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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 19, 2021

 

सरकारी आयोजन में सरकार के पैसे पर दलीय चुनाव प्रचार !


गंगा एक्सप्रेस वे हो या सुल्तानपुर में सड़क पर


युद्धक विमानो को उतारने की कवायद हो _----- ये सब उत्तर प्रदेश


सरकार के शासकीय आयोजन थे | जिनके लिए योगी जी के हुकुम से सरकारी बसो में भीड़ जुटाने के लिए परिवहन निगम की बसे और विकासखंडों और राजस्व विभाग के अमले को लगाया गया था | वैसे अन्य शासकीय आयोजनो के लिए जब -जब भीड़ जुटाने की जरूरत होती है , तब स्कूलो के छत्र - छात्राओ को लाया जाता हैं | अगर बात किसी नेता के सड़क पर स्वागत करने की जरूरत हो तो गर्मी हो या सर्दी इन बच्चो को सड़क के किनारे खड़ा कर दिया जाता हैं | अगर बात किसी "”बड़े "” नेता जैसे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की हो , तब सारे सरकारी विभाग के अमले को झोंक दिया जाता हैं | अभी सुल्तानपुर में भीड़ जुटाने के लिए तो गावों से लालच देकर की वनहा "”खाना -पानी मिलेगा कह कर उम्र दराज़ आदमी -औरतों को बस में बैठा कर आयोजन स्थल पर ले आए | पर मोदी जी का भाषण सुनने से ज्यादा इन लोगो को खाना और पानी चाहिए था | पर जो लोग उन्हे लाये थे वे तो मिले नहीं और जिन बसो से लाया गया था वे भी उन जगहो में नहीं थी ,जनहा उन्हे छोड़ा था | अब सैकड़ो लोग अनाथों की तरह इधर उधर परेशान होते रहे | एक बुजुर्ग ने तो कहा "”” की मोदी जी ने कौन सा अपना कहा हुआ पूरा किया हैं ,जो हमको बुला कर और खाना देंगे | उनकी भीड़ हो गयी ! बस काम खतम , अब अपना पैसा लगा कर गाव्न जाओ ! सत्तारूद दल के आयोजन स्थल पर मौजूद नेता जो दल के बड़े नेताओ को अपना चेहरा दिखाने ही आए थे , उन्होने भी इन वोटरो की सुध नहीं ली | क्यूंकी ऊपर से कह दिया गया था की भीड़ के बंदोबस्त की ज़िम्मेदारी सरकारी अमले को दी गयी हैं !!! इसलिए उन्हे भी इन गाव्न वालो की कोई परवाह नहीं थी | क्यूंकी वे तो उन्हे लाये नहीं थे जो उनकी खोज - खबर लें |

2--सरकारी आयोजन से चुनाव प्रचार

इलाहाबाद हाइकोर्ट ने 1975 में इन्दिरा गांधी , तत्कालीन प्रधान मंत्री के राइबरेली के संसदीय चुनाव को इसलिए "” रद्द "” कर दिया था की उनके चुनावी खर्चे में , उनके लिए शासन द्वरा बनवाए गए सुरक्षा इंतज़ामों के खर्चे को नहीं जोड़ा गया था | जबकि उनके विरोधी प्रत्याशी समाजवादी नेता राजनारायाण को वह सुविधा नहीं दी गयी थी !!! जुस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा की एकल पीठ ने इन्दिरा गांधी के और भारत सरकार के वकीलो की यह डाली नहीं मानी की केंद्र की "” ब्लू बूक "” के अनुसार प्रधान मंत्री को सदैव एक सुरक्षा चक्र में रहना होता हैं | अतः सुरक्षा का मसला "”पद "” से हैं व्यक्ति से नहीं | परंतु जज साहब इस तर्क को नहीं माना और इन्दिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया |बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया , पर तब तक राजनीति में बहुत बदलाव आ चुका था |

इस नज़ीर को ध्यान में रखते हुए अगर हम प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की "” नैतिकता "” को परखे तो उनके भाषण "” अनुचित "” हैं | परंतु वे "” परम हंस "” की भांति उचित - अनुचित की सीमाओ से ऊपर उठ चुके हैं | यद्यपि अभी उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनावो की घोषणा नहीं हुई हैं | पर फिर भी समूचे चुनाव आयोग , के तीनों आयुक्तों को प्रधान मंत्री के प्रधान सचिव अपने कार्यालय में "”” तलब – हाजिर "”” होने के लिए कहते हैं | अब चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है जो केवल राष्ट्रपति के अधीन हैं | उनसे अपेक्षा की गयी हैं की सुप्रीम कोर्ट के जजो की भांति वे भी ---विधायिका और कार्यपालिका से दूरी बनाए रखेंगे | पर सुप्रीम कोर्ट के निव्र्त्मन प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने कार्यपालिका से दूरी का पालन नहीं किया | फलस्वरूप उनके अयोध्या मंदिर के फैसले को भी "”” इंसाफ "” की श्रेणी में रखने से हिचकिचाहट है | और उनके राज्यसभा में नामिनेट किए जाने को शंका की नज़र से देखा जा रहा हैं | इस परिप्रेक्ष्य में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सचिव द्वरा चुनव आयुक्तों को कार्यालय में बुलाना निश्चय ही एक तरह से उन्हे संदेश देना हैं की जिस प्रकार एक पूर्व चुनाव आयुक्त को "” मोदी जी "” की नाफरमानी करने पर इन्कम ताज इंटेलेजेंस और सीबीआई के छापे से गुजरना पड़ा था , वही हाल हो सकता हैं | डी आर आई ने जिस प्रकार बंगाल - कर्नाटक - और महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश के विधान सभा चुनावो के पहले त्राणमूल काँग्रेस -काँग्रेस -तथा एन सी पी नेताओ पर चुनावो के पूर्व छापामारी की थी , वैसी ही उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नज़दीकियों पर छापा पड़ा हैं , वह मोदी सरकार की " नीयत "” पर पूरी तरह से संदेह का कारण हैं | उधर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उद्योगपतियों की सभा में कहते है "” की हमारी सरकार कुछ फैसले गलत हो सकते हैं , पर हमरी नीयत हमेशा सही रही है !!!!!! अब चुनाव के पूर्व फिर से प्रतिद्व्न्दी पार्टी को धौंसपट्टी दिखा कर डराने का प्रयास फिर दुहराया जा रहा हैं | लेकिन इन सभी प्रदेशों में बीजेपी को मुंह की ही खानी पड़ी | अब यही कहना उचित रहेगा की ---- सबक नहीं सीखे हैं और नाही सीखेंगे !!!