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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 28, 2023

 

लोकतन्त्र में राजदंड नहीं होता – ब्रिटेन की राजशाही में होता है

 

  सेंगोल नामक  एक “दंड” जो कभी चोला – और चालुक्य राजवंशो में सत्ता हस्तांतरण  का प्रतीक होता था –उसे 21 वी सदी में  लोकतन्त्र की जन संसद में  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाथा में लेकर –परोछ    रूप से सत्ता के दैवीसिधान्त  को मानिता दी हैं ! वह भी उस संसद के सामने  जिसके सदस्य  जनता से निर्वाचित हो कर आते हैं ! जिसमे गद्दी विरासत से नहीं मिलती –वरन राजशाही में तो वंशानुगत ही सत्ता का हस्तांतरण होता है |

 

 ब्रिटेन  में हाल ही में हुए सम्राट चार्ल्स थर्ड की ताजपोशी में प्रोटेस्टेंट धरम के द्वितीय प्रमुख लॉर्ड कैनटनबरी ने उन्हे  “”राजदंड “” सौपा था | प्रथा है की दिवंगत महारानी की अंतिम यात्रा में उनका मुकुट – राजदंड और सामराज्या  का प्रतीक  ग्लोब उनके शव पर राका रहता हैं | ताबूत को कब्र में उतारने के समय  तीनो  “”राज चिन्ह “” उता लिए जाते हैं | बाद में नए राजा को धरम गुरु उन्हे ये सौपते हैं |

       रविवार को  वैभवपूर्ण समारोह  में जिस प्रकार सेंट्रल विस्टा ,जिसे नया संसद भवन  कहा जाएगा  उसके उदघाटन के अवसर पर  तामिलनाडु के “”” धरमपुरम अधिनम “”के 25 सन्यासियों  की ओर से यह “”सेंगोल “”  एक आयोजन में प्रधान मंत्री आवास  पर उन्हे दिया गया ||  जिसे नयी संसद में  प्रधान मंत्री स्थापित करेंगे |

   लोकतन्त्र में इस प्रकार के राजसी और वैभव पूर्ण आयोजन  की तुलना  लंदन मे सम्राट चार्ल्स  की ताजपोशी  के मुक़ाबले इसलिए बदरंग है की ----इस समारोह में आम जनता की कोई भागीदारी नहीं दिखाई दे रही |  एक ओर  राजशाही में जनता के उत्साह को सारी दुनिया ने देखा था ---- और सेंट्रल विस्टा में नयी संसद  के उदघाटन को लेकर भारत में भी वैसा उत्साह नहीं हैं | यही इस आयोजन की सबसे बड़ी विफलता हैं !  क्यूंकी उन्होने अपनी परंपरा का पालन किया और हमारे प्रधान मंत्री  रोज –ब रोज नयी परंपरा स्थापित करने की नाकाम कोशिस कर रहे हैं |  शायद यही इनकी विफलता हैं |

 

2 आयोजन  तो बहाना है –मकसद दक्षिण के राज्यो में  पैर जमाने की कोशिस है |

अगर हम विगत दिनो की घटनाओ पर गौर करे तो पाएंगे की मोदी – शाह की जोड़ी को विधान सभा चुनावो में यह लगातार  तीसरी पराजय है | बंगाल – हिमांचल और कर्नाटक  में इन नेताओ के बदबोलेपन  की पोल  चुनाव  परिणामो में मतदाता ने खोल दी !  केरल –तमिलनाडु और कर्नाटक में बीजेपी की मूल संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  की चालीस से पचास सालो की कोशिस के बाद भी  बीजेपी को वनहा के समाज ने दुतकारा है |  क्यूंकी बताने के लिए आरएसएस  एक सामाजिक संगठन है , जो वास्तव में बीजेपी नमक दल के लिए जमीन बनाने का काम करता हैं | 

 3-           यह एक संयोग ही है की इन तीनों दक्षिणी प्रदेशों में  उतार भारत की तुलना में कनही अधिक मंदिर है , और यंहा की सनातनी आबादी भी अधिक धरम भीरु और मंदिर जाने वाली हैं | मंजूनाथ –तिरुपति – और त्रिवेन्द्रम के पद्यनाभ  का मंदिर विश्व के सर्वाधिक अमीर उपासना स्थलो के रूप में जाने जाते है | केरल के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश  को लेकर जब मंदिर प्रबंधन और स्त्री मुक्ति मोर्चा  में टकराव हुआ तब भी आरएसएस ने कट्टर वादी मंदिर प्रबंधन के समर्थन में आंदोलन किया | इस आशा के साथ  की कट्टर हिंदुवादी लोग उनके “”पालित –पोषित “” राजनीतिक दल बीजेपी को राजनीतिक समर्थन देंगे | शायद कुछ हुआ भी , परंतु उसके बाद हुए सभी लोकसभा और विधान सभा चुनावो में  उन्हे निराशा ही हाथ लगी |  जब –जब आरएसएस और वनहा के वाम पंथी पार्टी अथवा काँग्रेस पार्टी समर्थको में हिंसक भिड़ंत हुई ------तब तब दिल्ली के गृह मंत्री का फोन त्रिवेन्द्रम में मुख्य मंत्री विजयन और राज्यपाल को पहुँच जाता था ---चाहे व राजनाथ सिंह रहे हो अथवा अमित शाह | यंहा तक की राज्यपालसे संबन्धित घटना  की रिपोर्ट भी  दिल्ली तलब कर ली जाती थी | ऐसी तत्परता  मोदी सरकार  मणिपुर में हो रही जातीय हिनशा  के मामले नहीं दिखा रही है , जिसमें  फौज – केंद्रीय बल और तथा प्रदेश  किपुलिस भी लगी हुई हैं |

              यह घटनाए साबित करती है की केन्द्रीय सरकार  का  ध्यान राजनीतिक लाभ  के लिए  होता हैं  ना की  जमीन की  समस्या की गंभीरता को देखते हुए |

 4-  आरएसएस और बीजेपी नेत्रत्व  तमिलनाडू में  आज़ादी के समय से ही पैर जमाने के लिए  प्रयासरत रहे है | उसका कारण  था की 1933 और उसके बाद की प्रांतीय सभाओ में तथा  मद्रास प्रांत {जैसा ब्रिटिश काल में जाना जाता था }  में  ब्रामहन और चेट्टियार का वर्चस्व रहा कर्ता था |  संग की समझा यह थी की की जिस प्रांत की जनता अपने समाज के ब्रामहन वर्ग को नेत्रत्व  मानती है –और जनहा  के महिला और पुरुष  सुबह –सुबह मंदिरो में दर्शन के लिए लाइन लगा कर  अपना दिन शुरू करते है ------उस राज्य की ज़मीन  संघ की कततारवादी हिन्दुत्व जिसका प्रतिपादन गांधी हत्याकांड के आरोपी रहे सावरकर  ने किया { गौर तलब है की नयी संसद का उदघाटन भी सावरकर की जनम जयंती  को ही हुआ है , संयोग तो नहीं प्रयोग ही है } उसका इस छेत्र में फल्ना –फूलना तो पक्का है |

             परंतु वे भूल गए की रामास्वामी नायकर का द्रविड़ कडगम आंदोलन भी चालीस साल पूरे कर रहा था | उन्के सिधान्त भी केवल राजनीतिक ही नहीं थे वरन वे  सनातन धरम के अवतरवाद और वर्ण व्यसथा  पर गहरी चोट करते थे | कडगम आंदोलन सनातन धरम की आसथाओ के बिलकुल विपरीत था |  यही कारण है की के कमराज की 1962 में सरकार काँग्रेस की अंतिम सरकार थी | उसके बाद डीएम के अन्नादूरई के नेत्रत्व में सरकार बनी | वे पेरियार के निकटतम थे परंतु उनके द्वरा एक ब्रामहन कन्या से विवाह को लेकर उन्होने संगठन तोड़ दिया ------ | द्रविड़ आंदोलन में सवर्ण और ब्रामहन का कट्टर विरोध था |  तब से लेकर आज तक वनहा  करुणानिधि के डी एम के और जयललिता वाले ए आई डी एमके  की ही सरकरे बनी है -----इस दौरान  बीजेपी को कोई राजनीतिक उपलब्धि नहीं हुई |

                   केरल – आंध्र – तमिलनाडू  में हमेशा असफल होने के बाद  संघ और मोदी के पास , पुनः धरम को परंपरा और पुरातन गौरव के  लिफाफे में लपेट कर  देश के सामने रखने की मजबूरी  है |  अगर नयी संसद के उदघाटन  पर मोदी जी का भासन  सुने तो पाएंगे --- “” पुरातन गौरव – इतिहास का वैभवशाली समय --- अमरतकाल  और आत्म निर्भर भारत – जैसे शब्द पाएंगे | जो उनके दल की  सोच को दर्शाते है ---- जिसमे  वर्तमान इतिहास को बदल्ने  की तड़प  है | अब वे 1 अगस्त 1947 के पंडित नेहरू के ऐतिहासिक भासन जैसा तो “”बोल ही “”नहीं सकते तो अवसर इवैंट बनाकर देश के सामने पेश कर सकते है |

 

    परंतु  दक्षिण के लोग कितने भी धरम प्रवण हो  ,परंतु वे धार्मिक कट्टरता के जहर को पूरी तरह अस्वीकार  करते है | यह केरल की अनेक घटनाओ से सीध हैं |

 

 

 

 

May 26, 2023

 

आशियाना तो बच गया पर बस्ती बदरंग हो गयी हुजूर !

 

  मुख्य मंत्री द्वरा  प्रदेश की “”अवैध “” कालोनियों या कहे बस्तियो को  “”वैध” करके  नगर विकास की गोदी में एक  “”जारज “ को “”औरस “”  बनाने का काम किया हैं |  कहा जा सकता है की आगामी विधान सभा चुनावो को देखते हुए ही यह राजनीतिक फैसला किया गया होगा | अन्यथा  सैकड़ो सहकारी भवन समितियों के करता –धर्ताओ द्वरा  हजारो लोगो से पैसा लेकर  उनको भूमि का भाग भी नहीं दिया गया ! वनही भ्रष्ट  बिलडरो  द्वरा बिना  नक्शा पास कराये – बिना जल –बिजली – और निकास का प्रविधान किए बिना ही  ---अब उनके पाप कर्मो को  पुण्य का दर्जा मिल गया !   अब होगा यह की इन बस्तियो के लोगो की मांग अपने इलाको में  सड़क – पानी – बिजली और निकास के साधनो के लिए स्थानीय नगर निकायो पर बिल्डर और दबंग नेता  इन सुविधाओ को जन आकांछ बता कर आंदोलन और धरना प्रदर्शन करेंगे | अब यह कितना  “”विकास “” करेगा यह समझा जा सकता है |

        आसियाना बनाना  सभी का सपना होता है , जैसे सभी महिलाओ का सपना होता है –“” माँ”” बनना | परंतु सामाजिक  व्ययस्था में यह  विवाह नामक संस्था  के पश्चात  जायज़ या वाइड होता हैं | विवाह के पूर्व  बच्चे का जनम  उसे  “”अवैध” या जारज  ही मानता हैं | उसी प्रकार  शासन व्यवस्था  में भी  आबादी की बसाहट  एक व्यवस्थित  प्रकार से ओ इसी लिए  भवन निर्माण  के लिए  कुछ सरकारी संस्थाए है , जो  बस्ती की जरूरतो का आंकलन कर के एक विस्तरत नक्शा पास करती है | तभी आबादी को नागरिक सुविधाए मिलती है |  अब यह सब  मुख्य मंत्री की घोसना से व्यर्थ  हो गयी हैं | सवाल यह है की इसे  “”मंगलकारी “माना जाए अथवा “”अमंगलकारी “” ? तात्कालिक लाभा के लिए आबादी की बसाहट जैसे  विषय पर जान कारो  की राय – विपरीत ही है | कारण  पेयजल  सुलभ करना  और निकास  का प्रबंध करना  किसी भी बसाहट के लिए जरूरी है | मोहंजोदड़ों  की खुदाई में मिले घरो में भी पेयजल संग्रहण और निकास की व्यसथा  हुआ करती थी | तब भी अगर ग्राम और नगर नियोजन  निकाय नहीं रहे होंगे तब भी शासको द्वरा कुछ नियम तो बनाए ही गए होंगे | फिर आज 21 वी सदी में  इन मूल प्रश्नो का समाधान किए बिना , सभी बसाहटों को  जायज़ करार दिया जाना  ,अनेक सवाल पैदा करता है ---भविष्य में भी यह  परेशानी करेगा |  इसका उदाहरन  हमारी राजनीति में है --- स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी का , उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे फिर उतराखंड के भी मुख्यमंत्री बने –परंतु  एक गलती ने उनके स्वर्णिम जीवन की उपलब्धियों को अंधरे से ढाँका दिया | किस प्रकार उनके पुत्र ने अपने “”जारज” होने के कलंक को मुकदमा लड़ कर  मुक्ति पायी और तिवराइ जी का “”औरस “” पुत्र होने का गौरव प्रापत  किया | यद्यपि  उसके जीवन का भी कारुणिक  ही अंत हुआ , और अपनी पत्नी के हाथो म्रत्यु को प्राप्त  हुआ |  यह है परिणाम एक गलती का !

                 अगर देखा जाये तो इन “अवैध “” बस्तियो के वोट शासक दल को ही मिलेंगे –इसकी कोई गारंटी  नहीं हैं | क्यूंकी इन बस्तियो को बसने वालो में सभी डालो के दबंग नेताओ का हाथ होता हैं | नम्र पालिका अथवा नगर निगम   के वार्डो  की इन बस्तियो को स्थानीय  नेताओ का संरक्षण होता हैं | वे ही सरकारी भूमि पर अतिक्रमण  कराने के जिम्मेदार होते हैं |  वे ही बिलडरो से मिलकर  पार्क या खेल के मैदान में निर्माण करा देते हैं | फिर खेल चलता है की इसे कैसे  “””कम पाउंड  “” कराया जाये !

अगर हम सरकार के इस फैसले को सही माँ ले –तब हमे सुप्रीम कोर्ट के उन फैसलो को “”गलत “” मानना होगा जिसमे उन्होने नोएडा और केरल में त्रिसुर  में बीस और तीस मंजिली  इमारतों को –इस आधार पर  बारूद लगवा कर नेस्तनाबूद करा दिया ,क्यूंकी “”” उन्होने भवन निर्माण के नियमो की अनदेखी “”” की थी !!!!  अगर खेल के मैदान पर इन बहू मंजिली  इमारतों को इस लिए ढहा  दिया गया ---की जरूरी अनुज्ञा  नहीं ली गयी थी | अब इस परिदराश्य  में हम अगर मुख्यमंत्री की घोसना को ले –तब पाएंगे  “”फैसला कानूनी तौर पर सही नहीं हैं “”

 

   हक़ीक़त यह हैं की सरकार की अपनी  एजेंसिया जो भवन निर्माण करती है ---वे भी टाउन अँड कंट्री प्लानीनिंग  विभाग की श्रतों की अनदेखी करती हैं | एवं   नियोजन विभाग इन पर इसलिए कारवाई करने से “”बचता “” है की ये शासकीय निर्माण हैं | सवाल यह है की क्या शासकीय निर्माण को मनमानी करने की छूट है ?? भोपाल नगर  में तात्या टोपे नगर में  स्मार्ट सिटी  के नाम पाए हो रहे निर्माणों  में भवन निर्माण के नियमो का पालन हो रहा है ? उत्तर है नहीं !  दसहरा मैदान में  खड़ी बहू मंजिली सात इमारते  विगत  आठ माह से  अपने रहवासियो का इंतज़ार ही कर रही हैं ! क्यूंकी   अभी तक सरकार को इतनी फुर्सत नहीं मिली इतने उद्घाटनों  के बीच इन आवासीय इमारतों का उदघाटन कर सरकारी सेवको को रहने का मौका दिया जाये !!!!  पर ऐसा क्यू हो रहा हैं --- स्मार्ट सिटी के पी आर ओ  के अनुसार  इंका निर्माण अनुबंध की सीमा हो गया है –परंतु   पानी के निकास का प्राविधान  नहीं हो पाया है , इसलिए इमारत को राज्य संपदा विभागा को  नहीं सौंपा जा सका है | अब सवाल हैं की जब  सरकारी एजेंसी ही भवन निर्माण के नियमो की अनदेखी कर रही है -----तब छुटभैये  बिल्डरो को क्या दोष देना |

 

 

 

 

 

 

May 23, 2023

 

मंदिरो और मस्जिदों का गणतन्त्र – बन गया है भारत !

    

      आप रेल यात्रा  के बाद जब कनही {अधिकतर अवसरो पर } स्टेशन से बाहर निकलेंगे तब आप को आम तौर पर  कोई ना कोई हनमान मंदिर या शिव मंदिर और कोई मज़ार  जरूर दिखाई दे जाएगी !  यह सब सरकारी जमीन पर बनाए गए हैं | जिसे अतिक्रमण कहा जाता हैं |  अकेले मध्य प्रदेश में भी ऐसे अतिक्रमण कर के बनाए गए मंदिरनुमा जगहो  की संख्या हाइ कोर्ट ने विगत आठ साल से  राज्य सरकार से  बताने को कहा है -----परंतु सरकार आज तक  ऐसे निर्माणों की गिनती ही कर रही हैं !  प्रदेश की राजधानी  में झुग्गी झोपड़ी का इलाका हो अथवा  आईएएस  अफसरो की रिहाइश  का स्थान चार इमली या 74 बंगले हो , सभ जगह आप को मंदिर मिल जाएंगे | निश्चित ही यह भूमि  खरीदा कर और टाउन अँड कंट्री प्लाननिंग स अनुमति लेकर नहीं बनाए गए हैं | और यह सब मंत्री मण्डल और सीनियर नौकरशाहों के नाको तले ही हुआ है 1

        आम तौर पर ये उपासना स्थल  सड्कों के किनारे फूटपाथ का अतिक्रमण कर के बनाए गए होते हैं | जिसका रखवाला कोई इलाके का दबंग होता हैं –जिसे किसी न किसी राजनीतिक नेता का संरक्षण प्रापत  होता हैं | इसी कारण पुलिस भी इस “””गैर कानूनी “” निर्माण और उसके लिए जिम्मेदार पर कारवाई नहीं करती |  एक अनुमान के अनुसार  इस अतिक्रमण में सनातन –मुस्लिम के अलावा  जैन समुदाय के लोग बी शामिल पाये जाते हैं | भोपाल में एक अनुमान के अनुसार 60 से अधिक जैन मंदिर है –जिनमे मात्र तीन ने  ही भूमि खरीदा कर  मंदिर का निर्माण किया हैं | जबकि यह मत के अनुयाई  काफी अमीर होते हैं | जिसला प्रमाण  मनुभन की टेकरी पर बने मंदिर तथा  कमलापति स्टेशन को जाने वाली रोड पर निर्माणाधीन  मंदिर है | एक अनुमान के अनुसार इस मंदिर पर 500 करोड़ से अधिक खर्च किया जा चुका है |

         क्या यह धन राशि कोई अस्पताल या विद्यलय अथवा व्रध आश्रम  के निर्माण में नहीं लगाई जा सकती थी ? वैसे जिसका पैसा उसका फैसला | लेकिन सवाल तो उठता ही है , मंदिर से समाज के लोगो को दर्शन के अलावा और कौन सुविधा मिली ? क्या गरीब विद्यारथी को फीस और किताब मिली “\?  बीमारों को इलाज़ मिला ?  मुसलमानो की मस्जिदों की संख्या में इजाफा तो नहीं हुआ ---हाँ मरम्मत और पुनर्निर्माण जरूर हुआ |

 अभी बोहरा गुरु सैयदना साहेब ने अपनी जमात से कहा हैं की वे अपने लोगो की सेहत की जांच के लिए इंटेजामत करे | यह निर्देश उनके धरम के लोगो की बेहतरी का फैसला है |  क्या अन्य धर्मो के गुरु ऐसा निर्देश नहीं दे सकते !  शिक्षा और स्वास्थ्य  के लिए समाज को खुद ही आगे आना होगा | सरकार के मंदिरो और मस्जिदों का गणतन्त्र – बन गया है भारत !

    

      आप रेल यात्रा  के बाद जब कनही {अधिकतर अवसरो पर } स्टेशन से बाहर निकलेंगे तब आप को आम तौर पर  कोई ना कोई हनमान मंदिर या शिव मंदिर और कोई मज़ार  जरूर दिखाई दे जाएगी !  यह सब सरकारी जमीन पर बनाए गए हैं | जिसे अतिक्रमण कहा जाता हैं |  अकेले मध्य प्रदेश में भी ऐसे अतिक्रमण कर के बनाए गए मंदिरनुमा जगहो  की संख्या हाइ कोर्ट ने विगत आठ साल से  राज्य सरकार से  बताने को कहा है -----परंतु सरकार आज तक  ऐसे निर्माणों की गिनती ही कर रही हैं !  प्रदेश की राजधानी  में झुग्गी झोपड़ी का इलाका हो अथवा  आईएएस  अफसरो की रिहाइश  का स्थान चार इमली या 74 बंगले हो , सभ जगह आप को मंदिर मिल जाएंगे | निश्चित ही यह भूमि  खरीदा कर और टाउन अँड कंट्री प्लाननिंग स अनुमति लेकर नहीं बनाए गए हैं | और यह सब मंत्री मण्डल और सीनियर नौकरशाहों के नाको तले ही हुआ है 1

        आम तौर पर ये उपासना स्थल  सड्कों के किनारे फूटपाथ का अतिक्रमण कर के बनाए गए होते हैं | जिसका रखवाला कोई इलाके का दबंग होता हैं –जिसे किसी न किसी राजनीतिक नेता का संरक्षण प्रापत  होता हैं | इसी कारण पुलिस भी इस “””गैर कानूनी “” निर्माण और उसके लिए जिम्मेदार पर कारवाई नहीं करती |  एक अनुमान के अनुसार  इस अतिक्रमण में सनातन –मुस्लिम के अलावा  जैन समुदाय के लोग बी शामिल पाये जाते हैं | भोपाल में एक अनुमान के अनुसार 60 से अधिक जैन मंदिर है –जिनमे मात्र तीन ने  ही भूमि खरीदा कर  मंदिर का निर्माण किया हैं | जबकि यह मत के अनुयाई  काफी अमीर होते हैं | जिसला प्रमाण  मनुभन की टेकरी पर बने मंदिर तथा  कमलापति स्टेशन को जाने वाली रोड पर निर्माणाधीन  मंदिर है | एक अनुमान के अनुसार इस मंदिर पर 500 करोड़ से अधिक खर्च किया जा चुका है |

         क्या यह धन राशि कोई अस्पताल या विद्यलय अथवा व्रध आश्रम  के निर्माण में नहीं लगाई जा सकती थी ? वैसे जिसका पैसा उसका फैसला | लेकिन सवाल तो उठता ही है , मंदिर से समाज के लोगो को दर्शन के अलावा और कौन सुविधा मिली ? क्या गरीब विद्यारथी को फीस और किताब मिली “\?  बीमारों को इलाज़ मिला ?  मुसलमानो की मस्जिदों की संख्या में इजाफा तो नहीं हुआ ---हाँ मरम्मत और पुनर्निर्माण जरूर हुआ |

 अभी बोहरा गुरु सैयदना साहेब ने अपनी जमात से कहा हैं की वे अपने लोगो की सेहत की जांच के लिए इंटेजामत करे | यह निर्देश उनके धरम के लोगो की बेहतरी का फैसला है |  क्या अन्य धर्मो के गुरु ऐसा निर्देश नहीं दे सकते !  शिक्षा और स्वास्थ्य  के लिए समाज को खुद ही आगे आना होगा | सरकार के प्रयासो की निरर्थकता  हम हम देख  रहे हैं और देख चुके हैं

 

  क्यू नजरे झुकी रहती है  भंडारे और प्रसादी वितरण में  और क्यू नज़र उठा कर  लंगर में भोजन  पाते है !

               

            भूखों को भोजन  सम्मान के साथ देना कोई  सिखो के गुरुद्वारों के लंगर  से सीखे , वे बिना किसी भेदभाव के वेषभूषा को देखे बिना हिन्दू – मुस्लिम और ईसाइयो तक को  लंगर खिलाते है | लंगर की लाइन में बैठे व्यक्ति से उसकी शकल या पोशाक लंगर बांटने वालो का ध्यान नहीं होता है –वे तो बस बड़े बाबा [गुरु नानक देव ]  की सीख को पूरा करते है|

इसके मुक़ाबले  कभी –कभार मंदिरो में पर्व पर आयोजित भंडारे में पूड़ी बांटने वाले लोगो की शकल और कपड़ो के आन्सर व्यवहार करते है | वे कृपा स्वरूप भोजन वितरण करते है ---कर्तव्य स्वरूप नहीं ! यही अंतर है सनातान  धरम के मंदिरो  में | तिरुपति बालाजी का प्रसाद हो या जगन्नाथ पूरी का अथ्वा  मंजूनाथ जी का भंडारा  हो दक्षिण के इन मंदिरो में फिर भी  ग्रहस्थ और भूखे  में अंतर नहीं करते | क्यूंकी वनहा भी मंदिरो में चावल का प्रसाद देने की परंपरा सदियो से चली आ रही हैं |

बॉक्स

           सनातन धरम के अनुसार मंदिर के देवता  उस छेत्र –या नगर अथवा ग्राम के भी रक्षक देवता होते हैं |  विवाह – यज्ञोपवीत अथवा अन्य आयोजनो में ग्राम –या नगर देवता  की पुजा इसी आशा से किजाति है की वे यजमान के परिवार की आपदाओ से रक्षा करेंगे |

परंतु  तिरुपति बालाजी के देवस्थानम प्रबंधन ने जम्मू में भी अपने मंदिर की शाखा खोल दी है !! यह तथ्य  ओह माय गाड फिल्म के डायलग जैसा है जिसमे पात्र बाबाओ पर व्यंग करते हुए कहता हैं की – क्या भगवान के नाम पर मंदिरो की ब्रांच खोल ली है ! वैसे  बिरला समूह द्वरा  राधा – क्राइष्ण के  देश के मंदिरो कोउनके देवताओ से अधिक  बिरला मंदिर के नाम से ही जाना जाता हैं | इस कड़ी में  कानपुर का जे के मंदिर भी हैं | दक्षिण भारत में   सदियो पहले राजवंशो द्वरा निर्मित मंदिर उनके निर्माताओ के नाम से नहीं वरन उसके देवताओ के नाम से जाने जाते हैं |

 

 

 

       

       

               

            भूखों को भोजन  सम्मान के साथ देना कोई  सिखो के गुरुद्वारों के लंगर  से सीखे , वे बिना किसी भेदभाव के वेषभूषा को देखे बिना हिन्दू – मुस्लिम और ईसाइयो तक को  लंगर खिलाते है | लंगर की लाइन में बैठे व्यक्ति से उसकी शकल या पोशाक लंगर बांटने वालो का ध्यान नहीं होता है –वे तो बस बड़े बाबा [गुरु नानक देव ]  की सीख को पूरा करते है|

इसके मुक़ाबले  कभी –कभार मंदिरो में पर्व पर आयोजित भंडारे में पूड़ी बांटने वाले लोगो की शकल और कपड़ो के आन्सर व्यवहार करते है | वे कृपा स्वरूप भोजन वितरण करते है ---कर्तव्य स्वरूप नहीं ! यही अंतर है सनातान  धरम के मंदिरो  में | तिरुपति बालाजी का प्रसाद हो या जगन्नाथ पूरी का अथ्वा  मंजूनाथ जी का भंडारा  हो दक्षिण के इन मंदिरो में फिर भी  ग्रहस्थ और भूखे  में अंतर नहीं करते | क्यूंकी वनहा भी मंदिरो में चावल का प्रसाद देने की परंपरा सदियो से चली आ रही हैं |


           सनातन धरम के अनुसार मंदिर के देवता  उस छेत्र –या नगर अथवा ग्राम के भी रक्षक देवता होते हैं |  विवाह – यज्ञोपवीत अथवा अन्य आयोजनो में ग्राम –या नगर देवता  की पुजा इसी आशा से किजाति है की वे यजमान के परिवार की आपदाओ से रक्षा करेंगे |

परंतु  तिरुपति बालाजी के देवस्थानम प्रबंधन ने जम्मू में भी अपने मंदिर की शाखा खोल दी है !! यह तथ्य  ओह माय गाड फिल्म के डायलग जैसा है जिसमे पात्र बाबाओ पर व्यंग करते हुए कहता हैं की – क्या भगवान के नाम पर मंदिरो की ब्रांच खोल ली है ! वैसे  बिरला समूह द्वरा  राधा – क्राइष्ण के  देश के मंदिरो कोउनके देवताओ से अधिक  बिरला मंदिर के नाम से ही जाना जाता हैं | इस कड़ी में  कानपुर का जे के मंदिर भी हैं | दक्षिण भारत में   सदियो पहले राजवंशो द्वरा निर्मित मंदिर उनके निर्माताओ के नाम से नहीं वरन उसके देवताओ के नाम से जाने जाते हैं |

 

 

 

       

May 19, 2023

 

नहीं चाहिए रामराज या धरम राज चाहिए संविधान का राज

 

      कर्नाटक विधान सभा  चुनावो  के परिणामो ने  यह संकेत तो दे ही दिया हैं की  भगवान भक्तो के ह्रदय  में रहते हैं ---ई वी एम मासचिनो में नहीं | परंतु इस परिणाम को  इस चुनावी मशीन  की “”ईमानदारी “” समझने की भूल तो कतई नहीं करना चाहिए |  क्यूंकी आखिरकार  इसकी नकेल उनही लोगो के हाथ में है –जो “””मनमाफिक परिणाम निकालने में माहिर हैं “”  इसलिए  बेहतर यही होगा की लोकतन्त्र को बचाने के लिए  दुनिया के आँय लोकतान्त्रिक देशो की तरह ही भारत में भी बैलेट पेपर से ही चुनाव हो |

                 अब रही बात जय श्री राम की या जय बजरंगबली की  के घोष को चुनावी प्रचार का नारा बनाने  की हरकत  सभी भगवत भक्तो  को ना गवारा  होगी | भजन –हवन – मंत्र उच्चारण  का स्थान नियत है | अब स्वार्थिजन  अपने मतलब के लिए  कभी राम का नाम कभी क्रष्ण का नाम और कभी बजरंगबली का नाम  ले रहे हैं | जो धार्मिक कर्मकांड के नियमो के विपरीत हैं | और नारा लगाने वालो के अलावा किसी की श्रद्धा को नहीं पाते हैं | क्यूंकी वे स्वार्थवाश ऐसा करते हैं | जबकि  आरध्यों की आराधना उनकी कृपा पाने के लिए नियमानुसार करनी होती हैं | सड़क पर नारा लगते हुए कोई भक्ति होती है ----इसका ज्ञान इस अलापज्ञानी को नहीं हैं |

       अयोध्या में बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण भव्य तरीके से हो रहा हैं | उसी विधवंश  के कारण तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह को क़ैद की सज़ा भी भुगत्नी पड़ी थी | क्यूंकी उन्होने सुप्रीम कोर्ट में शपथा पत्र देकर झूठ बोला था |  फिर मथुरा में क्रष्ण जन्मस्थान को लेकर भी वनहा एक मस्जिद को  “”निशाना “”” बनया जा रहा है |   बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर  वनहा “”” पुरातत्व विभाग द्वारा  “””” कार्बन डेटिंग  की कारवाई की जा रही हैं | एक  पक्ष द्वरा दावा किया जा रहा हैं , की मुगलो ने मंदिर तोड़ मस्जिद बनाई हैं | यह एक पेटेंट कारण बोला जाता हैं ---भक्त लोग तो ताजमहल को भी तेजोमय  आलय बताते हैं | कुतुबमिनार को भी गैर मुस्लिम निर्माण होने का दावा कुछ विद्वान कर रहे हैं |  आखिर इतिहास के इन पन्नो को पड़ने के लिए एक खुदाई और एक कार्बन डेटिंग मंत्रालय को तीस दिन 24 घंटे काम करना होगा तब इन सभी स्थानो की स्थिति पता चलेगी ! यह विवाद सिर्फ और सिर्फ  एक नफरत का माहौल देश में बनाए रखने का है , क्यूंकी इन मुद्दो से देश की करोड़ो जनता को ना तो भोजन मिले जाएगा ,और ना ही कोई नए रोजगार  के अवसर निर्मित हो जाएँगे !!! हाँ कुछ कट्टर पंथी लोगो को पर् संतापी  सुख मिलेगा ---- दूसरों को दुख  देने का –उन्हे नीचा दिखाने और अपमानित करने का  उन पर हंसने का ही अवसर इन सब हरकतों  से मिलेगा | इतिहास अपनी जड़ो को जानने का विज्ञान है | युद्ध इतिहास का एक भाग है | उसके परिणाम उसी समय तय हो चुके | अब सिकंदर को पराजित बता कर पोरस को विजेता  बताने से ग्रीक जाती भारत में एतराज़ जताने नहीं आएगी |  बाबर – अकबर – औरंजेब  को लेकर अफगानिस्तान  के लोग भी एतराज़ नहीं करेंगे | आप जैसा चाहो “”इतिहास “” लिख लो | इस विवाद  का अंत खुदाई से निकले कंकाल और वस्तुए ही करेंगी !!! हम आप नहीं !!

    

                      आजकल एकबार फिर भगवधारी और रंग बिरंगे पोशाको के  कथा वाचको की भीड़ जुटने लगी है ----स्व्भविक भी है ---- राम और हनुमान के नाम पर भी अगर भक्तो की भाषा में कहे तो “”””देश के यशस्वी प्रधान मंत्री  मोदी जी के तूफानी और हवाई चुनाव प्रचार के बावजूद भी  कर्नाटक में उनकी पार्टी सत्ता से बेदखल हो जाती है , तब लोकसभा में चुनावो में कौन “””खेवनहार “”” बनेगा ???? यह लाख रुपये का सवाल हैं ?     पार्टी के अध्याकछ नड़ड़ा जी की उपयोगिता हिमांचल और कर्नाटक में सामने आ गयी है |

 

                 अब उत्तर प्रदेश ---बिहार और मध्यप्रदेश तथा हरियाणा में लोकसभा चुनावो को लेकर रश्स्कशी  होगी | सिर्फ उत्तर परदेश में ही  विधान सभा चुनावो में  बीजेपी ने  साफ साफ बहुमत { छोटी छोटी पार्टियो को लेकर} प्राप्त किया था | मध्य प्रदेश  में  विधायकों की खरीद फरोख्त से शिवराज सिंह की सरकार बनी है | जैसा की महा राष्ट्र  में उधव ठाकरे की सरकार से दल बादल करा कर शिंदे और बीजेपी की सरकार बनी | परंतु बिहार में नितीश  कुमार ने  बीजेपी के ही दल बदल के दांव से पटकनी दे दी !  अब हरियाणा में भी चौटाला की पार्टी के सहारे  सरकार है | किसान आंदोलन और प्पहलवानों के विवाद को लेकर जाटो की खाप पंचायते  बहुत नाराज हैं | अब इसका क्या प्रभाव होगा डेकना होगा |

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        आजकल हिन्दी भाषी छेत्रों  में  बहुतेरे  कथावचको  की भीड़  जुट गयी है | जो अब हिन्दू वोट की बात नहीं करती , क्यूंकी अब यह शब्द अपनी धार खो चुका है |  अब महिला कथावचको की भी एक बड़ी फौज जगह – जगह पर “”सनातन”धरम  और उसके मूल्यो  की बात करती हैं | सत्तारूद पार्टी की भांति ये सिर्फ  उसलोक की बात करते हैं | कोई सामाजिक  कारी नहीं करते है |  इनके मुंह से रामराज  या धरम राज की ही बाते निकलती हैं | जिस रामराज में राजा और प्रजा का संबंध रहा हो ------वह आज के लोकतान्त्रिक समय में कैसे  संभव हो सकता है | तब  दैवी सिधान्त  के आधार पर “”राजा” होता था |  शेस जनता प्रजा  होती थी ,जिसका कर्तव्य  राजा की “”आज्ञा “” मानना ही होता था | तब प्रजा के अधिकार नहीं होते थे | जातियो में जकड़ा समाज   में समानता की कल्पना नहीं थी | ब्रामहन पूजनीय  छतरीय  सममानीय और वैश्य  के आगे तो साधारण  जन के सिर ही झुकते थे |   इसको ध्रमराज कहना आज के लोकतान्त्रिक  समय में  बिलकुल संभव नहीं है |

  आज जब छुआछूत  अपराध है –जातियो में उंच नीच  नहीं हैं | हाँ हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश  में कई ऐसी घटनाए हुई है ----जब दलित दूल्हे को बारात निकालने या घोड़ी पर बैठने  को लेकर समुदायो में भिड़ंत हुई | परंतु प्रशासन  के हस्तचेप से बात को बिगड़ने से रोक लिया | हरियाणा में एक अखिल भारतीय सेवा की महिला द्वरा  दूसरी जाति के लड़के से विवाह को लेकर इलाहाबाद  हाइ कोर्ट को दाखल देना पड़ा था |

अभी अनेक अंतरजतीय  विवाहो के मामलो में स्थानीय लोगो द्वरा विवाहित जोड़े को जान से मारने की धम्की  के मामले में अदालतों ने पुलिस को 24 घंटे सुरक्षा  उपलबध  करने के आदेश दिये |

                आज  व्यक्ति प्रजा नहीं है वरन वह राष्ट्र का नागरिक है | जिसको देश के संविधान से  अधिकार और सुरक्षा प्रपात है | वह शासको से भी सवाल कर सकता हैं | आज सरकार में बैठे मंत्री भगवान के भेजे हुए नहीं है ---वरन  नागरिकों या मतदाताओ के चुने हुए प्रतिनिधि हैं | वे भी रामराज  के नहीं वरन संविधान के राज के अंतर्गत चुने गए हैं | मुझे नहीं लगता जगह – जगह घूम घूम कर कथा बाँचने वाले  लोगो को राजनीतिक रूप से प्रभावित कर सकेंगे |

वैसे  आशारम ---राम रहीम --- रामलाल  जैसे कभी देश व्यापी नामचीन धार्मिक लोगो को बारे यह कल्पना भी नहीं की जा सकती थी की ये लोग  अपना  बुढापा जेलो में कांटेंगे !!!!

इसलिए अब रामराज या कृष्णराज या ध्रमराज की बात बे मानी हैं | राम के राज में शंबूक का वध और महाभारत काल में कर्ण का तिरस्कार उसके तथाकथित जन्म के आधार पर -----न्याय तो नहीं कहा जा सकता |

May 16, 2023

 

 कर्नाटक में कनही काँग्रेस ना भटक जाये – 2024 की तैयारी से  !

 

         कर्नाटक विधान सभा चुनावो में काँग्रेस की विजय कंहे या बीजेपी की पराजय  परंतु  जिस प्रकार की पैंतरेबाजी  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी कर रहे हैं  उससे काँग्रेस समेत सभी विपक्षी दलो को  उनकी चालो को समझना होगा , अन्यथा  बाद में  ईवी एम  को और चुनाव आयोग के पक्षपात के किस्से ही सुनने को मिलेंगे |  सबसे पहले तो बीजेपी और उनके समर्थक तत्व  तथा “”भक्त”” गण  समाज में काफी जहर  घोलने का काम करेंगे |  कर्नाटक वक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम नेताओ ने एक प्रेस कोंन्फ्रेंस में यह कह कर  , अलपसंख्यकों के 80 % वोट काँग्रेस के समर्थन में डाले गए हैं | जिसका परिणाम हैं की जिन स्थानो पर जेडीएस  को विगत विधान सभ च्नवों में सालता मिली थी –उन्हे इस बार वनहा पराजय मिली –तथा काँग्रेस को सफलता मिली | इन धार्मिक नेताओ की महत्वाकांछ  उनकी मांगो से पता चलती हैं | जो उन्होने एक उप मुख्यमंत्री के पद के साथ गृह और शिक्षा विभाग मुस्लिम को दिये जाने की बात काही हैं |  अब यह मांग आँय पकछो  को  बिलकुल भी जायज नहीं लगेगी | कारण यह हैं की  आबादी के हिसाब से ही मंत्रिमंडल में स्थान दिये जाते हैं | उनमे व्यक्ति और स्थान का महत्व होता हैं |  बीजेपी प्रवक्ताओ ने चैनलो  की बहस में यानहा तक कह दिया की काँग्रेस को  अपनी “””पाँच प्रतिज्ञाओ के पालन के लिए  किसी मुसलमान या अनुसूसूचित जाति को मुख्य मंत्री का पद  काँग्रेस को देना चाहिए |

                        हालांकि  खुद बीजेपी जनहा पर अपनी सरकार हैं उन स्थानो  में ना तो अलपसंख्यकों और ना ही अनुसूचित जाति को तरजीह देती हैं | पर यह दुसप्रचार  काँग्रेस समेत उन दलो को नुकसान कर सकता हैं जो  जातिगत वोट बंकों  के आधार पर चुनावी रणनीति नहीं बनाते हैं | पर बीजेपी का हिन्दुत्व का एजेंडा  और मुस्लिम विरोध   मतदाताओ को दिग्भ्रमित कर सकता हैं |

        मोदी जी का पराजय को छुपाने का इवैंट मानेजमेंट का दांव :-  जैसा की उम्मीद थी की  कर्नाटक च्नवों में एक ही चेहरा था बीजेपी की ओर से , और वह था नरेंद्र मोडीजी का !  परंतु  जब परिणाम विपरीत आने शुरू हुए तो फोटो पार्टी अध्याकाश नड़ड़ा  जी का लगा दिया गया | मतलब साफ जीते तो हम और हारे तो तुम जिम्मेदार !  अब देश में एक बार मीडिया में विज्ञापनो और कार्यक्रमों के आधार पर  मोदी सरकार के 9 साल के फैसलो का गुणगान किया जाएगा | भले ही “मन की बात” से आम जनता की वितरशना  साबित हो गयी हो ----परंतु हमारे मुखिया ने उन कथानको पर एक चित्र प्रदर्शनी  लगवा दी | अब जैसे करोड़ो खर्च कर के  प्रधान मंत्री अपनी बात देश को जबर्दस्ती सुनने पर मजबूर करते थे , वह काम तो अब बंद हो जाएगा | क्यूंकी मोदी जी और उनके सलहकारो को अपनी सोच और समझ के छेद  समझ में आ गए हैं | इसलिए अब सुनने की बजाय दिखने का बंदोबस्त किया हैं | 

          विश्व गुरु की पदवी के लिए  वे भी मुगल बादशाहों  की भांति मूर्ति – मंदिर और इमरते बनवाने का शौक पूरा कर रहे हैं |  अब नए संसद भवन  की जरूरत केवल इसलिए हुई -----क्यूंकी सांसदो के बैठने की जगह कम थी !!!! ब्रिटिश संसद में कुरसिया  नहीं है सांसदो के लिए -----बेंच है बैठने के लिए ! उनका लोकतन्त्र  हमशे कई सदियो पुराना हैं | संयुक्त राष्ट्र अम्रीका  के काँग्रेस { सीनेट एवं हाउस ऑफ  रिप्रेसेंतेतिव }  भवन में भी कुरसिया ही लगी हैं |  शायद भारत पहला राष्ट्र होगा जो 70 साल में ही अपने लिए नया संसद भवन बनया हैं |  इसके उद्देश्या में  --सिर्फ यही कहा गया हैं की बैठने की जगह कम है और भवन को देखने लायक बनाने के लिए सजावट  की गयी है | वैसे संसद में साल भर में कितने घंटे सांसद रहते हैं !  इस पर बार –बार बतया जाता हैं की किस प्रकार सदन का  काम काज ठप रहा कभी विपक्ष तो  कभी सरकार ही सदन को ठप करती हैं |  तब यह आलीशान भवन भुतहा ही लगेगा !  इमारतों की शोभा उनमे क्रियाशील लोगो से होती है |

 

        काँग्रेस नेत्रत्व को यह बात गंभीरता से समझना चाहिए की कर्नाटक की विजय राहुल की पदयात्रा के समय सद्भाव और प्रेम के कारण मिली हैं |  जिसके कारण आज ममता बैनेरजी  भी काँग्रेस के समर्थन के लिए तैयार हो गयी है | अगर खडगे साहब और राहुल गांधी ने  आम आदमी की भावनाओ  को उजागर किया , उसे  नहीं समझेंगे  तब 2024  कोई लोकतांतरईक परिवर्तन  नहीं ला सकेगा | क्यूंकी बीजेपी की धन शक्ति अपार है और उनके सैकड़ो मुख है –जो जरूरी नहीं  की बीजेपी की आधिकारिक आवाज हो | परंतु समाज में  संदेह और भय का वातावरण  बनाने में  सक्षम हैं |

May 15, 2023

 

कर्नाटक में नफरत हारी है –सारे देश में नहीं ,कांग्रेस् सजग रहे

 

            मोदी जी और बीजेपी के भारी भरकम चुनाव प्रचार और  नफरत के बोल के बाद  भी  भारतीय जनता पार्टी की पराजय भी  मोदी और शाह की जोड़ी को यह नहीं सीखा पायी है की भय  और आतंक से लोगो के मन को नहीं जीता जाता है |  अपनी विजय पर दूसरों को नीचा दिखाने और स्वयं को महाबली बताने का स्वर आज  दक्षिण  के द्वार  से पराजित हो कर निकली पार्टी ने अब मोदी सरकार की नौ साल की उपलब्धियों का प्रचार करने के लिए  तीस दिनी कार्यकरम की घोसना कर के अपने “”काडर”” को व्यस्त रखने की जुगत निकाली है | 

                वैसे तो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा दावा करते हैं की उन्हे मीडिया ने नहीं बनाया है | परंतु आज जिस प्रकार चैनल  दिखते और सुनते है ----उसमे सरकार की विज्ञपन वाली उपलब्धि ही होती है | सोशल मीडिया पर अभी भी  देश को  दुनिया के सामने अव्वल  बताने के दावे किए जा रहे हैं | मोदी जी पहले भी जन सामान्य  के सवालो और समस्याओ को कभी भी अपने मन की बात में स्थान नहीं देते थे | वे मन की बात से किसी व्यक्ति की उपलब्धि और और अपनी सरकार की “”घोषणाओ “” को ही  देश को सुनते रहे है | अब देश उनकी 100 समभोधनों  के बाद शायद कुछ राहत पाये | जिस जबर्दस्ती से बीजेपी शासित  राज्यो में छत्रों को इस प्रसारण को अनिवार्य रूप से देखने –सुनने को बाध्य किया गया ---वह व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का हनन ही हैं |

       कर्नाटक के चुनाव प्रचार में जिस शाही अंदाज़ से मोदी जी ने राइलिया की और भासन दिया वह चुनाव प्रचार में  “”निषेध “” विषयो और कथन की स्टाइल  का नमूना है | जिस प्रकार उन्होने बजरंगबली का नाम लेकर बट्टन दबाने की अपील की वह दिल्ली में विधान सभा चुनावो में अमित शाह की अपील जैसा ही था –जिसमे उन्होने  कहा था “””बटन दबाओ जिससे की शाहीन बाग तक आवाज़ जाये “” इस प्रकार के नफरती  भाषणो  से वोट तो नहीं मिले परंतु नफरत का माहौल जरूर गरम हुआ ! परंतु शायद वह कहावत की “”” ना सुधरेंगे हम ना बदलेंगे हम “” की तर्ज़  पर  ही उन्होने कर्नाटक में भी किया , परंतु वे भूल गए की इनहि कर्मो से बीजेपी दिल्ली विधान सभा चुनाव भी पराजित हुई थी !!!

                          राहुल गांधी ने कर्नाटक विजय पर एक ही टिप्पणी की थी “”” अब कर्नाटक में भी मोहब्बत की दुकान खुल गयी है “”” | इस बयान को आशावादी और नैतिक ही कहा जाएगा | परंतु नफरत की पाठशाला के लोगो को  तो समाज को बांटने  और हिन्दू – मुस्लिम करने का ही उद्देश्य है | कर्नाटक चुनाव में  मुस्लिम मतो के एकजुट हो कर काँग्रेस का समर्थन करने को  भक्त लोग हिन्दू विरोधी  एजेंडा ही बता रहे हैं | हालांकि चुनावी राजनीति में अब भगवा मुख्य मंत्री आदित्यनाथ  भी मुसलमानो को ला रहे हैं ---- रामपुर की स्वर सीट से बीजेपी के मुस्लिम उम्मीदवार की जीत को  भगवा धारी मुख्यमंत्री भी पचा रहे है | अन्यथा उनकी निगाहों में मुसलमान “”” माफिया और गुंडा “” ही होता हैं |

 

कर्नाटक में बोममाई सरकार पर 40 परसेंट का आरोप कांग्रेस्स को सिद्ध करना होगा –लोकसभा चुनावो के लिए

   बोममाई सरकार में  सरकारी भर्ती और  निर्माण कार्यो  में  मंत्रियो और अधिकारियों द्वरा चालीस प्रतिशत कमीशन  लिए जाने  का आरोप , यूं तो उनके एक मंत्री द्वरा  इस्तीफा दिये जाने  से ही सिद्ध लगता हैं | परंतु पुलिस में सब इंस्पेक्टरों और शिक्षा विभाग में  अध्यापको की भर्ती में रिश्वतख़ोरी  के आरोप मंत्रियो तक पर लगे थे | अब काँग्रेस को भ्रस्ताचर  के खिलाफ अपनी पार्टी के काडार  की सहता से राज्यव्यापी मुहिम चलानी होगी , वरना जिस प्रकार मोदी जी का 15 लाखा देने का वादा आज झूठ ली मिसाल या जुमला बन गया है उसी प्रकार चालीस परसेंट  की रिश्वतख़ोरी  भी मज़ाक बन के रह जाएगी |

 

 

May 4, 2023

 

क्या महिला पहलवानों को न्याय मिलेगा भी ! 

 

   जंतर मंतर पर बड़ी उम्मीदों से धरना दे रहे महिला कुश्ती  के खिलाड़ियो की उम्मीद गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट  के फैसले से  बुरी तरह टूट गयी है !  सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा की  कुश्ती संघ के आद्यक्ष ब्रज भूषण शरण सिंह  के वीरुध ,  अपराध की रिपोर्ट दर्ज़ की जा चुकी है , इसलिए अब आगे अदालत इस मामले में कोई सुनवाई नहीं करेगी !   अदालत ने यह भी  नहीं देखा की एक नाबालिग महिला के साथ यौन शोषण की शिकायत पर पाकसो एक्ट  में दर्ज़ तो हुई पर –दिल्ली पुलिस ने  ना तो अभियुक्त के की गिरफ्तारी की और ना ही सभी शिकायत कर्ताओ के बयान दर्ज़ किए | पुलिस के अनुसार चार  महिलाओ के बयान धारा 160 अपराध दंड संहिता के तहत बयान दर्ज़ कर लिया हैं |  आम तौर पर पाकसो एक्ट के तहत अभियुक्त को गिरफ्तार कर पुच्छ ताछ की जाती हैं | यह शायद पहला मामला होगा जिसमें  अभियुक्त की गिरफ्तारी नहीं हुई हैं!!!  क्या इसलिए की अभियुक्त बीजेपी सांसद है , अथवा सत्तारुड  दल का प्र्भवी नेता हैं ! सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अब पकसो एक्ट  के अभियुक्त की गिरफ्तारी –और अपनी निर्दोषिता  सिद्ध करने का कानून अब पलट जाएगा !!!

        पकसो एक्ट में अभियुक्त को अपनी निर्दोषिता सिद्ध करना होती हैं | जबकि आम तौर पर किसी भी अपराध में आरोपी के वीरुध  उसका दोष सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी सरकार को करनी होती हैं |  अब इस मामले में भी ब्रज भूसन शरण सिंह की ना तो गिरफ्तारी होगी और मुकदमे की कारवाई सालो साल चलेगी |

 

 जैसे उत्तर प्रदेश में मलियाना नर संहार में छतीस  साल मुकदमा चलने के बाद  अतिरिक्त ज़िला न्यायडिश  ने 40 ज़िंदा आरोपियों को बाइज्जत बारी कर दिया !  वजह अभियुक्तों के खिलाफ जुर्म साबित नहीं हो पाया !!! 

                इस तरह गुजरात के नरोदा पटिया नर संहार में भी  अतिरिक्त ज़िला जज शुभ्दा  बक्सी ने भी एक लाइन का फैसला सुना कर  67 अभियुक्तों को रिहा कर दिया ------की सभ अभियुक्तओ  के खिलाफ  दोष सिद्ध के पर्याप्त  सबूत नहीं है !!

        

      दिल्ली विश्वविद्यालय  के प्रोफेसर साईबाबा को आतंकी मामले मे  मुंबई पुलिस ने गिरतार किया | मुंबई उच्च न्यायालया ने  उन्हे जमानत पर रिहा करने का आइसला सुनाया | परंतु केन्द्रीय जांच एजेंसी ने सुप्रीम कोर्ट में मुंबई हाइ कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपपील दायर की | सुप्रीम कोर्ट की खंडा पीठ के जस्टिस शाह की बेंच ने मुंबई हाइ कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए साईबाबा की जमानत को रद्द करते हुए आदेश दिया की  मुंबई हाइ कोर्ट इस मामले को  की सुनवाई किसी दूसरे बेंच को दे |  इस आइसले का अरथा यह हुआ की जमानत देने वाली पीठ की यौग्यता और निष्ठा  पर सवालिया निशान लगा दिया |

     

     गुजरात के ही बिलकीस बानो केस में अभियुक्तों को सज़ा पूरी होने के पहले ही रिहा क्यी जाने के फैसले पर जुस्टिस जोसेफ  ने गुजरात सरकार की इस कारवाई को घोर आपतिजनक बताया था |  जब सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से अभियुक्तों की रिहाई के दस्तावेज़  तलब किए ----- तब सरकार ने अदालत के आदेश को माममे से इंकार कर दिया था !!!!  तब सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा था की  की हम स्वयं  निष्कर्ष निकालेंगे |

परंतु जब गुजरात सरकार दस्तावेज़ अदालत में अगर देगी ----तब जुस्टिस जोसेफ  रिटायर हो चुके होंगे !!!

 इन उदाहरणो  से यह साग हो जाता है की संविधान के तीनों अंग ---सरकार और विधायिका  का तो पूरी तरह से राजनीतिकरण  हो चुका हैं | उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री आदित्यनाथ अपने  चल रहे मुकदमो को हाइ कोर्ट से वापस कार्वा देते हैं | सरकार कहती हैं की  ये सभी मामले  सरकार द्वरा द्वेष वश चलाये गए थे | परंतु उसी सरकार ने पत्रकारो के खिलाफ  मुकदमे दायर किए =-- क्यूंकी उन्होने योगी सरकार की हरकतों को उजागर किया था |

         अब रहा सवाल न्यायपालिका की , तो सूरत के अतिरिक्त जज आर पी मोगेरा ने  राहुला गांधी के मानहानि के मामले भी कहा की दो साल की सज़ा तिक है ,| बस एक लाइन में फैसला हो गया |

 बस ऐसे ही महिला पहलवानो के मामले कभी फैसला एक लाइन में हो गया ! क्यूंकी निज़ाम को कोई भी नाराज़ नहीं करना चाहता