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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 8, 2020

 

युद्ध की तैयारी -किराए की तलवार से --,नई रक्षा नीति !




चाणक्य नीति कहती हैं की - युद्ध के पूर्व शत्रु की शक्ति और उसके ठिकाने का पता लगाने के लिए भेदिये की मदद लेनी चाहिए | एवं शत्रु को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए | नेत्रत्व में समझ -साहस और आत्मनियंत्रण के गुण होना आवश्यक हैं | देश इस समय पाकिस्तान के छापामार युद्ध की शैली से परेशान हैं | नेत्रत्व शत्रु को धर्म से जोड़ कर इस युद्ध को लड़ रहा हैं , परंतु सीमा पर विस्फोट की घटनाए होती जा रही हैं !

ऐसे में वायु सेना के एयर मार्शल भदौरिया का देश के लोगो

को यह संदेश देना की "”हम दोनों मोर्चो पर लड़ने को तैयार हैं "” कुछ बड्बोलापन ही हैं | फौज की यूनिट के लोगो को यह संदेश देना उनके साहस को बदने वाला हो सकता हैं , परंतु नेताओ की भांति देश को सार्वजनिक रूप से संबोधित करना -कतई उपयुक्त नहीं हैं | क्योंकि अगर आज का भारत पहले वाला नहीं हैं , तब यह भी सोचना चाहिए की चीन भी पहले वाला नहीं रहा | आज वह एक विश्व शक्ति हैं ,जो अमेरिका को आंखे दिखा रहा हैं | फिर क्या केवल राफेल विमान हमे वायु युद्ध में जीत दिला पाएंगे | हमको ये विमान आफ़सेट मूल्य पर मिले हैं | जबकि चीन के यानहा युद्धक विमान बना रहा हैं | जबकि हमको राइफल और उसकी गोलीया भी अमेरिका से मंगानी पद रही हैं ! हमे याद रखना चाहिए की अंतिम युद्ध जमीन पर ही लड़ा जाता हैं | द्वितीय विश्व युद्ध में हम देख चुके हैं "”डी"” डे ऑपरेशन समुद्र के जरिये नाजी जरमनी द्वरा फ्रांस पर क़ब्ज़े के छेत्र को आज़ाद कराया था | वनही जापान को युद्धक शक्ति से खीजे राष्ट्रो ने आखिर में आण्विक बम का इस्तेमाल कर घुटने टेकने पर मजबूर किया | परंतु आतंसमपर्ण के लिए उन्हे जापान के तट पर पोत में जनरल डगलस मैकआर्थर को जाना पड़ा |

कहने का आशय यह हैं की जिस प्रकार किश्तों में हम जवानो के लिए हथियार और साजो - सामान खरीद रहे हैं , वह हमको तात्कालिक वितीय भर से बचा ले , परंतु जब तक हम राइफलो के लिए गोली और टोपो के लिए गोले बनाने की छमता देश में निर्मित नहीं करते तब तक ---यह कहाँ की हम दोनों मोर्चो पर लड़ने के लिए तैयार हैं और सफल होंगे ! हमने देश की आयुध निर्मणियों को सुधारने के बजाय उन्हे ठेके पर देने का प्रस्ताव पर विचार करना शुरू कर दिया | देश को "”आत्मनिर्भर"”” की ओर ले जाने का प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का यह नारा , कनही जुमला बन कर न रहा जाये | आयुध निर्मणियों के बनाए सामाग्री को हमारी सेना के अफसरो ने "”कंडाम" बतया हैं | इस बात की पूरी संभावना हैं की स्वदेश में निर्मित साजो - सामान उतना सटीक और बड़िया ना हो , पर क्या हम अपनी माता के बनाए भोजन को होटल के खाने से तुलना करेंगे ? यह होना तो नहीं चाहिए ------पर समाचार पात्रो में छपी खबरे तो यही इशारा कर रही हैं !



प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के देशवासियों को आत्म निर्भर के आवाहन के मध्य देश की रक्षा नीति में एक बड़ा बदलाव किया गया हैं | इसके तहत विदेशो से हथियार पाने के लिए अब सरकार "कांट्रैक्ट "” करेगी | सवाल यह हैं की जब रफाल विमान सौदे पर सी एजी ने आपति उठाई की विमान कंपनी ने आफ़सेट शर्त का अनुपालन नहीं किया | यह रिपोर्ट हाल में हुए संसद के आभासी सत्र में आया | आफ़सेट शर्त का अर्थ होता हैं की की हथियार विक्रेता को, उसे मिले मूल्य का निश्चित भाग देश में ही "”शोध अथवा कल - पुर्जे के निर्माण " में निवेश करना होता हैं | इससे धीरे - धीरे देश में उस हथियार के सामानो की आपूरतू घरेलू बाजार से ही हो जाती हैं | जिससे देश आत्म निर्भर हो सकता हैं | परंतु अमेरिकी कंपनियो को यह शर्त नहीं भाति हैं | क्योंकि इससे उनके घरेलू बाजार में हेलिकॉप्टर या विमान अथवा नौसेना के जहाज के कल पुर्जे बनाने वाली इकाइया प्रभावित होती हैं | इसलिए केंद्र सरकार ने खरीद के बजाय "”लीज " पर इन युद्धक सामानो की आपूर्ति करने का रास्ता निकाला हैं |

यह रास्ता मुझे एसियाई खेलो में सामानो की आपूर्ति की ही भाति का घोटाला होने की संभावना लगती हैं | एसियान गेम्स महासंघ के आद्यकश सुरेश कलमांदी पर भी ऐसे ही आरोप लगे थे | जब प्रिन्टर और कम्पुटर तथा एयर कोंडीशनर आदि को किराए पर या कहे "”लीज "” पर लिया गया था | बाद में जांच में पाया गया की उन वस्तुओ की कीमत से कनही अधिक लीज रेंट का दाम था ! स्पष्ट हैं की ऐसा सामान आपूर्ति कर्ताओ को अनुचित लाभ पाहुचने के लिए किया गया था | अन्यथा सिर्फ रख - रखाव नहीं करना पड़े , मात्र इसी लिए लीज पर सामानो को लेकर वित्तीय नियमो की अवहेलना की गयी थी | आज भी सरकारी मंत्रालयों में कार रखने के बजाय अधिकारी टॅक्सी का उपयोग करते हैं | जो दीर्घ काल में कार की कीमत से अधिका का भुगतान होता हैं | राज्यो में भी यही परंपरा हैं | गरमियो में कूलर जब दफ्तरो में लगते हैं तब उनका भी किराया उसके वास्तविक मूल्य को एक गर्मी में चुका देता हैं | आपूर्ति करता को दूसरे साल से वह कूलर मुफ्त का पड़ता हैं | यह चलन सरकारी अस्पतालो में बड़ी - बड़ी मशीनों के मामलो में भी हैं | रेड क्रॉस अस्पतालो में रख -रखाव की अपनी ज़िम्मेदारी से बचने के लिए "” किराए पर "” लेने को आसान बताते हैं | उनके अनुसार रख -रखाव के लिए कंपनी अपने तकनीकी करमचरियों को भेजती हैं , मशीन ठीक चले यह उसकी ज़िम्मेदारी हैं | परंतु जितने दिन मशीन के खराब होने से नागरिकों को परेशानी होती हैं ---उसका कोई ज़िक्र तक "”किराए के अनुबंध "” में नहीं होता ! वह अफसरो से कंपनी के लोग कह सुन कर निपट लेते हैं ! बस यही "”निपट लेने में ही भ्रस्ताचर छुपा होता हैं | क्योंकि दंडात्मक शर्त के होने के बावजूद उसका पालन नहीं किया जाता | कुह ऐसा ही रक्षा मंत्रालय द्वरा हमारी सेनाओ के हथियार और वाहनो की आपूर्ति में भी हैं | पहले विदेशो से आयात कर्ता पर यह शर्त हुआ करती थी की वह निश्चित भुगतान के एक भाग को भारत में शोध और पुर्जो के बनाने में लगाएगा | इन्दिरा गांधी के जमाने में "”सुपर प्रॉफ़िट "” यानि 100 प्रतिशत से ज्यादा लाभ कमाने वाली कंपनियो को सौ प्रतिशत के ऊपर कमाए गयी राशि को भारत में ही निवेश करना पड़ता था | हथियारो की आपूर्ति में भी यह नियम लागू था | परंतु मौजूदा सरकार ने अमेरिकी कंपनियो के दबाव में , जो की सैन्य साजो सामान की सबसे बड़े आपूर्ति कर्ता हैं , उनको लाभा पाहुचने के लिए यह शर्त हटा ली और नाम दिया "”आफ़सेट " खरीद ! जबकि रूस - फ्रांस से खरीद सरकार से सरकार बीच होती हैं | राफेल के मामले में भी महालेखा नियंत्रक ने अपनी रिपोर्ट में कहा की राफेल ने अपने "””देय"”” का भुगतान या निवेश भारत में नहीं किया हैं | आगे पाठक स्वयं सोच सकते हैं |