राष्ट्र
पिता महात्मा गांधी
हिंसा
से निडर हो कर असहयोग की --भयमुक्त
हो कर बात कहने की सीख दी थी
हमारे
एक मित्र ने अपने अखबार के
कालम मैं लिखा – "”गांधी
के अनुयाई ट्रम्प द्वारा
प्रधान मंत्री को देश का पिता
कहे जाने से भयभीत क्यो हैं
"”
| मेरे
इस आलेख का उद्देश्य इस गलतफहमी
को दूर करना है |
30 जनवरी
1948
को
बिरला भवन की प्रार्थना सभा
मैं विनायक सावरकर के शिष्यो
ने पिस्तौल की गोली से जिस
हस्ती की हत्या की – उसे दुनिया
महात्मा
गांधी के नाम से जानती है और
भारतवर्ष उन्हे राष्ट्र पिता
और बापू के
नाम से जनता हैं |
यह
सर्व विदित हैं की वे आजीवन
सत्य-
अहिंशा
और करुणा की राह पर चले |
उनके
अनुयायियों मैं दो प्रकार
के शिष्य थे -----
सत्याग्रही
,
जिनहोने
अंग्रेज़ो के वीरुध अहिंसक
आंदोलन से लड़ाई लड़ी |
वे
अपने विरोधियो से सहज ही
व्यव्हार करते थे ,
भले
ही उसकी नियत हत्या करने की
ही क्यो न रही हो |
वे
मनुष्यता मैं विश्वास रख्त
थे |
वे
सत्ता मैं कभी रहे नहीं – इसलिए
उन्होने अपनी जान की रक्षा
के लिए कभी "”
स्वयं
सेवक या सरकारी सिपाही "”
नहीं
रखे |
दूसरे
थे काँग्रेस पार्टी के सदस्य
और समर्थक |
अब
जवाहर लाल नेहरू -सरदार
पटेल -
मौलाना
आज़ाद आदि स्वतन्त्रता के बाद
की राजनीति करने लगे |
महात्मा
तो सत्ता और उसकी राजनीति से
अलग ही रहे ,
वे
देश की सवालो के समाधान मैं
रत रहे |
वैसे
कट्टर्पंथियों ने देश के तीन
गांधीयों की हत्या की ----राष्ट्र
पिता महत्मा गांधी की संघ --और
सावरकर के साथी गोडसे --आपटे
और सात अन्य लोग जिनहे सज़ा
हुई |
श्रीमति
इन्दिरा गांधी की भी हत्या
जंगजू विचारधारा के लोगो
द्वरा धर्म की आड़ लेकर हत्या
हुई |
तीसरे
थे राजीव गांधी जिनकी हत्या
भी तमिल कट्टर्पंथियों द्वारा
की गयी |
अब
अगर गांधी डरते होते तो इन्दिरा
और राजीव भी मौजूदा "””
वीआईपी
सुरक्षा के उन बंदोबस्तों
को स्वीकार करते ----जो
सुरक्षा सलहकार अजित डोवाल
जी ने अब किए हैं |
क्योंकि
सरकार की नौकरी वे तब भी थे
|
इन
चरमपंथियो का उद्देश्य सत्ता
पर ---हिनशा
का सहारे कब्जा करना |
देश
ने आज़ादी के बाद लोकतन्त्र
की संसदीय प्रणाली को संविधान
मैं मंजूर किया |
जनहा
बहू दलीय राजनीतिक पार्टियो
का समावेश था |
महात्मा
ने अपने को "”सत्ता
"”
की
राजनीति से अलग रखा |
सावरकर
और उनकी टोली के "”विपरीत
"”
जो
महतमा गांधी और आँय राष्ट्रीय
नेताओ की हत्या के उपरांत
"”देश
मैं अराजकता "”
के
माहौल मैं ----हिन्दू
बनाम मुसलमान के विवाद से
सत्ता पर "”कब्जा
"”
करने
की नियत रखते थे |
क्योंकि
उनका विश्वास लोकतान्त्रिक
तरीको से सत्ता को पाने के "”
चुंनाव
"”
जैसे
तरीको को ---””फिरंगी
सभ्यता की गुलामी और हिंदुवादी
सोच और विश्वास के वीरुध मानते
थे |
एक
लेखक के अनुसार
बिरला
भवन मैं हत्या की घटना के बाद
सावरकर -गोडसे
की टोली का अनुमान था की देश
मैं अराजकता फैलेगी -----जिसका
लाभ उठा कर संघ और -हिन्दू
महा सभा के अलावा
समान विचार और सोच के संगठनो
के सदस्यो की मदद से सत्ता
पर कब्जा किया जा सकता हैं !!!
परंतु
पंडित जवाहर लाल नेहरू की
समझ से देश को रेडियो पर इतना
ही पता चला की "””
आज
एक पागल ने महात्मा की ह्त्या
कर दी ----
रोशनी
चली गयी ..........””
| अगर
हत्यारे के बारे मैं बता दिया
जाता की वह सावरकर टोली का
मराठा सदस्य था -----
तब
क्या इन्दिरा गांधी की सिख
द्वारा हत्या किए जाने के बाद
फैले आक्रोश और दंगो से कई
गुना विशाल नर संहार मराठी
समुदाय के लोगो का संभावित
था |
परंतु
इस घटना के बारे रेडियो की
खबरों की मानीटरिंग तत्कालीन
सूचना मंत्री श्री केसकर को
दी गयी !!!
अब
इस सरकार से क्या खबरों के
मामले मैं ऐसी निसपछता
की उम्मीद की जा सकती हैं ??
उदाहरण
हैं काश्मीर की हालत ----
पर
देश को पिलाई जा रही समाचारो
की घुटी है !
कुछ
संघ के सेवक और भक्त गण महात्मा
की गांधी की लाठी को संघ की
शाखाओ मैं काली टोपी पहने
स्वयं सेवको द्वारा धरण किए
जाने वाली लाठी से तुलना करते
हैं !!
परंतु
वे इस तथ्य की अनदेखी करते
हैं की महात्मा की लाठी उनके
तेज गति मैं चलने का रहस्य
थी |
अच्छे
अच्छे नौजवान महात्मा के साथ
चलने मैं दौड़ लगते हुए प्रतीत
होते थे |
जबकि
संघ की लाठी "”
डराने--
और
असहमति रखने वाले को धमकाने
का हथियार हैं "”
| जो
संघ के वैचारिक अभिव्यक्ति
मैं मिलती हैं |
कभी
निडर व्यक्ति किसी को धमकाता
नहीं ------
भयभीत
और डरा आदमी ही
"””हिनशा
का सहारा लेकर विरोधी को
चुप या क़ैद करता हैं |
जो
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
को अपराध मानता हैं |
टैंक
-बंदूक
के बावजूद जो लोगो की आवाज़ से
दर्ता रहता हैं |
यह
सर्वविदित सत्य हैं की महात्मा
की हत्या सावरकर और संघ की
टोली के द्वारा ही की गयी थी
|
जिसके
फलस्वरूप गोडसे और आपटे को
फांसी की सज़ा अंबाला जेल मैं
हुई |
बाकी
सात लोगो को कारावास सज़ा दी
गयी |
उस
समय की सरकार पंडित नेहरू की
थी --जिसने
अदालत को ----
राष्ट्र
पिता की हत्या को भी अन्य
अपराधियो की भांति न्याय किए
जाने मैं हस्तछेप नहीं किया
|
उस
घटना के समय सत्ता की भूमिका
की तुलना आज सीबीआई -और
एनआई और आय कर आदि एजेंसियो
के के अनुसार छापे ततः जांच
और जमानत में होने वाले फैसले
यह तो साबित कर रहे है ----की
आरोपी और अदालतों की कारवाई
लिखे हुए कानून जरा कम ही हो
रही हैं !!!!
मित्र
ने आलेख मैं यह भी आसावसन दिया
की कितनी भी कोई कोशिस कर ले
राष्ट्र पिता का स्थान नहीं
ले पाएगा !!!
उनको
साधुवाद की उन्होने इतना तो
स्वीकार किया ---
टीवी
-
फील्ड
प्रचार और ह्यूस्टन जैसी '’
इवैंट
'’
से
अगली इवैंट तक तक की वाह वाही
तो मिल सकती है ,
परंतु
वह भी छनिक ही होती है |
ऐसी
विचार हीन आयोजनो से --खुशी
तो मिल सकती है |
पर
स्थायी प्रभाव नहीं होता !!
क्या
स्वामी विवेकानंद की प्रचार
रहित --और
चका चौंध से दूर बिना किसी
आश्रय की गयी यात्रा की भांति
कोई प्रभाव डालेगी ???
जवाब
है बिलकुल नहीं |
महतमा
गांधी और उनके हिंसा समर्थक
विरोधियो मैं दो अंतर हैं
-----जो
संघ और सावरकर की टोली {{जैसा
एक विदेशी ने परिभाषित किया
}}}
की
भांति "””धरम
"”
को
विभाजित करने का हथियार बनाते
हैं और वे वेदिक धरम के अध्यातम
पक्ष पर विचार या वार्ता नहीं
करना चाहते हैं |
पर
"”
गर्व
से कहो हम हिन्दू हैं '’’’
नारे
को दूसरे अल्प संख्यकों समुदाय
को डराने के लिए करते हैं |
जिस
संगठन को वेदिक धर्म को -----
हिन्दू
समुदाय मैं परिभाषित करने
की शपथ हो ,,
उसके
नेताओ की मेधा पर माँ गायत्री
ही क्रपा करे !!!
महात्मा
पर मुसलमानो की तुष्टि करने
का आरोप भी महा राष्ट्र की
चितपावन ब्रामहन नेताओ द्वरा
किया जाता रहा हैं !
परंतु
1977
मैं
जनसंघ के विलीन हो जाने के बाद
और भारतीय जनता पार्टी के रूप
मैं पुनर्जनम लेने के बाद
-----वे
स्वयं मर्ज के शिकार हुए जो
की आज भी जारी हैं |
जी
हाँ देसाई सरकार मैं सिकंदर
बखत इनहि के कोटे से मंत्री
बने !
फिर
बाद मैं मैं इधर -
उधर
से मुसलमानो को पार्टी मैं
लिया |
आज
भी दो हैं |
अब
यह काम आरएसएस या विश्व हिन्दू
परिषद अथवा बजरंग दल द्वरा
तो किया नहीं जाएगा ---
क्योंकि
इनके नाम पर "”
चुनाव
तो लड़े नहीं जा सकते "”
अतः
इन्हे अल्प संखयकों के वोटो
या समर्थन की परवाह नहीं |
ये
संगठन तो बस चुनावो के दौरान
ही शासक दल यानि की बीजेपी के
उम्मीदवारों की मदद करते हैं
|
अब
इसे क्या कहेंगे ?
खुदरा
फजीहत --दीगरा
नसीहत |
एक
आँय पत्रकार मित्र ने तो नरेंद्र
मोदी जी को महात्मा का पुनर्जनम
लिख दिया हैं !
अब
इस पर कोई टिप्पणी क्या की
जाये !
परंतु
जिस प्रचार प्रबंध -
अखबार
-
टीवी
चैनलो तथा रेडियो और "”””प्रायोजित
भीड़ वाले कार्यक्रम "”””
से
प्रभावित हो कर शायद उन्होने
ऐसा लिखा होगा -------
उसकी
उम्र ज्यादा नहीं होती |
उदाहरण
के लिए अखबार --पुस्तक
जेहन मैं अमित स्थान बना लेती
हैं ,,परंतु
रेडियो और टीवी चैनलो पर और
व्हात्सप्प यूनिवरसिटि पर
प्रसारित किया ज्ञान उस प्रकार
अमिट नहीं हो पाता |
उदाहरण
के तौर पर यदि कोई रोज रोज फास्ट
फूड खाता हैं ,
तब
उसका स्वास्थ्य तो निश्चय
ही खराब होगा -------जैसे
आजकल की युवा पीड़ी हैं !
यही
बात विचारो और ज्ञान के बारे
मैं हैं ----------हिंसा
-नफरत
और डराने -धमकाने
के मसालेदार वाले नारे और
विचार भी अंततः व्यक्ति और
समाज को दूषित ही करते है |
ऐसे
मैं विभाजित समाज और एक -दूसरे
पर शंका और असहमति को चुप करने
के लिए गोडसे या गरदे की गोली
या छुरा -आज
भी लोग लिए फिर रहे हैं |
पर
महात्मा के समर्थक {{{भक्त
नहीं }}
डरे
नहीं है ---
चाहे
वे 40
गणमान्य
लोगो की गिरफ्तारी का आदेश
अदालत निकाल दे |
जिंका
"””अपराध
"””
इतना
हैः की उन्होने देश में "”
भीड़
द्वारा लोगो को हत्या किए जाने
की घटना को लेकर ---प्रधान
मंत्री नरेंद्र मोदी को खुला
पत्र लिखा था !!!
मोहनदास
करमचंद गांधी से बापू और राष्ट्र
पिता का सम्मान पाने वाले
व्यक्ति ने तो अपने ऊपर हमला
करने वालो को भी छमा किया था
--चाहे
वे मदन लाल पाहवा हो अथव
सेवाग्राम में गर्दे रहे हो
|
बस
इतने अंतर हैं ---
फादर
ऑफ इंडिया बताए जाने पर |
जिनको
उनके समर्थक राष्ट्र पिता
बनाने पर तुले हैं |
यंहा
महाभारत की एक कथा लिखने का
"”मन
हैं "”
--- वासुदेव
-देवकी
के पुत्र कृष्ण की ख्याति
सुन कर एक शासक ने भी अपना नाम
पौंड्र वसुदेव रख लिया |
उसने
तत्कालीन समय में उपलब्ध
प्रचार से अपने को "”
कृष्ण
अर्थात ईश्वर "”
का
रूप बताने लगा |
क्रष्ण
की चार भुजाओ के समान उसने भी
दो नकली हाथ लगा लिए और लोगो
को भयभीत कर ---
खुद
को भगवान समान मानने लगा |
उसके
राज्य की प्रजा कहने भी लगी
की पौंड्र ही ईश्वर हैं |
परंतु
बार -बार
जब लोग श्री कृष्ण से उसकी
हरकतों की शिकायत करते थे ,,
तब
वे मुस्कुरा कर कहते थे की
शिशुपाल की भांति "”समय
"”
पर
इसके साथ भी न्याया होगा |
अंततः
एक लड़ाई मैं पौंड्र ने श्री
कृष्ण पर अपना चक्र फेका जिसको
श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन
चक्र से ना केवल ध्वष्ट किया
वरन वरन पौंड्र को भी धरासायी
किया |
बस
इतना ही ..........