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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 19, 2022

 

रूस--यूक्रेन युद्ध में भारत की तटस्थता कितनी सही या गलत ?


दूसरे विश्व युद्ध के बाद शायद यह लड़ाई सबसे अधिक दिन से चल रही हैं | एक ओर महाशक्ति रूस है तो दूसरी ओर उसके चौथाई का यूक्रेन , आबादी और छेत्र फल तथा सैन्य शक्ति वाला नया नया देश | जिसका वजूद ही सोवियत संघ के बिखरने से बना | तब भी तीन सप्ताह तक रूस से मोरचा लिए हुए हैं | हालांकि यूरोपियन देश मेडिकल और सैन्य सामाग्री दे मदद कर रहे हैं , परंतु लड़ाई तो यूक्रेन वासियो को ही लड्नि पड़ रही हैं | परंतु इस छोटे से देश ने याग साबित कर दिया की अगर देश के लोगो में जज़्बा हो तो महा शक्ति से भी मोर्चा लिया जा सकता है इसका श्रेय राष्ट्रपति जेलेंसकी को जाता हैं | जिसने दुनिया भर का समर्थन और मदद हासिल की | यह पहली बार हुआ है की किसी राष्ट्रपति ने ब्रिटेन के हाउस ऑफ कामन्स और अमेरिकी काँग्रेस को टीवी के जरिये संबोधित किया ,और उनके सांसदो की भरपूर तालिया मिली |

रूस और यूक्रेन के मध्य विगत तीन सप्ताह से चल रहे युद्ध को आज का महाभारत कहा जा सकता हैं | क्यूंकी राष्ट्रपति पुतिन ने ना तो संयुक्त राष्ट्र संघ के फैसले को मंजूर किया और नाही अन्य वैश्विक संगठनो के आग्रह को माना | रूस की सेना यूक्रेन के मुक़ाबले बहुत कम है --- केवल 20% ही है | जिस प्रकार महाभारत में कौरव सेना की संख्या पांडवो की सेना से पांचगुनी बड़ी थी | उसके पास ब्रह्मास्त्र चलाने वाले भी थे | पांडवो की ओर से भी अर्जुन के संहारक अश्त्र थे परंतु श्री कृष्ण के परामर्श से उनमिन से कई का उपयोग नहीं किया | परंतु युद्ध खतम हो जाने के बाद कौरव सेना के अश्व्थ्मा ने जिस प्रकार ब्रहमाष्त्र\ का प्रयोग कर परीक्षित को गर्भ में ही मार डाला उसी प्रकार पुतिन भी यूक्रेन की मददा करने पर आण्विक हथियार इस्तेमाल की चुनौती दी थी , वह न केवल रूस वरन पूरे यूरोप को स्टोन एज में पनहुचा सकती थी | इस युद्ध के अनेक पहलू हैं , उनमें एक पक्ष यह भी है जो "”तटस्थ "” रहे है :-

राष्ट्र कवि दिनकर के शब्दो में "समर शेष है , नहीं पाप का भागी

केवल व्याघ । जो तटस्थ है , समय लिखेगा उनका भी अपराध "”

यह इस लिए मौजू है चूंकि संयुक्त राष्ट्र संघ में 145 देशो ने जब रूस के हमले की भर्त्स्ना की तब केवल चीन - पाकिस्तान और यू एई भारत ही थे जो तटस्थ थे ! इस युद्ध में जिस प्रकार यूक्रेन पर अकारण हमला हुआ --उसकी मिसाल केवल द्रौपदी के चीर हरण से ही की जा सकती है | हालांकि वह धर्म युद्ध था और यह क्या है पाठक खुद तय करे , क्यूंकी धरम युद्ध तो नहीं ही है ! भारत के इस रुख का परिणाम सोचे --- रूस और चीन तो महा शक्ति है सैन्य बल भी भारत के मुक़ाबले कई गुना हैं | एवं तटस्थ देशो में चीन और पाकिस्तान दोनों ही हमारे "”मित्र "” नहीं है | उनसे लगातार सीमा विवाद चलता रहता हैं | अनेक लोगो ने इस मौके पर रूस का पक्ष लेते हुए अमेरिका को "”खलनायक "” बनाने की कोशिस की हैं | उन्हे बंगला देश एक्शन के समय अमेरिकी सातवे बेड़े को रोकने के लिए सोवियत रूस द्वरा आण्विक सबमरीन बेजे जाने को याद दिलाया है | यह सही है की उस समय प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी ने रूस से मदद मांगी थी ---जो मिली भी | इन्दिरा जी ने इस सहायता के लिए ब्रेज़नेव को धन्यवाद भी दिया था | परंतु मैं उनही लेखको को पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय 1962 में चीन के आक्रमण के समय जब रूस से मदद मांगी थी तब रूस की ओर से कहा गया था "”” चीन एक साम्यवादी देश है , वह हमारे भाई समान हैं | हम उसके वीरुध कोई मददा नहीं कर सकते ! तब अमेरिकी राष्ट्रपति आइजंहावर ने कार्बाइन और आँय शस्त्र तथा पहाड़ो पर पहने जाने वाले परका जैसे वस्त्र हवाई जहाज से पहुंचाए थे | चीनी आक्रमण से पंडित जी टूट से गए थे | उन्हे नेताओ के वादो पर भरोसा नहीं रहा |

कहने का तात्पर्य यह हैं की रूस ने 1962 मे चीन के वीरुध भारत की मददा नहीं की | परंतु बंगला देस एक्शन के समय "” अमेरिका के मुक़ाबले में मदद की ! क्यू ,इसका उत्तर हैं की रूस अमेरिका के वीरुध तो सहायता के लिए तो तत्पर रहेगा परंतु चीन के वीरुध वह भारत को अकेला छोड़ देगा , जैसे नाटो देशो ने यूक्रेन को छोड़ रखा हैं | यह अंर्राष्ट्रिय संबंध समीकरण समझना होगा | आज भारत -पाकिस्तान और चीन का तिगड्डा हैं | इस समीकरण में भारत का विवाद पाकिस्तान और चीन दोनों से हैं , और पाकिस्तान -चीन मित्र हैं | अब आप खुद ही कल्पना करे की हमारी तटस्थता ने हमको कितना अकेला कर दिया हैं |