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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 22, 2019


धरम -जाति के बाद अब भगवाधारी अखाड़े और महंत बने दलो के वोट बैंक !! संघ और साधुओ के विरोध से चुनावी वैतरणी खतरे में
जैसा अपेक्षित था की इल्लाहबाद उर्फ प्रयाग राज़ में हो रहे अर्ध कुम्भ को, योगी सरकार ने कुम्भ प्रचारित कर के भगवा ब्रिगेड को चुनावी राजनीति में माफिक करने की कोशिस --उल्टी पद गयी | महीनो से जिस प्रकार प्रयाग में हो रहे इस धार्मिक आयोजन को भगवा धारियो की मदद से मंदिर के नाम पर संघ और भारतीय जनता पार्टी समर्थक अनेक आखाडा और मठाधीशों ने लाखो साधुओ का मार्च करने ---- मंदिर निर्माण का अंतिम फैसला कुम्भ में होने का प्रचार हो रहा था , वह अब फुस्स हो गया |


धर्म को राजनीतिक हथियार बनाने और देश की धर्मभीरु जनता की आस्था को वोट के लिए इस्तेमाल करने के ठेकेदारो संत -परमहंस -महामान्द्लेस्वर – के नामो का इस्तेमाल चुनाव में करने की कोशिस विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के नाम पर बीस वर्ष पूर्व की थी | जो पहली बार सफल भी हुई | -अटल बिहारी वाज्पेई प्रधानमंत्री बने | परंतु 1977 में आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनावो में श्रीमति गांधी को देश के चारो पीठ के शंकरचार्यों ने संयुक्त रूप से --समर्थन देने की अपील की थी | राष्ट्रीय संत विनोबा भावे ने भी अनुशासन पर्व कहा था | परंतु अशिक्षित -धर्मभीरु जनता ने उन्हे सत्ता से हटाया !!! इस उदाहरण के बाद भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने देश के अनेक मठो और आखाडा सहित साधुओ के संगठन से "””मंदिर निर्माण "” के नाम पर चुनावी आशीर्वाद लेने की कोशिस की | पर अनुभव बताता है की श्रद्धा अथवा विश्वास का "दुरुपयोग " अथवा धोखा एक ही बार दिया जा सकता है | कोई भी चिटफंड कंपनी एक ही बार अपने निवेशको को लूट सकताई है ------दूसरी बार नहीं |


धर्म और कर्तव्य पर हाल मे ही हुई आईएएस आफिसर्स एसोसियसन की वार्षिक मिलन समारोह में लद्दाख के प्रमुख शिक्षाविद डॉ वांगचुक {कहते है फिल्म थ्री ईडियट इनके जीवन से प्रेरणा लेकर बनी थी } ने अपने संबोधन में बेहतर तरीके से कहा की देश में लोग धर्म का करमकांड अधिक करते है |परंतु अपनी जिम्मेदारियो का पालन नहीं करते है ! उन्होने यंहा तक कहा की , जो अपने दायित्यों का सही रूप से पालन नहीं करते है वे वास्तव मे चीन की मदद करते हैं ! शायद वे दुनिया में अकेले ऐसे व्यक्ति है जो एक ऐसी "” एकेडमी चलते है जनहा वही छात्र भर्ती हो सकता है जो "फेल" हुआ हो अथवा साधहीन हो !
गिरे हुए को उठाने का जज़बा बिरले लोगो में होता हैं | क्योंकि नेता के दरबार से लेकर अफसर के आफिस और महंतो और मंडलेशवरों के आश्रमो में भी बड़े -बड़े धन्ना सेठो या रसूखदारों की ही पहुँच होती है |, साधनहीन ज़रूरतमन्द – जैसे मंदिर के बाहर भूख और बीमारी से तड़पते रहते है , वैसे ही इन धर्म ध्व्जाधारी के दरवाजे पर भी गरीबो की कोई पूछ नहीं होती हैं | अभी तक तो नेता और सेठ तथा अफसर अपनी निजी तकलीफ़ों - संकटों के लिए इन देवदूतों के आश्रय जाते ,थे | परंतु आज की बदली हुई राजनीतिक स्थिति में अब इन "”आश्रमो --मठो "” से राजनेता समर्थन पाने के लिए भी "” कीमत देने को तैयार रहते है | दक्षिण के प्रदेशों में तो यह चलता ही था ---अब इस मर्ज ने सारे देश को जकड़ लिया है | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह भैया जी जोशी द्वरा "”तंज़" में दिया गया यह बयान की मंदिर तो 2026 में बनेगा | केंद्र में सत्तारूड "”मोदी -शाह और जेटली "की टोली को काफी तंग कर रही हैं | अशोक सिंघल के जमाने में अयोध्या मे राम मंदिर निर्माण के धार्मिक मुद्दे को जिस प्रकार राजनीतिक ढंग से "”भुनाया गया "” अब वह 2019 के लोकसभा चुनावो में "”नोटबंदी "” मे गैर कानूनी हुए रुपये की भांति "” मात्र एक पुकार रह गयी हैं | क्योंकि संघ और -साधुओ की युगल जोड़ी ने जिस प्रकार इस मुद्दे पर भारतीय जनमानस की आस्था से "”सत्ता के लिए खिलवाड़ किया था --वह आज उन्नीस साल बाद "ध्वष्त! ! हो गया है |

अर्ध कुम्भ को पूर्ण कुम्भ {{जो 12 वर्ष बाद होता है }} कहकर दुनिया में प्रचारित करने की कला भी भगवा वस्त्र पहन कर राजनीति करने और सफ़ेद पहन कर धर्म और जाति तथा आस्था का सहारा लेकर सत्ता तक पहुचने --- का फार्मूला लगता है इस बार नहीं चलेगा | क्योंकि अखिल भारतीय आखाडा परिषद के अध्यक्ष "”महंत नरेंद्र गिरि "” ने आगामी चुनावो में भारतीय जनता पार्टी को चुनावो में समर्थन देने से इंकार कर दिया है ----- इस प्रकार नरेंद्र मोदी को को अपने नामधारी आखाडा प्रमुख से ही चुनौती मिल गयी है !!
धरम बनाम कम्प्यूटर ;--
फिलहाल लोकसभा चुनावो की घंटी बजने मे कुछ दिन बाक़ी है ----परंतु दीवार पर इबारत का उभरना शुरू हो रहा है | 2014 का संसदीय चुनाव जिस प्रकार संगठित रूप से और लगातार किया गया था वह सर्वथा नवीन प्रयोग था | उस से दूसरे राजनीतिक दलो ने भी अपनी रणनीति में बदलाव किया है | अब छोटे या बड़े सभी दल "सोश्ल मीडिया पर प्रचार पर विशेस ध्यान दे रहे है | कांग्रेस - हो या एनसीपी अथवा शिवसेना हो सभी के "”” मीडिया वार रूम "” सज्जित रहने लगे है |पार्टी कार्यकर्ताओ से ज्यादा महत्व इन एमबीए पास कम्प्युटर ज्ञान से सज्जित सूटेड - बूटेड युवको का है | जिनकी बात बड़े से -बड़े नेता भी "अति गंभीरता से लेते है " | कारण यह की अधिकतर जमीनी नेता - कम्पयुटर का ककहरा भी नहीं जानते | हा जेब में मोबाइल भले ही दो होंगे जो 25 से 50 हज़ार रुपये की कीमत वाले होगे |

इसका सबूत प्रशांत किशोर है ---2014 में मोदी जी के चुनाव की रूप रेखा और प्रबंधन का जिम्मा इनहि का था | परंतु चुनाव के बाद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने इनकी माहवारी मोटी फीस को लेकर एतराज़ जताया तब मन -मुटाव हुआ ,और वे बिहार के विधान सभा चुनाव में भाजपा की पराजय का कारण बने !!! अभी बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार ने एक इंटरव्यू में "खुलासा "” किया की ,-उन्होने अमितशाह द्वरा दो बार सिफ़ारिश किए जाने पर जनता दल का पदाधिकारी बनाया था | लेकिन तब से लेकर अब तक पटना की गंगा में काफी पानी बह गया है |

फिल्मों का उपयोग ;-
चुनावी साल में प्रदर्शित हुई दो फिल्मे ---एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर और उरी -द सर्जिकल स्ट्राइक का तफसील से बयान करना ज़रूरी है | क्योंकि इन दोनों ही फिल्मों का प्रदर्शन चुनावी वर्ष मैं इसलिए किया गया हैं ----की अधिक से अधिक लोगो में "” देशभक्ति के नाम पर मोदी सहस्त्र् नाम "” हो | सभी राजनीतिक दलो को आफ्नै विचारधारा का प्रचार - प्रसार का पूरा अधिकार हैं | जिस प्रकार 2014 में इन्दिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह को देश की वर्तमान सभी समस्याओ का जिम्मेदार बताया था - और सोश्ल मीडिया से लेकर विज्ञपनों तक में इस परिवार को देश का दुर्भाग्य निरूपित किया गया था ---- वही तरीका सधे हाथो से इन फिल्मों के जरिये अपनाया गया है | परंतु मोदी ब्रिगेड के लोग यह चूक कर जाते है ---की "”अति "” नुकसान देह होती है | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके पालित -पोषित तत्व जो भारतीय जनता पार्टी समेत 32 आनुसंगिक संस्थाओ में बैठे लोग ---- बस एयक सवाल का जवाब नहीं दे पाते की "” आखिर ये लोग जनता द्वरा चुने गए थे "” और इनहोने कभी कोई मंदिर या मस्जिद के सहारे राजनीति नहीं की "| जब आप के संगठन सिर्फ और सिर्फ यही कर रहे हैं |
क्या इस स्वयंसेवको की जमात में किसी ने भी देश की आज़ादी के लिए जेल गए ? आखिर आपका संगठन भी तो 90 साल पुराना है ? जबकि आज़ादी मिले अभी 72 साल ही हुए हैं ! क्या इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी की शहादत को देश भुला सकता है ? मनमोहन सिंह दस वर्ष प्रधान मंत्री रहे उनकी भी सीबीआई की जांच हुई ---पर क्या निकला ? एक जुमला की वे रेनकोट पहन कर नहाते थे !!!! _यह मोदी उवाच है |

बक़ौल हरीशंकर व्यास जी के ढाई लोगो की सरकार जितनी सुरक्षा लेकर चलती है ---उतने "”रिंग राउंड " किसी दूसरे नेता के हुए है ? श्रीमति गांधी के चरित्र पर कीचड़ उचालने का काम फिल्म आँधी से शुरू हुआ था | परंतु उसके बाद 1980 के चुनावो में वे बहुमत के साथ सरकार बनाई | ऑपरेशन ब्ल्यूए स्टार भी उनके समय हुआ ---- उन्होने अपने सिख अंगरक्षकों के खिलाफ "”””देशद्रोह की धारा लगा कर बंद नहीं करा दिया "” ? जैसा की असमिया साहित्यकारों और पत्रकारो के खिलाफ किया गया ! “ फिर अनेक फिल्मे बनी जिनमे इस परिवार को भ्रष्टाचारी - बेईमान --- और यंहा तक की अंग्रेज़ो का पिट्ठू भी कहा गया |
पर इल्हाबाद के आनंद भवन से महात्मा के आशीर्वाद से जो राष्ट्र वादी विचारधारा चली वह आज भी जिंदा है | मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या ने महात्मा के उद्देस्यों को दुनिया में फैलने से रोकने में असमर्थ रही ---- गोडसे उनके शरीर की हत्या कर सका "”बस "” | प्रचार तो काँग्रेस के महात्मा गांधी से लेकर मोतीलाल नेहरू - जवाहर लाल नेहरू - इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी की चरित्र हत्या के सतत प्रयास चल रहे है | परंतु यह नफरत मोदी और -शाह को वोट नहीं दिला सकेगी |
तो अब गाँव के सरपंच और मुखिया के अलावा दबंगों के आतंक से वोट नहीं मिल सकेंगे | तब मंदिर निर्माण की काठ की हांडी तो नहीं सफलता देगी | अब सबका साथ और सबका विकास का नारा चलेगा या नोटबंदी तथा जीएसटी की मार झेल रहे नागरिकों और व्यापारियो के कष्ट बोलेंगे ----यह तो समय बताएगा |