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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 31, 2015

भूमि अध्यादेश की वापसी -- प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साहस का परिचय

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने  भूमि अधिग्रहण  अध्यादेश  को चौथी बार जारी करने की बजाय   2013 के  कानून को ही लागू करने का फैसला करके यह तो स्पष्ट कर दिया की वे ""जनता की आवाज "" की अवहेलना नहीं करेंगे | भले ही विरोधी दल के लोग इसे  यू टर्न  कहे अथवा  ''पराजय'' कहे परंतु  ,,, अपने फैसले पर परिस्थितियो  के अनुसार  पुनःविचार करने का साहस और  निर्णय  को बदलने की  नैतिक शक्ति ,, सहज नहीं होता | | पटना की स्वाभिमान रैली मे उनके निरण्य को जनता की जीत बताया गया | जिसके लिए राजनीतिक दलो ने अपने - अपने कारण दिये | वह भी  ''राजनीति ''''है | जो बीजेपी भी करती रही है | अब दूसरे कर रहे है |
                   अध्यादेश को 31 अगस्त को समाप्त होने देने के साथ  उन तेरह कानूनों को भी पुरानी विधि  के तहत ""मुआवजा "" की दर नियत होने का सरकार का आदेश जारी किया | इस से  सड़क निर्माण के लिए अधिग्रहित भूमि का मुआवजा भी उतना ही होगा जितना रेल्वे के लिए अथवा   पुरातत्व के लिए ली गयी भूमि का मिलता है | यह सुविधा  किसानो को उनकी भूमि का मुआवजा की दर के लिए कानूनी  लड़ाई नहीं करनी पड़ेगी |
                         केंद्र सरकार  को इस समय भूमि अधिग्रहण  कानून के आंदोलन को खतम करके -अब पटेलों के आरक्षण आंदोलन तथा पूर्व सैनिको की मांग """एक पद -एक पेंशन """ पर जन आसंतोष   का सामना करने के विकल्प को तलाशे | परंतु मोदी जी के फैसले का स्वागत तो करना होगा ---यद्यपि मई ना तो भक्त हूँ और नाही समर्थक -परंतु स्थिति का मेरा आंकलन यही है ||

Aug 28, 2015

पैसे के बल पर खरीदी जाती व्यवसायिक डिगरिया --संस्थान बने कारख़ाना

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Aug 27, 2015

jजनसंख्या के आंकड़े और पटेल समुदाय का आरक्षण दो या इसे भी खतम करो की मांग -डरावनी

जनसंख्या—धर्म-- जाति  और आरक्षण  एक  यक्ष प्रश्न

       अहमदाबाद  मे हार्दिक पटेल  का  आरक्षण की मांग की रैली  के एक दिन पूर्व  ही धर्म आधारित  जनसंख्या के आंकड़ो का प्रकाशित होना  ,,, क्या सयोग है अथवा  बिहार  चुनाव  की संध्या पर जाति के वोट बैंक  पर  धर्म के आधार पर बाटने की कोशिस ? कहना कठिन है |
लेकिन इतना तो स्पष्ट  है की दोनों ही घटनाओ के  राजनीति मे दूरगामी परिणाम होंगे |मेरे अनुमान से  एक तथ्य साफ है की – सनातन धर्मियों और इस्लाम  के मानने वालों की आबादी बदने की रफ्तार  मे कमी आई है |यह इस बात का सूचक है की  दोनों ही धर्मो के लोगो को को एका बात समझ मे आ रही है की ‘’बच्चे ऊपर वाले की देन नहीं है “”” और योग्य संतान का संरक्षक होना बेहतर है –ना की ज्यादा संतानों के माता-पिता होना |  इस से यह अफवाह भी व्यर्थ सिद्ध होती है की 2020 तक मुसलमान हिन्दुओ के बराबर हो जाएंगे | उस स्थिति के लिए  मुसलमानो को “””पाँच गुना “” आबादी बढाना   होगा | जो की संभव नहीं है | इसलिए  दोनों धर्मो के कट्टर पंथियो द्वारा  "'अधिक से अधिक संतान पैदा करने की सलाह और हिदायत '' प्रचार पाने का जरिया भर ही है | ना तो यह धार्मिक है और ना ही गरीबी दूर करने का जरिया है | बीस - तीस वर्षो पूर्व साधन हीन परिवारों मे ज्यादा  बच्चो के समर्थन मे कहा जाता था की ""बड़ा होकर यह भी परिवार की कमाई मे  बढोतरी करेगा """ कम से कम अब इन वर्गो मे भी शिक्षा के प्रति जागरूकता देखि गयी है | गलियो मे मांटेसरी और पब्लिक स्कूलों का बोर्ड लगाए  - कच्चे  -पक्के साधन हीन विद्यालयो मे  छोटे -छोटे लड़के और लड़कियो को ड्रेस मे पड़ते देखा जा सकता है | यह सती है की इन स्कूलो  मे एक या दो ही अध्यापक होते है ,, और पढ़ाई  भी स्तरहीन  होती है |परंतु अक्षर ज्ञान और गिनती तो सीख ही जाते है | यद्यपि इन तथाकथित  विद्यालयो की फीस भी सरकारी स्कूलो से अधिक यानि की सौ रुपये से अधिक होती है |बच्चो को लाने और भेजने के लिए भी घर का कोई सदस्य लगा रहता है |
                               एक ओर यह जागरूकता है तो दूसरी ओर जाति और धर्म के नाम पर इन लोगो को मंदिर के पुजारी और भगवा धारी बाबा तथा मस्जिदों के मुल्ला - मौलवी बरगलाते रहते है | जिसके कारण धर्म की ''आवाज़ "" पर  बुद्धि मात खा जाती है | अब इन जनसख्या के आंकड़ो का छानबीन करे तो  पाएंगे की  हिन्दू और मुस्लिम का अनुपात 5:1  का है |  किसी धर्म की आबादी मे कितनी संख्या है यह महत्वपूर्ण नहीं है वर्ण उसका राष्ट्र की प्रगति मे योगदान कितना है यह ज्यादा जरूरी है | अब जैन समुदाय का वेदिक धर्म वालो से अनुपात बहुत विषम है – एक  जैन व्यक्ति के   मुक़ाबले 214  हिन्दू बैठते है | परंतु अनुभव से हम सभी जानते है की  इस सौदे की संपन्नता  और भागीदारी कनही अधिक है | पारसियों का उद्योग और व्यापार मे योगदान तो जग ज़हीर है और आबादी कुछ हज़ार ही है !

            इसलिए इन आकड़ों के धर्म और जातीय संख्या  का असर किसी योजना अथवा कार्यक्रम के लिए नहीं वरन किसी आँय उद्देस्य से है | बिहार के चुनाव मे धर्म और जातियो  का ''अहम भूमिका है '''' वे अलग -अलग दलो के वोट बैंक है , यह सर्व विदित है | अब इसी समीकरण को बनाने और बिगड़ने का खेल इन आंकड़ो से खेला जाएगा |  परंतु अहमदाबाद मे 22 वर्षीय हार्दिक पटेल की अगुवाई मे अनेक लाख लोगो की यह मांग की  हमको भी ""आरक्षण""" दो अन्यथा  इसे कहातम करो | यह आंदोलन सिर्फ आरक्षण की मांग का होता तो गुजरो  के राजस्थान और हरियाणा के जातो की भांति होता -परंतु यह मांग करना की आरक्षण समाप्त करो '''गंभीर मुद्दा ""' है | यह सही है की शुरुआत मे यह संवैधानिक सुविधा बीस वर्षो के लिए थी | जिसे सदैव आगे बड़ाया जाता रहा ,और किसी भी राजनीतिक दल मे यह साहस नहीं रहा की वह इस का विरोध करे | क्या पटेलों के इस आंदोलन का मक़सद  आदिवासी और दलितो  को मिलने वाले आरक्षण को समाप्त करना है ? अगर ऐसा हुआ तो  यह नरेंद्र मोदी का तुरुप का पत्ता होगा | जिस प्रकार से बीजेपी और प्रधान  मंत्री इस समस्या के प्रति आतुरता के स्थान पर 'ठंडे से ' बैठे वह शंकित करने वाला है | आगे  देखिये क्या होता है ...... 

Aug 22, 2015

महालेखाकर की रिपोर्ट अब मोदी सरकार को चुभने लगी है

अब सरकार को महालेखाकार की रिपोर्ट भी नामंज़ूर !!

      महालेखाकर  नियंत्रक यानि की  सरकारो के लेखा –जोखा का हिसाब रखने वाला ---ज एक संवैधानिक संस्था है | इनका  काम  सभी मंत्रलाया और –विभागो के खर्चे की जांच करना होता है |  दरअसल राजनीति के “”घोटालो “” का जनम  भी इनकी रिपोर्ट से होता है | जब  वे सरकार की पोल पट्टी खोल कर सार्वजनिक कर देते है की –सरकार का काम  ईमानदारी से किया गया है ,अथवा  सिफ़ारिश या  नियमो को धत्ता बता के किया
 गया है |
        इनकी रिपोर्ट ने सरकारो को उल्टा दिया है –सत्तारूद दलो को  कुर्सी से उतार दिया है | क्योंकि देश की जनता को  इनकी रिपोर्ट की सत्यता और निसपछता
पर पूरा भरोसा होता है |  सेना के लिए स्वीडिश  फ़र्म से खरीदी गयी  “””बोफोर्स “””  तोपों की खरीद पर  न केवल तत्कालीन  प्रधान मंत्री  राजीव गांधी पर पैसे लेने का आरोप लगा वरन  उनकी पत्नी सोनिया गांधी के परिवार पर भी इस  घोटाले के छीटे  पड़े | जो आज भी उनके विरोधी  इस्तेमाल करते है | जबकि सुप्रीम कोर्ट  ने सुब्रामानियम स्वामी की याचिका  पर इन आरोपो को  एकदम बकवास बताते हुए कुप्रचार निरूपित किया | परंतु  विरोधी तो  दुहराते ही रहेंगे | दूसरा घोटाला हुआ इनकी रिपोर्ट पर 2जी  और 3 जी  के सौदे  मे गड़बड़ी पर ,,जिसके कारण  मंत्री भी गिरफ्तार  हुए सांसद भी जेल गए |  इस कड़ी मे कोयले की खानो  की नीलामी  मे हुई  अनियमितता  का खुलासा |
           इस प्रष्टभूमि  मे मोदी सरकार द्वारा  दिल्ली की बिजली कंपनियो  के आडिट रिपोर्ट को “””अमान्य’’’’ करना  , बिलकुल समझ मे नहीं आता है |   महालेखाकर की रिपोर्ट मे स्पष्ट किया गया है की  बिजली वितरण की  कंपनियो ने 8000 करोड़ का “”घपला किया है |  दिल्ली सरकार के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल  ने चुनाव के दौरान  वादा किया था की वे इन कंपनियो की गदबड़ियों का पर्दाफाश करेंगे | उन्होने  आडिट के लिए महालेखाकर  से आग्रह किया | जिनहोने  अपनी रिपोर्ट मे इन निजी कंपनियो के उल –जलूल खर्चो को  गैर ज़रूरी बताया |
      ताज्जुब की बात है जिस भारतीय जनता पार्टी ने  बोफोर्स – 2जी 3जी या कोल गेट मे  महालेखाकर  की रिपोर्ट को  ‘’वेद वाक्य’’’ प्रचारित करके देश की जनता के सामने कॉंग्रेस  को बदनाम किया | बोफोर्स के कारण राजीव गांधी की सरकार चली गयी थी  और वीपी सिंह की सरकार बनी थी |   2जी और कोल गेट  की बदनामी के कारण मनमोहन सिंह  की सरकार गयी और नरेंद्र मोदी की सरकार आई |

   लेकिन  अब नरेंद्र मोदी सरकार का यह कहना की  आडिट का आदेश  केवल लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग दे सकते है |  सवाल यह है की आदेश किस ने दिया  यह महत्वपूर्ण है अथवा यह निर्णायक  है की रिपोर्ट  मे क्या कहा गया ?? क्या यह रुख  अनिल अंबानी की कंपनियो को बचाने की कोशिस नहीं है ?  केंद्र सरकार को अपना पाखंड  छोड़ना होगा वरना  वैसे ही दिल्ली की जनता बीजेपी को नकार चुकी है – और इस कदम से अब और भी मोदी सरकार  नज़ारो से उतार जाएगी |  

Aug 19, 2015

नरेंद्र मोदी बिहार मे -प्रधान मंत्री या बीजेपी नेता ?



केंद्रीय सड़क निर्माण अधिकरण के आयोजन मे आरा मे सम्पन्न हुआ था --जिसमे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का """" कुख्यात """ भाषण हुआ था | इन्दिरा गांधी का चुनाव सिर्फ इस बात पर निसप्रभावी कर दिया गया था की सुरक्षा घेरे का इंटेजम ज़िला प्रशासन ने किया था | जिसको उच्च न्यायालय ने ""अवैधानिक "" माना था | यह सही है की बिहार मे विधान सभा चुनावो की घोसना निर्वाचन आयोग ने नहीं की है | परंतु फिर भी """शासकीय आयोजन """'को चुनावी प्रचार के लिए इस्तेमाल करना अगर ""'अवैधानिक नहीं है तो कम से कम '''अनैतिक '''' तो है ही | दूसरा 1 लाख 56 हज़ार करोड़ की तथा कथित विशेष सहायता कब से मिलेगी --- कितने वर्षो तक मिलेगी --कितनी योजनाए --कब से शुरू होगी? साथ वे भूल गए की गडकरी जी के मंत्रालय को 2015-16 के लिए 42 हज़ार 912 करोड़ का आवंटन हुआ है जबकि उन्होने अकेले बिहार को ही 54 हज़ार 713 करोड़ की सड़के देने का एलकन कर दिया | क्या यह नहीं मालूम की जिन योजनाओ मे पैसा खर्च करना होता है उसके लिय 1 रुपए की टोकें ग्रांट राखी जाती है और जिसे सदन को पारित करना होता है | ऐसा कुछ भी नहीं हुआ | फिर जिस अंदाज़ मे यह सहायता की घोसना की गयी वह बाजीगरी ज्यादा और भारत के प्रधान मंत्री का भासन कम लग रहा था || आज उन समाचार पात्रो ने भी उनके """अंदाजे बया """ को घोर आपतिजनक निरीपित किया है | आखिर यह सीध हो ही गया की -----नरेंद्र मोदी ----सिर्फ दिल्ली मे ही प्रधान मंत्री की तरह व्यवहार करते है | क्योंकि वाहा """प्रोटोकाल """ के तहत रहना पड़ता है | जब कभी वे दिल्ली से बाहर जाते है तब -तब वे भारतीय जनता पार्टी के नेता और बिहार मे तो वे पूरी तरह बीजेपी के प्रचारक लग रहे थे हा ""स्टार प्रचारक """ परंतु देश के प्रधान मंत्री तो कतई नहीं लग रहे थे |

Aug 16, 2015

स्थानीय चुनाव -नेतागायब उम्मीदवार चित

स्थानीय चुनाव -नेतागायब उम्मीदवार चित

      प्रसिद्ध  उद्योगपति   राहुल बज़ाज़  ने हाल मे दिये एक बयान मे कहा था की  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी  अब अपनी ""चमक"" खो रहे है | उनके कथन का आधार था की दिल्ली विधान सभा चुनाव मे भारतीय जनता पार्टी  की करारी पराजय  के उपरांत बंगाल मे हुए स्थानीय निकाय के चुनावो मे ममता बनर्जी  की पार्टी त्रणमूल ने सभी संस्थाओ  पर कब्जा कर लिया है | उनके बयान मे स्थानीय निकायो की अहमियत  स्पष्ट थी | इस आधार पर हम मध्य प्रदेश मे हुए स्थानीय चुनावो के परिणामो ने  बज़ाज़ के कथन से यह साफ हो गया की काँग्रेस पार्टी अपनी चमक खो रही है |
          इन परिणामो और उम्मीदवारों की चयन  की प्रक्रिया की जानकारी होने के कारण काँग्रेस के बारे मे सिर्फ यही कहा जा सकता है की  प्रदेश के ""त्रिगुट """ ने अपने  इलाको मे उम्मीदवार तो हाई कमान  से मंजूर करा कर ले आए और चुनाव के अखाड़े  मे उतार दिया | परंतु खुद  खलीफा  दंगल से गायब हो गए |बिना गुरु के इन ''बेचारे को तो  चित होना ही था ||बारह  निकायो मे दो नगर निगम --उज्जैन और मुरैना मे बीजेपी के उम्मीदवार  अपने काँग्रेस प्रतिद्वंदी से काफी आगे है|  तीन नगर पालिका विदिशा -हरदा  और सारंगपुर  तथा   बेतुल -सतना- मंदसौर -रीवा की नगर पंचायतों  मे सत्तारूड दल की पकड़ मजबूत है | छतरपुर की धुआरा नगर पंचायत  मे  निर्दलीय ने दोनों डालो के समीकरण बिगाड़ दिये है |

       

स्थानीय चुनाव -नेतागायब उम्मीदवार चित

स्थानीय चुनाव -नेतागायब उम्मीदवार चित

      प्रसिद्ध  उद्योगपति   राहुल बज़ाज़  ने हाल मे दिये एक बयान मे कहा था की  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी  अब अपनी ""चमक"" खो रहे है | उनके कथन का आधार था की दिल्ली विधान सभा चुनाव मे भारतीय जनता पार्टी  की करारी पराजय  के उपरांत बंगाल मे हुए स्थानीय निकाय के चुनावो मे ममता बनर्जी  की पार्टी त्रणमूल ने सभी संस्थाओ  पर कब्जा कर लिया है | उनके बयान मे स्थानीय निकायो की अहमियत  स्पष्ट थी | इस आधार पर हम मध्य प्रदेश मे हुए स्थानीय चुनावो के परिणामो ने  बज़ाज़ के कथन से यह साफ हो गया की काँग्रेस पार्टी अपनी चमक खो रही है |
          इन परिणामो और उम्मीदवारों की चयन  की प्रक्रिया की जानकारी होने के कारण काँग्रेस के बारे मे सिर्फ यही कहा जा सकता है की  प्रदेश के ""त्रिगुट """ ने अपने  इलाको मे उम्मीदवार तो हाई कमान  से मंजूर करा कर ले आए और चुनाव के अखाड़े  मे उतार दिया | परंतु खुद  खलीफा  दंगल से गायब हो गए |बिना गुरु के इन ''बेचारे को तो  चित होना ही था ||बारह  निकायो मे दो नगर निगम --उज्जैन और मुरैना मे बीजेपी के उम्मीदवार  अपने काँग्रेस प्रतिद्वंदी से काफी आगे है|  तीन नगर पालिका विदिशा -हरदा  और सारंगपुर  तथा   बेतुल -सतना- मंदसौर -रीवा की नगर पंचायतों  मे सत्तारूड दल की पकड़ मजबूत है | छतरपुर की धुआरा नगर पंचायत  मे  निर्दलीय ने दोनों डालो के समीकरण बिगाड़ दिये है |

       

Aug 14, 2015

डी मैट – भर्ती और उसकी जांच उलझन मे अदालत

डी मैट – भर्ती और  उसकी जांच उलझन मे अदालत

                 डी मैट यानि की निजी मेडिकल कालेजो मे भर्ती और भ्रष्टाचार - चूंकि इन संस्थानो मे छात्रो की चयन की अंतिम तारीख आज़ादी की वर्ष गांठ के पहले की है -और यह कारवाई अभी तक शुरू नहीं हुई है | हालांकि बाज़ार की सुने तो कहा जा रहा है की ऐसे सभी संस्थानो ने  '''अपनी -अपनी सीटे '''आरक्षित कर ली है """ | मतलब आशंका ही नहीं पूर्ण विश्वास है की विगत वर्षो की ही भांति इस वर्ष भी एमबीबीएस की सीटे नीलाम होंगी |
        व्यापम घोटाले की दुनिया मे भले ही गूंज हो पर उससे  आम आदमी कोई राहत नहीं -- पैसे के योग्यता डैम तोड़ेगी ,फिर एक बार | क्योंकि  भर्ती की प्रक्रिया मे जो धांधली  व्यापम मे हुई थी उस से कही  ज्यादा  गड़बड़िया तो डी मैट मे हुई है | लेकिन इन लोगो की गड़बड़ी मे प्रदेश सरकार की भी ज़िम्मेदारी है | चिकित्सा शिक्षा संचालक द्वारा उच्च न्यायालया मे यह जवाब देना की """सरकार डी मैट मे भर्ती के लिए होने वाली प्रतियोगिता के लिए पर्यवेशक देने मे असमर्थ है """""??
       उधर उच्च न्यायालय बार - बार निजी मेडिकल कालेजो को ""यह बताने का निर्देश दे रहा है की वे अदालत द्वारा निर्धारित मानदंडो  के आधार पर  भर्ती की प्रतियोगिता /कारवाई करने के लिए सक्षम एजेंसी  बताए | दो तारीखों मे यह कारवाई ""पूरी नहीं सो सकी है """ | एवं अकादमिक सत्र  भी विलंब से ही प्रारम्भ होगा , ऐसे मे इन कालेजो मे क्या ''योग्यता''' के सहारे छात्र प्रवेश पा सकेंगे ? इस प्रश्न का उत्तर  अब कौन खोजेगा ?
            ऐसी स्थिति मे क्या उच्च न्यायालय  इन संस्थानो को यह आदेश नहीं दे सकता की वे आल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट के अभ्यर्थियो मे सफल परिक्षारथियों  मे से  प्राप्त अंको के क्रम से भर्ती करे || आखिर अखिल भारत स्टार पर होने वाली इस प्रतियोगिता मे अभी तक इतना बड़ा घोटाला तो नहीं हुआ जितना की डी मैट मे हुआ | सुप्रीम कोर्ट ने माना है की डी मैट 'व्यापम ''से कई गुना बड़ा घोटाला है | सीबीआई ने भी जबलपुर मे उच्च न्यायालय मे कहा है की डी मैट तो व्यापम से कई गुना बड़ा कांड है | परंतु उन्होने अदालत को बा व्यापम की ही जांच के लिए स्टाफ  की बहुत कमी है | लगभग दो सौ मिडिल लेवल अधिकारियों की ज़रूरत है | ऐसे मे डी मैट की जांच के लिए और अधिक समय तथा संसाधन की आयश्यकता होगी |

     अब इन हालातो मे समय से सत्र की शुरुआत और योग्यता आधारित भर्ती कराना  तथा ''सीटो की नीलामी'''' को रोकने के लिए  पारदर्शिता से इन संस्थानो को विद्यारथी सुलभ कराना ही उद्देस्य बचा है | ऐसे मे क्या उच्च न्यायालय आल इंडिया प्रे मेडिकल टेस्ट के मधायम से भर्ती करना ही सुलभ अवसर है | इस से यह आरोप खतम हो जाएगा की इन संस्थानो मे तो """पैसे दो और सीट लो """चलता है | वैसे ही इन कलेजो के बारे मे यह आम धारणा है की '''यहा के पड़े डाक्टरों को सिवाय सरकारी अस्पताल की कोई नर्सिंग  होम या अस्पताल इन डाक्टरों को नहीं रखता है | इस संदर्भ मे  मेदनता के प्रख्यात ह्रदय रोग डाक्टर डॉ त्रेहन ने तो  व्यापम  कांड के पर कहा थी की हमारे अस्पताल मे निजी संस्थानो के पढे  डाक्टरों को नहीं रखते है | क्योंकि उनकी शिक्षा और अनुभव परिपक्व नहीं होता | अब यह रॉय देश के बड़े अस्पतालो मे एक के प्रबन्धक की है | जो महत्व पूर्ण है | जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता | ऐसे मे यदि मेडिकल छेत्र  को हिप्पोक्रेटिक कसम की लाज रखनी है -और लोगो को विश्वास दिलाना है की  डाक्टर जान बचाते है -पैसे बनाने के  लिए इलाज़ नहीं करते | तो उन्हे ऑल इंडिया प्रे मेडिकल टेस्ट से चुने छात्रो को ही उनके प्राप्त नंबर के अनुसार प्रवेश देना चाहिए | अन्यथा डाक्टर भगवान है इस विश्वास खंडित होना अवश्यंभावी है | अब गेंद निजी मेडिकल कालेजो के पाले मे है  की वे जनता के नज़र मे खरे उतरते है या फिर ..................|

Aug 11, 2015

कोचिंग आईआईटी और आईआईएम के छात्रो मे शोध की सोच समाप्त कर देती है

  आईआईटी और आईआईएम की कोचिंग छात्रो को शोध  की सोच समाप्त कर देती है---

                  इन्फोसिस  के जनक   नारायण मूर्ति  ने एक बयान मे  देश के कोचिंग संस्थानो पर हमला करते हुए कहा की आईआईटी और आईआईएम  की प्रतियोगिता  के लिए इन संस्थानो  द्वारा जिन तरक़ीबों  का प्रयोग किया जाता है ,, उनसे बच्चो  ने पूछने और सोचने की तार्किक  बुद्धि समाप्त हो जाती है | फलस्वरूप वे जब  अपने संस्थानो मे अध्ययन  के लिए आते है ,,तब उनमे कुछ नया सोचने या करने की छमता नहीं बचती | परिणाम यह होता है की वे  कुछ भी नया करने का सोच ही नहीं पाते | इसीलिए कुछ नया शोध  नहीं हो पा रहा है | इसीलिए  ये संस्थान  अब कुछ भी नया  देश या समाज को नहीं दे पा रहे है | यह सही है की  सरकार इन संस्थानो के छात्रो पर करोड़ो रुपये खर्च करती है | परंतु  यहा से पास हुए छात्र  या तो मल्टी  नेशनल कंपनी मे  चले जाते है और प्रतिभावन  लोग विदेश मे जा कर बस जाते है |
                  प्रोफ  यशपाल  ने भी कुछ समय पहले कहा था की हमारे संस्थानो मे कुछ भी नया  नहीं हो रहा है | इसका कारण ‘’रट्टन्त””  है अर्थात  वे रट कर विषय  पढते है | समझ कर नहीं | जिसके कारण उनकी पूछने की छमता  खतम हो रही है | जिसके कारण कुछ भी नया हमारे कैम्पस  से नहीं निकल रहा है ,, सिर्फ डिग्री धारी  ही निकल रहे है | जो उतना ही जानते है जितन उनको पढाया गया है | जबकि अपेक्षा थी की इन संस्थानो मे  पड़ने वाले  कुछ नया करने की सोच रखेंगे | परंतु  कोचिंग से  प्रतियोगिता मे सफल होने के बाद उनका  सारा ध्यान कैम्पस सेलेक्सन  की ओर रहता है | उनके सीनियर्स  या पीयर्स  भी उनकी प्लेसमेंट की महत्वकाँछा को ही हवा –पानी  देते है |
           वैसे  छात्रो के माता-पिता  अपने बच्चो पर  इन संस्थानो की प्रतियोगिता मे सफल होने के लिए इतना ‘’’’मानसिक दबाव ‘’’’ बना देते है की वह अपनी ओर से कोई निरण्य नहीं ले पता |  बिलकुल ‘’थ्री ईडियट ‘’’ फिल्म के पात्रो की भांति |  अगर इस कोचिंग की बुराई के जड़ मे जाये तो अभिभावक  ही बच्चो को कोचिंग मे भेजने के जिम्मेदार है | वे अपने सहकर्मी – मित्रा –या संबंधी से सुन कर किसी कोचिंग के बारे रॉय बनाते है |  इस मामले मे  ‘’’कहा सुना प्रचार ‘’’ ही ज्यादा काम आता है | शत –प्रतिशत  अभिभावक  स्वयं इतने विषय  पारंगत नहीं होते की वे कोचिंग की ‘’फ़ैकल्टी ‘’ की योग्यता को परख सके | अधिकतर  जो लोग इन्हे पढाते है वे “””ज्ञान “”” नहीं देते वरन सफल होने की टिप देते है | कुछ कोचिंग वाले तो अपनी   दूकान चलाने  के लिए  ‘’’पतियोगिता का प्रश्न पत्र “”” तक  लीक कराते है –जिस से की उनके यहा के छात्रो  का सफलता प्रतिशत  अन्य कोचिंग की तुलना मे अधिक हो || जिस से की परिणाम आने के बाद  वे समाचार पात्रो  मे फूल पेज  विज्ञापन देते है जिसमे सफल हुए लोगो की रैक और चित्र छापते है |  सौ मे से अगर सात –आठ भी सफल हो गए तो  वे फिर  क्रैश  कोर्स  – तीन माह का और एक साल का या दो साल के कोर्स भी बताते है | जीतने कम समय  का कोर्स  उतन्नी ज्यादा  रकम फीस के रूप मे ली जाती है |
       एक कोचिंग वाले ने स्वीकार किया की  हम कोर्स  नहीं पढाते हम तो  प्रतियोगिता के  संभावित  प्रश्नो  के ‘’’उचित’’’ उत्तर  बताते  है | जिस से की वह  अधिक से अधिक  नंबर लाकर  मेरिट मे स्थान पा जाए |  किसी भी विषय मे सैकड़ो प्रश्न  पूछे जा सकते है ---परंतु  ओब्जेक्टिव  प्रणाली ने परीक्षक  का काम आसान कर दिया है | विज्ञान आय प्रबंधन मे  इस प्रणाली से “”” केवल सही और गलत “”” का उत्तर होता है | जबकि काले –सफ़ेद के अलावा ज्ञान के छेत्र मे ग्रे  एरिया भी होता जिसके बारे उसे कुछ भी नहीं पट होता | क्योंकि उस ओर उसे देखने ही नहीं दिया जाता है | जबकि प्रश्न करने पर ही छात्र उनके उत्तर का प्रयास करेगा ---तभी तो वह ---इस लीक से हट कर सोचेगा और कुछ नया करे की कोशिस करेगा |
  परंतु अरबों रुपये वाले इस धंधे को चलाने वाले  जब –जब कोचिंग पर रोक का सरकार मन बंता है तब सरकार एक बयान देकर चुप हो जाती है | यही बात हमारे पूर्व राष्ट्रपति  भी अपने दीक्षांत  भासन मे कह चुके है की ---छात्रो को संभोधित करते हुए उन्होने कहा था की “””” आप लोगो को समझना चाहिए की  सरकार और समाज का बहुत क़र्ज़  आप पर है | जिसे आपको चुकाना है |  शिलांग से पूर्व अपने एक भासन मे कहा था की हमे अगल – बगल की तस्वीर बदलने के लिए अर्जित ज्ञान का उपयोग करना चाहिए | तभी हम देश क़र्ज़ चुका पाएंगे |       कोचिंग की यह बीमारी हुमे झूठी दिलासा देती है –प्रथम स्थान के सपने दिखाकर  वे सौ मे से सात बचो की सफलता भुनाते है वह  उनके दावो की पोल खोलता है | परंतु सेकंड चान्स की मानसिकता माता –पिता की जीवन भर की पूंजी खा जाती है | सरकार निजी कालेजो की फीस पर तो नियंत्रण तो कर नहीं प रही –क्योंकि उनमे अनेक ‘’’राजनीतिक नेताओ ‘’’का पैसा लगा है | कर्नाटका –महाराष्ट्र  मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश  शामिल है|जबकि  इंका सेंटर आजकल राजस्थान का ‘’कोटा’’ है | जनहा सभी दौड़े चले जा रहे है | कोई भी कोचिंग स्थायी फकल्टी नहीं रखता है प्रति लेक्चार महनतना दिया जाता है | उनकी योग्यता भी नहीं बताई जाती जब ब्रौचर दिया जाता है ||

आज व्यापम और डी मैट जैसे प्रतियोगिताओ मे किस प्रकार की धधली हुई है की चालीस से ज्यादा लोगो की मौत हो चुकी है और अब सुप्रीम कोर्ट  ने सीबीआई को सारे मामले की जांच को कहा है |शिक्षा  को ‘’धंधा’;’’’ बनाने वाले इन संस्थानो की भी जांच होनी चाहिए || हा इस बदबोदर कीचड़ मे भी एक फूल है  वह है पटना का टी 30 जिसमे पैसे के बल मे कोई भर्ती नहीं हो सकता | सामाजिक स्थिति ही वह निर्णायक है |

सती प्रथा के पश्चात संथारा को गैर कानूनी

 सती प्रथा  के पश्चात संथारा को गैर कानूनी बनाना उचित ?

   विलियम  बेनटिक ने ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर गेनरल के रूप मे 19वी सदी के प्रथम भाग मे “”” सती प्रथा “”” को गैर कानूनी घोषित किया था | राजा राम मोहन रॉय  ने 1820 मे कलकत्ता मे ब्रामहो समाज की स्थापना की थी | जिसका उद्देस्य  वेदिक धर्म मे पनपी कुरीतियो  को समाप्त करना था | उस समय जाति को लेकर ज्झूठी  शान और –अहंकार  से वहा  का ब्रामहण समाज  ओत – प्रोत था | ऊंची जाति मे पहचान बनाने के लिए  लोग बच्चियो की शादी उनके बाबा के उम्र वाले लोगो के साथ कर देते थे | जिसका परिणाम होता था की एक बुढऊ के परलोक गमन से तीन –चार स्तरीय विधवा हो जाती थी | परिवार वाले उन्हे ‘’अपशकुन ‘’’’मानने के कारण उन्हे काली घाट या बेनारस अथवा मथुरा ले जाकर छोड़ आते थे |  परिणाम यह होता था की इन धार्मिक स्थानो के पंडे - – पुजारी  इन महिलाओ का शोसन किया करते थे | अधिकान्स्तः  या तो भीख मांगने  अथवा वेश्यव्रती करने पर मजबूर होती थी |
                   अनेक स्थानो पर उच्च कुल के ब्रम्हाणो के साथ नयी पत्नी को सती भी करने की प्रथा थी | इस प्रथा का विरोध करने पर तत्कालीन पंडे-पुजारी  लोगो की धार्मिक भावना भड़काते थे |सुधार वादी लोग मारे पीते जाते थे और अधिकतर घटनाओ मे मौते भी हुई | विधवा स्त्री को ''भांग ''''पिलाकर""" सबके सामने सर हिला कर सती होने के लिए उसकी ''सहमति''' का प्रचार किया जाता | यद्यपि वेदिक धर्म मे सती परंपरा का कोई उल्लेख नहीं है  ना ही कोई प्रमाण |  हा मध्य काल मे  राजपूतो की महिलाओ ने  मुगलो से अपनी इज्ज़त बचाने के लिए  अग्नि मे समा कर जान देना अधिक उचित माना | पुराणो मे भी ''' अग्नि मे प्राण देने का उल्लेख नहीं है |महाभारत मे माद्री द्वारा  महाराज पांडु के देहावसान  पर सती होने का उल्लेख है | परंतु युद्ध मे वीरगति प्राप्त कौरव वीरों की पत्नियों द्वारा अग्नि  प्रवेश का उल्लेख नहीं मिलता |विदेशी हमलावरो से इज्ज़त की रक्षा सनातन धर्म मे अत्यंत महत्वपूर्ण कहा गया है | यही घुट्टी कन्याओ को पीटीआई की ज्यादतिया सहने पर मजबूर करती थी | फिर विधवा को असगुन और कलंक मानकर घर से बाहर करदेना सनातन धर्म मे मानने वालों मे आम धारणा थी |  परंतु क्या सती प्रथा ''धार्मिक'''' है ? इस पर आज 21वी सदी मे कोई भी सहमत नहीं होगा | सिवाय उनके जो आज भी ""धर्म """ के नाम पर दक़ियानूसी  रिवाजो को चलना छाते है |

            संथारा भी  जैन मत की एक परंपरा है जिसमे  आयु एवं रोग के कारण जर्जर  शरीर को उपवास करके छोड़ने की प्रक्रिया करता है | वैसे यह प्रत्येक व्यक्ति का निर्णय है की वह जीवन कैसे जिये ---परंतु जीवन को '''अंत'' करने की अनुमति  राज्य नहीं देता है | वह उसे ''अपराध की श्रेणी मे रखता है |  राजस्थान उच्च न्यायालय  द्वारा  के मुख्य न्यायाधीश  अंबवानी और जज  अजित सिंह द्वारा इस प्रथा को  भारतीय दंड संहिता  की धारा 306 के अंतर्गत ''आत्महत्या के लिए उकसाना माना है | चूंकि  इस फैसले से जैन समाज मे रोष है और वे इसे धार्मिक पारम्पराओ मे हस्तछेप मानते है | परंतु चाहे हिन्दू कोड बिल हो या --शहबानों  प्रकरण हो अथवा मौजूदा मामला हो  सुप्रीम कोर्ट  मे ही निपटारा होता है || इसलिए नहीं की ''वह सही होता है '''''''वरन इसलिए की सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अपील नहीं कोटी """|   

                  

Aug 10, 2015

धर्म - जाति और इलाके को लेकर संघर्ष क्या उचित है ??

 धर्म –जाति और इलाके को लेकर संघर्ष क्या उचित है ??

        जननी – जनक  और जनम भूमि तथा वर्ण यानि गोरे – काले आदि होना ,, किसी भी धर्म के  अनुसार मानव के अधीन नहीं है |  एवं इन्ही से  मानव को  उसकी जाति  और धर्म भी प्राप्त होते है |   यह सर्व विदित  सत्य है | परंतु फिर भी दुनिया मे  जीतने भी  संघरष हो रहे है  उनके मूल मे  यही दो तथ्य –धर्म –जाति  ही युद्ध के लिए सन्नध कर देते है |  इलाकाई  लड़ाई तो हम अरब  के छेत्र मे देख  रहे है | यमन – सीरिया  और –सूडान  इसके उदाहरण  है |  शिया – सुन्नी  का झगड़ा  भी इसी आधार पर हो रहा है | बिहार और उत्तर प्रदेश  मे तथा  दक्षिण मे  भी जातियो को लेकर संघर्ष  इसी कारण हो रहे है | जबकि अटल सत्य यह है की  इनमे से कोई भी आधार  चुनने  का विकलप  मनुष्य को नहीं है –ना ही वह इस हक़ीक़त को बदल  सकता है |
                   क्या  इस हक़ीक़त  को कोई भी चुनौती दे सकता है ?? अगर नहीं तब फिर उस तथ्य को लेकर बिना ‘’जाने या पहचाने’’’ शत्रुता  क्यो ? क्या यह कुछ “”लोगो “”” की महत्वाकांछा का जरिया तो नहीं है ?   इतने धर्म गुरु क्या  इन सवालो का जवाब देने मे सक्षम है क्या ??
                   आज  समाज मे इस तथ्य को लेकर  अनेक  –जातियो के ना केवल संगठन बने है वरन  उनके ‘’धर्मगुरु “”” भी बन गए है | वैसे देखे तो  विभिन्न धर्मो  मे व्यक्ति को धार्मिक  रूप से प्रवेश के लिए  अनुष्ठान  करना होता है |  जैसे  इस्लाम मे “”सुन्नत “” होना और ईसाई धर्म मे बपतिस्मा  होना  और यहूदी धर्म मे भी मिसवाह  पड़ा जाता है |  इसका तात्पर्य  यह है की  जो जन्मा है  उसका कोई धर्म नहीं होता है | यद्यपि वेदिक धर्म मे  जन्म लेते ही मनुष्य को  उसकी जाति और धर्म मे प्रवेश  मिल जाता है |फिर  चाहे वह गोरे रंग का हो या काला हो या सावला हो | यद्यपि यही सत्य अन्य धर्मो मे भी लागू होता है |
                      गुलामी की प्रथा वैसे तो सभ्यताओ  की सबसे बड़ी असभ्यता थी | परंतु  यह सैकड़ो या हजारो वर्षो तक  जारी रही |  18 वी  सदी से इस प्रथा को यूरोप  मे बंद करने की कोशिस हुई | यद्यपि एशिया  मे उस से पहले इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने की सफल कोशिस हुई |  अमरीकी राष्ट्रपति  अब्राहम लिंकन  ने इस मुद्दे पर तो विभाजित देश को बचाने के लिए सालो तक युद्ध किया \ एवं गुलामी के समर्थक दक्षिणी  राज्यो को  पराजित किया | लेकिन  दासों को मुक्त किए जाने के बाद भी इन राज्यो के लोगो के मन मे जो नफरत  ‘’कालो’’ के मन  थी वह आज भी  ‘’रंगभेद’’ के दंगो मे उभरती है | अमरीका के कानून मे   स्कूलो – कालेजो मे अस्पतालो मे जो ‘’चमड़ी के रंग ‘’’ के आधार पर  अलगाववाद  किया जा रहा था  -- उसको  पादरी मार्टिन लूथर किंग जूनियर  के “”लाँग मार्च “” के बाद ही  खतम किया जा सका | जब काले और –गोरे  साथ – साथ पढने और बैठने का अधिकार मिला || और यह सब 20वी सदी मे हुआ |
             यह उस देश क्मे हुआ जो मानव अधिकारो की दुंदुभि सारी दुनिया मे बजाता आ रहा है | जबकि सभी को मालूम है की कोई भी मनुष्य “””एप्लिकेशन दे कर अपने माता-पिता और जनम भूमि “”””का चुनाव करने का विकल्प नहीं रखता है | फिर भी झगड़े जारी है | यही सत्य है जैसे यह की  बेईमानी से कमाए  धन से ना तो स्वास्थ्य –नाही सुख  प्राप्त कर सकता है |फिर भी भाई – भाई मे झगड़ा होता है | कितने हंसी की बात है |
       



Aug 7, 2015

क्या राजीव गांधी के हत्यारो को सज़ा की जगह रिहा किया जाएगा

क्या राजीव गांधी के हत्यारो को रिहा किया जाएगा ? 21 मई 1991 मी श्रीपेरंबदूर मे तमिल उग्रवादी संगठन “”लिट्टे’’ के लोगो के द्वारा राजीव गांधी की हत्या करने वाले अपराधियो को जेल से छोड़े जाने का निश्चय तमिलनाडू सरकार ने लगभग कर लिया है | याक़ूब को फांसी दिये जाने के मसले पर मीडिया मे हुए विवाद मे एक प्रश्न यह भी उठा था की पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी और पंजाब के मुख्य मंत्री बेअंत सिंह की हत्या करने वाले अपराधियो को क्यो नहीं फांसी दी गयी ?राजीव गांधी की हत्या के मामले मे 6 अभियुक्त जेल मे है | जबकि बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजौरा को 2007 मे फांसी की सज़ा सुनाई जा चुकी है परंतु बादल सरकार पंजाब मे राजौरा को फांसी “””नहीं देने “””की वचन बढ़ता बता रहे है | गौरतलब है की बेअंत सिंह के हत्यारो को पंजाब की जेल मे तबादला किए जाने को लेकर पंजाब की अकाली सरकार और केंद्र के मध्य टकराव की स्थिति बन गयी थी | कई बार तो इतनी ज्यादा राजनीतिक खीच- तान हो गयी थी की लगता था की एनडीए गठबंधन की एकता मे दरार सी पड़ने की संभावना सी लगने लगी थी | जबकि बात सिर्फ एक क़ैदी के जेल के तबादले भर की थी!!! राजनीतिक हत्या का दौर तो देश को आज़ादी मिलने के साथ ही शुरू हो गया था ,||, जब राष्ट्र पिता महात्मा गांधी को दिल्ली के बिरला मंदिर मे उनकी सायंकालीन प्रार्थना सभा मे 30 जनवरी 1948 को नाथुराम गोडसे ने गोली मार कर हत्या कर दी थी | गोडसे किस विचार धारा का था? किस संगठन से जुड़ा हुआ था ? किन लोगो ने या संगठनो ने उसके अपराध के लिए सुविधा मुहैया कराई आदि अनेक प्रश्न उठे थे | शिमला मे अदालती कारवाई के बाद 8 नवम्बर 1949 गोडसे को फांसी की सज़ा सुनाई गयी | उस वक़्त भी बहुत से “””कट्टर हिंदुवादी संगठनो ने “” गोडसे को फांसी की सज़ा माफ किए जाने की कोशिस की थी | परंतु राष्ट्र पिता की हत्या देश की जनता की ‘’समवेदनाओ “”’ से जुड़ा हुआ था इसलिए गोडसे को 15 नवम्बर 1949 को अंबाला जेल मे नारायण आपटे के साथ फांसी दे दी गयी | गोडसे के समर्थक कुछ हल्कों मे ही सिमट के रह गया था |कोई महत्वपूर्ण प्रतिक्रीया नहीं हुई थी | उस समय गिने –चुने अखबार ही थे | हा कुछ मराठी पत्रिकाओ मे जरूर यह लिखा गया की गोडसे ने “””क्यो हत्या की “””| मुख्य कारण पाकिस्तान को वित्तीय मदद के लिए महात्मा द्वारा दबाव बनाए जाने के खिलाफ था |इस तरह देश के लिए पहली ह्त्या की “”बलि “” राष्ट्रपिता की हुई | गोडसे के भाई गोपाल ने कहा था की “””हम चरो भाई नाथुराम – दत्तात्रेय – गोपाल और –गोविंद चरो ही राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के सदस्य थे ,,हत्या के समय भी | दूसरी राजनीतिक हत्या भी पंजाब के तत्कालीन मुख्य मंत्री प्रताप सिंह कैरो की हुई | उस समय भी इस हत्या को “’रंजिश”””का कारण बताने की कोशिस हुई थी --- इस कांड मे भी एक अकाली दल का नाम लिया गया था | हत्यारे सुचचा सिंह को नेपाल मे गिरफ्तार किया गया था | अदालती कारवाई के बाद उसे फांसी पर लटका दिया गया | आपरेशन ब्लू स्टार 3 जून से 8 जून तक चला लगभग पाँच सौ से ज्यादा लोग मारे गए | सिख समुदाय मे स्वर्ण मंदिर को लेकर भावनाए आहात थी | सेना के भी कुछ लोगो ने बगावत करी | प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी को सिखो का शत्रु मानते हुए उनके ही अंग रक्षक बेअंत सिंह ने उनकी हत्या कर दी | देश मे सिखो के विरुद्ध उपदरव हुए सैकड़ो लोग मारे गए | तीस साल बाद अभी भी सिख अपने साथ हुए “””अन्याय””” की गुहार देश और विदेश मे लगाते रहे है | अकाल तख़त ने 2007 मे बेअंत सिंह को सतवन्त सिंह को और केहर सिंह को शहीद का दर्जा दिया | प्रधान मंत्री के हत्यारे को “””धार्मिक सम्मान””’ देकर “””पंथिक “” सर्वोचता संदिग्ध कर ली है | खैर इन्दिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह की मौत गार्ड हाउस मे हुई झड़प मे हुई और सतवन्त तथा केहर सिंह को फांसी की सज़ा हुई | परंतु क्या राजीव गांधी के हत्या के छह अभियुक्तों को सज़ा मिल पायी ?? सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम अपील मे फांसी की सज़ा बहाल राखी | परंतु वारंट नहीं जारी किया | दूसरी अपील मे सज़ा को आजीवन कारावास मे बादल दिया गया | और अब तमिलनाडु सरकार इन छह अपराधियो को इस तर्क के आधार पर रिहा करने की दलील सुप्रीम कोर्ट मे दी की अगर महात्मा गांधी के हत्यारे गोपाल गोडसे को सोलह साल जेल का कारावास काटने के बाद रिहा कर दिया गया | तो राजीव गांधी के हत्यारो को क्यो नहीं ?? यक्ष प्रश्न यही है क्या की राजीव गांधी को न्याय मिला ??

Aug 6, 2015

शत वार्षिकी माना चुकी रेल्वे --सौ साल पुराने पुलो पर !

शत वार्षिकी मना चुकी रेल्वे सौ साल पुराने पुलो पर !

              1856 मे जब   बॉम्बे  से पूना की ओर  भाप से चलने वाले इंजिन को  देख कर स्थानीय लोग अचरज से भर उठे थे | परंतु वह प्रयास देश की परिवहन व्यवस्था मे एक क्रांतिकारी कदम था | जिसने ना केवल देश को एक छोर से दूसरे छोर से मिलाया ,वरन उयोग और  व्यापार को  बढावा दिया | कलकते के मुहाने से बनारस होते हुए पटना तक चलने वाले नौकायन को इस रेलगाड़ी ने बिलकुल बंद सा ही करा दिया | आज यह इतिहास की बात हो गयी है ,की गंगा नदी मे बड़ी – बड़ी नौकाओ से लोग यात्रा करते थे और माल भी ढोया जाता था |तब से  अरबों –खरबो टन माल तथा  करोड़ो यात्रियो को उनके गंतव्य तक पहुंचाया है |
                    परंतु  जिन लोहे की पटरियो पर इंजन डब्बो के साथ दौड़ते थे  वे तो  बदली गयी  और उनकी मरम्मत भी होती रही है | इसलिए अभी भी  रेलगाड़ी  दौड़ रही है ,भले ही उसमे कभी –कभी  रुकावते आती रही हो |  वैसे  भी जब कभी जन आंदोलन  होते है तो सड़क पर बसे जलती है और रेलगाड़ियो को नुकसान भी पहुंचाया जाता है –कभी कभी  आग भी लगती है |
          परंतु इधर कुछ समय से  रेल्वे  के पूल और पुलिया  भी गाड़ी की                 
रफ्तार और दिशा पर रोक लगा रही है | इस समय  रेल्वे के पास 1 लाख 38 हज़ार 312  पूल – पुलिया  के संसाधरण का जिम्मा है |   परंतु आसचर्य है की इनमे 35 हज़ार 437  पुलिया और पुल  भी सौ साल से पुराने है | ताज्जुब  इस बात का है  की  रेल्वे के अधिकारी  और केंद्र सरकार  दोनों ही इस “”””हक़ीक़त””से अंजान रहे !  अभी हरदा के समीप  हुई कामायनी और जनता  एक्सप्रेस के  नाले मे गिरने से  तीस से ज्यादा  लोग मारे गए और  16 अगस्त तक  तीस से ज्यादा ट्राइनो के रूट  बदले गए दस ट्रेन  कंसिल की गयी और  छह ट्रेनों के समय बदले गए है | अब इसका  सिर्फ एक कारण है  इन पैंतीस हज़ार पुल और पुलियो का उचित रख –रखाव नहीं होना  क्या अभी भी सरकार जागेगी या फिर रेल्वे को निजी  हाथो मेदेने का राग अलापेगी ?


  

Aug 4, 2015

अगले जनम मोहे बिटिया ना दीजों

अगले   जनम  मोहे  बिटिया ना दीजों

   कन्या की हमारे समाज मे भेदभाव और दुर्दशा पर निर्मित उक्त टी वी सिरियल  """बिटिया दिवस ""' या कहे सावन के पहले  सोमवार  को सिवनी  की आईएएस  ट्रेनी  रितू बाफना की व्यथा -कथा से साफ हो जाता है की , आर्थिक या शासकीय रूप से आप कितनी ही सफल हो ,परंतु रूड़ीग्रस्त  समाज मे ""औरत "" तो फिर है औरत ही !  मानवाधिकार मित्र की पदस्वी धारी एक व्यक्ति संतोष चौबे  बफना को '''अश्लील  संदेश ""'व्हाट्स एयप ""' पर भेजा करते थे | जिसकी शिकायत पुलिस मे दर्ज़ तो कर ली गयी |,परंतु जब यौन पीड़िता  बयान के लिए अदालत गयी ,तब उसने कानूनन  ऐसे मामलो मे ""कमरे मे सुनवाई ""' की मांग की | उसका कहना था की उसकी निजता  की रक्षा के लिए यह आवश्यक है | परंतु न्यायिक माजिस्ट्रेट ने उनके अनुरोध को ठुकरा दिया |इतना ही नहीं अदालत मे मौजूद वकील ललित शर्मा  चिल्ला कर बोले ""आप आईएएस होगी अपने आफिस मे यहा यह कहने की आपकी हिम्मत कैसे हुई "" उन्होने कहा की मै अदालत से बाहर नहीं जाने वाला हूँ """ |
                       इस घटना से दो तथ्य स्पष्ट है की  सुप्रीम कोर्ट द्वारा  महिलाओ के यौन उत्पीड़िन  के मामलो मे ""कुछ भी निर्देश श्सन या न्यायिक अधिकारियों '''' को हो उनके लिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश """ निरर्थक""" है | पीड़िता की व्यथा उसके द्वारा  फेस बूक पर की गयी उसकी पोस्ट से व्यक्त होती है जिसमे वह लिखती है की """ मै तो सिर्फ यही दुआ कर सकती हूँ की इस देश मे कोई महिला ना जनम ले """ दूसरी जगह वे लिखती है की """यहा तो हर शाख पर उल्लू बैठे है """ | सम्पूर्ण डेस्क मे हुई प्रतियोगी परीक्षा मे सफल होना देश के अधिकतर युवा लोगो का सपना होता है | क्योंकि उनको लगता है की अधिकार के साथ वे लोगो की "रक्षा'' कर सकते है | परंतु यहा तो  ''खुद'' की इज्ज़त बचाना ही मुश्किल है | सबसे धन्य तो वे मैजिस्ट्रेट  साहब है जिनहोने तनिक भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की परवाह नहीं की | बल्कि एक ''सामकच्छ"" अधिकारी के वैधानिक अधिकार की रक्षा नहीं की | प्रतियोगी परीक्षाओ  मे न्यायिक सेवाओ का स्थान सबसे आखिरी मे आता है | शायद यह हीं भावना उन्हे  वकील साहब का पक्ष लेने पर मजबूर किया |

   यह घटना शासन -- उच्च न्यायालय और मानव अधिकार आयोग सभी के लिए शर्मनाक है | अभियुक्त संतोष चौबे की गिरफ्तारी  भी नहीं हुई | टेरी के महानिदेशक  डॉ पचौरी ऐसे अंतर्राष्ट्रीय   वैज्ञानिक  को  जेल जाना पड़ा और नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा ---लगता है सिवनी ज़िला प्रशासन के लिए उक्त अभियुक्त कोई राजनीतिक नेता का संरक्षण प्राप्त है अन्यथा इतनी हिमाकत तो  'मूर्ख''' भी नहीं करता | यहा यह बताना समीचीन होगा की की रितू के पति आईपीएस अफसर है | अब ऐसे लोग अदालतों से पीड़ित हो तो   आम आदमी  न्याय की कैसे आशा करे इस तंत्र से  ??

Aug 3, 2015

मिडियाक्रिटि और  संस्थानो  के  मुखियाओ की नियुक्ति

      सरकारे  बनती है चुनाव मे बहुमत पाने के उपरांत ,, और हर सरकार किसी न किसी दल या दलो के गठबंधन की बनती है | परंतु गणतन्त्र  के  साठ वर्षो  मे निर्मित कुछ संस्थानो  की निसपछता  और योग्यता  पर कभी “”छिछलते”” हुए  वार तो हुए है  ,परंतु  कभी भी ‘’बंटाढार “”” नहीं हुआ | जो  शायद अब हो रहा है |सवाल किसी की ‘’अपूर्णता अथवा अनुपयकता से नहीं है | परंतु अगर डी आर डी ओ  मे ऐरो डायनामिक्स  के सफल इंजीनियर  के स्थान पर  ‘’’’जलीय  जीवन’’’ के डाकटरेट को मुखिया बनाना  क्या सिद्ध करता है ?? यही की हमारे  लिए नियुक्ति  मे योग्यता से ज्यादा “”निर्णायक”” हमारे साठ समबद्ध होना है |  इतिहास परिषद  मे  अब ऐसे लोगो को नामित करना जो “”पौराणिक “” तथ्यो  को वैज्ञानिक सिद्ध  करने की असफल कोशिस कर रहे है | साइंस  काँग्रेस मे  “”पुष्पक विमान”” की अवधारणा को वैज्ञानिक  और ‘’वायु शास्त्र’’ पर आधारित  कर के   एक दिनी सनसनी  तो पूना के एक व्यक्ति ने  पैदा कर दी थी | परंतु तीन दिन के सत्रह के बाद इस अवधारणा को कपोल कल्पित ही सिद्ध किया गया | इतेफाक से साइन्स  काँग्रेस का उदघाटन भी प्रधान मंत्री  नरेंद्र मोदी ने ही किया था ,और अपने भासण मे अपने वेदिक ज्ञान  को वैज्ञानिक आधार  देने का आग्रह भी किया था ||
          योजना आयोग  जो देश और प्रदेशों के लिए योजनाओ का नियोजन  और वित्तीय सहायता  का प्रबंध  करने का था | जो  संस्था पिछले पचास सालो से  यह काम कर रही थी ---उसे  मोदी सरकार ने  “”निरर्थक’””’ घोषित कर दिया | उसकी जगह पर नीति आयोग  बना दिया | जिसमे राज्यो को  अपना पक्ष  रखने का मौका दिया जाएगा ---क्या योजना आयोग मे राज्यो को अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं मिलता था ??  मेरे अपने अनुभव  से यह कह सकता हूँ की  विभाग  के सचिव  योजनाओ के लिए वित्तीय पोषण  के लिए योजना आयोग के सामने जाना होता था –इसके लिए बहुत तैयारी भी होती थी | केंद्र समर्थित योजनाओ मे अपने हिस्से के लिए  भी आकडे एकत्रित किए जाते थे | जनसंख्या  और पिछड़ापन  अक्सर  वित्तीय पोषण  का आधार होता था | इस प्रकार से केंद्र को राज्यो के विकास का अंदाज़ भी रहता था | परंतु नीति आयोग मे अभी तक  उप समितीय ही काम कर रही है –प्राथमिकता और वित्तीय पोषण की व्यसथा  का अभी स्वरूप नियत नहीं हुआ है |
          फिल्म ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया  फिल्मों की दुनिया मे एक “” सम्मान “” का स्थान रखता है | इस संस्थान से निकले अभिनेता और अभिनेत्री  और निर्देशक आज देश ही नहीं विदेशो मे भी जाने  जाते है | फिल्म एक शासक्त माधयम है और उद्योग  भी है | जिसमे अरबों रुपये का निवेश है और अरबों रुपये का  राजस्व भी राज्यो को मिलता है |सेंसर बोर्ड  के सदस्यो के रवैये  को लेकर भी हाल मे विवाद हुआ था | कारण था की कुछ नए सदस्यो को कुछ फिल्मों के द्राशयों को “भारतीय संसक्राति’’ की भावना के विपरीत पाया ,और  उस फिल्म मे काट – छाँट कर दी | मामला अदालत तक पहुंचा –अखबारबाजी  भी हुई | तब सेंसर बोर्ड का एक अधिकारी  रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया | फिर बोर्ड का  पुनर्गठन  हुआ , पर कोई नामची  कलाकार  नहीं मिला | वही एफटी टी आई  के निर्देशक  के रूप मे गजेंद्र चौहान  की नियुक्ति  ने पुनः कॅम्पस  मे हलचल मचा रखी है , वहा के छात्र   जंतर – मंत्र पर धरना दे रहे है | गजेन्द्र  की योग्यता सिर्फ इतनी है की वे महाभारत मे युधिस्टर  बने थे वही उनकी सबसे बड़ी पहचान है फिल्मी दुनिया मे |  मुंबई की फिल्म सिटी मे सम्पूर्ण फिल्मे बनती है और टीवी  के लिए  सीरियल  भी बनते है | दोनों का बाज़ार और दर्शक  अलग है |  टी वी  के लिए बनाने वाले निर्माता  और अभिनेता  सदैव फिल्म की ओर मुंह करते है | क्योंकि टी वी उन्हे दर्शको तक पहुंचाए भले ही  परंतु स्टार  की पहचान नहीं दिला सकता | इस श्रेणी मे भीष्म पितामह और शक्तिमान का रोल निभा चुके मुकेश खन्ना चर्चित तो हुए परंतु फिल्मों मे उनकी भी चौहान की तरह “””नो एंट्री “””” रही | यही तथ्य स्पष्ट करता है की चौहान निर्देशक पद के लिए “”” उपयुक्त’’ नहीं है |
              अब सवाल उठता है की फिर सरकार के लोगो ने क्या देख कर उन्हे इस पद के योग्य समझा ?? जवाब है की राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ की संबद्धता –क्योकि संघ मे “””सदस्य:””” का कोई कालम है ही नहीं |  इस लिए कोई भी फिल्मी दुनिया का आदमी जिसकी इज्ज़त हो और मान्यता हो वही सही व्यक्ति हो सकता है |

     रही बात की क्या काँग्रेस के जमाने मे ऐसी नियुक्तीय नहीं हुई ?? यह नहीं कहा जा सकता की शत प्रतिशत  योग्यता का मान दंड निर्णायक रहा हो | परंतु यह भी उतना ही सही है की  डॉ एय पी जे कलाम जैसा वैज्ञानिक  डी आर डी ओ  का निर्देशक रह चुका हो उस कुर्सी पर एक ऐसे व्यक्ति को बैठा देना जिसे रॉकेट प्रणाली और ऐरो डायनामिक्स का ज्ञान नहीं हो वह मूर्खता  की हद तक अनुपयुक्तता  है |

Aug 2, 2015

    शहादत को चुनौती देता बयान            
                हिन्दू आतंकवाद  पर काँग्रेस पार्टी के नेताओ के बयान पर  केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद  ने सीख  देते हुए टिप्पणी की “”” लगता है काँग्रेस को अभी भी  सबक नहीं समझ मे आया है “”” उनका इशारा  महात्मा गांधी –इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी  की हत्या की ओर था |  सत्तारूद दल के सदस्य द्वारा  राष्ट्र पिता और दो भूतपूर्व  प्रधान मंत्रियो की  हत्या के बारे मे  यह कथन  क्या इशारा करता है ---उसे समझना पड़ेगा |  देश की आज़ादी के बाद महात्मा गांधी  अपने आलोचको के गुस्से और घृणा के शिकार हुए और अहिंसा  के पुजारी की आवाज  हिंसा के माध्यम से दबा दी गयी |  सारे देश ने उनकी हत्या पर रोष व्यक्त किया ---जबकि उनकी हत्या करने वाला  संघ से जुड़े संगठन का सदस्य था | जांच मे यह तथ्य सामने आने पर तत्कालीन उप प्रधान  मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की गतिविधियो पर  रोक लगाने का फैसला लिया था |  यह दस्तावेजी सत्य है | इसमे कहा –सुनी और  गलतबयानी का कोई स्थान नहीं है |
             बांग्ला देश  को स्वाधीनता  दिलाने वाली राष्ट्र नेत्री  इन्दिरा गांधी  जब पंजाब के आतंकवादी  भिंडरवाले  द्वरा  स्वर्ण  मंदिर पर कब्जा किए जाने और  पुलिस अधीक्षक  और अन्य लोगो की हत्या  किए जाने पर जब प्रदेश सरकार  मजबूर हो गयी तब  उन्होने ‘’शांति – व्यवस्था “” के लिए सैन्य  कारवाई का फैसला किया |  इस कारवाई मे भिंडरावाले और उनके साथियो को मार गिराया  तथा बड़े हथियारो  का जखीरा  बरामद किया | बरामद हुए हथियार  यह स्पष्ट कर दिया की इन आतंकवादियो को  पाकिस्तान से मदद मिल रही थी | इस विदेशी  षड्यंत्र  को उन्होने ही खतम किया | पाकिस्तानी हुक्मरान  बंगला देश की करारी  हार के बाद  बदला लेने के लिए सतत  प्रयासरत थे ---- आपरेशन  ब्लू स्टार  उसी का परिणाम था |  कुछ अतिवादी संगठन  इस कारवाई से नाराज़ थे –उन्होने सिखो के मन जहर घोला और इन्दिरा गांधी को सिखो  का दुश्मन करार दिया | परिणाम स्वरूप  उनके सिख अंगरक्षक ने ही गोली मार कर हत्या कर दी | जबकि उन्हे  खुफिया सूत्रो ने  सुरक्षा से  सिखो को हटाने की सलाह दी थी | परंतु उन्होने किसी भी  जाति- धर्म  के आधार पर   अंगरक्षक  चुनने की सलाह को राष्ट्रिय एकता के विरुद्ध मानते हुए अपने हत्यारो को  दुति पर रखा | क्या उनके बाद कोई भी प्रधान मंत्री इतना ‘’’’साहस’’’ दिखा पाएगा ?  स्पेशल  प्रोटेकसन ग्रुप  जो अब प्रधान मंत्री  की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी निभाता है ---उसमे नियुक्ति के लिए अब सेना के तीनों अंगो और सभी पुलिस बलो  से चुने जाते है | उसके पहले उनकी पारिवारिक प्रष्ट भूमि – शिक्षा संस्थान और बाद मे उनके क्रिया कलापों  की निगरानी के बाद ही उन्हे एस पी जी  मे नियुक्ति मिलती है |
                 तीसरे गांधी की भी हत्या  उनके द्वारा श्री लंका से लिट्टे  के  आतंक को खतम करने  के समझौते के विरुद्ध लिट्टे के तमिल कार्यकर्ता  नाराज़ थे | श्रीपेरंबदूर  मे राजीव गांधी को जिस प्रकार चुनाव सभा  मे बम से उड़ाया गया  वह भी आतंकवाद का ही घिनौना चेहरा था |
    आतंक वाद के इन घटनाओ मे एक मराठी था –एक सिख था और तीन तमिल थे ---- कोई भी -मुसलमान नहीं था |  केन्द्रीय मंत्री रवि शंकर  प्रसाद जी ने क्या कहना चाहा था –वह तो वे ही स्पष्ट करे की --- वे मुलायम सिंह की तरह  अपने अफसर अनुराग ठाकुर  को “”” सुधर जाने  की सलाह देते है “””  उस अंदाज़ मे  उन्होने काँग्रेस को  आतंक वाद  खासकर हिन्दू आतंकवाद  के मामले मे सतर्क  रहे |  इसे नितांत अवांछनीय  ही माना जाएगा की “”’सिर्फ स्वयं को ही सही और अंतिम “”” मान कर किसी भी  असहमति को इस प्रकार  निरूपित करना निंदनीय है |