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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 4, 2015

अगले जनम मोहे बिटिया ना दीजों

अगले   जनम  मोहे  बिटिया ना दीजों

   कन्या की हमारे समाज मे भेदभाव और दुर्दशा पर निर्मित उक्त टी वी सिरियल  """बिटिया दिवस ""' या कहे सावन के पहले  सोमवार  को सिवनी  की आईएएस  ट्रेनी  रितू बाफना की व्यथा -कथा से साफ हो जाता है की , आर्थिक या शासकीय रूप से आप कितनी ही सफल हो ,परंतु रूड़ीग्रस्त  समाज मे ""औरत "" तो फिर है औरत ही !  मानवाधिकार मित्र की पदस्वी धारी एक व्यक्ति संतोष चौबे  बफना को '''अश्लील  संदेश ""'व्हाट्स एयप ""' पर भेजा करते थे | जिसकी शिकायत पुलिस मे दर्ज़ तो कर ली गयी |,परंतु जब यौन पीड़िता  बयान के लिए अदालत गयी ,तब उसने कानूनन  ऐसे मामलो मे ""कमरे मे सुनवाई ""' की मांग की | उसका कहना था की उसकी निजता  की रक्षा के लिए यह आवश्यक है | परंतु न्यायिक माजिस्ट्रेट ने उनके अनुरोध को ठुकरा दिया |इतना ही नहीं अदालत मे मौजूद वकील ललित शर्मा  चिल्ला कर बोले ""आप आईएएस होगी अपने आफिस मे यहा यह कहने की आपकी हिम्मत कैसे हुई "" उन्होने कहा की मै अदालत से बाहर नहीं जाने वाला हूँ """ |
                       इस घटना से दो तथ्य स्पष्ट है की  सुप्रीम कोर्ट द्वारा  महिलाओ के यौन उत्पीड़िन  के मामलो मे ""कुछ भी निर्देश श्सन या न्यायिक अधिकारियों '''' को हो उनके लिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश """ निरर्थक""" है | पीड़िता की व्यथा उसके द्वारा  फेस बूक पर की गयी उसकी पोस्ट से व्यक्त होती है जिसमे वह लिखती है की """ मै तो सिर्फ यही दुआ कर सकती हूँ की इस देश मे कोई महिला ना जनम ले """ दूसरी जगह वे लिखती है की """यहा तो हर शाख पर उल्लू बैठे है """ | सम्पूर्ण डेस्क मे हुई प्रतियोगी परीक्षा मे सफल होना देश के अधिकतर युवा लोगो का सपना होता है | क्योंकि उनको लगता है की अधिकार के साथ वे लोगो की "रक्षा'' कर सकते है | परंतु यहा तो  ''खुद'' की इज्ज़त बचाना ही मुश्किल है | सबसे धन्य तो वे मैजिस्ट्रेट  साहब है जिनहोने तनिक भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की परवाह नहीं की | बल्कि एक ''सामकच्छ"" अधिकारी के वैधानिक अधिकार की रक्षा नहीं की | प्रतियोगी परीक्षाओ  मे न्यायिक सेवाओ का स्थान सबसे आखिरी मे आता है | शायद यह हीं भावना उन्हे  वकील साहब का पक्ष लेने पर मजबूर किया |

   यह घटना शासन -- उच्च न्यायालय और मानव अधिकार आयोग सभी के लिए शर्मनाक है | अभियुक्त संतोष चौबे की गिरफ्तारी  भी नहीं हुई | टेरी के महानिदेशक  डॉ पचौरी ऐसे अंतर्राष्ट्रीय   वैज्ञानिक  को  जेल जाना पड़ा और नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा ---लगता है सिवनी ज़िला प्रशासन के लिए उक्त अभियुक्त कोई राजनीतिक नेता का संरक्षण प्राप्त है अन्यथा इतनी हिमाकत तो  'मूर्ख''' भी नहीं करता | यहा यह बताना समीचीन होगा की की रितू के पति आईपीएस अफसर है | अब ऐसे लोग अदालतों से पीड़ित हो तो   आम आदमी  न्याय की कैसे आशा करे इस तंत्र से  ??

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