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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 29, 2013

कितनी - कितनी पहचान ---आधार या वोटर कार्ड अथवा ड्राइविंग लाइसेन्स ........

 कितनी  - कितनी पहचान ---आधार या वोटर कार्ड अथवा ड्राइविंग  लाइसेन्स ........

                        गरीबी रेखा की परिभाषा  पर चल रही बहस को लेकर  राजनीतिक दल  अगर एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं तब अर्थ शास्त्री भी ''विकास के माडल''''को लेकर उलझ गए |देश के सामने एक बहस चल गयी की पाँच रुपये मे मे पेट भर सकता हैं या बारह रुपये मे | हालांकि यह आंकड़े है और गणित के औसत के आधार पर की गयी यह गणाना ही हैं | चलो फिर भी गलती तो योजना आयोग की हैं , जिसमे कागज़ पर लिखे  अंको और विभागो की रिपोर्ट के आधार निरण्य लिए जाते हैं | मानव की संवेदना और हालत को, यंहा के अफसर क़तई नहीं समझते हैं | यह सिलसिला  आज का नहीं वरन   आज़ादी से पहले का हैं | जब तंत्र  ही शासन करता था| परंतु आज भी हम ''बाबुओ ''की फौज के बनाए नियमो के ही गुलाम हैं , जंहा जनता की हालत -और परिस्थिति  के बारे मे  जमीनी जानकारी का अभाव होता हैं | 
                                         इस  ''तंत्र'' और  राजनैतिक नेत्रत्व के  संघर्ष  को हम ज़मीन पर अनेक दिमाग खराब कर देने वाले नियम -कायदे दिखाई पड़ते हैं | क्या आप भरोसा कर सकते हैं की आप भारत के नागरिक हैं ---- यह साबित करने के लिए आप को ''पासपोर्ट'' अथवा ''' निर्वाचन आयोग का पहचान पत्र ''' चाहिए | अब देश मे कितने पासपोर्ट धारी हैं यह आसानी से पता चल सकता हैं | अमूमन यह  संख्या  एक करोड़ से कम होगी | वोटर पहचान पत्र ज़रूर  सारे  निर्वाचको  को मिल गया हैं ऐसा विश्वास  हैं |परंतु  फिर आधार कार्ड आया , जिस पर साफ - साफ लिखा हुआ हैं की यह """नागरिकता """ का प्रमाण पत्र नहीं हैं | तब फिर क्या उपयोगिता हैं इसकी ?  फिर पहचान के लिए हैं ड्राइविंग लाइसेन्स !  इन सभी पहचान पत्र मे जन्म तिथि  भी लिखी होती हैं , परंतु इन सभी को जन्म का प्रमाण पत्र नहीं माना जाता हैं | क्यो इसका जवाब कोई नहीं  देना चाहता हैं , आखिर क्यों ? अगर यह सभी प्रमाण पत्र मान्य हैं तब ऐसा क्यो की एक दफ्तर मे एक पहचान पत्र मान्य हैं , तो सिर्फ एक उद्देस्य के लिए ? 
                       पहचान --निवास - जन्म  की तसदीक़ क्यो नहीं एक ही दस्तावेज़ को मान्य किया जाता हैं ? क्या वोटर कार्ड तीनों तथ्यो की तसदीक़ करने मे असफल हैं ? अथवा अफसरो की ''सनक''' ही इस हालत का जिम्मेदार हैं ? इतनी आसान सी बात को क्यो नहीं दिल्ली मे बैठे ''''तंत्र ""''के जिम्मेदार समझते हैं ?सिर्फ  नियमो मे बदलाव करके पहचान पत्र के इन झमेलो से क्यो नहीं देश की करोड़ो लोगो को मुक्ति दिला देते हैं ?