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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 14, 2014

चुनावो मे विजयकी लालसा मे पराजय की संभावना भूलने का परिणाम --बंगला देश - थायलैंड-नेपाल


चुनावो मे विजयकी लालसा मे पराजय की संभावना भूलने का परिणाम --बंगला देश - थायलैंड-नेपाल

लोकतान्त्रिक देशो मे चुनावो से ही सत्ता प्रपट की जाती हैं | परंतु पिछले कुछ वर्षो मे ' जीत'' को अधिकार समझने की भूल अनेक देशो मे वनहा की राजनीतिक पार्टियो द्वारा हुई हैं | जब पराजय मुंह बाए सामने खड़ी हो जाती हैं तब इन राजनीतिक पार्टियो के पास अपनी उपस्थिती दर्ज़ करने का एक ही सहारा रह जाता हैं --समूहिक हिंसा "" | ऐसा इसलिए हो रहा हैं की राजनीतिक डालो का गठन अथवा नेत्रत्व मतदाता के मध्य से नहीं निकलता हैं | अगर वह आ जनता के मध्य से निकला भी हैं तब भी वह '''कुछ निहित स्वार्थो'''के द्वारा चलाया जाता हैं |जो अपने हितो पर कुठराघात होने पर ''कुछ भी करने को तैयार '''हो जाते हैं |

पड़ोसी बंगला देश मे अवामी लीग पार्टी की शेख हसीना संसद मे दो तिहाई बहुमत पा कर तीसरी बार प्रधान मंत्री बनी हैं |जनवरी मे हुए चुनावो मे सभी विपक्षी पार्टियो ने चुनाव का बहिसकार किया |विरोध स्वरूप जगह पर हिंसात्मक आंदोलन हुए - बाज़ार बंद कराये गए - पुलिस और सेना ने शांति बनाए रखने के लिए गोलीय भी चलायी -लोग भी मारे गए | परंतु परिणाम अवामी लीग के 150 संसद निर्विरोध निर्वाचित हुए | बंगला देश नेसनलिस्ट पार्टी की खालिद ज़िया और जनरल इरशाद की पार्टी समेत लगभग 24 पार्टियो ने चुनाव का बाहिसकार किया |इन पार्टियो की सिर्फ एक ही मांग थी ----शेख हसीना इस्तीफा दे """ क्योंकि वे हसीना की सरकार के रहते चुनाव मे सफल नहीं हो सकते |क्योंकि बंगला देश के जनक शेख मुजीबुर्रहमन -जो देश के पहले पहले राष्ट्रपति बने| सेना द्वारा उनकी हत्या कर सत्ता हथिया ली गयी | और सेना के जनरलो द्वारा चुनी हुई सरकार को हटा कर सत्ता पर क़ाबिज़ हो , गए और उनके परिवार जानो की समूहिक हत्या कर दी | उसके बाद हुए संहार मे हजारो लोग मारे गए |शेख हसीना विदेश मे होने के कारण जीवित बच गयी | जनरल जिआ उर रहमान को भी जनरल इरशाद द्वरा आपदस्थ किया गया | इस दौरान हुए चुनवो की निसपक्षता ""संदिग्ध"" थी |परंतु जहा विपक्षी दलो के नेताओ को होना चाहिए अर्थात संसद मे - वे वह न होकर सड़क पर हिंसक आंदोलन के भागी बन रहे हैं |आखिर क्यो नहीं विपक्षी चुनाव से भाग रहे हैं ? वजह साफ हैं की शेख हसीना को जनता का विश्वास प्राप्त हैं , और देश के लोग उनकी विरासत की इज्ज़त करते हैं | इसीलिए वे तीसरी बार देश का नेत्रत्व कर रही हैं | मतलब यह हैं की विपक्षी दल चुनाव के माध्यम से नहीं वरन सड़क पर धरना - प्रदर्शन कर के सत्ता प्राप्त करना चाहते हैं |

कुछ ऐसा ही हाल थायलैंड मे चल रहा हैं सोमवार को बैंकॉक मे विपक्ष द्वारा धरना - प्रदर्शन कर के राजधानी को पंगु कर दिया हैं | हालांकि प्रधान मंत्री शिंवात्रा ने फ़रवरी मे चुनाव की घोसना विपक्ष की मांग के अनुरूप कर दी हैं | परंतु अब उनकी मांग हैं की शिंवात्रा प्रधान मंत्री पद से इस्तीफा दे ,और एक सूप्रीम काउंसिल देश का शासन चलाये | अब इसका अर्थ यह हुआ की विपक्ष चुनाव नहीं चाहता हैं वरन वह चुनी हुई सरकार को हटाना चाहता हैं | लोकतन्त्र मे चुनाव के द्वारा ही सत्ता प्राप्त किया जाता हैं , परंतु यानहा तो विरोधी दल चुनाव से भाग रहा हैं | तीस हज़ार लोगो के प्रदर्शन से बैंकॉक को पंगु करके सरकार को अपदस्थ करने का यह प्रयास काफी अजीब लगता हैं | |


नेपाल मे भी चुनाव से सत्ता परिवर्तन की प्रक्रिया मे माओवादियो की करारी पराजय ने उनके नेता प्रचंड को भी अपने मे लपेट लिया | इस परिणाम से चुब्ध हो कर उन्होने दुबारा बंदूक उठाने की धम्की दी हैं | क्योंकि उनका मक़सद तो सरकार बनाने का था परंतु चुनाव परिणामो ने उनकी आशाओ पर पानी फेर दिया हैं | अब उन्होने फिर नया संविधान बनाने की बात शुरू कर दी हैं |

इस लेख का आशय सिर्फ इतना ही हैं की राजनीतिक दलो को अपनी विजय यात्रा के दौरान यह भी सोच लेना चाहिए की वे इस मुहिम मे """असफल"" हो सकते हैं | , इसलिए उन्हे निर्वाचन की प्रक्रिया अथवा मतदाताओ को दोष नहीं देना चाहिए वरन परिणाम को ठंडे मन से स्वीकार करने का साहस दिखाना चाहिए |