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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 20, 2020


विदेशी ट्राईबुनल की कारवाई और एविडेंस एक्ट की उनकी समझ पर सवाल



15 दस्तावेज़ भी किसी मतदाता को नागरिक नहीं सिद्ध कर सके तो फिर क्या ?


असम की जवेदा और सना उल्लाह को विदेशी ट्राईबुनल द्वरा विदेशी घोषित किए जाने से इन संस्थाओ की वैधानिकता पर सवाल उठ खड़े हुए हैं !
संविदा पर नियुक्त किए गए इन ट्राईबुनलों के सदस्यो की विधि शास्त्र और साक्षय अधिनियम के प्रावधानों पर ही सवालिया निशान लगा दिये हैं ! खबरों की अनुसार साथ वर्षीय महिला जावेदा के परिवार का नाम जब एनआरसी की प्रकाशित सूची में नहीं आया , तो उसने ट्राइबुनल में अपना पक्ष रखा | उसने ग्राम प्रधान के पंचायत रजिस्टर के आधार पर दिये गए सर्टिफिकेट को नामंज़ूर कर दिया ! उसके बाद उन्होने 14 अन्य दस्तावेज़ भी प्रस्तुत किए जिनसे उनके निवास और मतदाता तथा भूमि स्वामित्व आदि के तथ्य की पुष्टि होती हैं | परंतु ट्राईबुनल के विद्वान सदस्यो ने उन्हे नामंज़ूर कर दिया !!
इन 100 ट्राईबुनलों द्वरा ही 14 लाख लोगो को "”” गैर मुल्की "” क़रार दिया !! जिनमें 9 लाख हिन्दू /सनातनी है जिनके पूर्वज अंग्रेज़ मालिको के चाय बागानो में एक सदी पूर्व रोजी की खोज में यानहा आ कर सपरिवार बस गए थे | मुसलमानो में भी काफी संख्या उत्तर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से गए लोगो की हैं | इसी छेत्र के निवासियो ने मारिशस – त्रिणीडाड और टोबागों में ईख की खेती शुरू की थी ---इन्हे ही गिरमिटिया मजदूर कहा गया | ईस्ट इंडिया कंपनी के राज में यह लोग एक करार के अंतर्गत वनहा गए थे 15 साल के लिए परंतु फिर वनही के होकर रह गए | हालांकि अपनी बोली और त्योहारो को आज भी सँजोये हुए हैं |
सरकार का कहना हैं की ट्राइबुनल के फैसले के खिलाफ हाइ कोर्ट की डबल बेंच में अपील की जा सकती हैं | जवेदा बेगम ने भी अपील की हिमाकत की और "”हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा की की जवेदा द्वरा प्रस्तुत किए गए दस्तावेज़ यह नहीं सिद्ध करते की वे भारत की नागरिक हैं !!! अब सवाल यह हैं की जिन 15 दस्तावेज़ो को उन्होने ट्राइबुनल में प्रस्तुत किया ,, अगर वे मान्य नहीं हैं , तब शेष 2करोड़ 80 लाख लोगो ने कौन से दस्तावेज़ ट्राइबुनल में प्रस्तुत किए जिनके आधार पर इन लोगो के नाम एनआरसी में मंजूर किए गये ???
क्योंकि इन 100 विदेशी ट्राइबुनल के सदस्यो को नागरिकता के बेसिक सिद्धांतों का ज्ञान हैं की नहीं | बदकिस्मती से गौहाती उच्च न्यायालय ने इस मामले बस ट्राइबुनल के उन तर्को का ज़िक्र भर किया हैं -----जिनमें ट्राबुनलों को स्वयं की न्यायालयीन प्रक्रिया निर्धारण की छूट सुप्रीम कोर्ट के फैसलो में की गयी हैं | आम तौर पर ट्राईबुनलों का गठन "” संसद अथवा विधान मण्डल "”की विधि द्वरा की जाती हैं | यही अभी तक न्यायिक परंपरा रही हैं | उनमें न्यायिक सेवा के जज अथवा अवकाश प्राप्त जज ही नियुक्त किए जाते हैं | पर इन ट्राईबुनलों में सात साल तक वकालत करने वालो को संविदा अथवा ठेके पर नियुक्त किया गया हैं !! जिनको अलिखित रूप से अधिक से अधिक लोगो को विदेशी घोषित करने की उम्मीद की जाती हैं | चूंकि इंका गठन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत राज्य सरकार द्वरा एक :””कार्यकारी अथवा एक्स्कुटिव आदेश द्वरा किया गया हैं , अतः असम सरकार के विधि विभाग के अंतर्गत हैं , जो सदस्यो की नियुक्त करता हैं !! अब इस प्रक्रिया से असम राज्य सरकार की राजनीतिक द्वेष की भावना कितनी शुद्ध होगी यह आज के माहौल और शाहीन बाग के धरने से पता लगती हैं ! जनहा सुप्रीम कोर्ट ने धरणे पर बैठे महिलाओ को सड़क खाली करने के लिए दो वार्ताकारों को नियुक्त कर प्रदर्शन के मौलिक अधिकार को बनाए रखा हैं -----वनही दूसरी ओर उन्होने धरणे से परेशानी उठा रहे लोगो की भावनाओ का ख्याल रखा हैं |
अब पुनः वही सवाल हैं की क्या ट्राईबुनल उन "”” दस्तावेज़ो का उल्लेख सार्वजनिक रूप से करेगा – जिनसे स्व्यमेव नागरिकता सिद्ध होती हैं ? क्योंकि जिन 15 दस्तावेज़ो को अमान्य किया हैं , उनके अलावा कौन से दस्तावेज़ कान्हा से सुलभ होंगे यह तो निश्चित करना होगा | सिर्फ ट्राईबुनल का यह कह देना की की यह दस्तावेज़ काफी नहीं है - पर्याप्त नहीं होगा | ये दस्तावेज़ निम्न है :-
1- जन्म प्रमाण पत्र जो गाव के प्रधान द्वरा दिया जाता हैं और जिसको पंचायत के रजिस्टर में लिखा जाता हैं |
2:- यह प्रमाण पत्र पैदा होने वाले के माता पिता के निवासी होने का भी प्रमाण पत्र है
3:- शिक्षा का प्रमाण पत्र - आज कल सभी छात्रों के भर्ती के समय माता पिता के साथ जन्म तिथि और स्थान का भी जिक्र होता हैं |
4:- जनसंख्या रजिस्टर – में परिवार के सभी सदस्यो की तफसील यानि उम्र शिक्षा आदि का तथा विकलांगता का भी उल्लेख किया जाता हैं | प्रति दस वर्षो में होने वाली यह कवायद अंतर्राष्ट्रीय स्टार पर भी मान्य होती हैं |
5:- मतदाता सूची --- इसमें 18 वर्ष के युवक एवं युवतियो के नाम होते हैं , जो स्थानिय निकाय जैसे पंचायत - नगरनिगम आदि के साथ विधान सभा और लोकसभा के लिए मतदान करते हैं | यंहा यह तथ्य ध्यान रक्खने का हैं चुनाव आयोग के अनुसार मतदाता वही होगा जो भारत का नागरिक हैं | अब ट्राइबुनल चुनाव आयोग की इस शर्त को भी "” नहीं मान रहे , उनके अनुसार मतदाता होना नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं है है !! अगर इस सिधान्त को स्वीकार किया गया --तब तो प्रदेश या देश की सभी सभी सरकारे "” अवैधानिक "” हो जाएंगी !!!! उनके द्वरा किए गए सभी फैसले "” अल्ट्रा वाइरस "” अर्थात असंवैधानिक हो जाएंगे !!!!1
6:- भूमि या मकान की खरीद के दस्तावेज़ ------ पटवारी के खसरे में भूमि के स्वामित्व के खाने के नाम पर किस वर्ष से कब्जा हैं और इस खेत में कब -कब कौन सी फसल लगाई गयी इसका भी उल्लेख होता हैं | जिसका नाम होता उसके गाव का भी उल्लेख उस बही में होता हैं | यह निवास और स्वामित्व का प्रमाण पत्र होता हैं | अदालतों में जमानत के समय इनको पेश किया जाता है ,| बैंको से क़र्ज़ लेने के लिए भी इनको बंधक रखना होता हैं |
7:- आधार कार्ड --- यह पहचान पत्र हैं , हालांकि यह नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं है -बस यह सरकारी योजनाओ में व्यक्ति की पहचान हैं |
8:- पैन कार्ड "- यह आयकर विभाग द्वरा जारी कार्ड हैं जो आम तौर पर आकार भुगतान करने वालो कहीं | परंतु 5 लाख रुपये से कम की आय वालो को वार्षिकी भरना होता हैं | यह व्यक्ति की आर्थिक हैसियत की पहचान हैं |
9:- पासपोर्ट ----- भारत के राष्ट्रपति की ओर से जारी यह दस्तावेज़ -विदेशी सरकारो से आग्रह करता हैं की "”धारक "” को वह सभी सुविधाए सुलभ कराये जो कानूनी रूप से देय हैं | इसको पुलिस की पूरी जांच पड़ताल के बाद जारी किया जाता हैं | विदेशो में नागरिक यह पहचान हैं ----परंतु भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने एक विज्ञपति जारी कर खा हैं की पासपोर्ट व्यक्ति {{नागरिक नहीं }} के यात्रा का दस्तावेज़ मात्र हैं | अगर यह यात्रा दस्तावेज़ है तब विदेश की सरकारे उसे नागरिक सुविधा या सुरक्षा क्यो मुहैया कराएंगी |
अन्य छ दस्तावेज़ कौन से हैं मुझे नहीं ज्ञात , परंतु इतने पहचान --निवास - और नागरिकता के प्रमाणो को त्रिबुनल कैसा आधार पर अस्वीकार कर रहा हैं इसका कारण ना तो ट्राइबुनल और नाही एनआरसी समन्वयक द्वरा सार्वजनिक रूप से बताए गए हैं ! इससे यह तो लगता हैं कनही न कनही परदेदारी कुछ आम लोगो से सरकार छुपा रही हैं ?
सुप्रीम कोर्ट का दखल क्यो जरूरी है !
चूंकि असम में गैर मुल्की या बंगलादेशी लोगो का अवैध रूप से आने का विरोध असम के लोगो द्वारा किया गया था | उन्होने इस समस्या के समाधान के लिए आंदोलन भी किया था | जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में अपनी निगरानी में एनआरसी गठित किए जाने आदेश दिया था | परंतु आदेश के अनुपालन में आबादी की पहचान के लिए कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिया था | जिसके कारण जब राज्य सरकार ने विदेशी ट्राइबुनलों का गठन किया ----तब उनके सदस्यो के लिए मात्र सात साल कोर्ट का वकालत का अनुभव पर्याप्त माना गया | चूंकि इन ट्राइबुनलों का गठन केंद्र अथवा राज्य सरकारो द्वरा समसायाओ के निदान के लिए किए जाने वाले ट्राइबुनलों की भांति नहीं था | इन संस्थाओ ने सुनवाई - सफाई - सबूत पेश करने के न्यायिक परम्पराओ को नहीं माना | वरन सरकार की मनमर्जी के अनुसार अफसरो द्वरा "”नियम बनाए गए "” जिनमें याची के संवैधानिक अधिकारो का ख्याल नहीं रखा गया | ना ही यह स्पष्ट किया गया की किन दस्तावेज़ो को "”” नागरिकता का स्वयं सिद्ध प्रमाण माना जाएगा "”” जिस प्रकार यदि किसी व्यक्ति की शिक्षा का प्रमाण उसकी डिग्री या सेर्टिफिकेट होती हैं , अथवा निवास का प्रमाण पत्र गाव्न का पंचायत रजिस्टर का इंदराज होता है | उस प्रकार कोई भी दस्तावेज़ :””” निश्चित रूप से नागरिकता का अंतिम प्रमाण "” होता हैं, इसका उल्लेख एनआरसी के गठन के समय राज्य सरकार द्वरा नहीं किया गया | जब इसकी कारवाई के खिलाफ आंदोलन भी हुए तब भी असम सरकार और केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का हवाला देकर अपनी कारवाई को न्यायाइक जामा पहनाना शुरू कर दिया | आज यह मनमानी देश भर में आंदोलनो का कारण हैं |
केंद्र सरकार की नियत पर सुप्रीम कोर्ट को भले ही भरोसा हो परंतु आम जनता को नहीं हैं | खास कर उन्हे जिनको इसका निशाना बनाया जा रहा है ----- जी हाँ मुस्लिम समुदाय को | परंतु कनही कुछ असम सरकार की तिकड़म में गड़बड़ी हुई ------जिसके कारण 9 लाख से अधिक भी एनआरसी से बाहर हो गए | अब नागरिकता संशोधन विधि द्वरा हिन्दुओ को नागरिकता देने का प्रयास हो सकता है ---ऐसा राजनीतिक गलियारो मे सुना जा रहा हैं | परंतु इस कानून से विदेशो में बसे हिन्दुओ को ही नागरिकता का प्रविधान हैं , कम से कम ऐसा ही सरकार संसद को सूचित करती हैं , पर अमित शाह जी का बयान बार बदलता जाता हैं | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी भी ऐसे बयान देते है जिनको तथ्यो का आधार नहीं होता | जैसे मुंबई में उनका कथन की देश में "”” की डिटेन्शन सेंटर नहीं हैं "”” जबकि दूसरे ही दिन खुलसा हुआ की असम में छ ऐसे सेंटर हैं ! अब ऐसी हालत में मोदी सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल उठ ही जाता हैं | संसद में सरकार सूचित करती हैं की एनआरसी को देश में लागू करने पर अभी सरकार ने विचार नहीं किया हैं , परंतु भविष्य में भी नहीं करेगी ----इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता | ऐसी हालत में सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखलंदाज़ी करनी ज़रूरी है वरना प्रधान न्यायधीश बोरवाड़े का यह कहना की देश में आग लगी हुई है ऐसे में कैसे वाचिकाओ की सुनवाई करे - महत्व नहीं रखता | सर्वोच्च न्यायालय का यह विलंब देश के लिए राजनीतिक और सामाजिक तथा सान्स्क्रतिक रूप को ही तोड़ फोड़ ना दे |||