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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 9, 2016

अंतर अयोध्या मे हनुमंगडी और रामलला के स्थान का

अंतर -अयोध्या मे हनुमंगड़ी और राम लला के स्थान का

काँग्रेस नेता राहुल गांधी की अयोध्या यात्रा को लेकर राजनीतिक छेत्रों मे और खासकर सोश्ल मीडिया मे काफी चहल - पहल मचाए हुए है | इसके अनेक कारण है - पहला तो यह की नेहरू गांधी परिवार धार्मिक नहीं है इस "”विश्वास " को राजनीतिक दलो द्वारा प्रचार किया जाना ,,दूसरा यह की परिवार के सदस्यो द्वारा धार्मिक स्थलो की परिक्रमा नहीं करना | समाजवादी और वां पंथी दलो के द्वरा इस प्रचार मे भाग नहीं लिया जाना ही संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेताओ के लिए इस परिवार के सदस्यो को "”अधार्मिक "” बताने और "”सोनिया गांधी से राजीव के गांधी के विवाह "” के उपरांत इन संगठनो तथा इनके द्वारा "”पालित - पोषित "” उप अंगो द्वरा इसमे "”विधर्मी - क्रिस्तान '' जैसे आरोपो को भी जड़ दिया गया |
अगर हम रामायण अथवा रामचरित मानस का अध्ययन करे तो पाएंगे की हनुमान या बजरंगबली राम के लिए भी संकटमोचक थे , सुग्रीव के लिए भी और महाभारत मे अर्जुन के लिए भी | अब ऐसे मे राहुल गांधी का सहसत्रों वर्ष पुरानी परंपरा के प्रतीक के दर्शन करना उचित था अथवा "”विवादित स्थान पर तिरपाल "” के नीचे बैठे रामलला के दर्शन करना ? समझदारी तो इसीमे है की "'संकट"” मोचन को माथा नवाया जाये | वैसे मंदिर आंदोलन के अगुआ आडवाणी या उमा भर्ती अथवा स्वयं प्रधान मंत्री भी तिपाल मे बैठे रामलला को "” वांछीत"” स्थान दिलाएँगे क्या | क्योंकि उनकी ही कृपा से तो पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है | और बीजेपी यही कहती रही है की बहुमत हो तो हम "”भव्य"” मंदिर बनवा देंगे | हालांकि वीएचपी के नेता स्वर्गीय सिंघल जी के समय जमा किए गए "”चंदे "”” का हिसाब आजतक"”” सार्वजनिक "”” नहीं किया गया है | वैसे बीजेपी या वीएचपी के नेता "”बजरंग सेना तो बनाते है --परंतु उनके स्वनयमधन्य नेता "””जय श्रीराम "”के इस अन्नय भक्त के दर्शन करने कितने बार गए ? मुझे तो नहीं याद पड़ता --सत्ता मे आने के बाद एक बार भी गए हो | बात 26 साल बाद आने की भी लिखी गयी – अब यही सवाल तो किस से भी पूछा जा सकता है | संघ के मुखिया भागवत जी ने या उनके प्रमुख सहयोगीयो ने एक बार भी चरो धाम मे से किसी एक के दर्शन किए हो ? जिनके नेताओ ने सिर्फ तीर्थ यात्रा ट्रेन चलवा कर आईटीआई श्री कर ली वे क्या जानेंगे |

लोगो की स्म्रती शायद अधिक पुरानी बात को ना याद कर पाये परंतु बताना ज़रूरी है की हनुमान गढी का इतिहास गोस्वामी तुलसीदास रचित राम चरित मानस से अधिक पुराना है | यहा के महंत हाथीनशीन रहे है --अर्थात वे सन्यासी होकर भी हाथी की सवारी करते थे --जो शासक या राजा
का वाहन हुआ करता था | अयोध्या मे सीता रसोई भवन हुआ करता था जो की सूर्यवंशी राजाओ की यादगार था | 1950 मे तत्कालीन फ़ैज़ाबाद के कलेक्टर के के के नय्यर की लापरवाही से मस्जिद मे कुछ लोगो ने तोड़ फोड़ कर "”अखंड "” रामायण शुरू कर दी | जिस से अदालत ने प्रशासन को हस्तक्षेप करने से रोक दिया | वह रामायण विध्वंश तक जारी रही | बाद मे नय्यर और उनकी पत्नी दोनों संघ के कोटे से सांसद भी बने | अब समझा जा सकता है की अखंड रामायण कैसे शुरू हुई | षड इन प्र्श्नो के उत्तर



यह सही है की पंडित जी यानि की जवाहर लाल नेहरू इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी ने धर्म का "”प्रदर्शन नहीं किया परंतु अधार्मिक नहीं थे | पंडित जी के बारे मे लोगो को मालूम था की वे नियमित रूप से योगाभ्यास करते थे | तब जबकि आज के योग व्यापारी रामदेव का उदय भी नहीं हुआ था | इंदिराजी भी योग आसान किया करती थी - उनके योग शिक्षक धीरेन्द्र ब्रांहचारी थे |
उन्होने ही देश मे पहली बार केन्द्रीय विद्यालयो मे और योग शिक्षा को अनिवार्य विषय करवाया था | उन्होने योग शिक्षको को तैयार किया था जिनहे विद्यालयो मे नियुक्त किया गया था | उन्होने भगवा वस्त्र नहीं पहना | वे कभी भी सार्वजनिक रूप से राजनीतिक मंच अथवा बयानबाजी मे नहीं पड़े | उनके ही समान पुणे के श्रीमान अय्यर थे जो याग पारंगत थे | उन्होने अनेकों लोगो को असाध्य बीमारी से योग द्वारा मुक्ति दिलाई | परंतु उन्होंमे भी अपनी विद्या का ना तो प्रचार किया और नाही "”व्यापार "” किया जैसा की आज के योग शिक्षक कर रहे है ---वह भी धर्म की आड़ मे भगवा वस्त्र पहन कर | इन्दिरा गांधी और राजीव ने अपने धर्म के बाहर के लोगो से विवाह किया ----परंतु विवाह वेदिक रीति से ही सम्पन्न हुए | इन्दिरा गांधी के विवाह को तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था | राजीव गांधी के विवाह मे प्रख्यात कवि हरिवंस रॉय बच्चन का बंदोबस्त था |


भारतीय जनता पार्टी के-मुखर नेता सुबरमानियम स्वामी की पुत्री ने भी मुस्लिम से विवाह किया है | बाला साहब ठाकरे के परिवार की एक सदस्या ने भी मुस्लिम युवक से विवाह किया है | इन लोगो को कभी भी "”विधर्मी "” संज्ञा से नहीं नवाजा गया क्यो ? शायद इन प्रश्नो के उत्तर कोई नहीं देगा और इस इतिहास को कोई झुठला भी नहीं सकेगा