सुपर
रिच टैक्स बनाम कोरोना सैस
-नयी
श्रम नीति मजदूर विरोधी
केन्द्रीय
राजस् घाटे को दूर करने के लिए
50आयकर
अफसरो की टीम ने
सुपर रिच -यानि
की एक करोड़ सालाना से अधिक की
आय वालो पर तीस प्रतिशत कर
लगाने का सुझाव दिया था |
वित्त
मंत्रलाय इस टीम के उन अफसरो
से इतना नाराज हुआ की पाँच
अफसरो को हटा दिया गया |क्योकि
इस श्रेणी में वे सभी लोग आ
रहे थे ,
जिनहोने
चुनावी बांड खरीदने -
और
प्रधान मंत्री केयर फंड में
करोड़ो रुपये देकर सत्ता की
मदद की थी|
इस
ग्रुप ने आपदा की इस घड़ी में
कोरोना सैस लगाने का विरोध
किया था |
परंतु
वित्त मंत्रालय और कहे हुकूमत
के पाहुरूओ ने '’’इन
कुछ लोगो को बचाने "””””
के
लिए इनको सज़ा दी !
क्योंकि
इनहोने सत्ता के बगलगीरों
को "”तकलीफ
"”
पाहुचने
का सोचा था !!
हमारी
सरकार ने राजस्व घाटे की पूर्ति
के लिए ---
विकलप
के रूप में आम आदमी -किसान
के उपयोग के पेट्रोल और डीजेल
पर 5/-
और
7/-
प्रति
लीटर दाम बड़ा दिया !
आज
जब दुनिया में तेल के दाम बेहद
गिर गए हैं ---तब
भी हमारी सरकार अपने नागरिकों
को घटी हुई दर का फाइदा पाहुचने
के बजाय उल्टे उनसे और अधिक
पैसा वसूल रही हैं !
ऐसी
जनहितकारी सरकार है हमारी !
अगर
सेस्स के दाम के पूर्व पर भी
ईंधन की आपूर्ति जारी रहती
तब भी सरकारी खजाने को मौजूदा
हालत में अरबों का लाभ होता
|
परंतु
हुआ इसके उल्टा -लक
डाउन में पीस रही जनता को लाक
डाउन से बाहर आने पर किसान
और आम जनता को दो पहिया और चार
पहिया चलाना और महंगा पड़ेगा
!
एक
ओर कोरोना के कारण देश परेशान
खाने -पीने
की दिक्कत के साथ अब उसे अपनी
बेल्ट और कासनी होगी |
और
यह तब होगा की जब करोनो लोगो
की नौकरिया खतम हो गयी --जो
बचे हैं उनकी वेतन एक तिहाई
से आधे किए जा रहे हैं !
यह
सही हैं की राजी की सरकारो पर
कुछ बोझ बड़ा हैं ,
परंतु
शासन द्वरा दिहाड़ी मजदूरो
को मुफ्त राशन देने का और
ढिंढोरा पिता गया -जितना
समाचार पात्रो में संपर्क
करने वाले फोन नंबर दिये गये
वे सब एक प्रतिशत भी कारगर
नहीं हुए |
चैनलो
में सुविधाओ का प्रचार और
संपर्क करने वाले फोन नंबरो
पर अधिकतर व्यस्त मिलते हैं
,
और
घंटी भी बाजी तो की जवाब देने
वाला नहीं मिलता |
यह
खबर तो समाचार पात्रो में
छ्पती है की फलां नंबर पर इतनी
शिकायते मिली ,जिंका
निराकरन किया गया !
पर
कितनों का कान्हा पर किया गया
यह पुछे जाने पर भी नहीं पता
चलता |
मुफ्त
के राशन वितरण की तो यह हालत
हैं की इस आपदा में भी रासहन
का दुकानदार वर्क तो रूल किए
हुए हैं !
उसे
यह नहीं दिखाई पड़ता ,
और
अफसरो को भी रतौंधी {दिन
की }
हो
गयी की वे कम से -कम
चिलचिलाती धूप में ब्रामह
मुहूरत से राशान पाने का
इंतज़ार कर रहे लाइन में लगे
लोगो को राशन वितरित करवा दे
!
नगर
निगम द्वरा घरो में सब्जी
पाहुचने का काम सिर्फ मूलती
स्टोरी में रहने वालो को नसीब
हुआ हैं |
क्योंकि
माध्यम वर्ग की बस्तियो में
यह सुविधा नहीं पहुँच पायी |
शायाद
की वे लोग इतनी मंहगी सब्जी
खरीदने की हैसियत नहीं रखते
!
-
नयी
श्रम नीति और निवेशको को सुविधा
:-
मजदूर
दिवस पर पर एक क्रूर मज़ाक सरकारे
कर रही हैं की वे -तेरा
और मेरा कह कर अपने राज्य के
मजदूरो को तो लाने का प्रयास
कर रही हैं ,
पर
अपने राज्य में आए प्रवासी
मज़दूरोको अपने राज्य की सीमा
तक छोडने का काम भिनही कर रही
हैं |
अरे
जब बस भेज रहे हो तो खाली क्यो
भजो ,
उनमे
सीमावर्ती राज्यो के मजदूरो
को बैठा कर भेज दो |
अगर
सभी राज्य ऐसा करे तो कम से
कम "”
महंगा
डीजल "”
का
सदुपयोग हो सकेगा |
पर
अफसरो को तो वही करना हैं जो
उन्हे भला लगे !
खैर
इस लाक डाउन से से ग्रामीण
मजदूरो को यह एहसास तो हो गया
की गाव -घर
की रूखी -सुखी
खा कर जो संतोष और इज्ज़त है
हैं ,
वह
दस गुना दस के कमरो में 6
से
8
लोगो
के साथ कीड़े -मकोड़ो
की भांति रहने से अच्छा हैं
|
यद्यपि
यह चालीस डीनो तक बिना -काम
-और
वेतन के घर में बंद रहने का
इमोसनाल भाव हो ,
जब
पेट के लिए रोटी अगर गाव में
नहीं मिले तब शायद वे भी पुराने
धारी पर लौट आए |
पर
अबकी मजदूरो को शहर ले जाने
वाले ठेकेदारो को दिक्कत तो
बहुत आएगी |
क्योंकि
उन्होने इस विपदा में अपना
मुंह तक नहीं दिखाया था |
प्रति
मजदूर कमिसन खाने वाली इस
प्रजाति को कनही गावों में
हिनशा का शिकार ना होना पड़े
,
इस
संभावना से इंकार नहीं किया
जा सकता |
49
करोड़
मजदूरो में मुश्किल से 2
करोड़
लोग ही संगठित छेत्रों में
हैं ,
जो
श्रम कानूनों को जानते है और
उसके लिए लड़ाई भी लड़ते हैं |
पर
जो संशोधन केंद्र और बीजेपी
की राज्य सरकरे उद्योग और
व्यापार को बड़वा देने के लिए
कदम उठाने जा रही है -----वह
श्रम कानून के पहले कदम को ही
खतम करने का हैं |
अमेरिका
में उन्नीसवी सदी में एक कानून
बना था की कोई भी मालिक अपने
मजदूरो से 8
घंटे
से ज्यादा काम नहीं ले सकता
|
पर
इक्कीसवी सदी में अनेक बहू
राष्ट्रीय कंपनियो ने इस कानून
का तोड़ निकाल लिया |
और
अब दिल्ली सरकार और राज्य
सरकरे दुकानों और फक्ट्रियो
में अब एक पाली 12
घंटे
की होगी |
यानि
सुबह 6
बजे
से से शाम 6
बजे
तक !!
यानि
अब 8
घंटे
काम करने का हक़ या अधिकार सिर्फ
सरकारी अधिकारी को होगा !
मोदी
सरकार का निवेशको को लुभाने
के लिए मुफ्त जमीन और चीप लेबर
देने की योजना बनाई हैं |
अब
इससे यह तो साफ हैं की की विदेशी
सेठ और बहू राष्ट्रीय कंपनी
तो मुनाफा कमाएँगी |
जैसा
की अभी तक वे चीन में कर रही
थी |
आज
चीन का साम्यवादी शासन उन्हे
रोकने में असमर्थ हैं ,
परंतु
भारत जरुर सरकार की इस उदयागो
की लिप्सा जरूर 49
करोड़
मजदूरो को फिरा एक बार गुलामी
की जंजीरे पहना देगा |
इसीलिए
श्रम कानूनों में रद्दो -
बदल
की जा रही हैं |
इससे
फिरंगी सेठ तो सुखी होंगे पर
भारतीय आत्मा फिर क़ैद हो जाएगी
|
मध्य
प्रदेश सरकार ने दुकानों को
सुबह 6
बजे
से रात 12
बजे
तक खोलने का निश्चय किया हैं
!!
पर
सवाल हैं की चालीस डीनो के इस
लाक डाउन में लोगो क कमर टूट
गयी हैं |
सरकार
भले ही कहती रहे की मालिको को
करामचरियों को निकालना नहीं
चाहिए --उनके
वेतन में कटौती नहीं करनी
चाहिए !
पर
जब सरकारे खुद वेतन में कटौती
करे रही हो तब यह कैसे चलेगा
?
केरल
सरकार ने 6
दिन
के वेतन की कटौती करने का
अध्यादेश पारित कर दिया हैं
|
मध्य
प्रदेश में खदायन्न की खरीद
की न्यूनतम कीमत तय हैं |
पर
अध्यादेश द्वरा अब किसानो
से रिलायंस और आई टी सी जैसी
कंपनिया भरपूर पैदावार के
बाद अन्न संकट कैसे होता हैं
यह भी दिखा देंगे |
आज
गाव के 80
करोड़
किसान और 47
करोड़
मजदूरो को इस वर्ष मई दिवस का
यही तोहफा हैं !!!