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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Nov 30, 2021

 

कुछ तो गड़बड़ है - तीनों कानूनों की वापसी में जल्दबाज़ी क्यू ?


दुनिया के आंदोलनो में अहिंसक रूप से एक साल तक किसानो द्वरा धरना देने की मिसाल अप्रतिम हैं | आज़ादी की लड़ाई में भी कोई आंदोलन साल भर तक नहीं चला था - जबकि ब्रिटिश हुकूमत गिरफ्तारी और लाठी चार्ज जैसे उपायो से आंदोलन को कुचलने का काम करती थी | वैसे किसान आंदोलन के दौरान हरियाणा सरकार ने लाठी चार्ज और गिरफ्तारी की थी | कहा जाता हैं की बीजेपी और चौटाला की सरकार ने यह सब बीजेपी पार्टी के केन्द्रीय नेताओ के इशारे पर आंदोलन को तोड़ने के लिए किया था | हजारो किसानो पर गैर जमानती धाराओ में मुकदमें दर्ज़ हुए | उन मुकदमो की वापसी किसान संगठनो द्वारा पेश एक शर्त है , आंदोलन की वापसी के लिए |

पंजाब में ऐसे कानून का 104 साल पूर्व ब्रिटिश शासन द्वरा कानून लाये गए थे | उसमें भी किसान को उसकी भूमि से अधिकार से वंचित करने की कोशिस की गयी थी | उस समय कांग्रेस्स के नेता लाला लाजपत रॉय और भगत सिंह जी के चाचा अजित सिंह ने इन कानूनों के खिलाफ आवाज उठाई थी और बंदी बनाए गए थे | किसानो के गुस्से का प्रतिरोध ब्रिटिश सरकार नहीं कर पायी थी | उसने किसान नेताओ को बंदी बनाया था | पर आंदोलन के उग्र रूप को देखते हुए कानून को वापस लिया गया था | इस बार भी कुछ ऐसा ही मोदी सरकार ने निरसत किए गए कानूनों से करना चाहा था | तब भूमि पर अंग्रेज़ सरकार नियंत्रण चाहती थी | इस बार सरकार उद्योगपतियों को वही "”अवसर देना चाहती थी |

गौर करने की बात हैं मोदी जी की सरकार ने जिस स्पीड से अध्यादेश लायी फिर उसे बहुमत की मदद से संसद से पारित करने के लिए ताबड़तोड़ कारवाई की गयी| वह ना केवल संसदीय प्रणाली के विपरीत थी वरन वह लोकसभा में अपने बहुमत का दुरुपयोग ही था | इस बार जब इन विवादित कानूनों को प्रधान मंत्री मोदी ने अपने राष्ट्र व्यापी सम्बोधन में इन कानूनों को वापस लेने के लिए "” अपनी तपस्या में कमी को बताया " तब एकबारगी लगा की वे इन कानूनों के लिए छमा मांग रहे हैं | पर सोमवार को जिस प्रकार से क्रशि मंत्री नरेन्द्र तोमर ने लोक सभा और राज्य सभा से इन बिलो को निरस्त करने की कारवाई की वह चिंता जनक हैं | लगता हैं मोदी जी इस वापसी के इस प्रस्ताव की के समय सदन में गवाह नहीं बनना चाहते थे | इस स्थिति के गवाह नहीं बनना चाहते थे | क्यूंकी उनका यह "”अबाउट टर्न "” इनके भक्तो को बहुत बुरा लग रहा हैं |

इस जल्दबाज़ी को उत्तर प्रदेश और पजाब में होने वाले विधान सभा चुनावो के पूर्व ,, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट हिन्दू और मुसलमानो के मध्य हुई एकता को तोड़ना चाहते हैं | क्यूंकी पश्चिम उत्तर प्रदेश के 10 जाट और गुजर बाहुल छेत्र में 100 से अधिक विधान सभा सीटे हैं | जिन पर नज़र और सेंध लगाने के लिए देश के गृह मंत्री अमित शाह जिनहे थैली शाह भी कहा जाता हैं , उनकी ड्यूटी लगाई हैं की वे "” बूथ" को नियंत्रित करे | अब इनको आंदोलनकारी किसानो का गुस्सा सहना पड़ेगा | वैसे अमित शाह बंगाल और दिल्ली विधान सभा में अपने करतब से कुछ नहीं कर पाये थे | बंगाल में दलबदल का जो खेल उन्होने किया था , वह तो उनकी असफलता की मिसाल हैं | अब चुनाव की जमीन बहुत "”गरम "” हैं | ऐसे में वे कौनसा हथकंडा अपनाएँगे यह तो समौ बताएगा | अब दल बदल का खेल तो हो नहीं पाएंगे | हो सकता कुछ "””भूतपूर्व विधायक "” उनकी चाल में आजाए और बीजेपी में शामिल होने के "”भव्य आयोजन में मंच पर बैठने का सुख प्राप्त करे | परंतु आशंका हैं की वे अपनी सभाओ में एक बार फिर से दिल्ली वाली चाल अपनाए और मतदाता को हिन्दू बनाए और मुस्लिमो के खिलाफ भडकाएंगे | पर यह चाल कितनी सफल होगी|

क्यूंकी अब इस पैंतरे को बंगाल और दिल्ली की असफलता ही पुख्ता करेगी |

राज्य सभा मे सरकार की सहयोगी पार्टियो और बीजेपी को मिला कर भी यह निरसन विधेयक सत्ता के अल्पमत होने कारण चर्चा करनी पड़ती | इस बाधा को पार करने के लिए सभापति और उप राष्ट्रपति वेंकिया नायडू ने 12 सदस्यो को "””सम्पूर्ण सत्र के लिए निकाल दिया | जिससे सत्ताधारी दल को विधेयक पारित कराने में सहूलियत होगी | अब इस तरह बिना चर्चा के विधेयक पारित कराने को मोदी सरकार की विफलता ही कहा जाएगा |

2- प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बयान दिया की "” सरकार सभी मुद्दो पर "”चर्चा "” कराने के लिए तैयार हैं | जिस दिन किसानो से संबन्धित तीनों बिलो के द्वरा निरसन की कारवाई हुई , उस समय दोनों सदनो में विपक्ष इस विधेयक पर चर्चा कराने की मांग कर रहे थे | और पीठासीन अधिकारी सरकारी पक्ष के लिए सब कुछ कर रहे थे | सरकार द्वरा चर्चा से बचने की राजनीति भी उसके इरादो को संदेहास्पद बनाती है |

3--- प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वरा सभी मुद्दो पर चर्चा कराने का वक्तव्य उनकी पार्टी और सरकार द्वरा झुठला दिया गया हैं |

इसे प्रधान मंत्री का "”पाखंड "” ही कहेंगे की एक ओर वे संसदीय प्रणाली के आधार, वार्तालाप और चर्चा से बच रहे हैं | दूसरी ओर वे एक डिक्टेटर की भांति अपने मंत्रियो से निरस्त कानूनों को किसान के लिए लाभकारी बता रहे हैं | निरसन बिल के प्रस्ताव में भी यही दुहराते हैं – की निरसन बिल से किसानो को लाभ ही होता | परंतु वे किसानो को समझा नहीं पाये ! यह "””दुरंगी " चाल किसानो की शंका को मजबूत करती हैं ,की विधान सभा चुनावो के बाद एक बार इन विधेयकों को कानुन बना कर प्रधान मंत्री अपने उद्योगपति मित्रो "”उपक्रत"” करने का वादा निभाएंगे | इसीलिए उन्होने भी "” न्यूनतम मूल्य "” और किसानो के ऊपर लगे मुकदमो को वापस लेने की भी मांग की हैं | हालांकि दस पुराने ट्रैक्टर को "” रद्दी "” किए जाने और किसानो के लिय बिजली की दरो में कमी आदि ऐसी मांग आंदोलनकारी किसान उठा रहे हैं | इसलिए यह तो साफ लग रहा हैं की , राष्ट्रपति के दस्तखत हो जाने के बाद भी किसान अपनी जगह छोडने वाले नहीं हैं |

प्रधान मंत्री की गुहार -किसान अपने - अपने घरो को जाये , व्यर्थ जाएगी | उधर काँग्रेस छोड़ अपनी अलग पार्टी बनाने ,वाले पंजाब के भूतपूर्व मुख्य मंत्री सरदार अमरिंदर सिंह भी बीजेपी के सुर में सुर मिलकर अपील कर रहे हैं की अब किसान घरो और खेतो की ओर रुख करे | पर पटियाला राज के ध्वजवाहक के रूप में भी अमरिंदर सिंह को आंदोलन कारी "”भाव "” नहीं दे रहे हैं |

दो तथ्य साफ हैं की किसान अपनी सभी मांगो को पूरा कराये बिना हटने वाले नहीं -----और मोदी जी ने विधान सभा चुनावो के मद्दे नज़र ही इन कानूनों को "””फिलहाल "” के लिए टाल दिया हैं | किसान भी इस बात अच्छी तरह से समझ रहे हैं | इसी लिए वे अपनी साल भर की मेहनत को व्यर्थ नहीं जाने देंगे | यह किसान यूनियन अच्छे से समझ रहे हैं की आंदोलन की वापसी के बाद सत्ता अपना खेल खेलेगी | इसी कारण वे खेती से संभन्धित सभी मुख्य मुद्दो को एकबारगी में ही पूरा करना चाह रहे हैं | अब यह तो विधान सभा चुनावो के बाद ही साफ होगा की – कौन सिकंदर है और कौन पोरस !~!!