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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 27, 2021

 

कोरोना -पेगासास पर मोदी सरकार और सर्वोच्च न्यायालय ? ----------------------------------------------------------------------------

वैश्विक महामारी कोरोना से निपटने के लिए केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने आपदा नियंत्रण कानून के तहत सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए हैं | जब कोरोना के प्रकोप से देश में हाहाकार मचा हुआ था और हजारो लोग की मौत अस्पतालो और घर में हो रही थी , उस समय रोगियो की मौत का "””कारण महि लिखा जा रहा था "” ! अब ऐसा क्यू हुआ इसका जवाब ना तो केंद्र ने और नाही राज्यो ने दिया | जबकि दुनिया भर में यह दस्तूर है की मरीज की मौत जरूर लिखी जाती हैं | पर मोदी सरकार के निर्देश जो की मौखिक ही रहे हजारो लोग बिना मौत के स्पष्ट कारण के ही जलाए जाते रहे अथवा दफनाये जाते रहे |

जब सुप्रीम कोर्ट ने इस व्ययस्था का कारण केंद्र सरकार से जानना चाहा तब जवाब यही था की ऐसा कोई निर्देश नहीं हैं ! तब सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश रमन्ना ने निर्देश दिया की सभी कोविद मरीजो की मौत के कालम में कारण साफ साफ लिखा जाये | जब कोविड मरीजो के मौत सेर्टिफिकेट पर कारण लिखा जाने लगा | फिर सर्वोच्च न्यायालय ने इन प्रभावित लोगो को मुआवजा दिये जाने की याचिका पर मोदी सरकार से सवाल किया और पूच्छा की सरकार की क्या रॉय हैं ? तब सरकार ने कहा की कोविड मरीजो की मौत पर मुआवजा देने का कोई प्रविधान नहीं हैं | जब न्यायालय ने कहा की आपदा प्रबंधन कानून में मुआवजा का प्रविधान हैं , तब कोविड वालो को क्यू नहीं दिया जा सकता ? तब सरकार ने राज्यो की वित्तीय स्थिति का हवाला देते हुए कहा अगर मुआवजा देना पड़ा तो वित्तीय संकट खड़ा हो जाएगा | परंतु सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुआवजा नहीं दिये जाने के जवाब पर आशंतोष व्यक्त किया | तब अगली पेशी पर केंद्र सरकार ने कोविड मरीजो की मौत पर 50.000 रुपए का मुआवजा देने का ऐलान किया | शर्त यह थी की अस्पताल में भर्ती होने के तीस दिन के अंदर मौत को कोइड से मौत माना जाएगा !

मुआवजे पर सवाल उन लोगो के बारे में स्थिति अभी भी साफ नहीं हैं जिनकी मौत के कारण का "”कालम "” खाली रखा गया हैं ! क्यूकी सरकार की इस घोसना से पहले ही हाजरों लोग कोरोना से काल कवलित हो चुके थे | लेकिन सुप्रीम कोर्ट की ही पहल पर मोदी सरकार को जनता की आवाज को अमली जमा पहनाया जा सका हैं |

2- मसला था की "”पेगासास " नमक इज़राइली सॉफ्टवेअरसे मोदी सरकार ने राजनीतिक विरोधियो और पत्रकारो तथा संवैधानिक पदो पर बैठे लोगो की जासूसी करवाने के लिए उपयोग किया | जो ना केवल निज स्वतन्त्रता का हनन है वरन गैर कानूनी भी हैं | समाचार पात्रो में देश - विदेश मेय मसला उठाया गया | तब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस कोशिस को राष्ट्र विरोधी और शत्रु देशो की चाल निरूपित किया |

जब सुप्रीम कोर्ट में यह मामला आया तब सरकार ने इस सवाल को राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़ा हुआ बताया | तब अदालत ने कहा की सरकार यह बताए की क्या उसने पेगासास सॉफ्ट वेययर खरीदा है या नहीं ? तब भी केंद्र सरकार कोई संतोष जनक जवाब नहीं दे पायी | अदालत ने बार बार कहा की हम यह नहीं जानना चाहते हैं की इसका उपयोग कैसे और किन लोगो के पर किया गाय , हम तो सिर्फ यह जानना चाहते हैं की सरकार ने इस सॉफ्टवेयर को खरीदा हैं अथवा नहीं ? जब एटर्नी जनरल सरकार की ओर से निर्देश की बात करते रहे | तब सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर एक एक्सपर्ट कमेटी बनाने का ऐलान किया | अब स्थिति सरकार के लिए अजीब बन गयी हैं | क्यूंकी कमेटी के सदस्यो के सवालो के जवाब तो देने होंगे |


मोदी सरकार के अनेक निर्णयो को जिस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने समीक्षा में रख कर कारवाई करने के आदेश दिये हैं , ,उनसे यह स्पष्ट हैं की लोकतन्त्र की रीति -नीति की रक्षा संविधान के तीसरे खंबे द्वरा ही हो रही हैं | जनता जनहा पेट्रोल और बदती मंहगाई से त्रस्त है , वनही जन आंदोलन की अनसुनी का सबसे बड़ा उदाहरण दस माह से अनवरत चल रहे किसान आंदोलन हैं | देश के अनेक खेमो से संदेह की यह आवाज़ उठाई जा रही हैं की राष्ट्रीय संपति को "”किराए पर अथवा गिरवी रख कर आय उपार्जन की कोशिस की जा रही है - वह जन विरोधी और देश के लिए वांछित नाही हैं "” टेलेफोन निकाय हो अथवा भेल हो या हिंदुस्तान एरोनाटिक्स हो अथवा रक्षा उत्पादन में लगी दर्जनो इकाइयो को निजी हाथो में वह भी अदानी और अंबानी जैसे उद्योगपतियों के हाथ जिनकी आम लोगो मे छवि अछि नहीं है |

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने वैबसाइट पर "” मोदी जी जी का घिसा पिटा नारा "”सबका साथ सबका विकास "” का नारा और मोदी जी के चित्र को तत्काल हटाने का आदेश देते हुए मात्र सुप्रीम कोर्ट भवन का चित्रा लगा ने का आदेश दिया | इस्स से साफ होता है , की भूतपूर्व प्रधान न्यायाधीश रबजन गोगोई जिस तरह से सरकार के "” मुखापेक्षी "” रुख रखते थे , वैसा अब नहीं होगा | गोगोई जी ने अपने टिवेट से जिस प्रकार हिन्दू परचम को बड़ा रहे है वह किसी भी प्रकार उचित तो क्या अच्छा भी नहीं कहा जा सकता हैं

Sep 3, 2021

 

धार्मिक कट्टरता का ही परिणाम हैं -तालिबानीअफगानिस्तान 

आखिर जो नहीं होना चाहिये था -वो ही हुआ ! और अफगानिस्तान में लोकतन्त्र की शुरुआत की अकाल मौत हो गयी ! इसके साथ ही इंसानियत पर मरसिया कहने का वक़्त हो गया | सात साल तक रूस और बीस साल तक अफगानिस्तान को सभ्यता का प्रकाश देने की कोशिश नाकाम हुई ,और जिहादी हिंसा ने एक बार पुन्ह अफगानिस्तान के आम आदमी के जीवन में अंतहीन अंधेरा छा गया | मर्दो की हत्या और लड़कियो और औरतों का अपहरण अब आम हो गया हैं | जो सभ्य समाज में अपराध माना जाता हैं , वह तालिबानी हुकूमत में मुजाहिदीन का हक़ हैं ! ना कोई कानून और न कोई अदालत, बस हथियार बंद लोग डाकुओ की तरह मनमानी कर रहे हैं , जैसा की वनहा से आ रहे वीडियो में दिखाया जा रहा हैं |

अब उनकी हुकूमत कैसी होगी ? उसमें आम लोगो की भागीदारी भी होगी ? महलाओ की शिक्षा और स्वास्थ्य की गारंटी होगी ? इन सब सवालो के जवाब में हैं --- अमीर -उल मोमिन अर्थात एक ऐसा आदमी जिसे धार्मिक और दुनिया के मामले में फैसला लेने का अंतिम हक़ हैं ! उसके फैसले का आधार क्या हैं ,यह भी सवाल नहीं किया जा सकता , अगर किया तो गरदन शरीर से अलग हुई ! होने को तो एक सरकार भी होगी जो उसने ही चुनी होगी | आम आदमी की उसमें कोई भागीदारी नहीं |

अरब देशो और अफ्रीका में जिस प्रकार कबीलाई संघरश विगत डसको से चला आ रहा हैं ,मसलन यमन -सुडान और नाइजीरिया इराक और ईरान में कुर्द तथा लेबनान समेत अनेक देश इस्लाम के नाम पर कुछ फिरको द्वरा जल्लादी ज़ेहनीयत के चलते दूसरे फिरको के लोगो को सारे आम गोली मार देना और बच्चो और लड़कियो को अगवा कर लेना आम बात हो गयी हैं | नाइजीरिया में तो "”बोको हराम "” का आतंक इतना हैं की अगवा किए गए लड़के -लड़कियो को रिहा करने के लिए सरकार "”विनती " करती हैं | अब राजनीति शासत्र में एक नयी शासन प्रणाली का अध्ययन करना होगा जिसमें मोमिन का पद वंशनुगत तो नहीं होगा ---परंतु वह भी देशी मठो के महंतो की भांति अपने उतरा धिकारी को नामित करेगा !

ईरान में शाह को अपदस्थ करने के बाद दुनिया को ईरान के खोमइनी के मंसूबो का पता चला | आज दुनिया को उनके परमाणु कार्यक्रम से खतरा हैं |जैसा उत्तरी कोरिया से | इनका नेत्रत्व दुनिया को आतंकित करना चाहता हैं | दोनों ही तानाशाही खसलत के हैं | सऊदी अरब इलाके में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए यमन और इरानियों के विरोधियो को मददा करता हैं | पहले इन इस्लामिका देशो की निगाह में इज़राइल नंबर एक का दुश्मन था | पर अब बीसियों साल से उसके हाथो मात खाने के बाद अब खाड़ी के देश और सऊदी भी दोस्तना संबंध रखना चाहता हैं |

अफगानिस्तान का भविष्य :- काबुल की सरकार के पास अमेरिका के छोड़े हथियारो और गोला बारूद का जखीरा भले कुछ दिन तक तालिबानी सैनिक {जो वे है नहीं } दाग ले , परंतु उनके गोला -बारूद खतम होने के बाद कौन देगा ? वही हाल अनाज और खाने पीने की जींसों का हैं | संयुक्त राष्ट्र संघ ने चेतावनी दी हैं की अफगानिस्तान के पास सिर्फ एक से दो माह का ही राशन हैं | अगर अंतराष्ट्रीय मदद नहीं मिली तो अफगानिस्तान में यमन की तरह ही भूखमरी हो जाएगी | तब तक तालिबानी आतंकी समूह के लडाके खूब गोली चला ले और बिरयानी खा ले उसके बाद तो फाका करना पड़ेगा , अगर दुनिया के देशो की बात नहीं मानी |

खबरों में अमेरिका द्वरा अफगानिस्तान में युद्ध के छोड़े सामान को लेकर बहुत चिंता जताई जा रही हैं | सही भी हैं की जीतने युद्धक हेलेकोप्टर अम्रीका ने वनहा छोड़े हैं , उतने तो एसिया के मुल्को के पास भी नहीं हैं ! टैंक – आर्मर्ड कार तथा अन्य साजो सामान भी किसी छोटे मुल्क की सेना के लिए पर्याप्त हैं |

परंतु इन हथियारो के लिए गोला-- बारूद और वाहनो को चलाने के लिए "”तेल"” कान्हा से आएगा ? फिलवक्त तो इनका जशन मन जाएगा पर उसके बाद ??? क्या होगा | वैसे हुकुमते अक्सर ज्यादा गंभीरता से भविष्य की चिंता नहीं करती , वे बस "” यह समय निकाल जाये कुछ दिन और कुछ माह निकाल जाये , हो सकता वक़्त खुद ही कोई समाधान दे दे !! जैसे भारत सरकार का रुख हैं ! अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार को अपनी फौज के लिए साजो -समान और खनिज तेल तथा अपने आवाम या लोगो अथवा प्रजा के के खाने के लिए अनाज का बंदोबस्त करना होगा ! अफ़्गानिस्तान के तालिबन अभी तक अफीम की कमाई से अपनी मुहिम चला रहे थे, परनातू अब उन्हे कुछ हजारो लड़ाको की ही नहीं फिकर करनी हैं ,वरन मुल्क की सारी आबादी के भोजन की वयवस्था करनी हैं | वरना देरी होने पर यानहा भी यमन और सुडान जैसे हालात बनने में देर नहीं लगेगी | और इन समस्याओ का समाधान तब तक नहीं हो सकता जब तक विश्व समुदाय को मौजूदा नेत्रत्व यह भरोसा नहीं दिला देता की वे "”सभ्य सरकार "” की भाति काम करेगे | तब तक ना तो विश्व समुदाय उन्हे "”एक हुकूमत "” के रूप में मानिता देगा और ना ही अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोशा और वर्ल्ड बैंक अफगानिस्तान को सहायता नहीं देंगे , ऐसा ही संकेत मिल रहा हैं | अल - कायदा के संगठन आइसिस खुराशन का उजडपन और आतंकी वारदात को अंजाम देने के तेवर भी मौजूदा नेरत्व के लिए कठिनाइया खड़ी करसकते हैं | माना यह जा रहा की तालिबन अपने को अफगानिस्तान तक ही सिमिटा रखना चाहते हैं , जबकि आइसिस खुरासान ने साफ कर दिया हैं की की "” वह काश्मीर पर बिलकुल बोलेगा " यह बयान भारतवर्ष के लिए चिंता का विषय हैं | क्योंकि काबुल दिल्ली से हज़ार किलोमीटर ही दूर हैं -----जो दिल्ली से केरल की भी दूरी से कम हैं ! अब यह समझना मुश्किल नहीं की अफगानिस्तान की हलचल हम पर कितना प्रभाव डालेगी ?????????