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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 31, 2019


बलात्कारी -आतंकी को फांसी दो - 22 साल बाद अदालत ने निर्दोष माना ?र्ंप


आए दिन अखबारो मैं दुर्घटनाओ मैं मौत होने के बाद "” गुस्सायी भीड़ "” दोषी को फांसी दो के नारे लगाती हैं ! सरकार के मंत्री और पुलिस अधिकारी भी "”कठोर से कठोर कारवाई करने का बयान देते हैं | दोषी को बकशा नहीं जाएगा – राजनेता जनता के आक्रोश को शांत करने के लिए यह भी आश्वशन देते हैं | परंतु हक़ीक़त मैं देखा जाए तो क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार देशा मैं विगत बीस सालो मैं मात्र 48 लोगो को ही फांसी की सज़ा का पालन हुआ है ! इसके दो कारण हैं , पहला तो पुलिस या जांच एजेंसी की कारवाई ना तो पर्याप्त सबूत पाती हैं , इसलिए अदालत मैं उसकी टाय-टाय फिस्स हो जाती है | फिर पुलिस या सीबीआई अथवा एनआईए सारा दोष अदालत के माथे लगा देते हैं | चूंकि हमारे देश मैं अपने दायित्वों के प्रति "” Accountbility “” मैं असफल होने पर दोषी अधिकारी पर कारवाई करने का कानून नहीं हैं | गौर तलब है की पड़ोसी देश पाकिस्तान मैं ऐसा कानून हैं , जिसके तहत प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति के वीरुध मुकदमे चलाये गए हैं | नवाज़ शरीफ और आसिफ ज़रदारी इसी कानून के तहत जेल मैं हैं ,तथा परवेज मुशरफ देश छोड़ कर भागे हुए हैं |
उन्नाव के बीजेपी विध्यक कुलदीप सिंह सेंगर द्वारा एक लड़की से सतत बलात्कार किए जाने ,फिर विरोध करने पर उसके पिता को जेल भिजवा देने ,और पुलिस की हिरासत मैं मौत हो जाने की घटना के बाद जन आक्रोश पर उत्तर प्रदेश मैं रामराज का "”दावा"” करने वाले आदित्यनाथ योगी की सरकार को मामले की जांच सीबीआई को देनी पड़ी | पिछले सप्ताह जब लड़की उसकी चाची और उसके वकील रायबरेली से उन्नाव लौट रहे थे , तब एक ट्रक ने उनकी कार को टक्कर मार दी | परिणाम स्वरूप चाची और एक व्यक्ति की मौके पर ही मौत हो गयी | शिकायत करने वाली लड़की और उसके वकील बुरी तरह घायल हो गए !! फिलवक्त उनका इलाज़ लखनऊ मेडिकल कालेज के ट्रामा सेंटर मैं चल रहा हैं | प्रदेश के डीजी इसे एक "”सड़क दुर्घटना बता रहे हैं "” !! ट्रक की नंबर प्लेट को ग्रीस से छिपा दिया गया था | बजाय इसके की पुलिस इस काम को "”अपराध "” मानती , बह कहती है की ट्रक मालिक ने पाइस देने वालो की नजर से बचाने के लिए नंबर प्लेट छुपा दी थी ---वाह रे वाह यूपी पुलिस ! इस घटना को लेकर मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी मैं कराये जाने की मांग को लेकर , लखनऊ और दिल्ली मैं जन प्रदर्शन तो हुए ही , पर संसद के दोनों सदनो मैं विपछि सदस्यो ने गृह मंत्री अमित शाह से इस मामले मैं बयान की मांग की | जो सरकार ने अभी तक अनसुनी कर दी | इंदौर मैं नगर निगम को बैट से मरने वाले बीजेपी विधायक आकाश विजयवर्गीय की हरकत से नाराज प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने जो गुस्सा दिखाया था ,उससे लोगो को आभास हुआ था की सार्वजनिक जीवन मैं पार्टी सदस्यो के व्यवहार को लेकर वे खासे चिंतित हैं | परंतु उन्नाव के विधायक की इस हरकत पर उनका "”मौन "” रहना उस घटना को फीका कर देता हैं | जबकि आकाश बीजेपी के बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय के चिरंजीव हैं ! अब या तो कुलदीप सेंगर का मसला पार्टी के लिए प्रतिस्था बन चुका हैं , अथवा योगी जी ने इसे अपने सम्मान का प्रश्न बना चुके हैं ---क्योंकि सेंगर भी एक ठाकुर है !!!
ऐसे उदाहरण जब समाज के मन को झकझोरते रहेंगे और लोगो के मन मैं सवाल उठते रहेंगे तब क्या लोगो की बलात्कारी और -हत्यारे को फांसी की मांग का कोई औचित्य बचेगा ???
अब बात करते हैं फांसी की सज़ा पाये अपराधियो की ---- बॉम्बे हाइ कोर्ट ने पुरुषोतम बोरते और कोकड़े ने 2007 मैं दो युवतियों को टॅक्सी मैं बैठाकर पहले उनके साथ बलात्कार किया फिर उनकी हत्या कर दी | हत्यारो को सेशसन अदालत से 2012 मैं फांसी की सज़ा मिली | जिसे हाइ कोर्ट ने बहाल रखा | सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपील को खारिज किया | राज्यपाल ने हत्यारो की दया याचिका को 2916 मैं खारिज कर दिया | फिर राष्ट्रपति ने भी इसे जघन्य अपराध मानते हुए 2017 मैं माफी देने से इंकार कर दिया | परंतु महाराष्ट्र सरकार के गृह विभाग ने लापरवाही बरतते हुए फांसी की सज़ा की तारीख तो तय कर दिया ----परंतु डैथ वारंट हाइ कोर्ट से हासिल नहीं किया !! वरन सेशान अदालत को फांसी देने की तारीख नियत करने का निर्देश दिया | अब बिना डैथ वारंट के किस को भी फंदे से लटकाया नहीं जा सकता | यह हाइ कोर्ट से जारी किया जाता हैं ! फलस्वरूप दोनों अपराधियो की फांसी की सज़ा 35 साल की क़ैद मैं बादल दी गयी ! तो यह हैं फांसी पाये अपराधियो के मामले मैं सरकार की लापरवाही | मजे की बात है की ---इस मामले मैं महाराष्ट्र सरकार इस भयानक गड़बड़ी के लिए किसी को भी दंडित नहीं करने के मूड मैं हैं !!!
बलात्कार के हालिया के समय मैं सबसे जघन्य और चर्चित मामले "” निर्भया"” कांड के के भी किसी अपराधी को फांसी की सज़ा नहीं दी जा सकी ! जनमत के दबाव मैं सरकार ने ऐसे मामलो मैं फांसी की सज़ा को "”अनिवार्य "” बनाने हेतु आवश्यक विधि बनाने की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश वर्मा के नेत्रत्व मैं आयोग गठित किया | उन्की भी रिपोर्ट मैं सिफ़ारिश की गयी की फांसी की सज़ा के लिए भारतीय दंड संहिता मैं की धारा 303 है , जिसके दोषी को सिर्फ फांसी की सज़ा का प्रावधान हैं | अन्य मामलो मैं फांसी के साथ ही आजीवन कारावास की सज़ा का भी विकल्प हैं | घटना की गंभीरता और अभियुक्तों की नियत को देख कर सज़ा दी जाती हैं | अतः प्रत्येक बलात्कार के मामले मैं फांसी की सज़ा देना प्राक्रतिक न्याया के वीरुध होगा |

परंतु भीड़ तंत्र मैं तो आजकल गाय चुराने या गौकाशी करने के शक मैं ,अथवा टोना -टोटका के संदेह मैं गावों मैं आठ - दस लोगो की भीड़ कानून अपने हाथ मैं लेकर "”मौके पर ही फैसला कर देती हैं "” !
मध्यप्रदेश की सरकार ने गाय के परिवहन को कानूनी जामा देने के लिए हाल ही मैं विधान सभा मैं एक कानून पास किया हैं | जिसके अनुसार अनुमति प्राप्त परिवहन कर्ता को कोई परेशान नहीं कर सकेगा ,और पुलिस को फौरी कारवाई करनी होगी | राजस्थान ने भी आनर किलिंग और भीड़ द्वरा पशुओ को ले जाने वालो को दंडित करने का कानून बनाया हैं | जिस पर बीजेपी की प्रतिकृया थी की "”आखिर इस कानून की जरूरत क्या हैं "” ! जबकि उसी प्रदेश मैं गाय को कत्ल करने के "”संदेह "” मैं तथा कथित गौ रक्षको ने तीन मुस्लिम युवको को मौत के घाट उतार दिया था !

सवाल यह हैं की कानूनों के बनने से अपराध नहीं रुका करते , उनका अनुपालन जब तक सही और निसपक्ष तरीके से नहीं होगा तब तक अपराधियो के मन मैं दर नहीं बैठेगा | माना की ऐसे अपराधी को अदालत के सामने पुलिस खड़ा भी कर देती हैं | पर सबूत मैं खामी की वजह से वे छूट जाते हैं | तब वे और बेखौफ हो जाते हैं – की कानून और अदालत ने हमारा क्या कर लिया !!!
वनही दूसरी ओर आतंकी होने के "”शक "” मैं नेशनल इंवेस्टिगटिंग एजेंसी जिन लोगो को "”आतंकी बता कर जमानत भी नहीं मिलने देती , उसके द्वरा पकड़े गए नागरिक बहुतायत से अदालत से बाइज्जत बारी हो जाते हैं __ पर तब तक उनकी ज़िंदगी के बहुमूल्य साल बर्बाद हो जाते हैं | विगत सालो मैं आतंकी होने के मामलो मैं इस जांच एजेंसी का रेकॉर्ड बहुत ही खराब रहा हैं | चाहे वह दिल्ली का बम बनाने वाला "”टुंडा "” रहा हो अथवा केरल के छ मुस्लिम पूना बेकरी बम कांड के अभियुक्त रहे हो | सभी को अदालतों ने सबूतो के अभाव मैं बारी कर दिया | हाल ही मैं 1996 दौसा बम कांड और दिल्ली के लाजपत नगर मैं हुए बम कांड के आरोपी आगरा निवासी रईस बेग को 1997 मैं गिरफ्तार किया गया " इन्हे इन आतंकी घटनाओ का दोषी बताया गया था | आतंकी विरोधी कानून के अनुसार अभियुक्त को जमानत अथवा पैरोल नहीं मिलती | सिवाय कुछ परिस्थितियो के , जैसे राजीव हत्यकाण्ड की अपराधी नलिनी को मद्रास हाइ कोर्ट ने पैरोल दिया हैं | गौर कीजिये की सीबीआई हो या एन आइए इन जैसी "” महान जांच एजेंसियो को इसकी परवाह नहीं होती की , की किसी व्यक्ति की आज़ादी को छिनने का अर्थ क्या होता हैं ! अभी सीबीआई के निदेशक और अतिरिक्त निदेशको की खिचतानी की बात जब सामने आई तब भी सरकार के जिम्मेदार लोगो ने इन दोनों को जबरिया अवकाश पर नहीं भेजा !! जबकि ये दोनों एक दूसरे के खिलाफ भी केस बनाने और रिश्वतख़ोरी के आरोप लगा रहे थे !! तब ऐसे अफसर आम नागरिक रईस बेग की 22 साल की हिरासत की क्या परवाह करेंगे ? उधर मोदी सरकार ने मौजूदा कानून की परिधि भी बड़ा कर उन्हे सारे देश मैं कारवाई का अधिकार दे दिया हैं < अब ऐसे मैं भगवान ही मालिक हैं ----नागरिक की आज़ादी का !

अब अगर कोई सभ्य लोकतान्त्रिक देश होता तब जिन अफसरो ने लोगो की आज़ादी को छिना था वे सस्पेंड तो होते ही साथ ही उनपर अदालत मैं "””बदनीयती से मुकदमा "” चलाने का अपराध भी लगता | परंतु भारत के वर्तमान लोकतन्त्र मैं पुलिस और अखिल भारतीय सेवाओ के अधिकारियो को अपराध प्रक्रिया संहिता का कवच मिला हुआ हैं | जिसके कारण ये लोग बेलगाम होकर कानून का नहीं अपने राजनीतिक आक़ाओ के हुकुम का काम करते हैं |

Jul 17, 2019


क्या मोदी सरकार

वर्तमान दलाई लामा के उत्तराधिकारी को निर्वासित सरकार प्रमुख मानेगी ?

हाल ही मैं चीन के एक अधिकारी ने दावा जाते हैं की वर्तमान दलाई लामा के उत्तराधिकारी की खोज चीन सरकार द्वरा की जाये ---- वही तिब्बति समुदाय के धार्मिक प्रमुख का स्थान लेगा ! अब मोदी सरकार द्वरा चीन की धम्की को कितना गंभीरता से लेती हैं ,इस बात पर सम्पूर्ण विश्व की निगहे लगी हैं | खासकर भारत मैं बसे तिब्बती समुदाय के लोगो के लिए चीन यह धम्की उनकी आस्था और देश मैं उनके भविष्य को संकट मैं डालने वाली हैं | विशेस बात यह हैं की भारत सरकार ने 14वे दलाई लामा और उनकी सरकार को कूटनीतिक मान्यता दी हुई है | अब तिब्बत से आने के 60 साल बाद चीन की यह धम्की चिंताजनक हैं |

1959 मै मार्च माह मैं तिब्बत मैं चीन की लाल सेना द्वरा वनहा के धार्मिक और राजनीतिक प्रमुख 14 वे दलाई लामा की हत्या के षड्यंत्र के चलते उन्हे अपने खमपा सैनिको के साथ भारत मैं शरण लेनी पड़ी थी | उस घटना को हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला मैं स्थित तिब्बत की निर्वासित सरकार के लोग आज भी याद करते हैं | दलाई लामा ने अप्रैल 1959 मैं आसाम के तेज़पुर से संयुक्त राष्ट्र संघ से तिब्बत की जनता की सुरक्षा और उनकी संसक्राति की रक्षा की गुहार लगाई थी | जो आजतक भी अनसुनी ही रह गयी हैं |
दलाई लामा के तिब्बत छोड़ जाने और भारत सरकार द्वरा उन्हे शरण दिये जाने पर उनके कजरों अनुयाई भी धीरे - धीरे भारत आने लगे | वे वर्तमान के अरुनञ्चल प्रदेश से लेकर कुमायूं और गढ़वाल से लेकर लद्दाख तथा हिमाचल की सीमाओं से भारत पहुंचे | तत्कालीन सरकार के प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने विश्व की महा शक्तियों से तिब्बती शरणार्थियो को न्याय दिलाने की अपील की | परंतु अंततः उन्होने तिब्बत की निर्वासित सरकार को भारत द्वरा राजनयिक मान्यता प्रदान की | इस सरकार का मुख्यालय हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला मैं रखा गया | आज भी दुनिया भर मैं फैले तिब्बती समुदाय के लोग इस स्थान को दलाई लामा के कारण पूजनीय मानते हैं | निर्वासित सरकार के दूत संयुक्त राष्ट्र संघ मैं समय समय पर अपनी आवाज़ उठाते हैं | परंतु चीन जैसी महा शक्ति के "”कोप"” का भजन बनने से बचते हैं | इस निर्वासित सरकार का काम तिब्बती समुदाय के लोगो द्वरा दिये गए दान और विदेशो से मिलने वाली सहायता पर निर्भर हैं | जाड़े के मौसम मैं देश के उत्तरी भागो मैं ये लोग गरम कपड़े और -उनी स्वेटर -मफ़लर आदि की दूकान लगते हैं | ये लोग गरम कालीन भी बनाते हैं -और बेचते हैं |
84 साल के दलाई लामा को दुनिया मैं बौद्ध धर्म मानने वाले बहुत श्र्धा से देखते हैं | साथ के दशक मैं चीन ने दलाई लामा के मुक़ाबले "”पणछेन लामा "” बने था | जिसे बौद्ध लोगो ने नकार दिया था | तब से अनेक बार चीन दलाई लामा की छ्वी को खतम करने का उपाय कर चुका हैं |
अभी सप्ताह भर पहले चीन सरकार की ओर से एक बयान जारी किया गया की आगामी याही की 15व दलाई लामा चीन से हो , भारत से नहीं ! जबकि दलाई लामा की खोज की पारंपरिक विधि अब संभव नहीं हैं | क्योंकि उस के अनुसार नए दलाई लामा को पुराने दलाई लामा की सामाग्री को बालक को पहचानना होता हैं | इसके लिए तिब्बत के अनेक छेत्रों मैं लामाओ को भेजा जाता था | चूंकि दलाई लामा को दैवीय गुणो से युक्त माना जाता हैं , इसलिए उनके पुनर्जन्म की पुष्टि के लिए उनके वस्त्र और अन्य वस्तुवे संभावित बालक को दिखाई जाती हैं | परंतु अब दलाई लामा के उत्तराधिकारी की खोज उस प्र्कृय से नहीं की जा सकती | इसलिए ऐसा माना जाता हैं की निर्वासित सरकार कोई अन्य रास्ता खोजेगी |
परंतु चीन की मांग यह हैं की अगला दलाई लामा चीन मैं खोजा जाये ----जिसे चीन की साम्यवादी सरकार मानन्यता दे !! सवाल है की जिस सरकार मैं ऊईगर मुसलमानो की मस्जिड़े गिराई जाये , और उनके नमाज पड़ने पर सज़ा दी जाए , उस सरकार को किसी भी धर्म के प्राति यह मोह क्यों ? चीन मैं साम्यवादी सरकार के गठन के पूर्व वनहा पर बौद्ध धरम मानने
वालो की संख्या सर्वधिक थी | इसीलिए साठ के दशक मैं दुनिया मैं बौद्ध धरम मानने वालो की संख्या सर्वाधिक थी | ईसाई और इस्लाम मतावलंबियों का नंबर उसके बाद आता था | परंतु चीन के साम्यवादी शासन ने धरम को समाज का जहर बताते हुए सभी धर्मो के उपासना ग्रहो को नष्ट कर दिया | इसमैं शिंतो -कन्फूसियास भी थे , जो मूलतः चीन मैं ही जन्मे और पनपे थे | आज भी चीन मैं धरम को बड़ी हेय नज़र से देखा जाता हैं | चीन हाङ्कांग मै उपजे अहिंसक जन आंदोलन से परेशान हैं | वह वनहा की उन्नति और समराधि को तो चाहता है , परंतु अपनी शिक्स्ञ्जा नीति को नहीं छोडना चाहता हैं |
इस परिप्रेक्ष्य मैं अगर हम चीन की मांग को देखे तो पाएंगे की वह दलाई लामा के माध्यम से दुनिया मैं बसे प्रवासी चीनी समुदाय की धार्मिकता को भुनाना चाहता हैं | यद्यपि प्रावासी चीनी समुदाय के लोग भगवान बुद्ध की मूर्ति की पूजा करते है | जबकि दुनिया के अधिकतर बौदध् ,भले ही वे किसी भी शाखा के हों ----दलाई लामा को पूज्य मानते हैं | अब चीन अपनी गिरती हुई अर्थ व्यवस्था “” को सम्मान “” दिलाने के लिए यह चाल चल रहा हैं | साथ ही वह तिब्बतियों को चीनी मूल का बता कर अपना अधिकार चाहता हैं | गौर तलब हैं की चीन की अर्थ व्यवस्था मैं प्रवासी लोगो द्वरा भेजी गयी विदेशी मुद्रा एक अहम स्थान रखती हैं |





Jul 16, 2019


एक देश -एक चुनाव
मोदी सरकार संसद को संविधान सभा मैं परिवर्तित कर नया निज़ाम ला रही हैं !



संविधान की संघीय आत्मा को जिस प्रकार नरेंद्र मोदी सरकार विभिन्न कानूनों मैं संशोधन कर के एकात्मक रूप मैं बदलती जा रही हैं , उससे निश्चय ही देश राज्यो के अधिकारो पर कुठराघात होगा | वह इन्दिरा गांधी द्वरा आपात स्थिति लागू करने से ज्यादा भीषण होने की आशंका हैं ! क्योंकि इन्दिरा गांधी ने तो संविधान प्रदत्त अनुछेद 352 --360 के प्रविधानों का पालन किया | अब उस के अनुपालन मैं क्या गलतिया हुई --वह तो शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट मैं लिखा हैं |
पर मोदी सरकार की भारतीय जनता पार्टी और संघ तथा उसके आनुसंगिक संगठन एक देश -एक चुनाव की आड़ मैं ---न केवल संविधान के संघीय ढांचे को खतम करने की नीयत रखते हैं | वरन वे संसदीय प्रणाली को राष्ट्रपति प्रणाली मैं बदलने की नियत रखते हैं | क्योंकि 2019 के चुनवो मैं जिस प्रकार केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने मोदी जी के दौरो को ध्यान मैं रखते हुए दो माह तक देश को चुनावी फीवर से ग्राष्ट रखा ---वह ईमानदारी तो नहीं थी | फिर आयोग ने जिस प्रकार सत्ता पक्छ के वीरुध अनियमितताओ की शिकायतों – पर क्लीन चिट दी न और आयोग के एक सदस्य की आपति और असहमति को "”अनदेखा ही नहीं किया वरन -उसे छुपाने की भी सफल कोशिस की | अब ऐसे चुनाव आयोग से क्या उम्मीद की जाये ? उधर विपक्ष के विधायकों मैं "”” जिस प्रकार अंतरात्मा की आवाज जाग उठी हैं --की थोक के भाव वे बीजेपी मैं शामिल होते जा रहे हैं ! गोवा मैं परिकर सरकार मैं रहे गोवा डेमोक्रेटिक पार्टी के उप मुख्य मंत्री और उनके साथियो को मंत्रिमंडल से बाहर किया गया ---- उस पर यह शेर फिट बैठता हैं "”” बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले {निकाले } “” | कर्नाटक मैं भी दल - बादल का नाटक चल ही रहा हैं , बताते हैं की एक विध्यक की कीमत बीस करोड़ से लेकर अससो करोड़ तक हैं !! सवाल है की एनफोरस्मेंट --इनकम टैक्स और सीबीआई सिर्फ गैर बीजेपी नेताओ के लिए हैं , बीजेपी के नेता इतना नक़द रुपया कान्हा से ल रहे हैं ? चेक़ से तो भुगतान नहीं हो रहा हैं ? तो यह हैं सत्तधारी पार्टी और सरकार की नैतिकता और न्याय प्रियता ? अभी तक कोई बीजेपी का धन्न सेठ नकदी के और काले धन के मामले मैं नहीं पकड़ा गया | क्या गंगा ऐसी पवित्र पार्टी है { वैसे गंगा की पवित्रता -अब मानने योगी नहीं रह गयी , क्योंकि उसकी सफाई पर भी उमा भारती मंत्री रहते हुए मंजूर कर चुकी थी की कानपुर के बाद अब उसका पानी पीने लायक नहीं बचा है}} वैसे बंगाल हो या उड़ीसा कर्नाटक हो या आंध्र , सभी जगह के धन सम्राट ,जिन पर कर चोरी से लेकर धोखा धड़ी के मामले थे -----वे सभी उनके बीजेपी मैं शामिल होते ही खतम हो जाते हैं !!

| परंतु वर्तमान सरकार तो संविधान की आत्मा को कुतर - कुतर कर के उसे खतम ही करती दिख रही हैं | संविधान मैं "”समवर्ती सूची " के विषय पर केंद्र और राज्यो दोनों को ही कानून बनाने का अधिकार हैं | उन मैं शिक्षा - क्रषी -सिंचाई आदि अनेर्क विषय हैं | परंतु 2019 मैं पदासीन होने के बाद चाहे वह राज्यो के कराधान का मामला हो अथवा शिक्षा का हो सब मैं केंद्र ने अपने "”माडल " पेश कर दिये हैं | यह सभी को को मालूम हैं की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ वर्तमान संविधान और उस मैं "”नागरिकों के बराबरी के अधिकार "” से देश के तिरंगे झंडे से और राष्ट्रीय गान --जन गण मन से वित्रष्णा हैं | संघ के नागपुर मुख्यालय पर तिरंगे के ऊपर भगवा ध्वज को तरजीह दी जाती हैं | वे भगवा को ही प्रणाम करते हैं --- तिरंगे को नहीं ! उनका "”राष्ट्रवाद बिस्मार्क और एडोल्फ़ हिटलर का राष्ट्रवाद हैं | जनहा नारे से लेकर --वेश भूषा तक एक समान होने की कल्पना हैं | बिस्मार्क का सपना अपनी रियासत को बचाने का था --जिसे उसने दस अन्य रियासटो तथा हिंडनबर्ग क समय हिटलर ने "”चुनाव जीत कर आस्ट्रिया को भी कब्जा किया | उसकी लालसा ने उसके देश को कान्हा पहुंचा दिया ------की आज प्रत्येक जर्मन हिटलर के लिए शर्मिंदा होता हैं ! कनही मोदी सरकार के किए की सज़ा सारे देश की शर्मिंदगी न बन जाये |
आज जिस तरीके से संविधान के अनुछेद 14 से 35 तक नागरिकों के मूल अधिकारो की राज्य और उसकी संस्थाओ से रक्षा का वचन दिया गया हैं , वह मौजूदा सरकार और उसके संगी साथियो को ठीक नहीं लग रहा हैं |
देश के विभाजित मानस मैं एका करे -चुनाव तो लोकतन्त्र का बस साधन है :-
धरम और भाषा की विविधता , जो हमारी गंगा -जामुनी तहज़ीब की निशानी है , वही आज समुदायो मैं कट्टरता के कारण नफरत का कारण बन गयी हैं | देश मैं पनप रहे , अशांति को दूर कर के एकता का भाव लाना ज्यादा महत्वपूर्ण हैं | परंतु सत्ताधारी दल तो "”चुनाव रूपी साधन को ही लोकतन्त्र का साध्य मान कर देश मैं बस एक साथ सभी विधान सभाओ और लोक सभा के चुनाव करने की रट लगाए हैं | यह कोशिस उनकी आलोकतांत्रिक इच्छा का ही संकेत हैं | जिस प्रकार देश मैं विरोधी दलो के नेताओ पर सीबीआई और ईडी के छापो से उन्हे बदनाम करने का सतत प्रयास हो रहा हैं --- वह देश के लिए अमंगलकारी ही हैं | फिर अभी कर्नाटक और गोवा मैं काँग्रेस के विधायकों से दल -बदल कराया गया है , उसके पीछे किसका हाथ हो सकता हैं , यह सहज मैं ही जानने की बात हैं |

सबसे पहले तो यह जानना जरूरी हैं की राज्यो मैं विधान सभा के और देश मैं लोक सभा के चुनाव नियत अवधि मैं कराने का संविधान मैं साफ प्रविधान हैं | राज्यो मैं अथवा केंद्र मैं सरकार के बहुमत खो देने पर मध्यावधि चुनाव का संवैधानिक विकल्प हैं | अब अगर कर्नाटक मैं बहुमत को लेकर जो रस्साकशी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची हैं , वह सदन और प्रदेश कए मतदाताओ की इछाओ का अपमान ही कहा जाएगा | दल बदल का इतिहास 1967 से शुरू हुआ ,जब उत्तर प्रदेश -बिहार -उड़ीसा मैं नेत्रत्व से नाराज़ काँग्रेस विधायकों ने – जन काँग्रेस पर्तरी का गठन किया था | उत्तर प्रदेश मैं चौधरी चरण सिंह और बिहार मैं महामाया प्रसाद सिन्हा तथा उड़ीसा मैं विस्वनाथ दास मुखी मंत्री बने | उत्तर प्रदेश और बिहार मैं इन सरकारो मैं जनसंघ { भारतीय जनता पार्टी की जनक } के साथ कम्यूनिस्ट पार्टी के लोग भी मंत्री बने थे ! परंतु यह कवायद सत्ता मैं बैठने की ही थी ! बस ! जैसा आज कर्नाटक मैं हो रहा हैं | गोवा मैं जिस प्रकार परिकर की गठबंधन की सरकार मै छेतरीय दल भागीदार बने थे , उन्हे काँग्रेस के दस विधायकों के दल -बादल के बाद सत्ता की मलाई से मक्खी की भांति निकाल बाहर किया गया ! अब यही राजनीति बची हैं |

अव्वल तो राज्यो मैं अगर गैर बीजेपी सरकारो को अस्थिर करने के लिए नरेंद्र मोदी और अमित शाह का यही हथकंडा सत्ता को लपकने का नमूना हैं , तब देश मैं लोकतन्त्र को खतरा ही हैं | जिस प्रकार 1917 मैं रूस मैं बोलोशेविक { पार्टी का प्रभुत्व } और मोनोशेविक { जन भागीदारी } को लेकर विवाद हुआ , उसमे लेनिन और स्टेलिन जैसे एकल पार्टी प्रणाली के हामियों ने हिंसा और हत्या के बल से पार्टी को सुप्रीम बना दिया | भले ही हजारो विरोधियों की हत्या हुई | पर अंत मैं सोवियत रूस की क्रांति का सत्तर साल बाद पतन ही हुआ !! आज भी वनहा "”नकली लोकतन्त्र "” हैं ! जिस मैं सत्ता की आलोचना और विरोध का भरी मुली चुकाना पड़ता हैं ,अक्सर जान देकर | परंतु जन विरोध का सामना तो शक्तिशाली चीन को भी हागकांग मैं दस लाख लोगो के विराट आंदोलन के रूप मैं भुगतना पद रहा हैं | पेकिंग मैं त्येंमाइन स्कावायर मैं फौज के टैंक और गोलियो से कितने लोग मारे गए ---यह पता नहीं चला | परंतु हांकांग मैं चीन सरकार ऐसा नहीं कर पाएगी | भले ही आजीवन राष्ट्रपति बने जी शीन पिंग कुछ भी कर ले | क्या भारत मैं भी लोकसभा मैं बहुमत के आधार पर ऐसा प्रयोग कर सकते हैं ? संभव हैं | क्योंकि संविधान की आत्मा को अगर भूल कर -सिर्फ उसे अपने मतलब से ओड़ा - मरोड़ा गया तब यह संभव हैं |
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके आनुसहगिक संगठन जिस प्रकार वेतन भोगी कार्यकर्ताओ को भारतीय युवा पार्टी और बजरंग दल मै भर्ती कर रहा हैं ----- उससे यह तो साफ हैं की बीजेपी के इरादे लोकतन्त्र को आईएएस जैसी सेवाओ मैं बदलने के हैं | तब क्या धन से कमजोर दल चुनाव लड़ने लायक बचेंगे ?? अभी हाल मैं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने पाँच पूर्णकालिक सवैतनिक महिला कार्यकर्ताओ को संगठन मैं प्रचार के लिए भर्ती किया हैं | अब अगर विद्यार्थी संगठनो मैं वेतन भोगी लोग काम करेंगे ------तब छत्रों को बरगलना ज्यादा आसान होगा | जिसका उत्तर कोई अन्य पार्टी नहीं दे पाएगी | क्योंकि जब देश मैं चुनावी चंदे का 90 प्रतिशत सत्तधारी को जाएगा और शेस मैं देश के अन्य दल बचेंगे , तब परिणाम सहज मैं समझा जा सकता हैं |