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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 7, 2019

मुकदमा देशद्रोह का और जांच तीन साल पर सरकार की मंजूरी नदारद !!na


मुकदमा देशद्रोह का और जांच तीन साल पर सरकार की मंजूरी नदारद !!na



जवाहरलाल नेहरू यूनिवरसिटि के छात्र कन्हैया तथा उमर खालिद और अनिरवन भट्टाचार्य पर 9 फरवरी 2016 में देशद्रोही नारे लगाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया | परंतु 6 फरवरी 2019 को पटियाला हाउस अदालत ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाते हुए जल्दी से जल्दी हुए चार्जशीट दाखिल करने का निर्देश दिया | पुलिस का कहना था की इस मामले में मुकदमा चलाने की सरकार की अनुमति उन्हे अभी तक नहीं मिली हैं | यानि जांच बिना आवश्यक अनुमति के ही चलती रही ! वाह
चैनल और अखबा

र तथा सोशल मीडिया में इन तीनों छात्रों को गिरफ्तारी के समय भारतीय जनता पार्टी और उसकी मात् संस्था राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के कट्टर आलोचको को गद्दार से लेकर अनेक उपमाएँ दी गयी | यानहा तक अदालत में इनके साथ काला कोट पहनने वाले संघ के कार्यकर्ता वकील ने पुलिस की मौजूदगी में मारपीट भी की | तब पुलिस ने अच्छी कुट्टाई के बाद ही बीच -बचाव किया | खैर यह तो होना ही था क्योंकि विध्यार्थी परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अथक प्रयासो के बाद भी छात्र संघ के चुनाव में मात खाते रहे | अब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा पर यह दूसरा हमला था | पहला आक्रमण अरविंद केजरीवाल ने मोदी जी के घनघोर और घटाटोप प्रचार और पैसा बहाने के बाद भी विधान सभा चुनाव में 2 सीट पर ही जीतने दिया | 2014 के लोकसभा चुनावो का दिग्विजयी घोडा दिल्ली में एक नौसिखिये राज नेता ने बंदी बना लिया 
| अब पंत प्रधान दिल्ली को दुश्मन मानने लगे थे |



दिल्ली प्रदेश सरकार अन्य राज्यो की सरकार की तुलना में अधिकारो के मामले में कमजोर हैं | क्योंकि दिल्ली सरकार के पास "”पुलिस और शांति-व्यवसथा "” के अधिकार नहीं हैं | लगेगा अचंभा परंतु है सत्य| अब यही बाँकी दिल्ली पुलिस तीनों छात्रों को देशद्रोह के अति गंभीर अपराध में गिरफ्तार करती है --- आखिर गिरफ्तारी का कानूनी आधार क्या था जब - 90 दिन में चार्ज शीट अदालत में नहीं पेश कर सके ? दिल्ली हाइ कोर्ट ने इसी बिन्दु पर तीनों को जमानत दे दी | आखिर किसके इशारे पर दिल्ली पुलिस काम कर रही थी ? केजरीवाल के कहने पर ? या लेफ्टिनेंट गवर्नर के निर्देश पर ? क्योंकि गवर्नर ही केंद्र का यानि प्रधान मंत्री का नियुक्त अधिकारी है --जैसे सीबीआई का निदेशक |
ऐसे में पटियाला हाउस की अदालत का यह आदेश की देशद्रोह का मुकदमा दर्ज़ करने के लिए "”सरकार की अनुमति आवश्यक है "” जो की पुलिस में प्राथमिकी लिखने से लेकर तक " मुकदमें की जांच तक "” नहीं ली गयी | इसका तात्पर्य यह है की केंद्र सरकार के नुमाइंदे लेफ्टिनेंट गवेर्नर की भी अनुमति नहीं ली गयी ? अब वे तो ठहरे आईएएस अधिकारी अपना हाथ और खाल बचना खूब जानते है , इसलिए उन्होने शायद ऊपर के मौखिक हुकुम को जबानी आदेश देकर काम करा दिया – अब जब ज़िम्मेदारी लेने की बात आएगी तब मामला केंद्रीय गृह मंत्रालय तक जाएगा | जनहा कानूनी बारीकी देखि जाएगी | कारण --और आधार पूंचे जाएँगे | गिरफ्तारी तो उस समय हुई जब मोदी जी की बल्ले - बल्ले हो रही थी | परंतु अब सुप्रीम कोर्ट सभी मामलो की कानूनी परख कर रहा है | ऐसे में कोई अधिकारी अपनी गर्दन इस आधारहीन मामले में फसाना नहीं चाहेगा |


स एक उदाहरण से यह तो साफ हो गया की मोदी जी के राज में किसी भी नागरिक को '’कभी भी सीबीआई उठा सकती है "” या दिल्ली पुलिस की भांति बिना सोचे - समझे देशद्रोह ऐसे गंभीर मामले में फंसा कर जेल तो भेज ही सकती है | सीबीआई तो जब किसी नागरिक को उठती हैं तब वह हफ़्तों क्या महीनो उसे अदालत में पेश नहीं करती | जब तक की वह उस आदमी से संबन्धित अपराध को "”कबूल करा नहीं लेती "” | फिर उसे ही आधार बना कर अदालत में मुकदमा चलाती हैं | यही कारण है की सीबीआई के अधिकतर मुकदमें के तथाकथित अभियुक्त अदालतों से छूट जाते हैं | 2जी स्पेकट्रूम मामले में मनमोहन सिंह से भी पूछताछ की थी ---- परंतु जब कोई सबूत नहीं मिला , तब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में कहा था मनमोहन सिंह जी के चरो ओर भ्रस्ताचर होता रहा परंतु वे बरसाती पहन कर उसमें नहाते रहे ! यह मोदी जी की मजबूरी बोल रही थी की वे सबकुछ कर के भी कांग्रेस्स के प्रधान मंत्री पर लांछन {{भले ही वह झूठा हो }} नहीं लगा पाये |
कुछ ऐसी ही हरकत कन्हैया-उमर खालिद और अनिरवन के साथ हुई है | ये तीनों ही कैम्पस में और छत्रों के मध्य राष्ट्रीयस्वयम सेवक संघ और उसकी राजनीतिक बांह बीजेपी सरकार जिसके मुखिया नरेंद्र मोदी ---- के कटु आलोचक थे | लोकतन्त्र में विपक्ष की भी आवश्यक भूमिका होती हैं | इसीलिए सदन में सदन के नेता के बाद उसका ही स्थान होता है | परंतु अधिनायकवादी सोच अपने सिवाय सभी को गलत और दोषी मानती हैं | इसीलिए मोदी जी के सहयोगी मंत्री सरकार के आलोचको को पाकिस्तान जाने की सलाह देते रहे है |

अभी -अभी सीबीआई की जांच की प्रक्रिया को लेकर काफी हल्ला मच चुका है | जिसमें पकड़ कर बैठा लेने के बाद पूछताछ की जाती है | इसके लिए उन्हे न तो कोई कानून की या अदालत के आदेश की जरूरत होती है | इसीलिए सीबीआई ने दिल्ली हाइ कोर्ट में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदम्बरम की जमानत खारिज कर उन्हे हिरासत में देने की अर्ज़ी लगाई थी ! हालांकि वे लगातार सीबीआई की पूछताछ में उपस्थित होकर उनके सवालो के जवाब देते रहे हैं | परंतु अटार्नी जनरल वेणुगोपाल ने तर्क दिया "” की वे गोलमोल जवाब देते है -सहयोग नहीं करते "| अब इस तर्क का क्या अर्थ लगाया जाये ? अदालतों में भी वकीलो की जिरह मे तथ्यो की परिभाषा अपने - अपने तर्को से की जाती है -----तो क्या अदालत भी अभियुक्तों को "” अपराध कबूल ना करने पर भी जेल भेज दे ! “ | तो यह है हमारी खोजबीन एजेंसियो की कार गुजारी |