाज़ और बच्चो को शिक्षा उपलब्ध करना बेहतर है या मंदिर की मूर्ति के दर्शन के लिए टिकट खरीदना ? भगवान क्या सोचते है --अथवा क्या करेंगे यह ---- कोई ज्यूतिशी या बाबा या मौलवी अथवा पारी नहीं बता सकता , अगर ऐसा संभव होता तो तुर्की और सीरिया के 45000 लोगो की जान बचाई जा सकती थी ! हाँ कुछ लोग भूकंप के मलवे में दस इन बाद भी जिंदा मिले , अब यह आसमानी करतब है या फिर संयोग ?? श्रद्धा और तर्क पर परखिये |