विधि शास्त्र की और संविधान अवहेलना है अपराधी जांच विधेयक
विधि शास्त्र में दंड की दो शाखये है 1- सुधारातमक और नजीर बनने वाली दंड व्यसथा | दुनिया के प्रजातांत्रिक देशो में अपराध का दंड अपराधी को सुधार के लिए दिया जाता हैं | और अधिनायक वादी और भ्रष्ट निर्वाचित शासन में ऐसे दंड दिये जाते हैं -जिनसे जनता में भाय व्याप्त हो | सभ्य देशो में किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगने पर --- सरकार की ज़िम्मेदारी होती हैं की वह आरोपी पर उस अपराध को बिना शक की गुंजाइश के आरोपित अपराध को सिद्ध करे | यह देश के सभ्य लोकतन्त्र देशो की न्यायिक प्रणाली हैं |
वैसे अभी तक भारत को भी इसी श्रेणी के लोकतन्त्र में रखा जाता रहा हैं , जनहा आरोपी और अपराधी में फर्क किया जाता रहा हैं | कम से कम स्वतन्त्रता मिलने के बाद | भारत में अपराध नियंत्रण के लिए ब्रिटिश शासन द्वरा जो तीब कानून बनाए गए वे लगभग 120 वर्ष तक जारी रहे | परंतु अब मोदी सरकार को विभिन्न पुलिस आयोगो की सिफ़ारिशों पर फैसला लेते हुए , पोलिस को "”आरोपी "” और अपराधी के के अंतर को समाप्त करने का अधिकार देने का बिल संसद ने पारित कर दिया हैं |
अभी तक पुलिस में किसी भी अपराध के दर्ज़ होने के बाद आरोपी की गिरफ्तारी की जाती है | उसे यदि अदालत जमानत दे देती हैं , तब वह आम नागरिक की तरह तब तक रहता हैं , जब तक की अदालत उसे सज़ा नहीं सुना देती | सज़ा सुनाये जाने के बाद ही आरोपी को कानून की निगाह में "”अपराधी"” करार हो जाता हैं | इसके बाद जेल में उसकी फोटो ,जिसमे जेल में अलाट किए गए क़ैदी नंबर के साथ खिची जाती है | उसके दसो हाथ की उँगलियो के निशान भी लिए जाते हैं | और इस प्रकार उस क़ैदी की क्रिमिनल हिस्टरी बन जाती हैं | जो सरकार की जांच एजेंसियो के डाटा में रहती हैं |
अब आरोपी के साथ अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं होता था | सिर्फ पुलिस के रोजनामचे में उसका नाम और आरोपित अपराध के बारे में ज़िक्र होता हैं | वह एक सभ्य नागरिक रहता है ---कम से कम कानून की निगाहों में , भले ही पुलिस मी निगाहों में वह "””भला "” ना हो | अथवा उसका नाम पुलिस थाने के संदेहास्पद लोगो के रजिस्टर में हो | वैसे आज़ादी के चालीस -पचास साल तक थाने में एक ऐसा भी रजिस्टर हुआ करता था जिसमें इलाके के भले लोगो के भी नाम हुआ करते थे | जिनसे पुलिस अशांति के अवसरो पर मदद लिया करती थी | पता नहीं अब वह होता भी है या नहीं | क्यूंकी अब "”शरीफ "” वह है जो राजनेता है म भले ही उसपर सभी प्रकार के मुकदमें दर्ज़ हो !!!!
अभी तक किसी भी नागरिक की आज़ादी और निजता को केवल अदालत के आदेश पर ही बाधित किया जा सकता था | परंतु पुलिस कमिसनर प्रणाली ने इसमे सेंध लग दी हैं | अब शांति - व्यसथा के नाम पर किसी को भी "” पाबंद "” किया जा सकता है ----जिसे पुलिस "””चाहे अथवा समझे "” , भले ही उसका कोई ऐसा काम न किया हो जो कानून की नजरों में गलत हो |
हेडिंग
अभिव्यक्ति -आंदोलन और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन -अब अपराध
इस विधेयक का "”अलिखित "” उद्देश्य एक ही है – सरकार के फैसलो के विरुद्ध आवाज़ उठाने वालो की आवाज़ और उन्हे बंद करके अपराधी जैसा करार देना जिससे समाज में भाय व्यापत हो जाये की नागरिक अपने द्वरा चुनी सरकार के दोष या कमियो को उजागर न कर सके !!
भारत के संविधान के अनुछेद 19 के अनुसार {का} वाक स्वतन्त्रता और अभिव्यक्ति का अधिकार और { ख } के अनुसार शांति पूर्वक और निरायुध सम्मेलन का अधिकार ------ समस्त नागरिकों को है | इसी तरतमय में अनुछेद 21 के अनुसार समस्त नागरिकों को प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का भी अधिकार हैं | अनुछेद 22 में उन स्थितियो को स्पष्ट किया गया है जिनमें नागरिक की गिरफ्तारी ---- का कारण बताया जाएगा और उसे वकील करने का अधिकार होगा |
अब अभिव्यक्ति का अधिकार का "”नंगा उल्लंघन "” का उदाहरण अभी कुछ दिन पूर्व सीधी जिले के में आठ पत्रकारो और रंगकर्मियो को थाने की पुलिस द्वरा पकड़ कर उन्हे नगा हवालात में रखा गया | जिसकी फोटो सोशल मीडिया में वाइरल हुई !! बाद में जब पुलिस के डीआईजी से इस व्यव्हार पर आपति जताई गयी --- तब उनका जवाब सुनने लायक था --- “” हवालात में बंदी आतम हत्या न कर ले इसलिए उनके कपड़े उतरवा लिए जाती हैं !!! अब अगर किसी महिला को बंदी बनाया जाएगा तब उसके साथ भी ऐसा ही किया जाएगा ??? अभी अपराधी पहचान बिल विधेयक्क नहीं बना है --- उस पर राष्ट्रपति के दस्तखत होने है और उसे सार्वजनिक गज़ट में प्रकाशित किया जाएगा ----तब वह अधिनियम बन जाएगा | कल्पना कीजिये जब बिल बनने पर सरकार के कारिंदे पुलिस जनो के यह हाल हैं ---तब इस कानून की ताकत हाथा पर आने से विधायक -सांसद तथा मंत्री आदि के फैसलो और उनके व्यवहार और कामो पर सवाल करने पर पत्रकारो का क्या हाल होगा ???? क्यूंकी नागरिक तो वैसे ही आतंकित है पुलिस के व्यवहार से !!!
ऐसे हालत में जब किसी एक अदना से विधायक की गैर मामूल हरकतों पर व्यंग किया जाये अथवा उस पर खबर बनाई जाये तब पत्रकारो का यह हाल किया जाये -----तो क्या इसे विधि का शासन कहा जाएगा " ? अथवा पुलिस राज कहा जाएगा जनहा कानून और मौलिक अधिकारो की कोई परवाह सरकार को नहीं है |
एक ओर सुप्रीम कोर्ट एयमेनेसटी इंडिया के पूर्व अध्यछ पारिख को अमेरिका जाते समय हवाई अड्डे पर रोक लिया जाये की-वे देश छोड़ कर नहीं जा सकते --कोई कारण भी नहीं बताया गया | सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के निदेशक को आदेश दिया की "”मात्र संदेह के आधार पर किसी के खिलाफ कारवाई करने के अपने फैसले के लिए वे पारिख से छमा याचना करे !! एक ओर न्याय पालिका नागरिकों के अधिकारो के प्रति इतनी "””संवेदनशील है वनही दूसरी ओर सीधी की घटना है और डीआईजी का बयान है जो नितांत गैर कानूनी है | पर मुख्य मंत्री शिवराज सिंह क्या उन दोषी पुलिस कर्मियों को निर्देश देंगे की वे पीड़ित पत्रकारो से माफी मांगे ! कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं , आखिर सुप्रीम कोर्ट की नजीर भी है ?