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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 19, 2015

लोकतंत्र मे क्या सभी संवैधानिक पद निर्वाचित ही होते है ?

लोकतंत्र मे क्या सभी संवैधानिक पद निर्वाचित ही होते है ?
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राष्ट्रिय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून को असंवैधानिक घोषित किए जाने पर केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा की गयी टिप्पणी "”” गैर निर्वाचित लोगो द्वारा का निरंकुश नहीं बन सकता भारतीय लोकतंत्र "”” इतनी अधिक अनपयुक्त ही नहीं वरन इस संवैधानिक निकाय के प्रति असम्मानजनक है | उनका यह आक्रोश इस लिए भी अधिक है की मंत्री बनने के पूर्व सुप्रीम कोर्ट मे वकालत करते समय उन्हे अनेकों बार "””मनचाहा "”” फैसला नहीं मिला था | इतना ही नहीं वरन न्यायिक पीठ पर आसीन न्यायाधीशों से मर्यादा पूर्ण व्यवहार भी नहीं किया था | ब्लड शुगर के मरीज जेटली को अक्सर उतेजना मे देखा जा सकता है |

नियुक्ति आयोग का प्रस्ताव उन्होने संभवतः "”कमिटेड जुडीसियारी "”” के उद्देश्य किया था | इस हेतु सभी दलो के नेताओ से समर्थन भी मिला था ,, जो राजनीति से बाहर रहने पर अदालत मे काला कोट पहन कर वकील का व्यवसाय करते है | एक सरसरी नज़र डालने पर सहज मे ही इस बात की सत्य सामने आ जाएगा | काँग्रेस के कपिल सिब्बल हो मनीष तिवारी , सलमान खुर्शीद , चिदम्बरम है तो बीजेपी के रविशंकर सिन्हा है राम जेठमलानी है , ये विभूतिया ना केवल कानून बनाने का काम करती है वरन उसके असली उद्देश्य को भी अदालत मे बहस के दौरान निरूपित करते है | जेटली जी ने जिस प्रकार की प्रतिकृया दी है वह "”नितांत अनावश्यक और अवांछित ही है "”” | सुप्रीम कोर्ट का अभिमत ना केवल अंतिम है वरन इसकी अपील भी नहीं की जा सकती | ऐसी स्थिति मे केन्द्रीय मंत्री का आक्रोश मौजूदा वातावरण मे उचित नहीं है | अभी हालल मे ही बीजेपी अध्यकष अमित शाह ने बीफ और दादरी तथा बाबरी मसलो पर बे वजह बयान देने के लिए महेश शर्मा - साक्षी महराज - संगीत सोम की ''कान खिचाई ''' प्रधान मंत्री के निर्देश पर की थी | इन लोगो ने देश के वातावरण को जहरीला बनाने वाले बयान दिये थे | यद्यपि इस लाइन मे योगी आदित्यनाथ और महिला भगवा धारी को दाँत - डपट की जानी बाक़ी है |
उन्होने कह दिया की गैर निर्वाचित लोगो का निरंकुश तंत्र ---देश का लोक तंत्र नहीं बन सकता ,, वे आवेश मे भूल रहे है की हमारे संविधान निर्माताओ ने "”रोक और संतुलन ''' का सिधान्त रखा है --तीनों निकायो के मध्य | इसीलिए संसद के असंवैधानिक कानून को सुप्रीम कोर्ट ''निरसत ''' कर सकती है |अब इस शक्ति को यदि निर्वाचित सांसद को ''नियंत्रित करना चाहेंगे तो संभव नहीं | रही बात निर्वाचन की ----क्या प्रधान मंत्री निर्वाचित है अथवा मंत्री निर्वाचित है ?? वे केवल सांसद के रूप मे निर्वाचित है | महालेखा नियंत्रक - महान्यायवादी ऐसे संवैधानिक पद है जिनकी नियुक्ति होती है वे निर्वाचित नहीं है | संविधान "”संप्रभु "” है संसद नहीं " वह तीन मे से एक निकाय है बस बात इतनी सी है की कार्यपालिका भी उसी से जनम लेती है | पर इस तथ्य से वे राष्ट्रपति के ऊपर नहीं हो जाते ---भले ही वे अधिकतर विषयो मे सरकार की सिफ़ारिश मानने के लिए बाध्य हो | परंतु फिर भी "””एका बार तो वे सरकार की सिफ़ारिश को ठुकरा ही सकते है "”” जैसा प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने किया था --हिन्दू कोड बिल को वापस कर के }और उनका सुप्रीम कोर्ट को ''गैर निर्वाचित लोगो का "”निरंकुश तंत्र कहना तो अत्यंत आपतिजनक है "”










जेटली जी के आक्रोश का कारण इसलिए भी हो सकता है की इस समय केन्द्रीय सरकार के सम्मुख 120 जजो की नियुक्ति की सिफ़ारिश की फाइल लंबित है | जिसकी सिफ़ारिश "”कालेजियम "”” ने कर रखी है | अब अगर ऐसे मे सरकार उसमे काट -छांट करती है तो उसकी ''”नियत "””पर संदेह होगा की वह "”संघ और बीजेपी समर्थको से अदालत को भर देना चाहती है "”” | इसके अलावा 400 जजो की नियुक्ति भी होनी है | इस प्रकार सम्पूर्ण न्यायपालिका मे सरकार समर्थको की ''फौज'' खड़ी किए जाने का संदेह राजनीतिक छेत्रों मे व्यक्त किया जा रहा था | अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार के पास विकल्प है --पुनः संविधान मे संशोधन | जिसके लिए सरकार को काँग्रेस और उसके समर्थक दलो की जरूरत होगी | काँग्रेस ने इस मसले पर "”कोई भी सहयोग सरकार को देने से मना कर दिया है "””|
वस्तुतः यह विधायिका और अदालतों मे दखल रखने वाले सांसदो के लिए प्रतिस्ठा की बात होती है | क्योंकि कई बार वे प्रशासनिक कठिनाइयो को अदालत के माध्यम से सुलझा देते है | यह उन्हे धन और मान दोनों ही दिलाता है | सुप्रीम कोर्ट मे इन लोगो की प्रति पेशी की फीस "”लाखो रुपये "”होती है | जिस पर आज तक कोई नियंत्रण का कानून नहीं बना है | डाकटरो की चार्टर्ड अकाउंटेंट हो या आँय कोई व्यवसाय हो उसके उद्देस्य होते है | कहने को अडवोकेट ओफ़्फ़िकेर्स ऑफ ला होते है --- परंतु कानून से अधिक वे मुवक्किल के प्रति वफादार होते है | इस संदर्भ मे अनेकों मुकदमे बताए जा सकते है -परंतु उसका जवाब दिया जाएगा "””' वह हमारी व्यवसायिक प्रतिबद्धता है "”” |

यह तथ्य है की जजो के वीरुध भ्र्स्टाचार के मामले सामने आए है | उनमे सुप्रीम कोर्ट ने उतनी प्रभावी कारवाई नहीं की जितनी की उम्मीद की जाती थी | शायद यह भी एक कारण रहा होगा राष्ट्रिय न्यायिक नियुक्ति आयोग के प्रस्ताव को लाने मे | परंतु जजो के खिलाफ कारवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट को खुद से आगे आकर कोई प्रक्रिया निर्धारित करनी होगी ,,अन्यथा एक समय आएगा जब सभी राजनीतिक दल एक हो कर कोई सख्त कदम उठाए | वर्तमान मे जज को हटाने के लिए "”महाभियोग " की प्रक्रिया ''काफी दुरूह "” साबित हुई है | भले ही कोई आंतरिक व्यसथा हो परंतु यदि किसी जज की सार्वजनिक रूप से छवि ऐसी बन गयी की वह "”निसपक्ष "” नहीं तब उसका तबादला करना जरूरी हो जाता है | एक मुख्य न्यायधीश के वीरुध यह आम धारणा बन चुकी है की वे सरकार को '''जरूरत''' से ज्यादा बचाने की मुद्रा मे रहते है | हरियाणा की एक जज के घर से लाखो रुपये मिलना और मद्रास हाइ कोर्ट के एक जज द्वारा अमर्यादित व्यवहार करना आदि ऐसे अनेक उदाहरण है जो यह तो इंगित ही करते है की सर्वोच्च न्यालाया मे "””सब कुछ ठीक ठाक "” नहीं है |

इस संदर्भ एक महत्वपूर्ण तथ्य है की अनेकों बार हाइ कोर्ट के फैसले सुप्रीम कोर्ट मे "”उलट जाते है "”” ,,क्या इसका कारण संबन्धित जज की "”योग्यता छमता और ईमानदारी "”” पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाती है ?? पुलिस द्वारा दायर किए जाने वाले मुकदमे मिस्टर अभ्युक्त के निर्दोष साबित किए जाने के अदालती फैसले के बाद उस अफसर से जवाब -तलब होता है | परंतु यहा तो जजो ने यहा तक कह दिया "”की अगर हमारा फैसला गलत भी है तो हमरे खिलाफ कोई कारवाई नहीं हो सकती | सही है कोई कारवाई नहीं हो सकती क्योंकि उन्हे "”न्यायमूर्ति "” बुलाते है | पर विगत साथ सालो मे न्यायपालिका की छवि काफी ''धुंधली '' हुई है |लेकिन इसके लिए विधायिका के राजनीतिक सदस्यो को यह हक़ देना की वे अदालतों को ठीक करे करना वैसा ही होगा --जैसा की बंदर के हाथ उस्तरा देना |