समाज के बाद क्या अब परिवार भी विघटित होंगे ?
बीजेपी और संघ के अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय की याचिका जिसके द्वरा अलपसंख्यकों के निर्धारण के लिए राज्यो की जन संख्या को "”आधार "” बनाए जाने की मांग की गयी है , के मामले में मोदी सरकार द्वरा टाल मटोल करने पर सुप्रीम कोर्ट ने 7500 रुपए का जुर्माना किया है ! जस्टिस , जिसको सरकार पूरा नहीं कर पायी | जिस पर केंद्र के रुख सेस संजय किशन कौल की खंड पीठ ने विगत 7 जनवरी को केंद्र को इस मामले में अपना पक्ष हलफनामे द्वरा रखने का अंतिम मौका दिया नाराज़ अदालत ने जुर्माने की राशि को सुप्रीम कोर्ट बार असोशिएशन क अडवोकेट वेलफेयर फ़ंड में जमा करने का हुकुम सुनाया हैं |
बीजेपी नेता की इस याचिका द्वरा धरम के आधार पर "”अल्प संख्यक "” का दर्जा देश की आबादी के आधार के बजाय राजी की जनसंख्या के आधार पर तय की जाये ! इस याचिका के अनुसार भारत के दस ऐसे राज्य हैं जनहा सनातन धर्मी अल्पमत में हैं | इनमे पूर्वोतर राज्य मिजोरम - मेघालय - नागालैंड तथा कश्मीर और लद्दाख तथा राष्ट्र के अंतिम छोर का लकशद्वीप शामिल हैं | इस याचिका का उद्देश्य नेशनल कमिसन फार माइनॉरिटि एडुकेशन इन्स्टीट्यूट एक्ट के उस अधिकार से है जिससे केंद्र को अधिकार हैं की वह अलपमत समुदाय घोसीट कर सके |
अभी तक यह व्ययस्था हैं की "” जनगणना राष्ट्रीय स्टार पर की जाती है | इसके लिए संघीय कानून हैं | उसी समय नागरिक की आयु - लिंग – जाती - धर्म और पेशा लिखा जाता हैं | फिर यह आंकड़े सांख्यिकी विभगा को जाते हैं | जो केंद्र सरकार को विभिन्न योजनाओ के लिए आंकड़े देता है , जिनके आधार पर वर्ग विशिस्ट के लिए हितकारी योजनाए बनाई जाती हैं | संघीय योजनाए पूरे राष्ट्र में लागू होती हैं | अश्वनी उपधायाय पहले से ही "”हिन्दू -हिन्दू संगठनो से जुड़े हैं | इन्हे दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए गिरफ्तार भी किया गया था |
अब अपने राजनीतिक एजेंडे को जब जन समर्थन नहीं मिला तब उन्होने अदालत के माध्यम से अपने एजेंडे को प्रपट करने की कोशिस है | मूल रूप से पहले वे धर्म के आधार पर समाज को बांटना चाहते है | यह विगत सात वर्षो में सत्तारूद दल के नेताओ द्वरा किया जा रहा हैं | पहले जिन भसनों को समुदायो के मध्य विद्वेष और नफरत फैलाने वाल जुर्म माना जाता था ---आज सत्ता के बल पर उसे अभिव्यक्ति की आज़ादी बतया जा रहा हैं |
सरकार की मुश्किल :- केंद्र सरकार अगर अपने हलफनामे में अपने नेता के समर्थन में हलफनामा दायर करके राज्यवर जनगणना को मान्यता देती हैं , तब पिछड़ेवर्ग की जातियो की जनगणना का भूत भी निकाल आएगा | जिसके लिए बीजेपी अभी तैयार नहीं हैं | क्यूंकी उसने बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की इस मांग को खारिज कर दिया हैं | दूसरा यह सवाल भी खड़ा होगा की जिले की जनसंख्या के आधार पर उस छेत्र के आलाप मत और बहुमत का निश्चय होगा क्या | राष्ट्र की एकता को धरम के आधार पर बांटने की यह चाल अगर सफल हो गयी तब यह देस को विभाजन की ओर ले जा सकती हैं | जैसा युगोस्लाविया के विघटन से आज तीन देश बन गए हैं | फिलहाल अदालत ने चार सप्ताह का
मय दिया हैं केंद्र को इस मामले में हलफनामा दायर करने के लिए |इस का मतलब हुआ की अब यह मसला मार्च में अदालत में आएगा , तब तक पाँच राज्यो के चुनाव परिणाम भी आ जाएंगे | तब देखना होगा ऊंट किस करवट बैठता है |
बॉक्स
सहमति पत्नी से सहवास की :- दिल्ली हाइ कोर्ट में न्याय मूर्ति राजीव शकधर और हरी शंकर की पीठ में चल रहे मुकदमे का फैसला भारतीय लोगो के वैवाहिक जीवन में क्रांतिकारी बदलाव का कारण हो सकता हैं | भारत के सभी धर्मो के विवाह कानून को यह फैसला बदल देगा | इन दर्जनो याचिकाओ को नारी संगठनो द्वरा दायर किया गया हैं | इन याचिकाओ में कहा गया है की विवाह के उपरांत भी महिला को यह अधिकार होता हैं की वह पति के सहवास के आमंत्रण को ठुकरा दे | अभी तक कानून में यह व्यसथा हैं की पति सहवास का अधिकार रखता हैं , जिसे वह अदालत द्वरा भी लागू करा सकता हैं |
इन याचिकाओ में कहा गया है की जब दो बालिग स्त्री और पुरुष सहमति से संभोग करते है ,तब वह प्र्क्रतिक माना जाता हैं | अगर महिला की असहमति से कोई उसके साथ सहवास करता है तब उसे "””बलात्कार "” की श्रेणी में रखा जाता हैं | याचिका कर्ताओ का कहना है की महिला चाहे अविवाहित हो या विवाहित सहवास उसकी मर्जी के वीरुध "”बलात्कार ही हैं | अब इस मुकदमें के दौरान न्यायमूर्ति शंकर ने कहा की क्या हम एक कानूनी प्रावधान को असंवैधानिक घोसीत कर सकते है ,इस प्रकार हम एक नए अपराध को जनम नहीं देंगे ? अभी तक इंडियन पेनल कोड में पति के वीरुध बलात्कार का प्रविधान नहीं है | महिला संगठनो की ओर से कहा गया की जब तक आईपीसी में यह प्रविधान रहेगा तब तक विवाह के बाद नारी की सहमति कोई अर्थ नहीं रखेगी | जब की पत्नी की सहमति को जरूरी नहीं होगी | उनके अनुसार विवाह पत्नी के सहवास के अधिकार को "””नकारने "” का साधन नहीं होना चाहिए |
गौर तलब है की केंद्र ने ऐसी ही एक याचिका के जवाब में कहा था की पश्चिम के देशो में इस प्रकार का प्रविधान है | परंतु भारत की संसक्राति और आस्थाओ के वीरुध है \| इसलिए कोई ऐसा फैसला न हो जो समाज के ताने -बाने को प्रभावित करेगा | भारत के सभी धर्मो में विवाहित जोड़ो को "”दुधो नहाओ ,और पूतो फलो "” आशीर्वाद दिया जाता हैं | इस्लाम हो या वेदिक धरम दोनों में ही खानदान और वंश का बहुत महत्व हैं | वेदिक धरम में तो विवाह को संतनुत्पाती का साधन माना गया हैं | अब ऐसे में पति को हर बार पत्नी की सहमति अनिवारी की गयी तो ,निश्चित ही तलाक बदेंगे और परिवार टूटेंगे | सनातन धर्म में लोगो को चार पुरखो तक नाम मालूम होते हैं | मुसलमानो में तो "”शीज़रा "” होता हैं जिसमें परिवार कान्हा से आया और कौन आया था इसका भी ज़िक्र होता हैं | ऐसे में पति -पत्नी के अधिकार और कर्तव्य में यह शर्त गजब ढा देगी |