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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 8, 2019


कन्हा गयी

संविधान की सत्य निष्ठा से पालन करने की कसंम ---अमित शाह जी ?




संसद मैं "” यह परिपाटी हैं की झूठ "” शब्द के प्रयोग की मनाही हैं ! परंतु अनुछेद 370 को लेकर केंदतीय गृह मंत्री और बीजेपी अध्यछ अमित शाह जी ने जो बयान दिया ----वह महाभारत मैं युधिष्ठिर द्वरा "” अशव्थमा हंतों नरो वा कुंजरों "” की याद दिला देता हैं | जिस प्रकार पांडु पुत्र ने "”अर्ध सत्य "” भाषण किया था--- वैसा ही अमित शाह जी ने किया ! उन्होने कहा की इस संवैधानिक प्रतिबंध के खतम होने से देश के बाकी राज्यो के लोग काश्मीर मैं "”जमीन खरीद सकेंगे और उद्योग लगा सकेंगे "”| इससे सरकार की यह मंशा तो साफ हो जाती हैं की -----मामला मुंबई और गुजरात के सेठो को खुली छूट दे दी गयी है की , वे वनहा जमीन लेकर दुकाने खोल सके !


परंतु इस आदेश पर राष्ट्रपति के दस्तखत होते ही , सरकार मैं भागीदार सुरजीत सिंह बरनाला ने सरकार से मांग की है की हिमांचल मैं मौजूद ऐसे प्रतिबंध को हटाया जाये , जिससे की पंजाब के लोग वनहा जमीन खरीद सके ! अब देखना यह होगा की सरकार अपने सहयोगी दल की इस मांग पर क्या कारवाई करती हैं | क्योंकि हिमांचल मैं बीजेपी की सरकार हैं ! लोकसभा मैं भी इस मुद्दे पर चर्चा करते हुए यह तथ्य सामने आया की "” देश के 11 प्रदेशों मैं भी गैर इलाकाई लोगो के बस्ने या जमीन खरीदने पर प्रतिबंध हैं | विपक्ष की इस मांग पर सरकार के सदस्यो ने कहा की इन 11 राज्यो मैं प्रतिबंध को बरकरार र्कहा जाएगा ! अब इसे मोदी सरकार की एक ही मामलो मैं दुहरे मान दंड अपनाने का इल्ज़ाम सिद्ध होता हैं |

गौर तलब हैं की गैर कश्मीरियों - जम्मू अथवा लद्दाख वासियो के अलावा सभी गैर इलाकाई लोगो के जमीन खरीदने की रोक 1923 मई दरबार के आदेश से प्रभावी थी ! इस प्रतिबंध का जनम अनुछेद 370 से बहुत पहले से था | इस्का कारण था की काश्मीर के डोगरा राजा पंजाबियो द्वरा काश्मीर मैं जमीन की खरीद फ़रोख़त पर रोक लगा कर ----स्थानीय लोगो के हित सुरक्षित रखना चाहते थे | जैसा भारत सरकार उत्तर पूर्व के राज्यो मैं स्थानीय संसक्राति और उनके रोजगार के अवसरो को बचाने के लिए तत्पर हैं | फिर अमित शाह जी आपने क्या सिर्फ काश्मीर के झंडे और रंजीत सिंह संविधान और रंजीत सिंह अपराध संहिता को खतम करने के लिए ही इस प्रतिबंध को हटाया ??

2:- लोकसभा मैं सताधारी संगठन के सांसदो द्वरा अनुछेद 370 के हटाने के समर्थन मैं कहा की , इससे देश मैं एक विधान – एक निशान ही चलेगा | अभी तक काश्मीर मैं रियासत का और भारत का तिरंगा दोनों ही फहराए जाते थे | जिस प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका मैं हैं | वह भी एक संघीय संविधान के तहत 50 राज्यो का देश हैं | वनहा भी प्रत्येक राज्य का अपना संविधान और दंड विधान हैं , तब क्या वह देश एक नहीं हैं ? वास्तव मैं "”भक्तो और स्वयंसेवको तथा भा जा पा समर्थको ने देश मैं व्यापात सान्स्क्रतिक भिन्नता को एक रूपता मैं बदलने को ही देश की एकता और अखंडता का आधार मान लिया हैं | इसी लिए उनके कुछ तबको मैं अभी भी एक मांग बची हुई हैं "”” सारे देश मैं विवाह - आदि संस्कार के लिए "” एक आचार संहिता "” हो ! अब इन लोगो को देश के विभिन्न भागो मैं रहने वाली विभिन्न जातियो की परंपराए और उनके उत्सव आदि का ज्ञान शून्य हैं | हिन्दू कोड़ बिल के प्रविधानों के अनुसार विवाह की तीन श्रेणीय बताई गयी हैं :- VOIDE EB INTIO --- VOIDEBLE AND ACCEPTABLE , इनको इस प्रकार समझा जा सकता हैं , की ऐसे विवाह जो पूर्णतया अवैध है , जैसे रक्त संबंध के लड़के और -लड़की का विवाह करना , दूसरा हैं की यदि लड़के अथवा लड़की को विवाह उपरांत पता चले की उन दोनों का विवाह परंपरागत अथवा प्रचलित रिवाज के अनुसार " निषिद्ध " है , तब
दोनों ऐसे विवाह को अदालत से "”निरंक " घोषित करवा सकते हैं | तीसरी श्रेणी मैं मैं वे विवाह हैं जो समाज की परम्पराओ द्वरा मान्य है |
अब दक्षिण भारत के ब्रांहणों सहित अन्य जातियो मैं लड़की का विवाह उसके "”मामा अथवा उसके लड़के से होना -प्रथम परंपरा हैं | उनके यानहा यह परंपरा हैं की लड़की के विवाह मैं विदा होने के पूर्व उसका भाई , अगर लड़की से छोटा हैं तब बहन से वादा लेता हैं की वह अपनी पुत्री का विवाह उससे से करेगी ! यदि भाई बड़ा है शादीशुदा है तब वह यह मांग अपने पुत्र के लिए करता हैं !! अब मनु संहिता के अनुसार यह विवाह "”वैध "” नहीं हैं | मनु संहिता के चलन के उपरांत सैकड़ो सालो से तमिलनाडू और केरल मैं मैं यह परंपरा चली आ रही हैं | अब ऐसे सभी विवाहो को संसद का कानून या सरकार की कौन सी अधिसूचना रद्द कर सकेगी ???
सनातन धर्म के अनुसार व्यक्ति के प्राण जाने के उपरांत – उसके दाह संस्कार की परंपरा हैं | दशगात्र और पिंड पारायण का विधान भी हैं | परंतु तमिलनाडू मैं कडगम समर्थको द्वरा राम और कृष्ण की मूर्तिया तोड़े जाने तथा वेद और रामायण की सार्वजनिक होली जलाने के बाद --रामास्वामी नायकर ने अपने समर्थको को मंदिर जाने --देव दर्शन का बाहिष्कार करने का निर्देश दिया था | जो आज भी जारी हैं | तमिलनाडू की मुख्या मंत्री जयललिता जनम से "”पंडित " या ब्राम्ह्ड़ थी ---परंतु उनका दाह संस्कार नहीं हुआ ---वरन उन्हे दफनाया गया !!! अब सवाल यह हैं की वे सनातनी थी वेदिक धर्म को मानती थी {{ हिन्दू धरम जिसे कुछ संगठन परम धरम मानते हैं }}} अथवा नहीं ? इस सवाल का जवाब वनहा की जनता ही दे सकती हैं | भारत सरकार की अधिसूचना अथवा कोई अन्य कानून नहीं |

3:--- काश्मीर की जनता को शिक्षा और रोजगार के बेहतर अवसर का वादा ?
केंद्र सरकार ने रियसत के विलिनीकरण के समय की तथ्यो और कबयलियों द्वरा काश्मीर मैं हमले तथा उनकी परिस्थितियो का खुलासा नहीं किया | वे देश को यह बताना भूल गए की जिस रक्षा परिषद मैं युद्ध के लिए सेना भेजने के लॉर्ड माउंट बैटन के निर्देश के अनुसार ,फैसला हुआ था उसमाइन जनसंघ के जनांदता डॉ श्यामा प्रशाद मुकेरजी भी शामिल थे | फिर जब अंतराष्ट्रीय दाखल से युद्ध विराम करना पड़ा तब भी वे सदस्य थे !! युद्ध विराम एक तरफा नहीं हुआ था | जिसे सत्ता धारी दल के समर्थक प्रचार करते हैं | परंतु मजबूरी हैं की जो ज्यड़ा ज़ोर से चिल्लाता है और ज्यादा देर तक चिल्लाता हैं देश की भोली जनता उसे ही तथ्य मान लेती हैं |

जैसे देश के विभाजन के लिए संघ और उसके संगठन गांधी और पंडित नेहरू को दोष देते हैं :- वे फ्रीडम ऑफ इंडिया एक्ट के दर्शन भी नहीं करते | अन्यथा उन्हे "”” ज्ञान "” हो जाता की विभाजन तो ब्रिटेन ने ही कर दिया था | जमीन - संसाधन और सेवाए तक विभाजित हो गयी थी | जिस प्रकार रियासतो को यह अधिकार दिया गया था , उसी प्रकार शासकीय सेवाओ के अफसरो को भी यह अधिकार दिया गया था की वे जनहा चाहे चले जाये , पाकिस्तान अथवा भारत ! आज़ादी के बाद दो साल तक पुलिस और नागरिक सेवाओ मैं एक डैम से कमी आ गयी थी | जिसे संदेह हो वह आकार मुझसे मिले ,मई उन्हे दिखा दूंगा |

4:- जिस एक विधान को सरकार के सदस्य पंचम स्वर मैं गाते हैं --क्या वे इस बात का जवाब दे सकते हैं की , किन कारणो से नागा लैंड को अपने निवासियों को अलग से पासपोर्ट जारी करने का अधिकार दिया गया हैं ? वनहा भी कोई गैर नागा ना तो जमीन खरीद सकता हैं नाही बस सकता हैं , अत्रहवा ना तो कोई व्यापार अथवा उद्योग कर सकता हैं ! अरुनञ्चल - मणिपुर -त्रिपुरा आदि उत्तर पूर्व के सभी प्रदेशों मैं गैर इलाकाई लोगो पर "”पाबंदी "” वह भी कानूनी है | वैसे भी इन अशांत छेत्रों मैं वनहा के स्थानीय लोगो के संगठन जिनसे वनहा के लोग डर कर हर माह अपने वेतन से एक निश्चित मात्रा मैं "”रंगदारी "” टैक्स देने को मजबूर हैं | सड़क बनाने वाले ठेकेदार हो अथवा जंगल से लकड़ी अथवा अन्य उत्पाद ले जाने वाले व्यापारी हो उन्हे भी यह टैक्स देना होता हैं | यह हैं देश के उत्तर व्पुर्व मैं "”शांति - व्यसथा "” की हालत | यह भी एक "”संयोग "” हैं की इन सभी छेत्रों मैं भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी लोगो की सरकार हैं !!!

5 :- लोकसभा मैं इस मुद्दे पर हुई चर्चा के दौरान यह भी कहा गया की रियासत को 2004 से 2019 के दरम्यान 2 लाख करोड़ की राशि विकास के लिए दिये गए थे | जिनका उपयोग नहीं हुआ वरन इस राशि को "” बीचौलियों "” द्वरा हजम कर लिया गया |
इस संबंध मैं केंद्र द्वरा काश्मीर के साथ सौतेला व्यवहार किए जाने को भी समझना होगा | देश के उत्तर पूर्व के सात राज्यो को केंद्र द्वरा जो भी सहायता दी जाती है --- उसमाइन 90% भाग ग्रांट इन ऐड होता हैं | इसे यू समझे की ग्रांट को वापस किए जाने की बाध्यता नहीं होती | केवल उसके उपयोग का प्रमाण पत्र राज्य सरकार को देना होता हैं | मात्र 10% भाग ही क़र्ज़ के रूप मैं होता हैं जिसे सरकार को चुकाना होता हैं | यह भी सुविधा इनको दी गयी है की वे यदि नियत अवधि मैं क़र्ज़ नहीं चुका सके तो – अगली ग्रांट की राशि से उतनी राशि काट की जाती हैं |
जबकि काश्मीर के मामले केंद्रीय सहायता का 70% ही ग्रांट होता हैं शेष 30% भाग क़र्ज़ होता हैं !! अब यह भेद किस आधार पर ? क्या इस आधार पर की राज्य मैं बहुसंख्यक मुसलमान हैं !!! हालांकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इस्लाम और ईसाई धरम से "” वैमनस्य "” जग ज़ाहिर हैं , परंतु अरुंचल और नागलंद मैं बहुसंख्यक आबादी ईसाई है !! पता नहीं इस मोह का क्या कारण हैं |

6:- रियासत के पुनर्गठन के मसले को देखे तो -वह साफ तौर पर झलकता हैं की केंद्र ने बदनीयती से अगर नहीं तो साफ नियत से भी यह फैसला नहीं किया हैं | अभी तक जब भी पुनर्गठन हुआ {{ राज्य पुनर्गठन आयोग के पश्चात }} तब - तब जनता की रॉय की सहमति से ही ऐसा किया गया | कहने का मतलब जनमत संग्रह नहीं कराया गया , परंतु जिस राज्य का हिस्सा काटना होता हैं उसकी सहमति ज़रूरी होती है | छतीस गड हो या उत्तराखंड अथवा तेलंगाना सभी के लिए --- मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश तथा आंध्र की विधान सभाओ ने प्रस्ताव पारित करके केंद्र को भेजा था | पर इस बार मोदी सरकार बहुत जल्दी मैं थी , उसने यह संवैधानिक प्रावधान भी उखाड़ फेंका !!! क्योंकि छल से और बल से काश्मीर को तोड़ना था !
केंद्र के जवाब के अनुसार प्रदेश मैं विधान मण्डल स्थगित हैं , और राज्यपाल ही शासन चला रहे हैं | अतः उनकी सिफ़ारिश ही जनता की इछा है !!! वाह इस परिभाषा से तो राज्यपाल विधान सभा और लोकतान्त्रिक सरकार का विकल्प हो गया !!!!!! जबकि सुप्रीम कोर्ट के अनेक फैसलो मैं यह स्पष्ट किया गया हैं की राज्य पाल केंद्र का प्रतिनिधि मात्र है {{ निजलिंगप्पा केस }} अब कानूनी तौर पर पुनर्गठन का फैसला वनहा के निवासियों का फैसला नहीं हैं | इस मुद्दे पर भी गृह मंत्री अमित शाह जी चुप्पी साध गए | भले ही वे पाक अधिकरत काश्मीर और चीन अधिकर्ता गिलगित के लिए "” जान दे देगे "” का बयान दे , पर मुद्दो से भटका कर की गयी इस कारवाई की न्यायिक समीक्षा बाकी है | देखना होगा की अयोध्या मंदिर की तरह सबूत पेश होंगे या तथकथित विश्वास पर मामला निबटेगा ???