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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jun 3, 2018


कर्नाटक मे चुनावी असफलता और तीन राज्यो मे हुए लोकसभा और विधान सभा चुनावो मे
असम्मानजनक पराजय के बाद तथा घटते जनाधार और गिरती लोकप्रियता के कारण अब सत्तारूद दल भारतीय जनता पार्टी शासित दस राज्यो मे लोकसभा चुनावो के साथ ही विधान सभा का "”मध्यवधि चुनाव "”की तैयारी मे लग गयी | ऐसा प्रयास शुरू !

उधर निर्वाचन आयोग पंचायत से स्थानीय निकायो तथा विधान सभा और लोकसभा के एक साथ चुनावो कराये जाने की कवायद की ट्रेनिंग लेने के लिए मेक्सिको अध्ययन करनी जा रहा है ! इस परिपाटी मे "””बहुमत खो देने के बाद भी सरकार नियत समय तक अपना कार्यकाल पूरा करेगी !! अर्थात बहुमत की ज़रूरत सिर्फ सरकार के गठन के समय ही रहेगी ! सरकार के गठबंधन दल अगर किसी नीति से असहमत होकर समर्थन वापस लेकर " सरकार को सदन मे अलापमात मे कर दे ,तब भी सरकार बदस्तूर चलती रहेगी !! अर्थात बहुमत "एक बार चलने वाला अष्टर ही होगा "” उसे बार-बार चुनौती नहीं बनाया जा सकता ? अविश्वास प्रस्ताव का वजूद ही खतम हो जाएगा !!!

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कर्नाटक विधान सभा के चुनावो मे मतदाताओ द्वरा किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं दिये जाने के परिणामस्वरूप ,, सबसे बड़े राजनैतिक दल होने के बावजूद येदूरप्पा को मुख्यमंत्री की शपथ दिला कर --- जोड़ -तोड़ से बहुमत साबित करने के हथकंडे के लिए राज्यपाल ने पंद्रह दिन का समय दिया था | माना जा रहा था की आम तौर पर तीन से चार दिन का समय बहुमत सिद्ध करने के लिए दिया जाता रहा है | परंतु "” अज्ञात कारणो से गुजरात के मोदी मंत्रिमंडल के सदस्य रहे "”राज्यपाल ने 15 दिन का वक़्त दिया था | समझा जाता है की उत्तर - पूर्व के राज्यो मे और गोवा मे बहुमत नहीं होने के बाद जिस प्रकार इन राज्यो मे भारतीय जनता पार्टी की सरकारो का गठन हुआ , वह विवादसपाद रहा है |
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह को "”सरकार बनाने के लिए बहुमत जुटाने का जादीगर कहा जाता है "” परंतु कर्नाटक मे उनका साम - दाम - दंड नहीं चला | विधायकों की खरीद -फरोख्त के बाते चलती रही | यानहा तक की जनता दल के नेता कुमारस्वामी ने सार्वजनिक बयान देकर आरोप लगाया की उनके विधायकों को "” 100 करोड़ और मंत्री पद का लालच देकर - येदूरप्पा के बहुमत सिद्ध करने की मतगणना के समय "”अनुपस्थित "” हो जाए ! हालांकि उम्मीद के अनुसार बीजेपी ने इस आरोप का खंडन किया | परंतु जिस प्रकार प्रो टेम स्पीकर की नियुक्ति को लेकर परम्पराओ की अवहेलना की गयी , और बाद मे हतोत्साहित येदूरप्पा ने भावुक भाषण दे कर – काँग्रेस और जनता दल के गठबंधन को "”अपवित्र और प्रदेश की जनता के साथ विश्वासघात "” बताते हुए सदन से पलायन किया -----वह साबित करता है की ,खरीद फरोख्त और सीबीआई और इन्कम टैक्स के छापो के बावजूद काँग्रेस नेता शिवकुमार का "”अचल रहना "” सत्ताधारी दल की "””येन केन प्र्कारेण सरकार बनाने की "”विद्या का तंत्र "” सफल नहीं हुआ |

इन पराजयों से आशंकित सत्तारुड दल "”अपने ब्रम्शास्त्र यानि धुंधाधर प्रचार के द्राशय और श्रवय हथियार को एक बार चला कर ही विजय श्री पाने की कोशिस मे , लोकसभा और दस विधान सभाओ मे एक साथ चुनाव कराने की कवायद कर रही है | यद्यपि संविधान के अनुसार राज्यो की सरकारे मध्यवधि चुनाव कराने की सिफ़ारिश कर सकती है | परंतु जोड़ - तोड़ से इन राज्यो मे बनी सरकारो के "घटक दल " मंत्रिमंडल मे ऐसे प्रस्ताव को सहमति नहीं देंगे | क्योंकि राजनेता को चुनाव हमेशा एक "”परीक्षा के समान लगता है "” जिसका परिणाम अनिश्चित ही होता है | इसलिए संभावना यह भी है की जनहा -जनहा भारतीय जनता की सरकरे है अथवा उनके सहयोग से सरकारे काम कर रही है ----वनहा इस उपाय का ट्रायल किया जाएगा | अब क्या परिणाम आएंगे इस बारे मे अभी कुछ कहना कठिन है |
लोकसभा चुनावो के साथ ही विधान सभाओ के चुनाव कराये जाने की संभावना का आधार विधि आयोग द्वारा चुनाव आयोग और केंद्र को सौपी रिपोर्ट है | इस अध्ययन का उद्देश्य है की "””कैसे बार - बार होने वाले निर्वाचनो से "”सरकार की पार्टी "” की असहजता को खतम किया जाये ! यद्यपि विगत 60 सालो मे {{ मोदी जी और शाह का जुमला }} किसी केंद्रीय सरकार ने ऐसी संविधान से इतर कोई कोशिस नहीं की ! सभी दल चुनाव और बहुमत का सम्मान करते रहे है ! मोदी सरकार देश की पहली सरकार होगी जो चुनावो को "”समस्या "” और "”बहुमत "” को जोड़ - तोड़ का परिणाम समझती है !! इसके बाद भी बीजेपी के नेता 60 सालो मे चुनी सरकारो को अयोग्य और नाकारा बताने का सहहस करते है ! इनकी हालता वैसी ही है --जैसे कोई छात्र एक सेमेस्टर देकर ही वार्षिक परीक्षा से मुक्त होना चाहे ! देश 1952 के प्रथम आम चुनावो के बाद 1957 फिर 1962 और 1967 तक विधान सभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ होते थे | 1967 मे राज्यो मे गैर कांग्रेसी दलो ने उत्तर प्रदेश मे चंद्र्भानु गुप्ता के खिलाफ चौधरी चरण सिंह ने दल बादल कर जन काँग्रेस पार्टी का गठन किया | बाद मे उनके नेत्रत्व मे बनी सरकार मे जनसंघ के रामप्रकाश और कमुनिस्ट पार्टी के झारखाँड़े रॉय और समाजवादी दल के प्रभुनाराइन सिंह ,यानि की समस्त गैर कोङ्ग्रेस्सी दलो ने सरकार बनाई | बिहार मे यही काम महामना सिंह ने किया ,उनके भी मंत्रिमंडल मे कम्युनिस्ट पार्टी के सुनीति कुमार शामिल थे " उड़ीसा मे विश्वनाथ दास के नेत्रत्व मे काँग्रेस से बगावत हुई , और गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल बना | विश्वनाथ दास 1937 मे बनी पहली प्रांतीय सरकार के प्रधान मंत्री थे | इन उदाहरणो का तात्पर्य यही है की गैर कांग्रेस्वाद 21 सदी की खोज नहीं है | केंद्र मे भी अटलबिहारी वाजपायी की 13 दिन की सरकार बनी फिर अल्प मतो की सरकारे देवगौड़ा और चंद्रशेखर सिंह की सरकार बनी | विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार पूरा कार्यकाल नहीं कर पायी |

परंतु इन किसी दलो या इनके नेताओ ने यह कभी नहीं सोचा की संविधान नियत संस्था की अवधि सरकार की सुविधनुसार पाँच साल कर दी जाये ! भले ही बहुमत हो अथवा नहीं हो !!!
देश की सरकार का नेत्रत्व और निर्वाचन आयोग मेकसिको की चुनव प्रणाली का अध्ययन करने जा रहा है !! सबको मालूम है की मेक्सिको की अर्थ व्यवस्था और जनसंख्या तथा उनका संविधान राष्ट्रपति प्रणाली और संसदीय प्रणाली का "””मिक्स्चर "” है |वनहा राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की सलाह मानने के लिए बाढी नहीं होता है | हमारे यानहा राष्ट्रपति को "”स्व विवेक ''के अधिकार नहीं है | छ्मादन के मामलो मे वे सरकार की सिफ़ारिश को ठुकरा सकते है ---बस | भारत राज्यो का संघ गणराजय है , वनहा मूल अधिकार स्पष्ट नहीं है | ऐसी स्थिति मे संविधान मे संशोधन किए बिना केंद्रीय सरकार द्वारा राज्यो को हाँकने की स्थिति साम्यवादी राज्यो के अनुसार है --जंहा पार्टी ही छेतरीय निकायो -प्र्देशों पर डंडा चलाती है ||