संवैधानिक व्यवस्था
और हक़ीक़त
चुनाव कानून बनाने वालो का –पर वे
तो सरकार बनाने लगे
अदालते न्याय
के लिए—पर वे व्यवस्था की रक्षा करने लगे !!!
विगत
एक वर्ष की घटनाए जो राज्यो में घटी ,वे कम से कम
उपरोक्त कथन को अगर शत प्रतिशत नहीं तो काफी
हद तक तो पुष्ट करती हैं |
इस अवधि में देश के विभिन्न राज्यो में विधायक चुनने की कवायद तो की गयी ,परंतु वह कानून
से अधिक “””सरकार “”” बनाने के लिए हुई !! है ना ताज्जुब !! क्यूंकी केंद्र अथवा राज्यो
की विधायिकाए अब सरकार के एजेंडे को “”पास
करने “” भर का काम कर रही है < ना की ---इस बहु धरम और रिवाजो
की आबादी की भूख – काम और स्वास्थ्य तथा सबसे अधिक कानून के राज्य की स्थापना की !!
हालिया
के राज्यो के चुनाव में –जिस प्रकार मतदाता की मर्ज़ी को रौंदा गया है – वह शायद भारत के गणतन्त्र के इतिहास का
सर्वाधिक काला पन्ना होगा ! ऐसा लगता है जब आए दिन विधायकों की खरीद – फ़रोख़त
और सरकार के बिगड़ने और बनने की घटनाए हुई है
– वे भारत के नागरिक की मंशा तो बिलकुल नहीं थी ---- हाँ चंद मुट्ठी भर नेताओ की अहं के आगे करोड़ो मतदाताओ
की अभिव्यक्ति का अपमान ही कहा जाएगा ! जिस प्रकार महाराष्ट्र में ठाकरे की मिलीजुली सरकार को गिराया गया ------- उस पर सुप्रीम कोर्ट में लगाई गयी गुहार
को जिस तरह से “” कानून के हवाले से “”दायें
– बाए “’ किया गया ,वह निश्चय ही भारतीय
नागरिक की आकांछाओ को ठुकराने के मानिन्द ही तो था !!! शिवसेना ठाकरे की याचिका पर दलबदल करने वाले विधायकों पर अगर न्यायिक कारवाई की गयी होती तब ---- बाद में
न्यायमूर्तियों को यह कहना नहीं पड़ता ----
की आप ने अगर इस्तीफा नहीं दिया होता ---तब हम आप की मदद कर सकते थे !!!!!! मतलब क्या है –क्या न्याय की समयावधि होती है ??? क्या केंद्र के सत्तारूड दल के मनोभावों को देख
कर –सुन कर – समझ कर ही क्या न्याय होगा ???
गलती हो या
अपराध कहते है –शुरुआत में ही सुधार देना चाहिए ---अथवा दोनों का विषैला प्रभाव देश और समाज पर बुरा ही प्रभाव डालेगा | वही हुआ शिवसेना को तोड़ा –सरकार बनाई – पर चैन नहीं था , राहुल गांधी की भारत यात्रा और विपक्षी दलो की पटना हुई बैठक से सत्ता का शीर्ष नेत्रत्व बहुर अधिक बेचैन हो गया
था – क्यूंकी हिमांचल [ बीजेपी अध्यक्ष जे पी नाडडा का प्रदेश
] में बीजेपी की पराजय के बाद कर्नाटक में
बीजेपी के नेत्रत्व वाली सरकार की पार्टियो
की करारी हार के बाद ----लाग्ने लगा था की
की अब सिर्फ ईडी और सीबीआई के सहारे विरोधी
दलो को ठिकाने लगाया जा सकता है !
प्रशासनिक मशीनरी के सहारे
सरकार बनाने और गिराने की कसरत ने - संविधान
निर्माताओ के सपनों को तो चकनाचूर किया ही
नागरिकों के मूलभूत् अधिकारो को भी ध्वस्त कर दिया !
और यानही पर सर्वोच्च न्यायालया की चूक ने ---केंद्र सरकार
को भले ही संतोष और आनंद दिया हो देश के करोड़ो
नागरिकों ने तो खुद को “”हंसी का पात्र समझा
“” | भारत
के इतिहास में कंस –जरासंध जैसे आम प्रजा को
सताने वाले कई उदाहरन है , परंतु उन सभी का विनाश हुआ !
परंतु मौर्य
वंश के अशोक ने तो अधिकान्स “’गणतन्त्र जनपदो की नागरिक व्यवस्था को धराशायी कर दिया था ----और बचे एकमात्र वैशाली
गणतन्त्र को अजातशत्रु ने मिटा दिया ! तात्पर्य यह की असावधान नागरिक ना तो अपनी रक्षा कर सकता है और ना ही अपने हित में निर्मित संस्था की –जैसे राज्य |
आज शायद समय पुन्ह नागरिकों की परीक्षा ले रहा है | कानून बनाने के लिए प्रतिनिधियों
को खुद ही नहीं मालूम की उन्होने जिस कानून को स्वीकरती देने के लिए , सदन में हाथ उठाया है ---उसमे उनकी कोई “”भागीदारी नहीं है !
शायद
यही कारण है की इन विधायकों को सरकार बनाने का “”टूल ‘’ भर मान लिया है | इनकी मुंडी की हाँ को खरीदने के लिए
देश के शीर्ष पर बैठे धनपतियों ने पहले ही प्रबंध करके –मीडिया और प्रचार साधनो को सत्ता की दूम से बांध दिया हैं \ इन लोगो को सरकार की योजनाओ का सर्वाधिक लाभ मिलता हैं | जैसे की सरकार
सिर्फ उन 1% भारत के नागरिकों के हितो को ध्यान में रखती
है –चाहे वह रेल हो या हवाई यात्रा | रेल सेवाओ को ज्यादा से ज्यादा नागरिकों तक पाहुचाने
के स्थान पर उनका उद्देश्य “”नौ रईसो “” के लिए सुविधा सुलभा
कराना –उदहरण के लिए , भोपाल से शुरू हुई
“”वंदे भारत ट्रेन “” इंका किराया इतना अधिक था की ---
सिर्फ दस से बीस फीसदी ही सीट के लिए यात्री मिलते है !! इस रूट पर शताब्दी और आँय मेल ट्रेनों का किराया एक तिहाई है ! अब इस रईस ट्रेन को आम यात्रियो के लिए बनाने के लिए घोषित
किराए में 30% तक किराए में कटौती तथा टिकट वापसी में किराए की रकम की वापसी का प्रावधान
किया गया !! है ना अचरज , पर मौजूदा केंद्र सरकार की दूरंदेशी
का यह एक उदाहरण है , की शासन चलाने वाले जमीनी हक़ीक़त को कितना जानते है ????