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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 5, 2021

 

अपराध -जांच और फैसले पर जासूसी की छाया में ,न्याय


प्रधान न्यायाधीश रम्म्न्ना का कथन की रूल ऑफ ला देश में होना चाहिए ना की रुल बाइ ला ! हाल ही में राष्ट्रिय छीतीज पर अनेक ऐसे घटनाए हुई हैं , जो "”विधि के राज्य "”” की अवधारणा को ही खंडित करती हैं | इसमे पेगासास द्वरा सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन प्रधान न्यायधीश अरुण कुमार मिश्रा सहित न्यायलय की रजिस्ट्री शाखा के दो अफसरो सहित अनेक लोगो के फोन टैप किए जाने की खबर आई हैं | और भी अनेक जजो के और प्रमुख वकीलो के फोन भी टैप किए जाने की खबर द वायर में छपी हैं |वैसे प्रमुख अखबारो और मीडिया में यह खबर नदारद हैं | क्यूंकी अधिकान्स विजुयाल मीडिया पर दो व्यापारिक घरानो का शिकंजा हैं , और उनको राज्य आश्रय प्रपट है एवं वे राज्य के सहायक हैं | कानून के पालन के कुछ अद्भुत उदाहरण पेश हैं :-

1 ---- आसाम -मिजोरम झड़प :- ऐसा उदाहरन हैं जो दिखाता हैं की संघ सरकार और राज्य सरकारो में तालमेल की कितनी कमी हैं , वह भी जब की तीनों स्थान पर बीजेपी की सरकार हैं { मिजोरम में सहयोगी हैं } | दोनों राज्यो की पुलिस सीमा पर उनकी पुलिस गोली बारी करती हैं , जबकि केंद्रीय सुरक्षा बल की वनहा तैनाती थी और पोस्ट भी थी | दोनों मुख्य मंत्री केंद्र से गुहार लगाते रहे , ओर 48 घंटे तक स्थिति विस्फोटक बनी रही | फिर दोनों राज्यो ने एक दूसरे के सांसद और अधिकारियों के खिलाफ अपने -अपने यानहा के पुलिस थानो में एफआईआर दर्ज की !! पांचवे दिन जा कर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कहने पर एफ आई आर से वीआईपी लिगो के नाम हटाये गए !

सवाल हैं की नेताओ के कहने पर मुकदमा दर्ज़ किया जाना और फिर उनके कहने पर नाम हटा देना -------विधि का राज्य हैं ?यह एक झांकी हैं की पुलिस किस प्रकार मुकदमे दर्ज़ करती हैं और किस प्रकार नाम हटती हैं | आईपी सी और सी आर पीसी की धाराए अब गरीबो और उन लोगो के लिए हैं जो सरकार से सवाल पुछते है या उनके फैसलो की खिलाफत करते हैं | जैसे भीमा कोरे गाव्न के आरोपी ,जिनहे बिना मुकदमा चलये साल से बंदी बना रखा हैं |

2:--- विधि के शासन का अर्थ हैं की राष्ट्र के कानूनों के तहत की शासन कारवाई करे | परंतु राज्यो में खास कर उत्तर प्रदेश में सरकार की शह पाकर पुलिस और प्रशासन कारवाई करता हैं वह प्रमाण है की शासन ना तो रूल ऑफ लॉं का पालन कर रहा हैं और नाही रूल बाइ लॉं हो रहा है | किसी भी आरोपी को एन काउंटर कर देना और तो और उसके घर को बुलडोजर से तबाह कर देना ! अब किस कानून के तहत पुलिस किसी भी आरोपी का घर नेस्तनाबूद कर सकती है ,वह कानून तो ना दंड संहिता हैं और नाही प्रक्रिया संहिता में ! बस राजनीतिक आकाओ के हुकुम को ही कानुन से ऊपर मानकर प्रशाशन काम कर रहा हैं |

3:- उत्तर प्रदेश की पुलिस की कारवाई अनेकों बार हाइ कोर्ट के निर्देशों के बाद भी नहीं सुधर रही हैं , छहे वह उन्नाव की रेप पीड़ित महिला का मामला हो अथवा बदानयू की छोटी जाती की लड़की के रेप और हत्या का मामला हो , जिसमें शव को रात को जबरन जला दिया गया ,जिससे पोस्ट मार्टम ना किया जा सके | और हक़ीक़त सामने ना आजाए | अब पुलिस ने जन आक्रोश को देखते हुए और मंत्री के निर्देश के बाद ऊंची जाती के कुछ लोगोकों गिरफ्तार तो किया हैं , परंतु पोस्ट मार्टम के अभाव मे रेप और हत्या के सबूतो के अभाव में अभियुक्तों को सज़ा मिलना मुश्किल हैं |

4:- राजनीति के अपराधी करन की मिसाल बलविंदर सिंह उर्फ बबलू को उत्तर प्रदेश की बीजेपी में सदस्य बनने से मिलती हैं | बबलू को बीजेपी संसद और पूर्व मुख्य मंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा की पुत्री रीता बहुगुणा का घर जलाने के आरोप में मुकदमा चला और दोष सिद्ध हुआ | उसके बाद उनका सत्तरूद दल में शामिल होने का एक ही कारण हैं की वे "” मुख्या मंत्री आदित्यनाथ की जाति के हैं यानि छ्तृय हैं | जिंका इस समय राज्य में बोलबाला हैं |

5:- पुलिस और जिला प्रशासन कितना कानून के अनुसार चल रहा हैं ,उसका उदाहरण राज्य के पंचायत और ज़िला परिषद के चुनावो से मिलता हैं | साधारणतया चुनाव में नामजदगी दाखिल करने के स्थान पर पुलिस की तैनाती प्रत्याशियों की सुरक्षा के लिए होती हैं | परंतु इन चुनावो में डिप्टी कलेक्टर ने पुलिस तो राखी परंतु केवल सत्ताधारी दल के उम्मीदवारों के लिए | अन्य उम्मीद्वारो को नामजदगी का पर्चा दाखिल करने से इनहि पुलिस वालो का उपयोग हुआ | जब बीजेपी और आँय डालो के प्रत्याशियों में विवाद हुआ तब पुलिस चुपचाप देखती रही | किसी के भी खिलाफ "”” कर्तव्य पालन में कोताही "” के लिए कोई कारवाही नहीं हुई ! क्या यह विधि के अनुसार अथवा विधि का शासन हैं ?

योगी आदित्यनाथ के समय में केवल लखीमपुर खीरी में चुनाव के दौरान महिला प्र्तयशी की धोती खिचने का वीडियो वाइरल हो जाने के कारण "निलंबित किया "” अब उनकी तैनाती कान्हा हैं यह पता करना होगा |

तो यह हैं आज के लोकतन्त्र में विधि शासन की हालत | केंद्र ना तो आठ माह से दिल्ली के मुहाने पर धरना दे रहे किसानो का मसला हल कर रहा हैं और ना ही पेगासास में अपनी भूमिका को उजागर कर रहा हैं | जब देश के दो औद्यगिक घराने 52 टीवी चाइनलों को नियंत्रित करें तब सरकार की गल्तियो को सबके सामने लाने में देर तो होगी पर सच तो सामने आएगा ही |