Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 30, 2018


आस्था और विश्वास तथा इतिहास – सदैव ही विवादो के मूल मे रहे है ,
धर्म का आधार जहाँ आस्था है ,,वही संगठन के लिए उसके सदस्यो मे विश्वास होना जरूरी है | प्रथम दो गुणो का कोई पैमाना नहीं है ---- होने या ना होने का | परंतु इतिहास---- कुछ ठोस सबूतो और खोजो की तर्क पूर्ण व्याख्या से बनता है |
इन सबूतो को ही किसी नसल या राष्ट्र अथवा देश की धरोहर कहा जाता है |
अब कोई सरकार ही इन धरोहरों की रक्षा और रख रखाव की ज़िम्मेदारी नहीं उठा सके ----- तो यह उस देश के नागरिकों के लिए शर्म की ही बात होगी !

आज भारत का जो आकार और विस्तार है --वह ईस्ट इंडिया कंपनी और बाद मे ब्रिटिश सामराज्य की खिची हुई रेखा का ही परिणाम है | सिलसिलेवार घटनाओ को लिपिबद्ध करने का काम राज दरबारो से शुरू हुआ | वस्तुतः विश्व की सभी सभ्यताओ मे जो भी इतिहास लिपिबद्ध है -----वह राज दरबार से सम्राटो --महाराजाओ और राजाओ की विजय और पराजय तथा उनके द्वारा "”बनवाई गयी इमारतों -स्मारकों-- सड्को रूप मे मिलता है | मिश्र के सेती रहे हो या यूनानियो -- असीरिया -बेबीलोनिया और रोम के इतिहास और उस "”धरा "” की पहचान होते है | मिश्र के पिरामिड हो या ओलंपिया का भग्न मंदिर हो या बेबीलोनिया का"” झूलता बागीचा"” यह सभी --- तत्कालीन समय की मानव सभ्यता की महत्वपूर्ण उपलबधिया मानी गयी है | संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्थवी की ऐसी ही "” मूर्त धरोहरों को --संरक्षित छेत्र घोषित किया |

आगरा स्थित -मुगल सम्राट शाहजनहा द्वरा अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद मे बनवाया गया था |लालकिला भी उसी मुग़ल सम्राट की तामीर कराई इमारत भर नहीं है --वरन मुग़ल सल्तनत की राजधानी आगरा से दिल्ली आने की सूचक है | यानहा यह भी बताना जरूरी हो जाता है की ब्रिटिश साम्राज्य भी कलकत्ता से दिल्ली अपनी राजधानी लाये थे |
आज जब हम रामेश्वरम मे सागर के तल मे पत्थरो की रेखा को अवध के राजकुमार रामचन्द्र जी के रामायण वर्णित नल और नील द्वरा बनाए गए लंका पहुचने के पुल के "”अवशेष "” मान कर उनके लिए सर्वोच्च न्यायालय तक जाते है | जबकि रामायण काल का इतिहास मात्र महाकाव्य ही है | इसी प्रकार सिंधुघाटी सभ्यता के अवशेषो की खोज मे मिले मोहञ्जोदडो और हडप्पा की खुदाई के भग्नावशेषों को आरी सभ्यता की निशानी मानते है अथवा , द्वारिका मे समुद्र की गहराइयो और तट पर मिले अवशेषो को महाभारत काल का मानते है , जो एक "”विश्वास है "” जिसे तर्कपूर्ण खोजो द्वरा अभी सिद्ध किया जाना है | रामायण काल और महाभारत के समय को जब हम इन अवशेषो से जोड़ते है ----तब हम भी एक नया इतिहास निर्माण करना चाहते है | अब यह भविष्य के गर्भ मे है की इन अवशेषों का आंकलन विश्व के इतिहासकारो द्वरा कब माना जाता है | किव्न्दंतियों की बात करे तब शायद हम सीधे सतयुग काल से {{वेदिक धर्म के अनुसार नहीं वरन पौराणिक काल से }} अनेकों मंदिर आदि का निर्माण हजारो साल पहले हुआ था | फिर कैसे वे नष्ट हुए यह भी अभी तक निश्चित नहीं है |
परंतु इन धार्मिक आस्थाओ से जुड़े मामलो को इतिहास बता पाना कठिन ही है | भले ही हम अपनी व्याख्या द्वारा उन्हे "”अपने पूर्वजो द्वरा निर्मित कहे "” परंतु उसे साबित करना तो बहुत ही मुश्किल होगा |

इतना सब बताने का आशय यही है धार्मिक आस्था को बिना किसी तथ्य के विश्व के लोगो की मंजूरी पाना आसान ही नहीं बहुत कठिन है | जिस प्रकार किसी भी धार्मिक समुदाय मे उनके महापुरुषों द्वरा अनेक चमत्कारी कारणो से बताए जाने वाले व्रतांत को --- वैज्ञानिक आधार पर स्वीकार कर पाना कठिन है |
परंतु फिर भी उन समुदाय के लोगो द्वरा "”यात्रा अथवा तीर्थ स्थल "” मान कर इनको पुजा जाता है |

परंतु इन स्थलो के रख -रखाव की ज़िम्मेदारी उनही समुदाय के लोग सैकड़ो सालो से करते आए है | अब जब हम भारत के इतिहास की बात करे अथवा आर्य सभ्यता की बात करे तब प्रमाणो की जरूरत होती है | जो आज हमारे पास नहीं है | केवल विश्वास और आस्था ही उनके पीछे है | वेदिक धर्म को छोडकर यहूदी अथवा ईसाई और इस्लाम इन सभी धर्मो का इतिहास मिलता है | मिश्र के सेती अथवा अरबी मे फरौन केशासन काल का वर्णन किताबों मे मिलता है --उस समय की भाषा को पढना भी आज भी एक चुनौती बनी हुई है |
अनेक सभ्यताओ के साथ ऐसा ही है | उनकी इमारतों मे मिले लेख अभी भी बीजगणित की प्रमेय के समान है , जिसमे अनुमान लगाया जाता है | वेदिक कालीन संसक्रत भाषा और वर्तमान उसके स्वरूप मे भी अंतर है | व्याकरण अलग है | ऋचाओ की भाषा और पुराण कालीन स्तुतियों की भाषा अलग है |

अब मुद्दे की बात ;- भारत सरकार ने देश की अनेक महत्वपूर्ण स्मारकों और इमारतों को निजी कंपनियो को देख -रेख के लिए करार किया है ! इसका विरोध अधिकतर लोगो द्वरा मीडिया के साधनो से किया जा रहा है | वनही कुछ लोग ऐसे भी है जिनके अनुसार "” अरे दे दिया तो क्या हुआ कुछ अच्छा ही होगा ,, सरकार ने सोच समझ कर ही यह फैसला किया होगा ! सवाल यह की आम आदमी की ज़िंदगी मे भी परिवार मे कुछ वस्तुए परंपरा से पहचान की होती है , जिनहे पुश्तैनी कहा जाता है | परिवार मे कितना ही कठिन समय क्यो न आए लोग पुरखो की निशानी को "”किसी अन्य व्यक्ति को नहीं देते --देख -रेख की बात तो अलग है | “” अब अगर सरकार यह कहे की उसके इस फैसले से "””विदेशी पर्यटको को सुविधा सुलभ कराई जाएगी "” तो बात या तर्क हजम नहीं होता है "” | इसके दो आधार है – पहला जब की पुरत्तव मंत्रालय की ज़िम्मेदारी इन सभी स्मारकों की संरक्षा और सुरक्षा की है , और इस कारी हेतु वे प्रवेश शुल्क सभी पर्यटको से वसूल करते है , तब उनको धन की कमी भी है तो वह केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है | सरकार के निर्णय की पैरवी करते हुए एक सज्जन ने लिखा "” सरकार ने ना तो इन स्मारकों को बेचा है और नाही इन्हे उनकी सुपुर्दगी मे दिया है | जिन कंपनियो ने यह ठेका लिया है वे मात्र इन स्थानो पर कुछ सुविधा सुलभ कराएंगे !! तब यह भी प्रश्न है की अगर बात सिर्फ सुविधा सुलभ करने की है तब ----- सरकार को उन सभी बाटो का खुलाषा सार्वजनिक रूप से करना छाइए था | क्योंकि यह मसला आम लोगो की भावनाओ से जुड़ा है | एक अन्य सज्जन का तर्क है की ''' इस समझौते मे ना तो सरकार डालमिया और एमआरजी को कोई धन देगी और ना ही ये संस्थान सरकार को कोई राशि देंगे ,|तब फिर ये कारपोरेट क्यो सरकार से देख -रेख की ज़िम्मेदारी ले रहे है ? आखिर वे व्यापारी है बिना लाभ देखे तो कोई काम वे करेंगे नहीं ? एक जवाब यह भी आया है की इन कंपनियो द्वरा "” कंपनी सोसल रेस्पोन्स्बिलिटी '' फंड से यह खर्च करेंगी ? यह फंड बड़ी - बड़ी कंपनियो को अपने लाभ का एक छोटा भाग जनहित कार्यो मे लगाना होता है --- तब फिर अगर यह सौदा "”एकतरफा है , तब उसमे किसी एक संस्थान को ही क्यो यह ज़िम्मेदारी दी गयी ? देश की बहुत कंपनीय इस राष्ट्र हिट के करी मे भाग ले सकती थी | उत्तम तो यह होता की इस सीएसआर की रकम को पुरातत्व मंत्रालय ले कर खुद ही बताई गयी या सुझाई गयी सुविधाओ का बंदोबस्त करता ! बता रहे है की प्रवेश शुल्क पहले की ही भांति मंत्रालय द्वरा किया जाएगा ! सिर्फ विदेशी पर्यटको को सुविधा सुलभ कराने की ज़िम्मेदारी इन घरानो को दी गयी है ! अभी भी ताज महल हो या लाल किला --स्मारक के बाहर जल और खाने -पीने की सुविधा मिलती है |एक स्थान पर पुरातत्व मंत्रालय ऐसे लोगो से फीस वसूल करता है वह भी सालाना ! अब या तो डालमिया जी को स्मारक के अंदर परिसर मे इन सुविधाओ के स्टाल बनाए की इजाजत मिलेगी या फिर वे अपनी मनचाही जगह पर इन तथाकथित सुविधाओ को विदेशी पर्यटको को सुलभ कार्यएंगे | जबकि नियमो के अनुसार संरक्षित स्मारक के परिसर मे कोई भी धंधा करने की अनुमति नहीं होती , उल्टे यदि किसी को ऐसा करते पाया जाता है तो उससे जुर्माना वसूल किया जाता है |

अब अंत मे यह कहा गया की यथास्थिति को बदलना जरूरी है ! वाह भाई आप संरक्षित स्मारकों के विश्व भर मे लागू नियमो का उल्ल्ङ्घन को "”” जायज करार देने जा रहे है ---जो सभी जगह निषिद्ध है , और आप का तर्क है की सुविधा सुलभ कराएंगे !! वैसे ही जैसे नोटबंदी के समय और इज़ ऑफ डूइंग मे करा है उसी प्रकार !! अभी देश मे चुनाव का माहौल है इसलिए सरकार के विरोध मे नागरिकों को आवाज़े आ रही है | पर चुनाव समाप्त होने के बाद यह मुद्द राजनीतिक दल ज़रूर उठाएंगे | तब सरकार को बताना होगा | वैसे नोटबंदी के आदेश के बाद उस आदेश मे 60 संशोधन किए गए थे ---कनही वैसा ही हाल ना हो !