Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 4, 2020

मंदिर आरंभा पूजन -----इतिहास ---श्रद्धालु जन

मंदिर  आरंभ पूजन -- इतिहास --और श्र्धलु 

स्थान अयोध्या - -तिथि द्वातिया -कृष्ण पक्ष - दिन बुधवार , समय 12.30 मध्यानह -मुहूर्त अभिजीत , में देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी --राम मंदिर आरंभ पूजन करेंगे | ऐसा ट्रस्ट के कोशाध्यक्ष गोविंद देव गिरि महराज ने समाचार पात्रो को बताया | यद्यपि लोग ऐयस समझ रहे थे की यह आयोजन भारत सरकार द्वरा -सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार गठित ट्रस्ट द्वरा किया जा रहा हैं | परंतु जमीनी धरातल पर हनुमान गढी का अथवा ट्रस्ट के अध्याकाश नृत्यगोपाल दास का निर्णयो में सिर्फ आर्नामेंटल भूमिका ही हैं ! इसका प्रमाण जन्म स्थल पर हुए अनुष्ठान के "”यजमान कलकत्ता के विश्व हिन्दू परिषद के महेश भगचंद जी पत्नी समेत थे ! जबकि मंदिर निर्माण के लिए बने ट्रस्ट में विहिप की सीमित भूमिका बतयाई गयी थी | उधर सूर्यवंशी राजा राम चंद्र के परिवार की "” कुलदेवी देवकाली की पूजा अयोध्या "”राज परिवार के वंसज विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्रा ने सोमवार को की ! वे राम मंदिर तीर्थ के ट्रस्टी हैं ! गोविंद गिरि महराज के अनुसार यह शिलान्यास नहीं हैं क्यूंकी शिलान्यास तो 1989 में हो चुका हैं !!!

चूंकि यह मंदिर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार केंद्र सरकार की निगरानी में निर्मित होगा , तो देखना होगा की उसके निर्देशों का ईमानदारी से कितना पालन हो रहा हैं ! आखिरकार 1949 में बाबरी मस्जिद और रामलला विराजमान को लेकर दो समुदायो में जो कानूनी लड़ाई शुरू हुई , उसके लिए तत्कालीन कलेक्टर के के नैयर , जो की आइसी एस थे , उन पर शांति व्यसथा बनये रखने में असफल होने के कारण तत्कालीन सरकार ने उन्हे जांच में दोषी पाये जाने पर ----दंडात्मक कारवाई ना करके अफसरशाही ने उनकी पेंशन की सुरक्षा के लिए , उन्हे त्यागपत्र देने का सुझाव दिया | जिसका उन्होने पालन किया | वे संभवतः पहले और अंतिम आई सी एस अफसर रहे जिनहे जिलधिकारी के पद से इस्तीफा देना पड़ा| उनके सहयोगी गोविंद सहाय जो तत्कालीन मुख्य सचिव थे , वे बाद में भारत सरकार के गृह सचिव भी बने | बाद में केके नैयर साहब और उनकी पत्नी शकुंतला नैयर को जनता पार्टी के टिकट { जनसंघ के कोटे से } से लोक सभा का चुनाव लड़ा और सांसद बने | तो यह लिखने का आधार यह था की "””मंदिर - मस्जिद विवाद "” की कानूनी लड़ाई सिर्फ 71 साल की हैं !! गनीमत हैं की इतने समय में विवाद का निपटारा होकर आज मंदिर निर्माण की शुरुआत हो गयी और महाकाली का आशीर्वाद रहा तो शीघ्र ही एक भव्य मंदिर अयोध्या की शान बड़ाएगा |इससे न केवल तीर्थ यात्रियो की संख्या बड़ेगी, वरन व्यवपर की समभावनए भी विस्तार पाएँगी |


उधर मुस्लिम भाइयो का भी मंदिर निर्माण में सहयोग लेने की पहल सरकार और ट्रस्ट ने की हैं | ट्रस्ट ने मुस्लिम समुदाय की आहात भावनाओ पर मरहम रखते हुए , मंदिर -- मस्जिद के मुकदमें में बाबरी मस्जिद के पैरोकार रहे इकबाल अंसारी को पर्याप्त सम्मान दिया गया हैं | प्रधान मंत्री के आयोजन का प्रथम निमंत्रण विघ्नहरन मंगल करन भगवान गणेश को दिया गया , और दूसरा इकबाल अंसारी को ! मतलब इन्सानो में वे पहले निमंत्रित व्यक्ति हैं | श्रावणी पुर्णिमा अर्थात आम लोगो की भाषा में कहे तो रक्षा बंधन या राखी के पर्व पर --- योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशो का पालन करते हुए – सुन्नी वक्फ बोर्ड को सहावल में 5 एकड़ जमीन के दस्तावेज़ सौप दिये | सुन्नी वक्फ बोर्ड ने पहले ही इस जमीन पर मस्जिद बनाने से इंकार कर दिया हैं | उनके अनुसार गैर इस्लामी व्यक्ति द्वरा दी गयी जमीन पर मस्जिद नहीं बनाने की रिवायत हैं|वैसे भी अयोध्या के चारो ओर सीमाओ पर --फ़ैज़ाबाद --- गोंडा – बस्ती और बलरामपुर -बाराबंकी जिले हैं | जनहा मुसलमानो की प्रभावी संख्या हैं | वैसे भी इस इलाके के मुसलमानो को मस्जिद से ज्यादा --- शिक्षा संस्थानो और स्वस्थ्य के लिए बड़े अस्पतालो की ज्यादा जरूरत हैं |

यंहा एक तथ्य जरुरा खटकने वाला था , जिस पर कुछ खोजबीन करनी पड़ी | बाल्मीकी -रामायण और गोस्वामी जी की रामचरित मानस के अलावा देश में भिन्न भाषाओ में लिखी गयी राम कथा में दशरथ पुत्र राम -सूर्यवंशी छत्रिय थे | जिनके कुलदेवता स्वयं सूर्य बताए गए हैं | वैसे चैनलो में दिखाई जाने वाले क्कथाओ में कौशल्या को विष्णु की आराधना करते हुए दिखाया और बताया गया हैं | इसलिए जब अयोध्या राजवंश के विमलेन्द्र मोहन प्रताप मिश्रा को श्री राम की कुल देवी देव काली की पुजा करते बताया गया ----तो अपने ज्ञान की छुद्रता और अल्पज्ञता का भान हुआ | क्योंकि किसी भी प्रकार से छत्रिय वंशावली में किसी अन्य जाति का ,वर्तमान वर्ण व्यव्स्था के समय में प्रवेश असंभव ही हैं | आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द द्वारा मुसलमानो को हिन्दू बनाने का प्रयास इसी कारण विफल हो गया था | संघ ने भी घर वापसी आंदोलन के माध्यम से ईसाई बने लोगो को वापस हिन्दू बनाने का प्रयास निसफल हुआ | इसीलिए कहते हैं की अन्य धर्मो में जनहा – बच्चे के जन्म लेने के बाद उसका धर्म में दीक्षित होने का अनुष्ठान होता हैं , वैसा वेदिक धर्म में नहीं होता | यंहा वह जन्म से ही माता -पिता के धर्म और जाति में प्रवेश पा जाता हैं | मिश्रा राजवंश के बारे में पूछताछ करने से पता चला की कंपनी बहादुर {ईस्ट इंडिया कंपनी } के समय इनके पूर्वजो को लड़ाई में बहादुरी दिखाने के एवज़ में अयोध्या की जागीर इनाम में लगभग 1810-20 में मिली थी | मिश्र जी शाकल द्वीपीय ब्रामहन हैं | इसलिए देवकाली सूर्यवंशी छत्रिय परिवार की नहीं वरन वर्तमान "”राजवंश "” की कुलदेवी होंगी ऐसा अनुमान हैं |

एक बात और अखरने वाली हैं की इस ऐतिहासिक छण के साक्षी श्र्द्धालुजन केवल टीवी पर हो सकते हैं | क्योंकि आयोजन में आमंत्रित केवल कुछ सौ ही लोग हैं | अयोध्यावासी भी टीवी से ही भाग ले सकेंगे | अब रामलला के दर्शन तो शहर की नाकाबंदी खुलने के बाद ही लोग कर संकेगे |बाकी आगे की कथा फिर आगे !