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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 26, 2021

 

ब्रेख़्त की एक कविता की लाइने हैं--की शासक अब अपनी प्रजा चुन ले


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केंद्र द्वरा सोशल मीडिया और ओटिटी पर नियंत्रण का निर्देश



लगता हैं की जनता से त्रस्त शासक अब दमन और भय के बाद लोगो को बदलने में नाकाम रहने के बाद अब ऐसी "”व्यवस्था रचना चाहता हैं ,जिसमें उसके साथी - समर्थक और जी हुजूरिए ही रह सके ! कोई भी ऐसा न हो जो जो सवाल पुछे या हक़ीक़त का आईना उसे दिखाये ! क्योंकि वह अब हारा हुआ हैं --और हिंसा की भाषा ही जानता हैं | जो राज्य और राजा का अंतिम हथियार हैं | वरना क्या बात थी की चीफ़ मेट्रोपलिटन माजिस्ट्रेट धर्मेन्द्र राणा के फैसले के बाद "””अभिव्यक्ति की आज़ादी "” को नियंत्रित करने के लिए 24 घंटे में ही मोदी सरकार के दो -दो मंत्री ,कानून और जन संचार मंत्रियो को सोशाल मीडिया पर उठ रहे सरकार के विरोध के स्वर को नियंत्रित करने के लिए ओ टी टी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया के व्हात्सप्प और फेसबूक तथा इन्स्टाग्रम पर किए जा रहे संवाद अथवा अभिव्यक्ति को "””राजद्रोह "” तो नहीं --लेकिन उसके नजदीक ला कर सरकार के विरोध में लिखने और उठने वाले स्वरो को "”अपराध "” की श्रेणी में लाया जा सके !


पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को राजद्रोह के मामले में ,जिस प्रकार भारत सरकार के अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल की भी दलील को अमान्य करते हुए , मजिस्ट्रेट धर्मेन्द्र राणा ने पुलिस की कारवाई पर टिप्पणी की "” सरकार के ज़ख्मी गुरूर पर मरहम लगाने के लिए ,देशद्रोह के केस नहीं थोपे जा सकते "” | “” ने सरकार में बैठे जी हुजूरियों के कान खड़े कर दिये | क्योंकि जब सुप्रीम कोर्ट में मंदिर का मामला हो या शाहीन बाग का हो अथवा जे एन यू और जामिया मिलिया के छत्रों का आंदोलन हो ----इन सबमें सरकार और पुलिस को ही फाइदा हुआ | दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगे में अदालत को एनडीटीवी चैनल के वीडियो रिपोर्ट के आधार पर आरोपियों को मुक्त कर दिया | जिससे यह साफ हो गया की पुलिस द्वरा बनाए गए सबूतो में सत्या नहीं है ---केवल धरम के आधार पर लोगो मारा -पिता गया और गिरफ्तार किया गया | वह भी बिना किसी ठोस सबूत के ! अदालत से रिहाई के आदेश के बाद भी , पाँच दिन बाद जेल से आरोपियों की रिहाई -----पुलिस और जेल प्रशासन की व्यव्स्था की नियत और कारवाई पर सवालिया निशान लगता हैं |


2-----क्यू यह सोशल मीडिया को नियंत्रित करने की जल्दी ?

2014 में संघ और बीजेपी के साइबर रन बाकुरो ने तत्कालीन सरकार की छोटी -चुको को रबड़ की भांति इतना फैलाया था की जैसे "”गौ हत्या का पाप "” हो गया हो | अन्न हज़ारे के आंदोलन को भी रामलीला मैदान में जगह दी गयी | प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने आन्दोलंकारियों का पानी और - सार्वजनिक सुविधा सुलभ कराई थी , शीला दीक्षित सरकार ने लोक तंत्र में विरोध के स्वर की मर्यादा का सम्मान रखते हुए ना तो मैदान के चारो ओर भाले और कील लगवाए थे ना ही आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया था |

3---- अभिव्यक्ति और आंदोलन की संविधान प्रदत्त आज़ादी के सहारे ही 2014 में नरेंद्र मोदी केंद्र में सत्ता नशीन हुए थे | नेट के जरिये साइबर दुनिया में ऐसा इंद्र जाल रच दिया गया था की लोग पंडित जवाहर लाल नेहरू के पूर्वजो और उनके धरम के बारे नयी जानकारी विकिपेडिया और व्हात्सप्प से मिलती थी | तब मनगड़ंत तथ्य ऐसे प्रस्तुत किए गए -------मानो लिखने वाला तत्कालीन समय को देखने की दिव्य द्राशटी रखता हैं |

आज ऐसी उल्जलूल तथ्यो को "” प्र्स्तवित नियमो द्वरा दंडनीय "” बनाए जाने का प्रावधान हैं |

जो लोग मोदी की आलोचना को संघ के वीरुध अपराध बताते हैं और मर्यादा हीं निरूपित करते हैं -----वे अपने बड़े नेताओ के भाषणो को पड़े और सुने – पंडित नेहरू और इन्दिरा गांधी जी के प्रति उन्होने कैसे -कैसे "”सद वचन "” सार्वजनिक रूप से उच्चरित किए हैं ! वैसे दिल्ली विधान सभा चुनावो के दौरान केंद्रीय राज्य वित्त मंत्री अनुराग ठाकुर और सांसद वर्मा के कथनो पर तो निर्वाचन आयोग भी कारवाई करने में "””असमर्थ "””रहा ! जबकि उनके कथनो के वीडियो चैनलो में भी प्रसारित हुए थे !!

4---- इस संबंध में जारी एडवाईजारी में कहा गया हैं की यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे के बारे में "”टिप्पणी करता है {{तारीफ नहीं }} जिसे उसका सीधा संबंध नहीं ----तो वह "”वांछनीय "” नहीं होगा | अब निर्वाचित जन प्रतिनिधि इस श्रेणी में आएंगे क्या ? नगर निगम – जल विभाग और राजस्व विभाग तथा पुलिस के अधिकारियों और उनके द्वरा किए गए कार्यो पर टिप्पणी की जा सकेगी ? जन सुविधाओ की कमी या उनके रझ -रखाव में लापरवाही के बारे लिखा जा सकेगा ?


5----संप्रभुता और अखंडता को हानि : - अब कोई भी टिप्पणी जो केंद्र सरकार के निर्णय पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाली टिप्पणी को भी इस श्रेणी में डाला जा सकता है क्या ? ट्रम्प की बुराई और उनके भारत दौरे के समय की घटनाओ का ज़िक्र और उसकी आलोचना को भी क्या देशद्रोह नहीं माना जाएगा ? क्योंकि जब दिशा रवि का ग्रेटा थानबारग को किया गया ट्विट्ट --जो किसान आंदोलन के समर्थन के लिए था -------उसे दिल्ली पोलिस ने देश द्रोह करार दे दिया | अब वे "””बाबू "””लोग ही तो तय करेंगे की संदेश और ट्विट्ट में की गलत हैं ? भले ही वे यह बताने लायक नहीं होगे ---की इस संदेश की "”” भाषा ---और भाव "”” क्या होगी | क्योंकि व्याकरण की जानकारी और भाषा विज्ञान नहीं जानने से काफी दिक्कत होने की संभावना हैं |

अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा की इन निर्देशों का अनुपालन क्या गुल खिलाएगा