मोदी
उवाच -
एक
पुनरावलोकन
मैं
देश का चौकीदार से --
मैं
भी देश का चौकीदार !!
अहम
से धरातल की वास्तविकता की
ओर ----------
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प्रधान
मंत्री नरेंद्र मोदी 2014
में
संसद की सीडियो पर पाँव रखने
से पूर्व एक भले शिष्य की भांति
माथा टेका था |
परंतु
उन्होने लोक सभा को कभी यह
नहीं बताया की उनकी 7000
करोड़
की खर्चीली विदेश यात्रा का
परिणाम क्या हुआ ?
भक्त
सिर्फ एक उपलब्धि गिना सकते
है – अजहर मसूद पर देश को समर्थन
!
इसके
अलावा देश की बंकों से अरबों
रुपये गबन कर के विदेश जाने
देने पर कोई जवाब नहीं |
गौ
रक्षको द्वरा उत्तर भारत में
मुसलमानो को भीड़ द्वारा मार
डाले जाने की घटनाओ पर कोई
"”पछतावा
नहीं |
गौ
मांस का सबसे बड़ा निर्यातक
देश बनने पर कोई श्रम नहीं !
सार्वजनिक
संस्थाओ को निजी हाथो में
देने की कोशिसों पर कोई बयान
नहीं !
सैनिको
की एक पद एक पेंशन की मांग पर
फूल स्टॉप |
सेना
में भर्ती में '’कटौती
'’
करने
और उनको कैंटीन की सुविधा में
कमी को क्या देश भक्ति कहेंगे
?
सरकारी
बैंक और भारत संचार निगम में
वेतन बांटने में दिक़्क़त --की
कल्पना किसी अन्य सरकार में
होती तो "””
स्यापा
पार्टी "”
छती
कुटती पर इन समस्याओ को बेरोजगारी
और शिक्षा के छेत्र में
अव्यवस्था पर तब की सरकार से
इस्तीफा मांगती "”
पर
मोदी सरकार में लोकतन्त्र
की शर्म नहीं हैं ------वह
गृह मंत्री राजनाथ सिंह के
उस कथन से साफ हो जाता हैं
-””””हमारी
सरकार में विपक्ष के मांगने
से कोई इस्तिफ़्स नहीं देता
,ऐसी
परंपरा नहीं हैं !!!””
बैंक
-
बीमा
और इन्फ्रा स्ट्रक्चर जैसे
छेत्र में अरबों रुपया डूब
गया --पर
कोई कारवाई नहीं !
बस
सनक और हनक से पार्टी और देश
को हांकने की मोदी की ज़िद्द
क्या करेगी देखेंगे !
kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkकेकेकेकेकेकेकेकेकेके
नगाड़ा
बाजा कर किसी मैदान अथवा सड़क
के किनारे
तकलीफ़ों को दूर करने की दवा
बेचने वाले की भीड़ में अनेक
तो दर्द से कराहते लेकिन नब्बे
फीसदी लोग तो तमाशबीन ही होते
हैं |
वे
उसका बयान और दवा की तारीफ और
उसके दावे सुनते है |
कुछ
लोगो को भरोसा हो जाता हैं
---वे
उसकी बातो में आकार उसकी अंजान
जड़ी -
बूटी
फाड़े की उम्मीद में खरीद भी
लेते हैं |
पर
बाकी भीड़ चल देती हैं |
क्योंकि
भीड़ जमा होना भारत में मुश्किल
नहीं |
हाँ
सड़क पर पड़े दुर्घटना ग्राश्त
व्यक्ति की मददा करने कोई भीड़
नहीं आएगी |
सब
अपने रास्ते चले जाएँगे --पर
तमाशा देखने लोग जुट जाएँगे
और कई बार जूटा लिए जाएँगे |
जैसे
चुनाव की रैलियो में
या सभाओ में |
अब
यह तो "”मदारी
"”
ही
हैं जो भीड़ से सवाल भी पुछेगा
और जवाब भी देगा |
कमाल
दिखने का वादा भी करेगा |
जैसा
देश के 2014
में
आम चुनावो में हुआ ?
अब
एक बार फिर वही शैली सवाल पूछने
की और हाथ हिलाने की मोदी जी
की सभाओ में दिखायी देने लगी
हैं |
कुछ
लोग प्रभावित भी होते है
|नरेंद्र
मोदी जी को 2022
तक
सत्ता में बने रहने का भरोसा
है |
अपनी
अंतिम मन की बात में उन्होने
ऐसा व्यक्त किया था |
पर
क्या इस बार 2014
दुहराया
जा सकता हैं ???
कुछ
मुद्दे है जिनहे हम म्परखेंगे
:-
1:-
विगत
लोकसभा चुनावो में गाँव -
गाँव
में और नगरो में मोदी जी
काला
धन विदेश से लाने की और उसे
लोगो में 15
-15 लाख
वितरित करने का बहुत विश्वास
था |
जिस
प्रकार मदारी अपनी बोलने की
कला से मजमे को प्रभावित करता
हैं ---कुछ
वैसा ही प्रभाव होता था |
नोटबंदी
हुई तब भी समाज के इस अंतिम
व्यक्ति को यह पर संतापी सुख
था की --””साले
वे बंगलो में रहने वाले अब सब
नंगे होंगे ---
बोरो
में नोट निकलेंगे --यह
भी हमारी तरह लाइन में लगेंगे
|
देश
की करोड़ो जनता परेशान हुई
सैकड़ो मौते हुई |
पर
किसी भी "”बड़े
आदमी यानि की व्यापारी – डाक्टर
---
वकील
या अफसर को नोट बदलने की लाइन
में नहीं देखा
गया
|
हाँ
नरेंद्र मोदी की माँ और राहुल
गांधी के लाइन में लगे होने
को टीवी में देखा गया !!
2;-
राम
मंदिर और गौ रक्षा के नाम पर
"”हिन्दू
ह्रदय सम्राट "”
की
छवि बनाने के लिए गोधरा कांड
के बाद हुए गुजरात में कत्ले
-
आम
का श्रेय भी अपरोक्ष रूप से
इन्हे दिया गया ----यह
कह कर की उसके बाद गुजरात में
कभी "”हिन्दी
-
मुसलमान
"”
दंगा
हुआ ?
तथ्य
भी यही हैं की नहीं हुआ |
परंतु
म्मध्य प्रदेश के मुख्या
मंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्रा
ने लिखा है की "”
दंगे
सरकार में बैठे लोगो की मर्ज़ी
से ही होते हैं "””
अन्यथा
भीड़ को क़ाबू करने में पुलिस
ही काफी हैं |
अब
इस कसौटी पर परखेंगे तो सत्या
पता चल जाएगा |
राम
मंदिर को लेकर बीजेपी ने दो
बार सरकार बनाई – पर वे और उनके
गुरु राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ ने भी इस मुद्दे को हिन्दू
अस्मिता बताया ,
जिससे
की मुद्दा गरम रहे |
परंतु
सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी
कट्टरता को थाम लिया |
इनकी
आशा थी की मंदिर और गाय मुद्दा
फिर चुनाव की वैतरणी पार लगा
देगा |
पर
दोनों ही मामले चुनाव के बाद
तक फैसले के लिए टल गए |
प्रयाग
में हुए अर्ध कुम्भ को कुम्भ
बता करा इसके इंतज़ाम पर 12,000
करोड़
ख़रच किए गाये |
की
साधु -संत
मंदिर की उनकी टेर पर अपनी टेक
लगा देंगे |
पर
ऐसा हो ना सका !!
गाय
के मुद्दे पर 2014
से
लेकर 2015
में
बजरंग दल के अनेक गौ रक्षको
ने हरियाणा – उत्तर प्रदेश
और आसाम में भी मुसलमानो को
भीड़ ने मार डाला !
मोदी
जी ने एक शाकाहारी बयान देकर
की "””
दोषी
को बकशा नहीं जाएगा "”
कहकर
इति श्री कर ली |
पर
जिस कठोर कारवाई की उम्मीद
थी वह ना हुई |किसानो
ने दूध ना देने वाली गायों को
सड़क पर ले जाकर छोड़ दिया |
फलस्वरूप
राष्ट्रीय राज मार्गो पर अनेक
आवारा गाये वाहनो से टकरा कर
मर जाती है या गंभीर हालत में
तड़पती रहती है |
गौ
शालाओ को खोलने वाले गायों
के प्रति इतने समर्पित नहीं
थे |
वैसे
संघ के समर्पित जीवनदानी
कार्यकर्ता अगर इस काम को अपने
हाथ में ले लें तो राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ देश और राष्ट्र
की सच्ची सेवा करेगा |
परंतु
वे ऐसा क्यो नहीं करते यह समझ
में नहीं आता ?
क्या
उन्हे गौ मूत्र और गोबर से
सिर्फ दिखावटी मोह ही हैं |
आखिर
विश्व सबसे बड़ा सान्स्क्रतिक
संगठन होने का दावा करने वाले
क्यो नहीं "”हिन्दी
संसक्राति "”
की
गौ माता की सेवा करते हैं ?
या
सिर्फ वे यह काम दूसरों के
हिस्से में देने का उपदेश रखते
हैं ?
यह
पाखंड ही तो हैं |
3:-
सबका
साथ – सबका विकास का नारा 2014
के
बाद मोदी सरकार के अनेक निर्णयो
से खोखला साबित हो चुका हैं
|
सरकार
के उपक्रम नागरिकों की सेवा
के लिए होते हैं |
परंतु
गुजराती आस्था में भूखे -
नंगों
की सेवा से ज्यादा भव्य मंदिर
या स्मारक बनाने में आस्था
रहती हैं |
इसलिए
उन्होने सरकारी परिवहन भारतीय
रेल को भी "”व्यापार
"”
की
इकाई बना दिया |
उसके
किराए में अनुचित बदोतरी की
|
हवाई
जहाज की तर्ज़ पर "”फ्लेक्सि
किराया "”
सिस्टम
लाये |
जिन
सज्जन ने रेल्वे बोर्ड में
अध्यक्ष रहते हुए अनेक जन
विरोधी काम किए उन्हे एयर
इंडिया का चेरमेन बना दिया
गया ---वह
भी रेल्वे से रिटायर होने के
बाद |
आज
इस सरकारी हवाई कंपनी की हालत
यह है की --सरकार
इसे बेचना चाहती है ---पर
दुनिया के बाज़ार में इसका कोई
खरीदार नहीं हैं |
ऐसी
ही हालत पाकिस्तान एयर लाइंस
की भी है उसे भी कोई खरीदार
नहीं मिल रहा हैं |
और
हमारे प्रधान मंत्री कहते
हैं की मैं चाहता हूँ की सभी
लोग हवाई यात्रा कर सके !
ऐसी
हवा -
हवाई
सिर्फ मोदी जी ही कर सकते हैं
|
अब
बैंको की हालत देखे -----राष्ट्र
का केन्द्रीय बैंक जो देश में
मुद्रा परिचालन का जिम्मेदार
होता है और वह मांग और आपूर्ति
को देखते हुए मुद्रा को नियंत्रित
करता हैं |
परंतु
नरेंद्र मोदी की सरकार ने
नोटबंदी ऐसे मसले पर जब रिजर्व
बैंक की सहमति लेना उचित नहीं
समझा तो वे कानूनी प्रावधानों
की क्या परवाह करेंगे |
पुलवामा
कांड में जब देश और मीडिया
व्यस्त था तब नोटबंदी के समय
रहे वितता सचिव जो अब रिजर्व
बैंक के गवर्नर है शशि कान्त
दास उन्होने केंद्रीय सरकार
को 26000
करोड़
रुपये की धन राशि दे दी |
अब
यह क़र्ज़ के रूप हैं अथवा लाभांश
के रूप में यह भी साफ नहीं हुआ
हैं |
पर
यह खबर दाब तो गयी "|
अब
बंकों पर रिजर्व बैंक के
नियंत्रण से भी मोदी सरकार
नाराज़ हैं |
क्योंकि
उनके उद्योगपति मित्रो को
क़र्ज़ मिलने में तकलीफ हैं |
क्योंकि
रिजेर्व बैंक ने सभी बंकों
से कह रखा हैं की यदि कोई क़र्ज़
लेने वाला दो किशते नहीं चुकाता
तो उसका मामला "”दिवाला
निकालने वाले मध्यस्थों "”
को
सौंप दिया जाये |
परंतु
इस निर्देश से अंबानी -अदानी
सहित अनेक गुजराती उद्योगपति
फंस गए |
तब
सरकार ने रिज़र्व बैंक को इस
निर्देश में ढील देने को कहा
|
जब
ऊर्जित पटेल गवर्नर थे तब
उन्होने सरकार की दखलंदाज़ी
से परेशान होकर इस्तीफा दे
दिया था "
तब
सरकार ने अपने यश मैन शशि कान्त
दास को नियुक्त किया |
अनेक
अलाभकारी बैंको को बड़े बैंको
में विलयन कर सरकार एक सबल
आर्थिक बैंक उद्योग बना ने
की बात कहती हैं |
इन
बंकों को अपनी पूंजी बदने के
लिए "”बाज़ार
"”
से
धन लाने को कहा गया |
सवाल
यह है की सरकार द्वरा नियंत्रित
इन संस्थाओ को बाजार से अगर
शेयर बेचकर पैसा उठाना होगा
----तो
इनके स्वरूप में भी परिवर्तन
होगा |
जैसा
की आइडीबीआई में जीवन बीमा
निगम का पैसा लगा कर उसके
आधार्भोत संरचना परिवर्तन
किया गया |
अब
वनहा के करमचारी अन्य सार्वजनिक
बैंको में अपना तबादला चाहते
हैं |
क्योंकि
बीमा निगम आपने तरीके से काम
चाहता है जो की "””नॉन
बैंकिंग "”
स्वरूप
का हैं |
भारत
सरकार द्वरा शुरू किए गए उपक्रम
आइसी अँडएफ़एस में भयानक घाटा
2014
से
2018
के
मध्य उठाना पड़ा |
क्योंकि
कुछ सरकार के चाहिते उद्योगपतियों
को इनकी सेवाए दी गयी परंतु
उनलोगों ने इन सेवाओ का भुगतान
नहीं किया |
जबकि
भारतीय सेनाओ के अफसरो और
जवानो के 210
करोड़
रुपये बीमा के रूप मे फंसे
हैं |
जिंका
भुगतान नहीं किया जा रहा हैं
|
यह
मओडी सरकार की सेना के प्रति
प्रेम और भक्ति !!!!!
4:-
अंतिम
स्थिति है राजनीतिक द्राशया
की – 2014
में
प्रचार की आँधी से भौचक्के
राजनीतिक दल कुछ सहम गए थे |
इस
लिए मोदी जी का घोडा सरपट दिल्ली
पहुँच गया |
परंतु
इस बार सभी दल छोटे या बड़े सभी
डिजिटल और साइबर तरीको से
तैयार हैं |
अब
बात सिर्फ इतनी ही हैं की
बीजेपी अपने धन बल से कुछ ज्यादा
धुनाधार प्रचार कर लेगी ,
वनही
काँग्रेस या अन्य पार्टीया
कुछ कम प्रचार कर पाएँगी |
जिस
सोशल मीडिया की बदौलत 2014
में
बीजेपी ने अपने विरोधियो का
चरित्र हनन किया था और अपनी
उपलब्धि बताई थी |
उसका
जवाब उन्हे कई कोनो से मिलेगा
----जो
की मात्र में उनसे ज्यादा होगा
|
बीजेपी
और मोदी जी की कोशिस यही हैं
की यह चुनाव मोदी बनाम राहुल
गांधी हो जाये – परंतु अब उन्हे
विभिन्न स्थानो पर भिन्न -
भिन्न
नेताओ से मुक़ाबला करना पड़ेगा
|
क्योंकि
विपक्ष भले ही बहुत एकजुट
नहीं हो परंतु वह मुक़ाबले पर
तो है |
अबकी
घोडा दिल्ली में खड़ा नहीं रह
पाएगा |