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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Nov 6, 2014

उच्च न्यायालय के दो हाल के फैसलो ने अनेक प्रश्न चिन्ह खड़े कर दिये है


उच्च न्यायालय के दो हाल के फैसलो ने अनेक प्रश्न चिन्ह खड़े कर दिये है , दिल्ली हाइकोर्ट
की खंड पीठ ने 65 वर्ष की एक महिला से बलात्कार के बाद हत्या के एक मामले मे न्यायाधीशो ने यह फैसला सुनाया की चूंकि मृतका ""मेनोपाज़ "" की आयु पार कर चूंकि थी --एवं उसके गुप्तांग पर चोट पायी गयी थी | विद्वान जजो ने माना की बलात्कार करने मे बल का उपयोग भले हुआ हो परंतु जबरदस्ती नहीं की गयी थी |अब भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के अनुसार महिला के साथ ज़बरदस्ती कर के उसके गुप्तांग मे ''मात्र प्रवेश''' भी अपराध है | अब इस अवधारणा मे मेनोपौज होना या नहीं होना कोई विचारणीय मुद्दा नहीं है | परंतु विद्वान जजो ने मात्र दो शब्दो "" बलपूर्वक ""अथवा "" जबरन ""यानि Forcible aur Forcefully को लेकर ही विवाद खड़ा कर दिया | यद्यपि पुलिस की जांच मे मृतका के साथ बलात्कार होना और बाद मे उसकी हत्या किए जाने के लिए अभियुक्त अच्छे लाल को दोषी माना | ज़िला अदालत ने भी अभियुक्त को जुर्म का अपराधी करार दिया | परंतु उच्च न्यायालया की दो जजो की खंड पीठ ने अभियोजन की इस दलील को को महिला के साथ ज़बरदस्ती की गयी थी --नहीं माना ,,उन्होने बचाव पक्ष की इस दलील पर भरोसा किया की संभोग के लिए गए प्रयास को ज़बरदस्ती नहीं वरन बलपूर्वक माना जाना चाहिए | चूंकि मृतका के विसरा मे शराब मिली थी , शायद इसी को '''अदालत ने सहमति' माना | मथुरा - निर्भाया आदि के मामलो मे सर्वोच्च न्यायालया बलात्कार के अपराध के लिए जबरन संभोग को गैर ज़रूरी मानते हुए """बलात्कार """ का अपराधी माना | परंतु इस मामले मे बिलकुल उलट निरण्य दिया है | इस फैसले ने अब बलात्कार के अपराध की नयी व्याख्या की आवश्यकता को जन्म दिया है | क्योंकि अगर हाई कोर्ट से इस प्रकार का फैसला हुआ तो वह """नज़ीर """या उदाहरण बन जाएगा ---और अपराधी इन नुक्तो के चलते बच निकलेंगे |



दूसरा फैसला जबलपुर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश खिलवारकर और जस्टिस आरधे ने दिया | प्रदेश मे सरकारी नौकरियों की परीक्षाओ को करने की ज़िम्मेदारी """व्यापम """ नामक संगठन की थी | जिसने पुलिस की सिपाही से लेकर सब इंस्पेक्टर और --पीएमटी तथा लगभग 33 प्रतियोगी परीक्षाओ मे बेईमानी की | आरोप हाई की मंत्रियो से लेकर पूर्व मुख्य मंत्री और अनेक नेता एवं दर्जनो अधिकारियों ने इस षड्यंत्र मे अरबों रुपये का लेन-देन हुआ | परिणाम स्वरूप योग्य लोगो को ''असफल'' और नालयको'' को पास किया गया | दर्जनो मेडिकल कालेजो के सैकड़ो विद्यार्थियो को जमानत लेनी पड़ी बहुत से छात्र गिरफ्तारी के भाय से भाग गए | हालत यह हो गयी की सरकारी नौकरियों की ""नीलामी "" जैसी हो गयी | इसमे भंडाफोड़ मे जब आंच मुख्य मंत्री के आसपास के लोगो पर आने लगी तब पुलिस ने जांच के लिए ""स्पेसल टास्क फोर्स """ एक अतिरिक्त पुलिस महानिदेसक की अधीनता मे बनाई गयी | जब जनमत का दबाव बड़ा और याचिकाए दायर हुई तब मुख्य न्यायाधीश ने इस
फोर्स को सारी जांच की कारवाई """बंद लिफाफे मे अदालत को देने का आदेश दिया """"" यह भी निर्देश दिया की कोई भी अधीनस्थ अदालत
इस वैश्य मे सीधे आदेश नहीं दे सकेगी | पुलिस जांच से अदालती निर्देशों पर पुलिस की जांच का परिणाम यह हुआ की एसटीएफ़ किसी को भी
जवाबदेह नहीं रही सिर्फ अदालत ही """"जानती है की इस मामले किस के खिलाफ क्या कारवाई हो रही है | पूर्वा मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह
ने जब इस प्रक्रिया के खिलाफ याचिका दायर की तब मुख्य न्यायडिश महोदय की पीठ ने एक नयी व्यसथा जांच की कर दी ---उन्होने निर्देश
दिया की हाई कोर्ट के सेवानिव्रत जज की अध्यक्षता मे एक स्पेशल इन्वैस्टिगेशन टीम बनाई जाये जो एसटीएफ़ की जांच की निगरानी करेगी | यह भी आदेश दिया की ''इन मामलो से जुड़े कोई दस्तावेज़ और जानकारी '''' बिना एस आई टी की अनुमति के किसी भी व्यक्ति या एजन्सि को ना दी जाए | उन्होने एक बार फिर ईस पूरे मामले की जांच सी बी आई से करने की मांग तीसरी बार खारिज की | यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने भी
कोले की खदानों और --कालेधन के मामले मे एस आई टी बनाई परंतु उन्होने '''जांच एजन्सि की जांच के लिए व्यसथा नहीं की | अब तो यह भी संदेह हो रहा हाई की यह कारवाई किसी को बचाने के लिए तो नहीं हो रही हाई ? क्योंकि जो हो रहा वह पहले कभी नहीं हुआ | ऐसे फैसले न्याय वव्ययस्था पर ही प्रश्न चिन्ह लगते हाई