कमजोर शिक्षा तंत्र पर मायाजाल का महल
प्रदेश में शिक्षको की बेमियादी हड़ताल से एक तथ्य तो स्पष्ट हैं की प्राथमिक एवं माध्यमिक प्रणाली में व्यासायिक संस्थानों के लिए छात्र सुलभ करने की छमता नहीं हैं । यद्यपि राज्य में इंजीनियरिंग और प्रबंध तथा कंप्यूटर की शिक्षा देने के लिए संस्थानों की संख्या कुकुर मुत्ते की तरह बदती जा रही हैं । अनेक संस्थानों ने अगर विभिन्न कोर्सो में सीट बडाई हैं वन वंही अनेक नए संसथान भी खुल गए हैं । मेडिकल कालेजों की संख्या और उनमें स्थानों से पास हुए लडको को जंहा नौकरी की दिक्क़त नहीं हैं ,वंही इंजीनियरिंग और प्रबंध तथा कंप्यूटर की डिग्री लेकर इन कालेजों से निकले लड़के नौकरी के लिए मारे -मारे फिर रहें हैं । हालत यह हैं की उन्होंने साल भर में जितनी फीस जमा की हैं उतने की भी नौकरी उन्हे नसीब नहीं हो रही हैं । एक साल में जिन संस्थानों में १ . ५ ० लाख प्रति वर्ष फीस देने और इतना ही सालाना खाने रहने का ख़र्च होता हैं , मतलब तीन लाख खर्च करने के बाद अगर लडका डेड़ -दो लाख़ की नौकरी के लिये मारा -मारा फिरे यह तो दुर्भाग्यपूर्ण हैं ।
इसका कारण यह हैं की हमारी शिक्षा व्यवस्था धरातल पर बहुत कमजोर हैं । ऐसे कमजोर आधार पर व्यवस्था ने बहु मजिली ईमारत खड़ी कर रखी हैं । अब ऐसे में व्यवसायिक संस्थानों में जो कुछ कच्चा माल छात्रो के रूप में जा रहा हैं , वह प्रतियोगिता के लिए कैसे उप युक्त होगा ? यही कारण हैं की मध्य प्रदेश के छात्र आल इंडिया प्रतियोगिता में पिछड़ जाते हैं ।
राज्य में २ २ ४ इंजिनीयरिंग कालेज हैं जिनमें ९ ५ ० ० ० सीट हैं और उनमें २ ३ हज़ार सीटे खाली गयी हैं । इसका अर्थ यह हुआ की युवा लोगो को सुनहले भविष्य की यह तस्वीर अब नहीं "भा" रहा हैं । इसका कारण यह हैं की विगत चार - पांच सालो में इन संस्थानों द्वारा जो "दावे' या" " वायदे " किये गए थे वे सब "झूठे " निक़ले । कडवी सच्चाई सबके सामने आ गयी । जिसने गाँव - कस्बे के लोगो के लडको और लडकियों का भ्रम भी टूट गया । अच्छा हुआ की लोगो की ज़मीने और माताओ के गहने गिरवी होने से "शायद "" बच जाएँ ।
लेकिन एक बात न समझ में आने वाली हैं की केंद्र सरकार को लगातार इन संस्थानों में ख़ाली जाती साल दर साल की सीटो का अर्थ नहीं समझ पा रही हैं । इसका एक ही कारण हो सकता हैं की सरकार को छात्रो के भविष्य से ज्यादा अपने "नेताओ" के स्वार्थो को तरजीह देती हैं । वर्ना जिस राज्य में मौजूद स्थानों के लिए छात्र आगे नहीं आ रहे हों , वंहा नए संस्थान की इज़ाज़त देना और या फिर वर्त्तमान कालेजो में स्थान बढाने की आज्ञा देना शिक्षा जगत के लिए घातक हैं । क्योंकि सरकार के फैसले से गुणवत्ता पर कुप्रभाव हो रहा हैं । वंही ग्रामीण छेत्रो के लोगो को नक़ली सपने दिखाने वाले लोगो को बढावा भी मिल रहा हैं ।
प्रदेश में शिक्षको की बेमियादी हड़ताल से एक तथ्य तो स्पष्ट हैं की प्राथमिक एवं माध्यमिक प्रणाली में व्यासायिक संस्थानों के लिए छात्र सुलभ करने की छमता नहीं हैं । यद्यपि राज्य में इंजीनियरिंग और प्रबंध तथा कंप्यूटर की शिक्षा देने के लिए संस्थानों की संख्या कुकुर मुत्ते की तरह बदती जा रही हैं । अनेक संस्थानों ने अगर विभिन्न कोर्सो में सीट बडाई हैं वन वंही अनेक नए संसथान भी खुल गए हैं । मेडिकल कालेजों की संख्या और उनमें स्थानों से पास हुए लडको को जंहा नौकरी की दिक्क़त नहीं हैं ,वंही इंजीनियरिंग और प्रबंध तथा कंप्यूटर की डिग्री लेकर इन कालेजों से निकले लड़के नौकरी के लिए मारे -मारे फिर रहें हैं । हालत यह हैं की उन्होंने साल भर में जितनी फीस जमा की हैं उतने की भी नौकरी उन्हे नसीब नहीं हो रही हैं । एक साल में जिन संस्थानों में १ . ५ ० लाख प्रति वर्ष फीस देने और इतना ही सालाना खाने रहने का ख़र्च होता हैं , मतलब तीन लाख खर्च करने के बाद अगर लडका डेड़ -दो लाख़ की नौकरी के लिये मारा -मारा फिरे यह तो दुर्भाग्यपूर्ण हैं ।
इसका कारण यह हैं की हमारी शिक्षा व्यवस्था धरातल पर बहुत कमजोर हैं । ऐसे कमजोर आधार पर व्यवस्था ने बहु मजिली ईमारत खड़ी कर रखी हैं । अब ऐसे में व्यवसायिक संस्थानों में जो कुछ कच्चा माल छात्रो के रूप में जा रहा हैं , वह प्रतियोगिता के लिए कैसे उप युक्त होगा ? यही कारण हैं की मध्य प्रदेश के छात्र आल इंडिया प्रतियोगिता में पिछड़ जाते हैं ।
राज्य में २ २ ४ इंजिनीयरिंग कालेज हैं जिनमें ९ ५ ० ० ० सीट हैं और उनमें २ ३ हज़ार सीटे खाली गयी हैं । इसका अर्थ यह हुआ की युवा लोगो को सुनहले भविष्य की यह तस्वीर अब नहीं "भा" रहा हैं । इसका कारण यह हैं की विगत चार - पांच सालो में इन संस्थानों द्वारा जो "दावे' या" " वायदे " किये गए थे वे सब "झूठे " निक़ले । कडवी सच्चाई सबके सामने आ गयी । जिसने गाँव - कस्बे के लोगो के लडको और लडकियों का भ्रम भी टूट गया । अच्छा हुआ की लोगो की ज़मीने और माताओ के गहने गिरवी होने से "शायद "" बच जाएँ ।
लेकिन एक बात न समझ में आने वाली हैं की केंद्र सरकार को लगातार इन संस्थानों में ख़ाली जाती साल दर साल की सीटो का अर्थ नहीं समझ पा रही हैं । इसका एक ही कारण हो सकता हैं की सरकार को छात्रो के भविष्य से ज्यादा अपने "नेताओ" के स्वार्थो को तरजीह देती हैं । वर्ना जिस राज्य में मौजूद स्थानों के लिए छात्र आगे नहीं आ रहे हों , वंहा नए संस्थान की इज़ाज़त देना और या फिर वर्त्तमान कालेजो में स्थान बढाने की आज्ञा देना शिक्षा जगत के लिए घातक हैं । क्योंकि सरकार के फैसले से गुणवत्ता पर कुप्रभाव हो रहा हैं । वंही ग्रामीण छेत्रो के लोगो को नक़ली सपने दिखाने वाले लोगो को बढावा भी मिल रहा हैं ।