धर्म की घुट्टी ने ईरान और इराक के बाद बांग्ला देश को भी इंसानियत की राह से हटाया !!
श्रीमती इंदिरा गांधी की विरासत जिसका लोहा दुनिया ने माना था ---उसको बांग्ला देश की मौजूदा सत्ता { जो निर्वाचित नहीं हैं } ने नकार दिया है | 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान को पराजित किया था | जिसके फलस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान का नाम बांग्ला देश हुआ !
शेख मुजीबुर्रहमान को रिहा करने के लिए उन्होंने अपने अन्तराष्ट्रिय संबंधों का इस्तेमाल किया | लखनऊ की आम सभा में भाषाण के दौरान उनको शेख साहब की रिहाई की सूचना दी गई ,जो
उन्होंने लोगों को बताया और तुरंत ही वे दिल्ली को रवाना हो गई | लगभग पचास साल बाद आज बंगवाहिनी और भारतीय सेना की कुर्बानी को मौजूदा यूनुस शासन ने धूल मे मिल दिया हैं |इस बदलाव का कारण कोई लोकतान्त्रिक चुनी हुई सरकार ने नहीं ---- वरन उपद्रव और अशान्ति से उपजी धार्मिक कट्टरता के नुमीनदों ने किया हैं | बांग्ला देश में मुसलमान और हिन्दू दोनों ही रहते हैं | जैसे भारत मे मुसलमान अलपसंख्यक है वैसे ही बांग्ला देश में हिन्दू अलपसंख्यक है | आजादी के पहले से बांग्ला देश के इलाकों में हिन्दू जमींदार थे , और मुसलमान किसान और कारीगर थे | बांग्ला देश बनने के बाद धीरे -धीरे अलपसंख्यक हिन्दू प्रताड़ना के कारण भारत आने लगे | जो आज भी जारी हैं |
बांग वाहिनी के युद्ध मे योगदान और भारतीय सेना के शौर्य को यूनुस के सत्ता ने सांप्रदायिक आग मे झोंक दिया | शेख हसीना को ढाका छोड़कर भारत आना पड़ा | यह धार्मिक उन्माद का परिणाम था | नोबल पुरस्कार प्राप्त यूनुस से ऐसी बेईमानी की उम्मीद तो नहीं थी | बांग्ला देश में धार्मिक कट्टरता कोई नई बात नहीं है --- शेख मुजीबुरहमन को प्रधान मंत्री रहते हुए सेना के एक गुट ने निवास पर हमला करके उनके परिवार के मौजूदा सदस्यों की हत्या कर दी | इसके लिए जमाते इस्लामी जुम्मेदार था | इस बार फिर उन्ही कट्टर पंथियों ने मुजीब की बेटी को निशना बनाना चाहा , पर वे बच निकली |
सावल यह है की लोकतंत्र व्यावस्था में धार्मिक कट्टरता लोकतंत्र के सभी गुणों को समाप्त कर देता है | जैसा आज भारत मे भी बहुसंख्यक लोगों के एक गुट द्वरा अलपसंख्यकों को निशान बनाने के प्रयास हो रहे हैं | इस का दुखद अध्याय यह है की -- शासन -प्रशासन - सरकार और कभी कभी न्यायपालिका भी पीड़ितों को न्याय देने में असमर्थ रही हैं |
धर्म की राजनीति अथवा राजनीति मे धर्म का उपयोग -- दोनों ही स्वास्थ्य लोकतंत्र के लिए हानिकारक ही नहीं वरन खतरा हैं | देश की आजादी के बाद धर्म के नाम पर ही विभाजन हुआ , परंतु ना तो सभी मुसलमान पाकिस्तान जाना चाहते थे और ना ही पाकिसतान मे रहने वाले सभी हिन्दू दिल्ली आना चाहते थे | जो आज सात दशक बीत जाने के बाद भी यथार्थ यही है की आज भी सीमा के दोनों ओर दोनों ही धर्म के लोग रहते हैं | हाँ यह भी एक तथ्य है की
“”कबीले "” के नाम पर "”इलाकाई "” आधार पर पाकिस्तान मे भी हिंसक घटनाए होती रहती है | भारत में ऐसा नहीं हैं , हाँ देश के उत्तर -पूर्व की जनजातियों में "” खुदमुख़्तारी "” या स्वायत्त इलाका की मांग , ----अपनी अलग पहचान बनाए रखने की है | अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने नागालैंड के छह जिलों मे एक हथियार बंद गुट की इस मांग को स्वीकार किया हैं की वह उसके बताए इलाके मे उन्हे खुद मुखतारी देने या यूं कहे की शासन (सत्ता) सूत्र देने पर मंजूरी दी है ! कुछ ऐसा अधिकार मणिपुर मे कुकी समुदाय भी चाहता था -- जिसको केंद्र ने ठुकरा दिया | परिणाम महीनों तक वहा दंगे होते रहे , | यह भी एक तथ्य है की लड़ने वाले समुदायों में एक धर्म हिन्दू था दूसरे का ईसाई !
बॉक्स
धर्म के नाम पर "”राजसत्ता " का सुख का अंत फ्रांस मे किया गए --जब धरम प्रचारकों को
शासन कार्यों से "”अलहदा" यानि बिल्कुल अलग कर दिया गया ! नेपोलियन ने क्रांति के बाद जब सत्ता सम्हाली , तब चर्च का स्थान राज्य की सूची से बाहर था | लगभग एक सदी से ज्यादा समय बाद ईरान मे धर्म ने सत्ता सम्हाली ! ,इस्लाम के शिया संप्रदाय के बहुत बड़े गुरु जिन्हे आयातोला कहा गया है की ईरान वापसी भी पेट्रोल तेल की राजनीति का फल था | अमेरिका के व्यापारिक हितों / मुनाफे मे कमी , ईरान के शाह अरियामेहर की राजसत्ता को कहा गई | यानि की एक रक्तहीन क्रांति मे तकखट पलट हो गए | आयातोला खोमैनी जो फ्रांस में राजनीतिक शरण लिए हुए थे ----उन्हे तेहरान पहुंचाया गया | एवं शाह ईरान और उनके परिवार को फ्रांस ने राजनीतिक शरण दे दी !
सत्ता की इस अदला बदली ने यह तो सिद्ध कर दिया की अन्तराष्ट्रिय जगत मे "””मुनाफा"” देशो की राजनीति और तेल के व्यापार का आधार है |
आज की दुनिया मे फिर एक बार धर्म के नाम पर राजनीति हो रही है | अफगानिस्तान के तालीबानों ने दुनिया की दोनों महाशक्तियों की "” फौजी "” ताकतों को धूल चटा चुके है | परंतु इन "”जुझारू -- लड़ाकों "” को लड़ना ही आता हैं , शासन करना नहीं ! धर्म या कुरान के आधार पर
जो कुछ वनहा हो रहा हैं ------ वह मानव सभ्यता के लिए शर्मनाक हैं |